गलतफहमी-11

This website is for sale. If you're interested, contact us. Email ID: storyrytr@gmail.com. Starting price: $2,000

नमस्कार दोस्तो, अब तक आपने कविता के स्कूल टूर के दौरान बस में हो रही बातों के बारे में पढ़ा। अब आगे…

प्रकृति की सुंदर छटा हमारा मन मोह रही थी। यहाँ घनघोर जंगल तो नहीं था, पर काफी पेड़ पौधे थे। लड़के हमसे बहुत ज्यादा दूरी पर नहीं थे, पर पेड़ पौधों की वजह से वो हमें नहीं देख सकते थे। हम सभी नदी तट पर खड़ी होकर इस रोमांचित करने वाले स्नान के बारे में सोचने लली क्योंकि ठंड के समय नहाने की सोच कर ही डर लग रहा था, पर मैडम की डांट के डर से सबने नहाने वाले कपड़े पहने।

मुझे नहीं पता कि सब घर पर कैसे नहाते होंगे, पर मैं तो घर में केवल पेंटी पहन कर नहाती हूँ, अगर रात को ब्रा उतार के शमीज(ईनर) वापस पहन लिया तो, नहाते वक्त भी शमीज(ईनर) पहने रहती हूँ, और अगर ब्रा शरीर पर ही है तो नहाते वक्त ऊपर का सब कुछ निकाल देती हूँ। और बंद बाथरूम में देखने भी कौन आने वाला है। पर यहाँ खुले में नहाना था, तो तीन चार छोटी लड़कियाँ ही शमीज और कैप्री में नहाने उतरी, टीचरों ने सलवार सूट ही पहने रखा, हम बाकी लड़कियाँ टी शर्ट और लोवर कैप्री में नहाने उतरीं।

पानी हमसे दूर नजर आ रहा था। नदी में जब पानी कम होता है तब धार किसी एक छोर में सिमट कर बहती है। यहाँ भी वैसा ही था, धार हमसे विपरीत वाले छोर में बह रही थी, तो हमने अपने बदलने वाले कपड़े तट पर ही रख दिये और नदी में उतर गई, सब ठंड से ठिठुर रही थी, थोड़े ही चलने पर पानी का पहला स्पर्श हुआ, जहाँ पर पानी मुश्किल से चार अंगुल ही रहा होगा, यहाँ पर पानी बहुत ठंडा लगा, हम सब फिर सिहर गये और उस सर को कोसने लगे कि पहले लड़कों को नहाने क्यूँ नहीं भेजा, हमारा तर्क था कि कुछ देर बाद नहाने से ठंड कम लगती।

सबने पहले ब्रश किया तो कोई फ्रेश होने गई। किसी को ऐसी चीजों की आदत तो नहीं थी, पर कभी-कभी कुछ नई चीजे रोमांच पैदा जरूर कर देती हैं। ठंड के लिए हमारा डर गलत था, इस बात का अहसास हमें तब हुआ जब हम डरती, झिझकती पानी में उतरने लगी और घुटनों से थोड़े ऊपर तक पानी में जाकर रुक गई, यहाँ पानी का गर्म अहसास मिला। दरअसल नदी नालों में ठंड में पानी गर्म और गर्मी में ठंडा होता है।

तीन चार छोटी लड़कियों की जांघों तक पानी आ गया, और कुछ लड़कियाँ मुझसे भी लंबी थी तो उनके घुटनों तक ही पानी आया। अब सबका मस्ती करना, एक दूसरे पर पानी छिड़कना, किसी का भागना तो किसी का डुबकना शुरू हो गया। पहली डुबकी के बाद सबका ठंड का डर गायब ही हो गया।

नदी में शायद इस लेवल तक ही पानी था, तो किसी को कोई डर नहीं था।

मैं सूरज की किरणों के संग चमक कर लहराते पानी की धारा बहते देख कर सोचने लगी- बहता पानी कितना निर्मल होता है। ना कोई द्वेष, ना रंज… बस बहता जाता है, और अपनी जगह खुद तलाश लेता है। काश हमारा मन भी इस पानी की तरह निश्चल और निर्मल हो जाता। पर मेरी यह सोच सिर्फ सोंच ही रह गई क्योंकि दूसरे ही पल मेरी नजर अपने एक सीनियर लड़की पर पड़ी, उसके कामुक बदन को देखते ही मुझे जलन होने लगी। वो सीनियर गुलाबी लोवर और काली टी शर्ट पहन कर नहा रही थी, उसकी हाईट मुझसे थोड़ी ही बड़ी होगी, पर उसके उभार मुझसे ज्यादा बड़े नजर आ रहे थे, नितम्बों में भी कसावट थी, अभी तो बाल गीले थे ही, और वो गालों पर चिपकते हुए उसके कंधों के सामने बिखर गये थे।

