गलतफहमी-13

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कैसे हो दोस्तो.. प्यार के अहसासों में डूबी यह कहानी, आप लोगों को कैसी लग रही है? अभी कहानी में कई रोमांचक मोड़ और उत्तेजना भरे पल आने बाकी हैं। कहीं पर आप लोगों की आँखें नम होगी तो कहीं पर अंडरवियर गीले हो जायेंगे। बस आप कहानी का आनन्द उठाते रहिए, और अपने कमेंटस से मेरा हौसला बढ़ाते रहिए। फिर देखिए आपको ये संदीप रोमांच और आनन्द के किस शिखर तक पहुंचाता है।

अब तक आपने मेरे और तनु भाभी के बीच की बातें, फिर मेरी काल्पनिक कहानी जिसमें आप पाठकों का ही जिक्र था, फिर शुरू हुआ तनु भाभी के बचपन से लेकर अब तक की विस्तृत कहानी, जिसमें भाभी ने स्पष्ट कर दिया कि उसका बचपन का नाम कविता था, जिसे शादी के वक्त बदला गया था। और अब कविता अपने स्कूल के टूर की वापसी तक की कहानी बता चुकी है।

रोहन उसके क्लास का ही एक सांवला सा लड़का है, जिसके साथ पास आना और हमारे बीच गलतफहमी होना और नाराज होना चलते रहा। फिलहाल दोनों की बातचीत बंद है और स्कूल की पढ़ाई फिर से प्रारंभ हो चुकी है।

टूर से आने के दो महीने बाद ही हमारी परीक्षा शुरू हो गई, इस बीच हम दोनों ने ही बात करने के लिए पहल नहीं की, अब वो अपनी बहन को छोड़ने हमारे घर नहीं आता था, तो मैं ही कभी-कभी छोटी को उसके घर छोड़ आती थी। पर हम दोनों अजनबियों जैसा ही व्यवहार करते थे, हम पहले भी ऐसे ही रहते थे, इसलिए किसी को हमारे बदलने का अहसास नहीं हुआ।

पर अब मेरी रातों की नींद उड़ने लगी थी, मैं घण्टों तक उसके दिये ब्रेसलेट को और उसके लिए लिये की-रिंग को देखती रहती थी, मैं उसे चाहती थी या महज उसके प्रति मेरा आकर्षण था?? लेकिन आकर्षण के लायक तो उसमें कुछ नहीं था, फिर क्या बात थी कि मुझे उसका साथ अच्छा लगता था।

इन सब ख्यालों के अलावा मेरी नजरों के सामने मेरी सीनियर की हॉटनेस और सर के साथ उसकी कामुक हरकत घूमने लगती थी और रात को छोटी के सो जाने के बाद मैंने कई बार अपनी योनि को ऊपर से सहला कर शांत किया था और अपने उरोजों का मर्दन भी मुझसे स्वत: ही हो जाता था। शायद यही सब वजह है कि मैं टूअर से लेकर अब तक दो-तीन महीनों में ही और भी ज्यादा कामुक और जवान लगने लगी थी।

ऐसा नहीं है कि मैं पूर्ण परिपक्व हो गई थी, पर इस उम्र का हर दिन अपको परिवर्तित करते रहता है, और वो परिवर्तन आपको निखारते रहता है। वक्त के साथ ही मैंने ध्यान देकर कुछ यौन जानकारियाँ भी इकट्ठी कर ली थी, और कुछ अभी भी जानना बाकी था।

मुझे अपने जवान होने के वक्त की एक घटना आज भी याद आती है तो मैं रोमांचित हो उठती हूं। हमारे टूर से लौटने के बाद मैंने और रोहन ने बातचीत नहीं की थी, पर एक दूसरे को देखने की ललक आज भी कायम थी। मैं उसे या वो मुझे छुप कर फालो करता था।

ऐसे ही एक दिन जब हमारा आखिरी पेपर था तब रोहन समय से दस मिनट पहले ही पेपर देने उठ गया और मेरा पेपर तो काफी पहले का बन चुका था तो मैं भी उसके पीछे पीछे उठने लगी। वैसे मैं तो कब का पेपर देकर जा चुकी होती पर हमारी क्लास में परीक्षा ड्यूटी उसी कुंवारे सर का लगा था जो मेरी सीनियर का यार भी था। मैं उसे ही देखने के चक्कर में बैठी रही क्योंकि उसे देख कर ही मन में कुछ कुछ होने लगता था। पर मैं रोहन को भी देखना चाहती थी, क्योंकि आज के बाद छुट्टियाँ शुरू हो जाती.. इसलिए मैं जाने लगी।

