Mere Pati Ko Meri Khuli Chunoti – Episode 10

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उस दिन लिफ्ट से तो मैंने भाग निकली, परन्तु अगले कुछ दिनों में सारी कहानी अचानक पलट ही गयी। मुझे कई लोगों ने योगराज की बीमार मानसिकता के बारे में बताया।

उन्होंने बताया की योगराज बड़ा ही घमंडी और अहंकारी था। वह सफल प्रोफेशनल काबिल महिलाओं से नफरत करता था। उसका मानना था की महिलाओं का स्थान या तो मर्दों की सेज सजाने के लिए है या फिर रसोई घर में।

यदि कोई महिला को उसकी व्यावसायिक काबिलियत के लिए कोई सम्मान या प्रमोशन मिलता है तो उसका कारण उसकी काबिलियत नहीं बल्कि उस महिला की उच्च मैनेजमेंट को अपनी सुंदरता एवं सेक्स द्वारा खुश करने की क्षमता के कारण ही मिलता है।

वह बार बार सबको यह कहते थे, की काबिल महिआएं रईस और पूंजी पति बॉस के लिए चुदाई के साधन मात्र थे। महिलायें बच्चों को पैदा करने के लिए और मर्दों के सेक्स की भूख को मिटाने के लिए ही होती हैं. उनमें बौद्धिक क्षमता की कमी होती है।

जब मैंने यह सूना तो पहले तो मैं विश्वास नहीं कर पायी, पर जब मैंने बार बार कई लोगों से सूना तो मैं हैरान रह गयी।

आज के आधुनिक जमाने में भला एक पढ़ा लिखा इंसान ऐसा कैसे सोच सकता है? मैं भी तो एक सफल बुद्धि जीवी व्यावसायिक काबिल व्यक्ति थी।

अगर मुझे कोई ऐसा कहे की मैं मंद बुद्धि औरत हूँ और मेरी सफलता का कारण यह था की मैं बॉस लोगों से सेक्स करने से परहेज नहीं रखती थी तो मुझे कैसा लगेगा?

यदि कोई यह कहे की मैं मर्दों की चुदाई के लिए एक साधन मात्र हूँ तो मैं भला उसे कैसे बर्दाश्त करुँगी?

मेरे मन में योगराज के प्रति जो कामुकता के भाव थे, उसकी जगह नफरत ने लेली।

अगर योगराज का ऐसा सोचना था तो फिर मैंने तय किया की मैं उसे ऐसा पाठ पढ़ाऊंगी की जिंदगी भर वह औरतों को इतनी घटिया नजर से देखने की हिम्मत नहीं करेगा। मैं उन्हें यह बताउंगी की महिलायें सेक्स के खिलौने नहीं है। उनमें भी खूब क्षमता है और कई क्षेत्रों में तो वह मर्दों से भी आगे है।

जैसे जैसे मैं योगराज के बारे में सोचती गयी उनके प्रति मेरी घृणा बढ़ती गयी। मैं मौक़ा ढूंढती थी की कब मुझे योगराज को खरी खोटी सुनाने का मौक़ा मिले और मैं उसे अच्छा पाठ पढ़ाऊँ। और मुझे वह मौका जल्द ही मिल भी गया।

मैं मेरी टीम की एक सदस्य के साथ हमारे ऑफिस के ही बगल के कॉफ़ी शॉप में कॉफ़ी पी रही थी। मुझे साथ वाली कैबिन में से योगराज की आवाज़ सुनाई पड़ी। योगराज भी अपने कुछ साथीदारों से कुछ बात कर रहे थे। हमें उनकी आवाजें स्पष्ट सुनाई पड़ रही थीं।

योगराज की एक महिला साथीदार ने योगराज से हमारी ही ऑफिस की एक और टीम की बड़ी सफलता के बारे में कहा।

उसने कहा की वह सफलता में एक महिला का बड़ा योगदान था और उसके योगदान के लिए वह महिला को कंपनी ने बड़ा सराहा और एक प्रमोशन और बढ़ावा भी दिया।

यह सुनकर योगराज तिलमिला उठे और जोर से बोलने लगे, “बकवास है। उस महिला का क्या योगदान था? क्या उसे अपनी काबिलियत के लिए वह प्रशंशा, प्रमोशन और बढ़ावा मिला था या फिर उस महिला को अपनी खूब सूरत जाँघों को प्रदर्शित करने के लिए मिला था?”