शायद उसने काले रंग की पेंटी पहन रखी थी, जो उसके गुलाबी रंग के लोवर के ऊपर से स्पष्ट झलक रही थी। उसने भी ब्रा पहन रखी थी, ‘उसने भी’ शब्द का इस्तेमाल मैंने इसलिए किया क्योंकि हमारे स्कूल की सभी लड़कियाँ ब्रा नहीं पहनती हैं या यूं कहें कि ब्रा पहनने लायक नहीं हुई हैं। उसकी ब्रा की पट्टी और बनावट भी भीगे टी शर्ट के ऊपर से झलक रही थी, पेट अंदर की ओर चिपका हुआ था, वो बहुत ही ज्यादा कामुक और सुंदर लग रही थी। मुझे उससे जलन होने लगी क्योंकि वो मुझसे भी ज्यादा हॉट और अच्छी लग रही थी। हालांकि हमारी टीचरों के साईज काफी बड़े थे पर मुझे तो अपने उम्र के आसपास वाली से ही अपनी तुलना करनी थी। मेरा ध्यान उधर ही था, पर मैंने जाहिर नहीं होने दिया।

वहाँ नहाती हुई सभी लड़कियों के बदन को आसानी से परखा जा सकता था, कपड़ा पहन के नहाने से कपड़ा शरीर से कैसे चिपकता है, यह तो आप समझ ही सकते होंगे लेकिन उस एक सीनियर के अलावा मेरे मुकाबले में भी कोई नहीं था। मैंने तो पिंक कलर की ब्रा पहनी थी और सफेद टी शर्ट तो जाहिर है कि मेरी ब्रा स्पष्ट ही नजर आने लगी थी। गनीमत है कि मेरी लोवर नीले कलर की थी, और होजरी कपड़े की थी इसलिए मेरी पेंटी कम झलक रही थी। कुछ लड़कियों ने मुझे चोर निगाहों से देखा भी था।

हम सभी मस्ती में डूबी हुई थी, पर हमारी टीचर जल्दी नहा के निकल गई। उनके डांटने पर कुछ लड़कियाँ भी जल्दी निकल गई और कपड़े बदल लिये। हम छ: लड़कियाँ अभी भी नहा रही थी तो हम लोगों ने कह दिया- आप लोग जाओ, हम जल्दी से नहा के आ जायेंगी।

चूंकि यहाँ डरने जैसा कुछ नहीं था इसलिए उन्होंने हाँ कहा और जल्दी आने को कहती हुई चली गई।

हमें ऐसे ही नहाते हुए दस मिनट और हो गये, फिर हम सब नदी से निकल कर कपड़ों की तरफ आने को हुई. तभी मुझे कपड़ों के पास कोई खड़ा दिखा, मुझे लगा कि कोई लड़का मस्ती करने के लिए कपड़ा छुपाने आया है, पर हमें अपनी ओर आता देख वो लड़का वहाँ से जाने लगा।

मैंने उसे पहचान लिया वो लड़का रोहन था, मुझे बहुत गुस्सा आया, जिसे मैंने इतना अच्छा समझा, वो ऐसा कैसे कर सकता है। मैं तो अब उसे पसंद भी करने लगी थी। उसके लिए मुझे बहुत गुस्सा आ रहा था।

फिर हम सब कपड़ों के पास पहुंची, सभी के कपड़े सही सलामत थे, हमने साथ लाये तौलिया लपेटकर कपड़ा बदला, मेरे पास वही खूबसूरत सीनियर खड़ी होकर कपड़े बदल रही थी तो मेरे से रहा नहीं गया, मैंने उसे कह ही दिया- दीदी, आप बहुत सुंदर और हॉट हो..! तो उसने मुस्कुरा के मुझसे कहा- तुमने कभी सैक्स किया है? मैं हड़बड़ा गई.. मैं इससे क्या बोल रही हूँ! और ये मुझसे क्या पूछ रही है।