प्रेरणा जो मेरे पीछे बैठी थी उसका पेपर पूरा नहीं हुआ था तो उसने मेरा शर्ट खींच कर मुझे रुकने को कहा, तभी मेरे शर्ट के सामने के दो बटन टूट गये, जिससे मेरी शमीज दिखने लगी। ऐसे भी अभी-अभी मेरे उरोजों के बढ़ने की वजह से वो शर्ट की साईज मेरे शरीर के लायक ही नहीं थी।

मैं घबरा गई और शर्म के मारे पानी-पानी होने लगी, मैंने हाथ से शर्ट के पल्लों को जोड़ के पकड़ा था और अपनी सहेलियों के पास इस टेबल से उस टेबल शर्ट को कुछ देर सिले रखने के लिए, पिन मांगने लगी। लेकिन अभी पेपर चल रहा था, तो सर हलचल की वजह से पास आकर डांटने लगे- कविता, तुम अपनी सीट से उठ कर क्या कर रही हो? मैंने हकलाते हुए जवाब दिया- क्कक्कुछ नहीं सर बस ये बटन टूट गये! यह कहते हुए मैंने अपनी आँखों को नचा कर अपने सीने की ओर इशारा किया।

तब तक एक लड़की ने पिन दे दिया, सभी लड़कों का ध्यान मेरी ओर ही था। सर ने सबको पेपर पर ध्यान देने को कहा और मुझसे कुछ नहीं कहा। मैं भी पिन लेकर कमरे के गेट तक आई और वहाँ बैठे दूसरे टीचर को पेपर देकर जाने लगी।

मैं थोड़ी दूर ही गई थी कि उन्हीं कुंवारे सर की आवाज कानों से टकराई- कविता, एक मिनट रुको! मैं रुक गई।

अभी सभी पेपर दे रहे थे, तो यहाँ आप-पास भी कोई नहीं था और मेरे बाबूजी की परीक्षा ड्यूटी अलग क्लास में थी, तो उनके अचानक आने की भी कोई संभावना नहीं थी। मैंने अभी तक पिन नहीं लगाया था, मैंने सोचा कि सायकिल के पास अकेले में लगाऊंगी।

मेरी नजरें रोहन को ढूंढ रही थी, पर शायद वो चला गया था। और मैं सायकिल तक पहुंच पाती, उससे पहले ही सर ने आवाज लगा दी, मुझे शर्ट को ऐसे ही पकड़े रहना पड़ा। सर मेरे पास आये और मुस्कुराते हुए मुझसे पूछा- क्या हो गया था कविता? अब मुझे नहीं मालूम कि यह प्रश्न पूछना जरूरी था भी या नहीं, पर मुझे प्रेरणा को बचाना था, अगर मैं उसका नाम लेती तो वो डांट खाती। और मेरे मन में एक शैतानी भी सूझ रही थी, तो मैंने मुस्काराते हुए अपने शर्ट के पल्ले छोड़ दिये और अपने उभरे कसे हुए सुडौल सीने को दिखा कर कहा- शायद ये आजाद होना चाहते थे, इसलिए इन्होंने बटन तोड़ दिये।

मैं इतना कहते ही उनके चेहरे को देखने लगी, मैं उनके भाव पढ़ना चाहती थी, मैं उनकी कमजोरी जानती थी, इसलिए मैंने इतनी हिम्मत की। उनकी नजरें मेरे उरोजों पर गड़ी की गड़ी रही और उन्होंने एक बार अपनी जीभ जुबान पर फिराई। उतने में ही मेरी चूत लपलपा गई। पर मैंने अपने शर्ट के पल्ले फिर से पकड़ लिये और हंसते हुए वहाँ से भाग खड़ी हुई, और कुछ दूर जाकर पलट कर देखा, तो वो भी खड़े ही थे, शायद यह एक स्वाभाविक क्रिया है कि जब मन में कुछ हो, तब लड़की पलट कर जरूर देखती है और लड़का उसके पलटने का इंतजार जरूर करता है।