योगराज के जोर से बोले हुए यह वचन सुनकर कमरे में बैठे हुए सारे लोग सकते में आ गये। योगराज हमारी कंपनी का एक जिम्मेवार एवं सीनियर लीडर था। उसके वाक्य कंपनी के कर्मचारियों के लिए मायने रखते थे। मेरे लिए इतना सुनना ही काफी था।

मैं मारे गुस्से के लाल हो गयी और अपने दोनों हाथों को मोड़ कर अपनी कमर पर दोनों हाथों की हथेलियों को टिकाकर आग बबूला हो कर योगराज के सामने आ खड़ी हुई।

मैं गुस्से भरी नजर से योगराज की और देखते हुए कहा, “अच्छा! तो आप कहते हो की उस महिला को अपनी काबिलियत के लिए नहीं बल्कि उसकी खूबसूरत जाँघों के लिए वह सब प्रशंशा, प्रमोशन और दूसरे पारितोषिक मिले ठीक है? क्या इसका मतलब यह हुआ की आप उन सब लोगों से ज्यादा अक्लमंद हो जिन्होंने उस महिला की कार्य क्षमता को परखा?”

शायद मेरे शब्दों से कहीं ज्यादा मेरी धमकी भरी अंगभंगिमा देख कर योगराज कुछ देर तक मुझे स्तब्ध हो कर ताकते ही रहे। उन्हें पता नहीं था की मैं भी वहाँ उनकी बातें सुन रही थी।

उन्होंने फिर मुझे ऊपर से निचे आँखे घुमाकर प्रशंशा भरी नजर से देखा और फिर थोड़ा मुस्कुराकर वही लोलुप नज़रों से देखते हुए बोले, “बापरे! माफ़ करना श्रीमती जी, मैं किसी को भी नीचा दिखाने की कोशिश नहीं कर रहा था। भाई अब मैं मानता हूँ की निर्णायकों का कोई भी दोष नहीं है। अगर मैं भी उनकी जगह होता और मुझे भी तुम्हारी जैसी सुन्दर फिगर वाली सेक्सी महिला की कार्यदक्षता का मूल्यांकन करना होता तो मैं भी वही करता जो उन्होंने किया।”

योगराज की बातें सुनकर मुझे सारे कमरे के लोगो के चेहरे पर कटाक्ष भरी हंसी दिखाई दी। यह तो उलटा हो गया। मैं योग की बात काटने चली थी और इधर मेरी ही फिरकी उड़ गयी। मैं सब को हँसते देख कर खिसिया गयी और गुस्से में कॉफ़ी शॉप से उँफ… की आवाज़ कर के बाहर निकल गयी।

मैं मुश्कल से थोड़ा ही चली थी की योगराज मेरे पीछे भागते हुए आये और पीछे से मेरी कमर अपने दोनों हाथोँ में पकड़ कर मुझे अपनी तरफ घुमा कर बोले, ” प्रिया, आई ऍम वैरी सॉरी। प्रिया डार्लिंग, मेरी बात तो सुनो। तुम गुस्से में इतनी सुन्दर लग रही थी की मैं अपने आप पर नियत्रण नहीं रख पाया। सच बोलता हूँ डार्लिंग तुम इतनी सेक्सी लग रही थी की उस वक्त मेरा मन किया की मैं तुम्हें वहीँ पर…… डालूं।”

योगराज ने वह शब्द नहीं बोले जो शायद वह बोलना चाह रहे थे। फिर चारों और नजर घुमाके उन्होंने देखा की कोई नजदीक सुन नहीं सकता था तो वह अपने मुंह को मेरे कान के पास लाकर बड़ी ही धीमी और मीठी आवाज़ में बोले, “प्रिया डार्लिंग, तुम इस अंदाज में इतनी सेक्सी और चुदक्कड़ लग रही हो की वाकई मैं मेरा मन तुम्हें चोदने के लिए बाँवला हो रहा है। डार्लिंग मैं तुम्हें सचमुच चोदना चाहता हूँ।”

