बिटिया की पेंटी से मां की चूत चुदाई

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दोस्तो, मेरा नाम जगदीश चंद है, मैं संगरूर, पंजाब में रहता हूँ, उम्र 59 साल है, पत्नी का स्वर्गवास हो चुका है। एक नंबर का कंजूस आदमी हूँ और इसी तरह पैसे बचा बचा कर मैंने 4 मकान बना लिए हैं। पैसा कमाने के लिए अपने सभी मकान मैंने किराए पे दे रखे हैं। अपने ही एक मकान में सिर्फ एक कमरे में रहता हूँ। बच्चे सभी विदेश में सेट हैं।

पैसे की कोई कमी नहीं है, मगर फिर भी मैं एक पाई भी फिजूल खर्च नहीं करता। बहुत से यार दोस्त कहते हैं, अकेला है, 1000 रुपया खर्च और रंडी ला कर चोद ले मगर 1000 रुपये खर्चे कौन? इसलिए ऐसी चूत की तलाश में हूँ जो फ्री में ही मिल जाए!

कहते हैं हर कुत्ते का दिन आता है, ऐसे ही मेरा भी दिन आया। मेरी एक किरायेदारनी है, विधवा है, 40-42 साल की होगी, पुष्पा नाम है उसका! सरकारी दफ्तर में काम करती है।

उसकी एक बेटी है आंचल, 18-20 साल की होगी, बहुत सुंदर है, मुझे बहुत प्यारी लगती है। सच कहूँ तो मेरी उस लड़की पर बुरी नज़र है। मगर कभी उस से कह नहीं पाया, बस आशीर्वाद के नाम पर उसका सर या पीठ सहला लेता हूँ, जब उसकी पीठ पर हाथ फेरता हूँ, तो उसके मांसल कंधों, और पीठ पर ब्रा के स्ट्रैप पर हाथ लगते ही मजा आ जाता है।

अक्सर सोचता हूँ, कभी मौका मिले और इसकी नंगी पीठ को सहला कर देखूँ तो ज़िंदगी का मजा आ जाए, अब उसके भरे हुये गोल गोल बोबों को तो छू नहीं सकता न। फिर कभी कभी ये भी खयाल आता, अगर ये न माने और इसकी माँ पुष्पा ही मान जाए, तो भी मजा आ जाए।

पुष्पा भी बहुत भरे बदन की मालकिन है मगर सिर्फ देख कर ही संतोष कर लेता हूँ।

एक दिन मैं पुष्पा के घर किराया लेने गया तो देखा कि बाहर तार पर पुष्पा और उसकी बेटी के धुले हुये कपड़े सूख रहे थे जिनमें और कपड़ों के साथ साथ पुष्पा और उसकी बेटी के अन्तः वस्त्र यानि के अंडर गारमेंट्स भी थे। ब्रा तो दोनों माँ बेटी के एक ही साइज़ के थे, मगर चड्डियों का फर्क था।

जहाँ पुष्पा की पेंटी बड़ी साधारण और बड़ी बड़ी थी, वहीं आँचल की पेंटी छोटी और बहुत ही सुंदर डिजाइन वाली थी। किराया लेते वक़्त मैंने पुष्पा से इधर उधर की बातचीत की, मगर मेरी निगाह उसके बदन, कंधे, बाजू, बोबों पर फिसल रही थी। पुष्पा जानती थी कि मेरी नज़र ठीक नहीं है, मगर उसने कभी इस बात का बुरा नहीं माना, पता नहीं क्यों।

ठर्क मिटाने के लिए मैंने पुष्पा को उपदेश में अपनी बात कहने की सोची- देखो पुष्पा, अभी मैं बाहर से आया, तो मैंने देखा कि कुछ मनचले से लड़के बाहर तुम्हारे सूखने के लिए डाले कपड़े घूर रहे थे। उन कपड़ों में तुम्हारे कपड़े भी थे और बिटिया की चड्डियाँ भी सूखने के लिए डाली हुई हैं। मेरी सलाह है कि तुम बिटिया के ब्रा पेंटी अंदर ही सुखाया करो, मेरी बात समझ रही हो न तुम? मैंने आँखों आँखों में उसे बहुत कुछ समझाने की कोशिश की।

जब मैं वापिस आने लगा तो पुष्पा अंदर चली गई, तब मैंने आस पास देखा, उधर कोई नहीं था, तो मैंने लपक कर आँचल की एक चड्डी उतार ली, अपनी जेब में डाली आस पास फिर से देखा और घर चला आया।

रात को सोने से पहले मैंने वो चड्डी अपनी जेब से निकाली, उसे अपनी नाक से लगा कर सूंघा, यहाँ मेरी जान की चूत लगती होगी, मैंने उस जगह को अपनी जीभ से चाट लिया, यहाँ मेरी जान की गांड का छेद लगता होगा, उस जगह को भी मैं चाट गया, कितनी देर मैं उसकी चड्डी को चूमता चाटता रहा।

फिर अपना पाजामा खोला और अपने लंड पे उस पेंटी को घिसना शुरू किया, लंड भी तन गया मगर क्या करूँ, हाथ से मैं करता नहीं, चूत मिलती नहीं, बड़ी मुश्किल थी।

अगली बार फिर मौका लगा तो मैं आँचल की एक ब्रा और एक चड्डी उठा लाया। आते जाते मैं अक्सर पुष्पा के घर हो आता।