अब मैंने पिन लगाया और जल्दी से घर पहुंची, मेरी आग तो अभी भड़की हुई ही थी, मैं सीधे अपने कमरे में गई। इस वक्त छोटी बरामदे में पढ़ रही थी इसलिए मैंने कमरे का दरवाजा बंद किया आईने के सामने खड़ी हो गई और खुद के ही अंग को निहारने लगी. मेरे ध्यान में सबसे पहले जो बात आई वो यह थी कि बटन के टूटने पर जिसने भी मुझे देखा होगा उसे क्या दिखा होगा। और उससे भी बड़ी बात उस कुंवारे सर ने क्या देख कर अपनी जीभ होंठों पर फिराई थी। मुझे गौर भी नहीं करना पड़ा और बात समझ आ गई, सबने देखा या नहीं मुझे नहीं पता, पर सर ने मेरे उठे हुए निप्पल को देख कर ही जीभ फिराई थी, और ये भी हो सकता है कि ये निप्पल उनके सम्मान में ही खड़े हुये हों।

मैंने आईने के सामने ही शर्ट निकाल कर एक किनारे रख दिया और अनायास ही मेरे हाथों ने मेरे उरोजों को दोनों ओर से नीचे से ऊपर की ओर थाम लिया इससे मेरे चूचुक और स्पष्ट नजर आने लगे, तो मैंने उन्हें भी छू कर देखा.. अब छूआ क्या उन्हें मसल कर देखा.. वो बहुत सख्त हो चुके थे, तभी वो ब्रा और शमीज को भी छेदते हुए बाहर आने को व्याकुल थे।

मैं रोमांचित तो थी ही पर मैं हैरान भी थी।

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आज से पहले मेरे चूचुक कभी इस तरह से सख्त नहीं हुए थे, या शायद हुए भी हो तो मैंने कभी ध्यान नहीं दिया था।

अब मेरा हाथ पेट पर फिसलता हुआ, पूरे शरीर को सहलाने लगा, मुझे समझ नहीं आ रहा था कि मुझे आज क्या हो रहा है, क्या मेरे शरीर को सैक्स की जरूरत है? पर मैं तो अभी सिर्फ आठवीं में ही हूं। क्या मैं उस कुंवारे सर का लंड चूसना या डलवाना चाहती हूं? पर वो तो मेरे सर हैं..! उनके साथ मैंने सोचा भी कैसे..!

अब मैं यह कहाँ से पता करूं कि किस उम्र की लड़की को किस उम्र के लड़के के साथ सैक्स करना चाहिए। अगर हम उम्र के साथ करना चाहिए तो रोहन कैसा रहेगा? पर वो तो मेरा मजाक बनाता है! फिर भी वो मुझसे बात करेगा तो मैं उसे माफ कर दूंगी।

यही सोचते सोचते मेरी चूत पनियाने लगी और मैंने स्कर्ट का हूक खोला और उसे अपने शरीर से अलग कर दिया। अब मैं मेरुन पेंटी और पेट तक आती, नाभि की घूंघट जैसी सफेद शमीज और उसके अंदर, खुलने को बेकरार हो चुकी सफेद ब्रा में आईने के सामने खड़ी थी।

सच में मैं पूरी जवान नजर आ रही थी, एक बार तो मैं खुद को देख कर शरमा ही गई। फिर मैंने खुद से बेशर्मी करते हुए एक हाथ को पेंटी में डाला और एक हाथ से खुद के बालों को सहलाने लगी. चूंकि मैंने ऐसा फिल्मों के हॉट गानों में देखा था तो मुझसे ऐसा अनायास ही हो गया। अब मैंने अपने दोनों हाथ अपनी शमीज में डाले और अपने मम्मों को दबाने लगी, पता नहीं उसे दबाने से मुझे सूकुन मिल रहा था या बेचैनी बढ़ रही थी, शायद बेचैनी ही बढ़ी थी तभी तो मैंने अपनी शमीज और अपनी ब्रा एक झटके में निकाल फेंकी और अपनी गोरी चिकनी कमर से लेकर उभरे नोकदार सुडौल और भूरे निप्पल वाले उरोजों तक मेरे हाथों की शिरकत होते रही।