मैंने कहा- सैक्स नन्न्न्नहीं तो.. मैं तो अभी उसके बारे में अच्छे से जानती भी नही..! सभी लड़कियाँ हंस पड़ी. वहाँ मेरे और प्रेरणा के अलावा सभी सीनियर ही थीं।

तब वो मेरे पास आकर प्यार से मेरे गालों को थामते हुए बोली- पहले तू सैक्स तो करने लग जा..! फिर तू तो हम सबसे ज्यादा हॉट और सुंदर निकलेगी। मैंने भी तुझपे गौर किया है तेरे तो लक्षण ही कमाल के हैं, जब तू जवान होगी तो तेरे ये बोबे.. लोगों को पागल बना देंगे। और ऐसा कहते हुए उसने मेरे बोबे दबा दिये। मुझे थोड़ा दर्द हुआ।

फिर मैंने दीदी से कहा- दीदी, आपने सैक्स किया है? तो वो फिर से हंस पड़ी और अपना माथा पिट लिया.. पर कहा कुछ नहीं.. तभी मैंने फिर सवाल कर दिया- क्या आप सभी सैक्स कर चुकी हो? तो वो सब हंसते हुए कहने लगी- पागल कहीं की.. चल भग यहाँ से..!

मैं अब चुप हो गई. उस समय मैं कुछ समझ नहीं पाई, पर अब सोचती हूँ तो समझ आता है कि उनमें से दो लड़कियों ने ही सैक्स किया था, क्योंकि उनकी शारीरिक रचना बता रही थी। पर उस समय तो मैं बस एक ही बात समझ पाई थी कि मुझे हॉट बनना है तो सैक्स करना पड़ेगा, पर मुझे नहीं पता था कि सैक्स कितना गहरा विषय है, मैं तो सिर्फ इतना जानती थी कि स्त्री और पुरुष के नजदीक आने को ही सैक्स कहते हैं, अंतरंग संबंधों के विषय पर भी अल्प ज्ञान ही था।

वो सीनियर लड़कियाँ हंसते हुए जा रही थी और उनके पीछे पीछे मैं और प्रेरणा। मुझे अपने प्रश्नों पर शर्म आ रही थी। पर खूबसूरती, जवानी और हॉट बनने का राज मैं जान गई थी- ‘सैक्स करना है’ मेरे दिमाग में यह बात दौड़ने लगी।

पर तभी मेरी नजर रोहन पर पड़ी, वो सभी लड़कों के साथ नदी में नहाने जा रहा था। हम लड़कियाँ ही आखिर में आ रही थी तो हमारे बाद उन लोगों को ही जाना था, उसे देखते ही मुझे उसकी कपड़े छुपाने वाली हरकत याद आ गई। हालांकि सबके कपड़े सही सलामत ही थे, पर शायद मैं नहीं देखती तो वो कपड़ों के साथ छेड़खानी जरूर करता।

मैंने उस वक्त कुछ नहीं कहा पर उसे सबक सिखाने के उपाय सोचने लगी। हमने तय स्थान पर बैठ कर तेल कंघी किया, फिर हमारी टीचर मैडम ने कहा कि उन्हें समय लगेगा. हमने कहा- तब तक हम बस के पास चलती हैं, वहाँ कपड़ों को सुखाने के लिए डाल देंगे, और हमें नाश्ता भी तो वहीं करना है।

सब चलने लगी, तभी मैंने रुमाल भूलने का बहाना किया और अपने नहाने के कपड़ों वाला थैला लेकर, नदी तट की तरफ दौड़ पड़ी.

मैडम ‘रुको-रुको’ कहते रही पर मैं ना रुकी, क्योंकि मेरे दिमाग में तो रोहन के कपड़े छिपाने की शैतानी सूझी थी। मेरा रुमाल नहीं छुटा था।

मैं रोहन के कपड़े पहचानती थी, मैंने उसके कपड़े वाले ढेर को उठा के अपने थैले में रख लिया और वापस भाग आई।

मैंने वहाँ जाते और वहाँ से लौटते वक्त ध्यान दिया था कि कोई मुझे ना देखे। और शायद किसी ने मुझे देखा भी नहीं था।