यह तो योग के असभ्यता की हद ही हो गयी! हालांकि यह सही था की वह मुझे चोदने की बात मेरे कानों में बोले, पर जिन्होंने भी उसे देखा होगा उन्हें साफ़ अंदाज लग ही गया होगा की योग मेरे कानों में क्या कह रहे थे।

मुझे समझ नहीं आया की इस आदमी के माफ़ी मांगने की विचित्र तरीके से मैं कैसे निपटूं? वह मुझसे माफ़ी मांग रहे थे या मेरा मजाक उड़ा रहे थे? क्या वह मुझे चुदवाने के लिए निमत्रण दे रहे थे?

अगर योग ने मुझे अल्लाह ही माहौल में और अलग ही संजोग में यही चीज़ कही होती तो मैं शायद उसके निमत्रण का सकारात्मक जवाब देती।

योग से चुदवाने के बारे में सोचने भर से मेरा गला सूखने लगा और मेरी टाँगे कमजोर पड़ने लगी। मैंने महसूस किया की मेरी टाँगों के बिच में से मेरा स्त्री रस रिसना शुरू हो गया। मेरी निप्पलं फूलने लगीं। पर उसके शब्द याद आते ही मरे मन में गुस्से की ज्वाला भड़क उठी।

योग ने मेरा हाल देखा। वह मेरे करीब आये और उन्होंने मुझे अपनी बाँहों में जकड़ा। मैं थोड़ी लड़खड़ा गयी तो उन्होंने मुझे कमर से पकड़ा और मैं उनकी बाँहों में झूलती रह गयी।

मेरा चेहरा उनके चेहरे के बराबर सामने था। उनकी आँखें मेरी आँखों में झांक रही थीं। हमारे होँठ लगभग चुम्बन की स्थिति में ही थे। शायद मेरी भाव भंगिमा से वह समझ गए थे की जब उन्हों ने मुझे चोदने की बात कही तो मैं नर्वस हो गयी थी। हम दोनों उसी पोज़ में कुछ देर तक खड़े रहे। मैं योग के कार्य कलाप से कुछ अचंभित थी।

तब अचानक ही योग ने एक हाथ से मेरे एक स्तन को मेरे ब्लाउज के उपर से ही अपने हाथ में पकड़ा और उसे दबाने लगे। फिर उन्होंने अपना मुंह निचे किया और मेरे होठोँ से होँठ मिलाकर मुझे चुम्बन करना चाहा।

मैं इस अशिष्ट पर आकर्षक मर्द के ऐसे बेधड़क दुस्साहस से हैरान रह गयी। मेरे दिमाग का एक हिस्सा मेरे बदन को योग की बाहों में लिपट कर उसे चुम्बन करना चाहता था, पर दुसरा हिंसा चिल्ला चिल्ला कर योग के चंगुल से भागना चाहता था। मैंने अपने आप को सम्हाला और एक झटके से मैंने उनके हाथ मेरे बदन से हटा दिए।

मैं उनसे अलग हो कर कुछ व्याकुल आवाज़ में बोली, “योग आप यह क्या कर रहे हैं? आप कहीं पागल तो नहीं हो गए?” यह कह कर मैं वहाँ से दूसरी और तेजी से चल पड़ी।

मेरी आवाज मेरा गुस्सा कम और नर्वस ज्यादा होने की चुगली खा रही थी। अपनी घबराहट छुपाने और अधिक शर्मिंदगी से बचने के लिए मैं भागकर महिला के वाशरूम की और भागी ताकि योग मेरा पीछा ना कर सके।

जब मैं आयने के सामने खड़ी हुई तो मैंने आयने में अपने चेहरे पर साफ़ साफ़ घबराहट देखि। मैं चली थी योग को उलाहना देने और बात एकदम उलटी ही हो गयी। सब के सामने मुझे ही शर्मिंदगी से भागना पड़ा।

मैं यह साबित करना चाहती थी की मैं एक सफल और काबिल महिला हूँ जो अपना काम भली भाँती जानती है। पर मैं ऐसा कुछ कर नहीं पायी।

पढ़ते रहिये.. क्योकि यह कहानी आगे जारी रहेगी!

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