मेरी चूत के ऊपर मुलायम भूरे बाल थे, जो बहुत ही आकर्षक लग रहे थे, ये बात मुझे भी आज ही पता चली क्योंकि आज से पहले मैंने उन्हें इस तरह आईने में पेंटी उतार कर नहीं देखा था, मेरी मुंह सिली चूत भी मुझे बहुत आकर्षक लग रही थी, और पता नहीं क्यों वो जगह मुझे भट्टी के तपने जैसा अहसास करा रही थी।

मैंने उसकी सजावट में लगे रेशमी बालों को हल्के से खींचा और दर्द की जगह राहत महसूस की और मेरे मुंह से आहहह निकल गई। चूत के ऊपर कुछ शबनम की बूंदों सी प्रीकम चमक उठी थी, मैंने उसे एक उंगली में टच करते हुए वहीं पर ब्यूटीक्रीम लगाये जैसा मल दिया, और अपनी चूत जो अभी सिर्फ एक छोटी योनि थी की फांकों पर नीचे से ऊपर तक उंगलियाँ फिराने लगी।

मेरी टांगें भी इतनी खूबसूरत लग रही थी कि उन्होंने मुझे खुद को आकर्षित कर लिया, मेरी हाईट बढ़ रही थी पर उस समय तक मैं पांच फुट तीन इंच की हो चुकी थी.. इसलिए मैं किसी नई मॉडल जैसे लग रही थी, या शायद उनसे भी सुंदर। ऐसे भी खिलते हुए फूल और खिल चुके फूल में अंतर तो होगा ही। खैर जो भी हो मैंने अब ब्रेजियर भी तीस नम्बर की पहननी शुरू कर दी थी। वैसे मैं पुरानी ब्रा 28 का ही पहनती थी पर नई वाली तीस की ली थी, जो मुझे सही आती थी।

अब मैंने अपनी हरकतें तेज कर दीं। और पता नहीं कब मेरी एक उंगली चूत में घुस गई, मुझे एक तीखा दर्द हुआ.. पर मैं अपनी जोश वाली हालत में संभाल गई, मैंने उंगली आधी ही डाली थी, और मेरी उंगली भी तो आप लोगों की तुलना में पतली थी, तो इस उम्र में अपनी खुद की चूत में खुद की एक उंगली बर्दाश्त करना बड़ी बात नहीं है। और ये भी जान लें की आधी उंगली से कोई सील-वील नहीं टूटती।

अब मैं मशीन की तरह हाथ चलाने लगी, खड़े-खड़े मेरे पैर दुखने लगे तो मैंने एक पैर अपने पलंग पर रख लिया, जिससे मुझे हाथ चलाने में और आसानी हुई, पर अब मैं अकड़ने लगी, मेरी आँखों के आगे अंधेरा छाने लगा, शरीर से कुछ त्यागने को व्याकुल होने लगा, शायद मेरी चूत से लावा फूटने वाला था, जी हाँ लावा ही फूट पड़ा.. बहुत ज्यादा नहीं था, पर मेरे हाथों को भिगोने के लिए काफी था. मैं सिमटने लगी, मैं थरथराने लगी, मैं बिस्तर पर गिर पड़ी… यह मेरा पहला अनुभव था, और उस पल के आनन्द को शब्दों में बता पाना मेरे लिए संभव नहीं है।

फिर पांच मिनट में मुझे खुद से शर्म आने लगी, पर ये खुशी वाली शर्म थी। मैं आनन्दित होकर मुस्कुरा कर अपनी चूत को आईने के सामने फैला कर देखना चाहा, मैं जानना चाहती थी कि वो कितना खुश है। वो वाकयी मुझसे ज्यादा खुश थी, तभी तो उसमें पहले से ज्यादा चमक और ताजगी नजर आ रही थी।

मैंने उसे खुशी देने के लिए खुद को थैंक्स कहा और कपड़े पहन कर बाथरूम चले गई। बाथरूम बाहर था, इसलिए मैंने अपने पास रखे तौलिये से खुद को साफ करके कपड़े पहन लिए और जब बाहर निकली तो पता नहीं क्यूं कोई कुछ नहीं जानता था फिर भी मुझे शर्म आ रही थी? मैं बाथरूम से आकर पढ़ाई में लग गई। वैसे पढ़ाई सिर्फ एक बहाना था, क्योंकि मैं घर वालों से नजर चुरा रही थी इसीलिए मैं पुस्तक खोल के बैठी थी। वैसे मेरा पूरा ध्यान आज की मेरी अपनी ही हरकतों पर केन्द्रित था, और अगर भूलने भी लगती तो मेरे मसले हुए उरोजों का हल्का दर्द और नई नवेली दूल्हन की तरह शर्माती चूत की कसक मुझे वो लम्हें फिर से याद करा जाती थी।