मैंने वहाँ से लौटकर सबको चलने को कहा, और हम सब बस में आ गये सभी का ध्यान कपड़े सुखाने और तैयार होने में लगा था, तभी मैंने रोहन की सीट पर चुपके से उसके कपड़े रख दिये और बस से नीचे उतर गई।

उधर लड़कों का ग्रुप नहा कर निकलने के बाद अपने कपड़े बदलने लगा, पर रोहन को उसके कपड़े नहीं मिले, जो उसने नहाने के बाद पहनने के लिए रखे थे, और वो भी जो उसने उतारे थे। अब सभी वहाँ आजू बाजू कपड़े तलाशने लगे। तब रोहन ने कहा- मत ढूंढिये, मैंने किसी को कपड़े ले जाते देखा है। तो सर ने कहा- किसे देखा है, बताओ? तब रोहन चुप हो गया।

सर ने कई बार पूछा पर वो कुछ ना बोला। एक दो लड़कों ने कहा- सर कविता इधर आई थी। तो रोहन ने मेरा पक्ष ले लिया- सर, वो ऐसा नहीं कर सकती। तब सर चिढ़ गये और उन्होंने कह दिया कि जब तक यह उसका नाम ना बताये, इसे कोई अपना कपड़ा नहीं देगा, इसे बस तक ऐसे ही चलना होगा। ये बातें मुझे बाद में पता चली। पर उस वक्त तो मैं ये जानना चाहती थी कि अब वो क्या करेगा क्योंकि उस समय वो केवल शॉर्ट्स ही पहने हुए था। आप सभी जानते ही हैं कि लड़के तो केवल अंडरवियर में ही नहाते हैं। उसने छोटा शॉर्ट्स पहन लिया था, वही गनीमत है।

हम बस के पास खड़ी थी, हमें दूर से ही लड़कों का ग्रुप आते दिख गया। रोहन लड़कों के पीछे छुपने की नाकाम कोशिश करते हुए आ रहा था और सभी लड़के उस पर हंस रहे थे, उसके बदन पर परपल कलर की प्रिंट शॉर्ट्स के अलावा और कुछ नहीं था, काला कलूटा, पतला दुबला मरीयल सा रोहन, ज्यों-ज्यों पास आते गया, त्यों-त्यों सबके मुंह से हंसी के फव्वारे छुटने लगे।

उन सभी में मैं भी सबसे ज्यादा हंसने लगी, ठहाके मार के हंसने लगी, लोट-पोट होने लगी, हंसते-हंसते आंखों में पानी आ गया, पेट दुखने लगा। मैं उसे देखती हंसी रोकने का प्रयास करती लेकिन फिर जोरों से हंस पड़ती थी। मैं खिलखिला रही थी, मैं अपना पेट पकड़ के हंस रही थी, मैं हंसते-हंसते बस से टिक गई क्योंकि अब खड़े रहने की ताकत मुझमें नहीं थी, मेरी हंसी रुक ही नहीं रही थी।

तभी हम सबके पास सर आये और सबको चुप रहने को कहा, सब चुप हो गये पर मेरी हंसी रुक ही नहीं रही थी। सर ने फिर डांट लगाई और चुप होने को कहा, मैं तब भी हंसती रही। फिर किसी लड़की ने पूछा- क्या हुआ सर, ये ऐसे क्यों आ रहा है? तब सर ने बताया- किसी लड़की ने इसके कपड़े छुपा दिए हैं और ये जानता भी है कि किसने इसके कपड़े छुपाए हैं, फिर भी बता नहीं रहा है, इसीलिए इसे ऐसी सजा मिली है कि इसे कोई हेल्प नहीं करेगा।

मेरा हंसना अचानक बंद हो गया। मैं अब डरने लगी क्योंकि गलती साबित होने पर मुझे कड़ी सजा मिलती और घर आने पर बाबूजी को बताया जाता सो अलग।

तभी हमारी मैडम ने कह दिया- यह कविता ही तो अपना रुमाल लेने वहाँ गई थी, और कोई तो उधर गया ही नहीं है, जरूर कपड़ा कविता ने ही छुपाये हैं।

इतना सुनकर मेरे तो हाथ-पाँव फूलने लगे, मैं हकला गई.. मैंने कहा- न..नहीं सर, मैंने ऐसा कुछ नहीं किया। तब सर ने कहा- ये सब तुमने ही किया है कविता! ये तो सभी जानते हैं, बस रोहन के बोलने की देर है। फिर तुम्हें सजा भी मिलेगी और तुम्हारे बाबू जी से भी शिकायत की जायेगी।