खैर अब मैं कभी-कभी खुद को इस सुख के हवाले कर ही देती थी और मेरा शरीर भी इस अल्प सैक्स से खिलने लगा था। पर मुझे अब एक लंड की जरूरत थी और लंड की याद आते ही मुझे दो चेहरे नजर आते थे, एक उस कुंवारे सर का जिसे पाना मुझे थोड़ा मुश्किल और गलत लगता था, और दूसरा रोहन का जो मुझे हर तरह से उचित और अच्छा लगता था। मैं उस की-रिंग और ब्रेसलेट को भी देखना नहीं भूलती थी और रोहन की याद में तड़प भी जाती थी। और ऐसे भी अब मैं उस रास्ते पर चल पड़ी थी जहाँ खूबसूरती से ज्यादा उपलब्धि मायने रखती है। मतलब यह कि कौन पास है और कौन सहजता से मिल सकता है। तो जाहिर है रोहन के अलावा ऐसा और कौन हो सकता था।

अब तो छोटी के भी पेपर खत्म हो गये थे। तो एक दिन बाबूजी ने घर पे बातों ही बातों में बताया कि इस वर्ष से हमारे स्कूल में ग्यारहवीं की क्लास शुरु हो जायेगी, और अगले वर्ष बारहवीं की क्लास भी लग जायेगी। माँ बहुत खुश हुई कि चलो अब बेटियों की घर पे रह कर ही पढ़ाई पूरी हो जायेगी। पर बाबूजी थोड़े चिंतित होते हुए बोले.. हाँ पर हम लोगों की परेशानी बढ़ जायेगी। माँ ने कहा- कैसी परेशानी जी? तो बाबूजी ने बताया- तीन साल पहले ही तो दो नये शिक्षक आये थे, अब वो स्कूल का काम समझने लगे थे पर उनका तबादला हो गया है और इधर काम भी बढ़ गया है। अब देखो उनकी जगह कौन आता है। माँ ने हम्म्म करके सर हिलाया।

पर मैं पूरी तरह हिल गई.. क्योंकि वो उसी कुंवारे सर और उसके साथ आये एक और सर की बात कर रहे थे। दोनों यंग थे तो स्कूल का अच्छा संभाल रखे थे, अब वो अंदर क्या करते थे इससे किसको मतलब! और मुझे झटका इसलिए लगा क्योंकि मैं ‘उनको पटा लूंगी’ करके प्लानिंग करने लगी थी।

खैर अब वो जा रहे थे, तो उन्हें रोकना मेरे वश में नहीं था। तो अब मैं अपने इकलौते और अच्छे विकल्प रोहन की ओर ध्यान देने लगी।

एक दिन मैंने छोटी से बहाना करके रोहन की बहन के बारे में पूछा- तेरी सहेली आजकल हमारे घर क्यों नहीं आती, और तू भी नहीं जाती? तो उसने कहा- दीदी, उसे यहाँ तक छोड़ने वाला कोई नहीं होता। मैंने तपाक से कहा- पहले तो रोहन छोड़ता था ना..! अब क्या हुआ? उसने मुझे गौर से देखा और मुंह बनाते हुए कहा- अनजान मत बनो दीदी! आपने ही उसे सबके सामने तमाचा मारा था, और कभी सॉरी भी नहीं कहा! और तो और, उस समय क्या हुआ था ये भी जानने की कोशिश नहीं की।

तो मैं चिढ़ गई- और क्या जानने की जरूरत है.. उसने मुझे गलत तरीके से छुआ और सभी लड़कों के साथ मिलकर मेरा मजाक उड़ाया, ऐसे में तमाचा ही खायेगा ना.. और मैं बिना गलती के सॉरी भी क्यूं बोलूं? छोटी ने फिर मुंह बनाया और कहा- दीदी, अपना घमंड थोड़ा कम करो.. उस दिन उसने तुम्हें छू कर मजाक नहीं उड़ाया था, बल्कि उन लड़कों का मजाक बनने से बचाया था। मैं और अधिक गुस्सा हो गई, मैंने छोटी को डांटते हुए कहा- देख तू ज्यादा मत बोल, इतनी सी है और जुबान चलाती है। और तू ये सब कैसे जानती है?

मैं सच कहूं तो उसकी बातों ने मुझे हिला दिया था, शायद मैं फिर एक बड़ी गलतफहमी का शिकार हो चुकी थी, पर मैं अपनी गलती नहीं होने का दिखावा कर रही थी।

अब छोटी ने कहा- मैंने जब रोहन भैया से हमारे घर नहीं आने का कारण पूछा तब उन्होंने कुछ नहीं बताया, पर मेरे और मुक्ता (रोहन की बहन) के बहुत जिद करने पर, रोहन भैया ने हमारे घर नहीं आने का पूरा कारण तुम्हें कुछ नहीं बताने की शर्त पर बताया। भैया ने बताया कि तुम्हारे अंदर वाले कपड़े की पट्टी दिख रही थी, जिसे देख कर लड़के बहुत समय से कमेंट कर रहे थे, पर जब भैया ने उन्हें टोका तो उन्होंने स्पष्ट कह दिया कि ‘जब वो दिखा रही है तभी तो देख रहे हैं। और अगर वो कपड़े ठीक कर लेती तो हम बोलते ही क्यों।’ तब भैया से नहीं रहा गया और वो उठ कर आपके पास आये और उन्होंने आपके अंदरूनी कपड़े की पट्टी ठीक की। तो वो लोग उसकी इस हरकत पे और खिलखिला उठे। लेकिन आपने भैया को जब गलत समझा और तमाचा मारा तब उन लड़को को चिढ़ाने का और मौका मिल गया। भैया चाहते तो आपको सच्चाई बता सकते थे, या आपको जवाब दे सकते थे, पर वो आपको शर्मिंदा नहीं करना चाहते थे। इसलिए उन्होंने हमें भी तुमसे कुछ भी कहने से मना किया था।

हाय राम..! ये मैं क्या कर बैठी..! मुझसे फिर इतनी बड़ी गलतफहमी हो गई। और इस बार तो मैं रोहन को मुंह दिखाने लायक भी ना रही।

एक ही झटके में मेरा सारा गुरूर मिट्टी में मिल गया। अब तो मैं छोटी को ये भी नहीं बता सकती थी कि ब्रा की पट्टी मैं जानबूझकर ही उन्हें दिखाना चाह रही थी। मुझे क्या पता था कि मेरी हॉट दिखने की चाहत इतनी मंहगी पड़ेगी।

अब तक मेरे दिमाग से रोहन को सॉरी बोलने की बात पूरी तरह निकल चुकी थी, अब मुझे रोहन पर प्यार आ रहा था, ऐसा प्यार जिसे मैं कभी खोना नहीं चाहती थी। मेरे पांव जड़ से हो गये आँखें डबडबा गई और आवाज भरभरा सी गई पर मैंने छोटी को कुछ नहीं कहा, वो मुंह बना के चले गई।

मैं अपने कमरे में बैठ गई और रोने लगी, मैं इतना जोर से चिल्ला कर रोना चाहती थी कि आसमां भी कांप उठे, पर अभी घर पर सब थे तो मैंने ये सैलाब अपने अंदर ही रोक कर रखा और घुटन सी महसूस करने लगी.

तभी मुझे उसकी दी हुई ब्रेसलेट याद आई.. मैंने उसे तड़प कर सांस लेने वाली सिलेंडर की तरह ढूंढा और लपक कर चूमने लगी.. और चूमती ही रही.. मुझे उस ब्रेसलेट में रोहन नजर आ रहा था, अब मुझे रोहन के साथ बिताई हर बात याद आने लगी और यादें मुझे तड़पाने लगी, मैं रोहन के पास जाना चाहती थी… मैं अभी जाना चाहती था, मैं पल में उसके पास पहुंच जाना चाहती थी, पर घर की चौखट पर ही मेरे पाँव ठिठक गये.. मैं क्या कहूंगी उससे..? कैसे नजरे मिलाऊंगी..? सॉरी का मतलब तो होता है कि अब मैं ये गलती दुबारा नहीं करूंगी। पर मैं तो वही गलती बार-बार दोहरा रहीं हूं। मैंने सोचा कि मेरी सजा यही है कि मैं अकेली ही घुटती रहूं।