अब तो मेरे पैरों तले जमीन खिसक गई और मेरी नजर रोहन के चेहरे पर ही गड़ गई पर रोहन ने बिना देर किये ही कह दिया- नहीं सर, कविता का कोई दोष नहीं है। अब तो मैं बस तक आ ही गया हूँ। अब इस बात को यहीं खत्म कर दिया जाये, मुझे किसी से कोई शिकायत नहीं है। इतना कहकर वो बस में चढ़ गया।

कुछ ने मुझे बुरा-भला कहा तो कुछ मुंह बना कर चले गये।

सभी नाश्ता करने नीचे बिछी चटाई में बैठ रहे थे। बस में रोहन अकेला था, मैंने उसे झांक कर देखने की कोशिश की। उसने अपने कपड़ों को देखा और उसकी आंखें भर आई। उसने टावेल लपेट कर तुरंत कपड़े पहने और नीचे आ गया, और मुझे देख कर ऐसे व्यवहार किया जैसे कुछ हुआ ही नहीं।

वो अभी उदास सा था और मैं भी.. उससे बात करने की हिम्मत नहीं हो रही थी, तब भी मैंने उससे कहा- चलो रोहन नाश्ता कर लो..! उसने कहा- मन तो नहीं था पर अब तुमने कहा है तो खा लेता हूँ।

वो नाश्ते वाली जगह पर गया जरूर… पर उसने ज्यादा कुछ नहीं खाया, मैं उसे ही गौर कर रही थी, मैंने भी ऐसे ही थोड़ा बहुत दिखावे के लिए खाया। और हम सब बस में पहले की ही तरह बैठ गये। वैसे मुझे रोहन के दोस्त विशाल ने सीट बदलने का आफर दिया था, पर मेरा मन रोहन के करीब रहने को कर रहा था। मैंने जो किया उसके लिए मुझे पछतावा तो था, पर मुझे अपनी हरकत, रोहन जो करने वाला था उस हरकत का ही प्रतिउत्तर लगा इसलिए मेरे मन में कोई ग्लानि नहीं हो रही थी।

हम दोनों अलग-अलग दिशा में मुंह किये बैठे रहे। फिर एक बार मैंने देखना चाहा कि वो मुझे देख रहा है कि नहीं तभी हम दोनों की नजरें मिल गई। उसकी आँखें खामोश थी, बहुत से रहस्य को समेटे हुए समंदर की तरह उसकी काली आंखों में मैं डूबती चली गई, उसे भी शायद मेरी भूरी आँखों में वही बात नजर आ रही थी, मैं उसकी आंखों में ऐसे ही देखती रहती तो शायद मैं कुछ कर बैठती इसलिए मैंने सम्मोहन से बाहर निकलने के लिए उसे सॉरी कहा।

अब हम दोनों सम्मोहन से बाहर थे, तो उसने कहा- तुम सॉरी मत कहो.. मैं तुम्हें कभी भी किसी के सामने झुकते नहीं देख सकता, और ना ही किसी तकलीफ में। बल्कि मैं तुम्हारी हंसी, तुम्हारी मुस्कुराहट के लिए कोई भी तकलीफ उठा सकता हूँ। मुझे खुद से थोड़ी शर्म आ रही थी पर अभी मेरे मन के सवाल का जवाब नहीं मिला था। मैंने रोहन को कहा- फिर तुम हमारे नहाने के वक्त कपड़ों से छेड़खानी क्यूं कर रहे थे? रोहन ने मुस्कारा दिया और कोई जवाब नहीं दिया।