अब मेरी बेचैन जिंदगी का सहारा वो एक छोटा सा ब्रेसलेट बन गया था और मेरा घमंड जैसे जमींदोज सा हो गया, अब मुझे हर तरफ रोहन.. रोहन… और सिर्फ रोहन.. नजर आने लगा था। उसकी मासूमियत, उसकी सोच, उसकी अच्छाई का कोई सानी नहीं था। मैंने रातों को कई बार तन की आग बुझाते हुए रोहन को महसूस किया था, पर अब के अहसास और पहले के अहसास में फर्क था, अब रोहन मुझे सैक्स टाय नहीं बल्कि मेरा शहजादा नजर आने लगा। अब मैं रातों को उसका ब्रेसलेट चूमती और उससे बातें भी करती। उस ब्रेसलेट में जैसे रोहन की जान बस गई थी।

एक रात को तो मैं रोहन के लिए इतना तड़पी कि ब्रेसलेट को ही रोहन समझ कर अपनी चूत को ब्रेसलेट से रगड़ने लगी। कामोत्तेजना के समय अच्छा भी लगा पर बाद में छिला हुआ भाग बहुत दर्द भी कर रहा था। मैंने ऐसे ही लगभग एक महीना काट लिया.. पर अब रोहन से दूर रहना मेरे बस का नहीं था। तो मैं जानबूझ कर छोटी को मुक्ता के घर छोड़ने जाने लगी ताकि रोहन दिख जाये या बात हो जाये। पर दो-तीन बार वह नहीं दिखा, लेकिन चौथी बार मेरी किस्मत अच्छी थी, जब मैं उसके घर के सामने पहुंची तो वह बाहर के लिए ही निकल रहा था, उसने मुझे ऐसे स्माईल दी, जैसे कुछ हुआ ही ना हो।

अब मैंने सीढ़ियों पर चढ़ते वक्त जान बूझकर फिसलने जैसा नाटक किया, क्योंकि मुझे रोहन से बात करने का यही एक सरल तरीका नजर आ रहा था। मेरा नाटक सही साबित हो गया.. मैं गिर गई पर रोहन ने मुझे नहीं संभाला, मैं जानती थी कि उसने मुझे क्यों नहीं संभाला, जबकि वो संभाल सकता था। मैं खुद से उठी और वो ‘तुम ठीक तो हो ना..!’ पूछ कर औपचारिकता निभा कर जाने लगा.

उस दिन मुझे पहली बार यह भी अहसास हुआ कि जब कोई अपना औपचारिकता करता है तो कितना बुरा लगता है। रोहन की औपचारिकता मुझे चूभ रही थी, और यही संकेत था कि रोहन कोई गैर नहीं, मेरा अपना है। वो ना चाहते हुए भी जाने लगा, पर मैंने उसका हाथ पकड़ा और की-रिंग जो मैंने उसी के लिए ली थी, उसे थमा दिया और मुस्कुराते हुए कहा- तुम्हारा सामान मेरे पास रह गया था। उसी को देने आई थी।

अब उसकी और मेरी नजरें मिली.. दोनों की आँखों में समुंदर का उफान था पर हम दोनों ने उसे बाहर आने से रोक रखा था। आज मुझे अहसास हुआ कि आंसू बहाने से ज्यादा आंसुओं को रोकना मुश्किल होता है। हमने जल्दी से अपनी नजरें हटाई और अपने-अपने रास्तों का रूख किया क्योंकि हम एक पल भी और ऐसे रहते तो हम खुद को रोने या गले लगने से नहीं रोक पाते। और घर के सामने खड़े होकर ऐसा कर पाना भी संभव नहीं था।

मैं घर जाकर अगली मुलाकात के बारे में सोचने लगी। उस की-रिंग में आई लव यू लिखा था, रोहन चाहे चितना भी सीधा हो पर मेरे मन की बात वो की-रिंग से समझ ही सकता था इसलिए अब मुझे उसके जवाब का बेसब्री से इंतजार होने लगा।

इंतजार तो आप लोगों को भी होगा। उसके जवाब का, उनके मिलन का, कहानी के अगले भाग का.! क्यों साथियों है ना..?? रोमांचक कहानी ‘गलतफहमी’ जारी रहेगी.. कहानी का अपने पूरे शबाब पर आना अभी बाकी है…

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