मैंने सवाल कई बार दोहराया, पर उसने अपने होंठों को सी लिया। मैंने तंग आकर उसे बहुत बुरा-भला भी कहा तब भी उसने कुछ नहीं बताया। फिर मैंने आखरी दांव खेला और कहा- अगर तुम मुझे नहीं बताओगे कि तुम हमारे कपड़ों से छेड़खानी कर रहे थे या नहीं, तो मैं सर के पास जाकर ‘तुम्हारे कपड़ों को मैंने छुपाया था’ वाली बात स्वीकार लूंगी। और इतना कहकर मैं उठने लगी, तभी रोहन ने मेरा हाथ पकड़ा और कहा- रुको कविता, तुम्हारी जिद के आगे मैं हार गया.. मैं सब बताता हूँ.. जब तुम लोग नहा रहे थे तब कुछ सीनियर लड़के तुम लोगों को छुप कर देखने गये थे, और वो तुम्हारे कपड़ों को छुपाने की बात कर रहे थे, जिसे मैंने सुन लिया और वक्त पर पहुंच कर कपड़े छुपाने से रोक लिया, इसलिए उन्होंने मेरे गाल पर झापड़ भी मारे। पर मैंने उन्हें कपड़ों से छेड़खानी नहीं करने दिया। वो ये हरकत दुबारा ना करें, इसलिए मैं वहाँ तुम लोगों के नहाते तक खड़ा रहा।

रोहन के मुंह से यह सच्चाई जान कर मेरे पैरों तले जमीन खिसक गई। वास्तव में मैं ज्यादा ही लाड़ प्यार से पल कर घमंडी हो गई थी, इसीलिए किसी की अच्छाई में भी मुझे बुराई नजर आने लगी थी और मैं अपने ही दिमाग से बुनी हुई गलतफहमी का शिकार हो गई थी। लेकिन अब मेरे हाथों से समय निकल गया था कि मैं रोहन को थैंक्स या सॉरी कहूँ इसलिए मैंने उससे सीधे ही पूछ लिया- तुम्हें किस गाल पर तमाचा पड़ा था? तो उसने बायें गाल की ओर इशारा किया और मैंने सीट से थोड़ा उठते हुए उसके बाएं गाल को चूम लिया।

रोहन मेरे इस झटके से हड़बड़ा सा गया, पर उसके दिमाग में एक मस्ती सूझी, उसने तुरंत अपना दायाँ गाल को दिखाकर कहा- शायद इस गाल पर तमाचा पड़ा था। तो मैंने तुरंत उसका दायाँ गाल भी चूम लिया और शरमा कर खिड़की की ओर देखने लगी।

तभी रोहन ने फिर कहा- माथे में भी मार पड़ी थी और होंठों को भी चोट लगी थी। पर मैंने उसकी बातों को अनसुना कर दिया, दर असल मैं शर्म के मारे उससे नजरें नहीं मिला पा रही थी, बस खिड़की की तरफ मुंह करके मुस्कुराती रही और अपनी बढ़ी हुई धड़कन को संभालने का प्रयास करती थी। रोहन ने मुझे पांच छ: बार कविता… कविता… कह कर पुकारा, पर मैंने कोई जवाब नहीं दिया। फिर वो भी शांत हो गया।

थोड़ी देर बाद मैंने उसे देखा तो वो अपनी सीट पर सर टिकाये हुए आंखें बंद करके लेटा हुआ था, उसके चेहरे की मुस्कुराहट उसकी खुशी बयाँ कर रही थी। मैं उसे इतना खुश देखकर खुद को रोक ना सकी, और मैंने मौका देखकर उसके होंठों को एक जल्दबाजी भरा चुम्बन दिया और फिर से खिड़की की ओर ऐसे देखने लगी, मैंने ऐसे जताया कि जैसे कुछ हुआ ही ना हो।

रोहन हड़बड़ा के उठा और मुझे देखने लगा, फिर अपना सर खुजाते हुए कहा- कविता, तुमने मुझे चूमा क्या? मैंने झूठ मूठ की नाराजगी दिखाते हुए कहा- मैंने कुछ नहीं किया, अब तुम ज्यादा आगे मत बढ़ो। फिर उसने सर खुजाया और कहा- हाँ शायद मैंने कोई सपना देखा हो। और फिर पीछे टिक कर आँखें बंद कर ली।

मैंने भी अपनी इस छोटी सी जीत की खुशी में दोनों हाथ ऊपर उठा के खुद को खामोशी से बधाई दी और मुस्कुराते हुए अपनी आँखें बंद कर ली। अब मुझे यह नहीं पता कि किसी ने हमें देखा या नहीं… मैं सच कहूँ तो मुझे इस बात की कोई परवाह भी नहीं थी।

कहानी जारी रहेगी,… आप आपनी राय इस पते पर दें.. [email protected] [email protected]

This website is for sale. If you're interested, contact us. Email ID: storyrytr@gmail.com. Starting price: $2,000