एक दिन पुष्पा ने मुझसे कहा- आपसे एक बात करनी है? मैंने बड़े बुजुर्ग की तरह पूछा- बोलो, मैं तुम्हारी क्या मदद कर सकता हूँ? वो बोली- आपने जो बात उस दिन कही थी, मुझे लगता है वो सच थी, आँचल के कुछ कपड़े चोरी हो गए हैं।

मैं समझ गया कि यह क्या कहना चाहती है, मैंने कहा- देखो अगर तुम कहो तो मैं तुम्हें कुछ और कपड़े दिलवा सकता हूँ, मगर अपनी चीज़ का ख्याल रखो, इतना बड़ा घर है, कितने लोग रहते हैं, क्या पता कौन चोर है, किस पर इल्ज़ाम लगाएँ। वो सोचने लगी- हाँ, ये बात भी है। मैंने कहा- मैंने अभी एक दो घरों में और जाना है, वापसी पर अगर तुम चाहो, तो मेरे साथ चल कर तुम और कपड़े ले सकती हो।

वो सोचने लगी तो मैंने उसके कंधे पर हल्के से हाथ लगा कर कहा- चिंता मत करो, मैं आता हूँ। मैं उठ कर चला आया।

थोड़ी देर इधर उधर घूम कर वापिस आया, पुष्पा के घर चला गया- क्या सोचा पुष्पा, चलोगी बाज़ार? मैंने पूछा।

वो भी तैयार हो गई, अपने स्कूटर के पीछे बैठा कर मैं उसे बाज़ार ले गया। बाज़ार में उसने मेरे सामने ही अपनी और अपनी बेटी के साइज़ की ब्रा पेंटी खरीदी। बल्कि मैंने भी हाथ में पकड़ कर दुकानदार को और अच्छी क्वालिटी के ब्रा पेंटी दिखाने को कहा।

मुश्किल से 600 का बिल बना, मैंने दे दिया।

वापसी में मैंने सोचा कि थोड़ा इसी को लाइन पे लाने की कोशिश करके देखूँ। बातों बातों में मैंने पुष्पा को शादी करने की बात करी और यह भी बताया कि अब मुझे भी बीवी न होने के कारण कितनी दिक्कत का सामना करना पड़ रहा है।

एक दो बार स्कूटर की ब्रेक लगाने पर पुष्पा के बोबे मेरी पीठ पर लगे तो मुझे बड़ा आनन्द आया। मुझे कभी कभी लगता था कि पुष्पा भी चाहती है, मगर मुझे यह भी डर था कि अगर मैंने सामने से उसे प्रोपोज कर दिया कहीं बुरा ही न मान जाये।

अगली बार जब मैं अपने मकान का किराया लेने गया तो अपने लंड पे आंचल की चड्डी लपेट कर गया। जब पुष्पा के घर गया तो वहाँ आँचल भी आई और मुझे नमस्ते करी।

मैंने भी उसके सर पे हाथ फेरा और फिर कंधे पे हाथ रख कर उस से उसकी पढ़ाई के बारे में पूछने लगा और मन ही मन सोचने लगा ‘जानती हो आँचल मेरी जान, तुम्हारी एक मरून रंग की चड्डी, जिसमें तुम्हारी कुँवारी चूत और अनचुदी गांड घिसती होगी, वो इस वक़्त मेरे लंड से चिपकी है, किसी दिन ऐसा मौका बने के तुम्हारी चूत सच में मेरे लंड पे घिसे, तुम चाहे न चुदो, चाहे तुम्हारी माँ चुद जाए, मगर इतनी इच्छा ज़रूर है कि तुम माँ बेटी में से किसी एक को ज़रूर चोदूँ।’

थोड़ी देर बाद आँचल उठ कर चली गई, तो मैं उसकी जीन्स में कैद ठुमक ठुमक हिलती चूतड़ियाँ देख रहा था। तभी पुष्पा चाय ले कर आ गई।

जब वो चाय नीचे टेबल पर रखने लगी तो उसकी साड़ी का पल्लू नीचे गिर गया, एकदम से उसका भरा हुआ सीना मेरे सामने खुल गया। हरे रंग के ब्लाउज़ में गोरी भरपूर छातियाँ… ना चाहते हुये भी मेरे मुँह से ओह निकल गया। पुष्पा ने मेरा ओह सुन लिया, थोड़ा शरमाई मगर बैठ गई।

कुछ देर इधर उधर की बातें करके मैंने सोचा कि कुछ काम की बात भी कर लूँ। मैंने उसके सामने अपने अकेलेपन का दुखड़ा भी रोया। पर आज कुछ बात अलग हुई, पुष्पा ने भी अपने अकेलेपन का अफसोस किया।

मैंने मौका देख कर उसे बोल दिया- तभी तो मैं तुम्हारे पास अपना दुख दर्द रो लेता हूँ, एक अकेले का दर्द एक अकेली ही समझ सकती है। पुष्पा ने मेरी तरफ देखा, तो मैं उठ कर उसके पास जा बैठा, मैंने उसके कंधे पर हाथ रखा, इससे पहले मैं कुछ कहता, वो बोल पड़ी- आँचल आ जाएगी। मतलब अगर आँचल का डर न होता तो क्या ये मुझे छूने देती।

मैं उठ खड़ा हुआ, बोला- अच्छा मैं चलता हूँ, मेरे कमरे के बाहर गली वाला दरवाजा हमेशा खुला ही होता है। वो चुप रही और मैं चला आया।

मुझे कोई उम्मीद नहीं थी कि पुष्पा मेरी बात का मतलब समझेगी, या मुझसे मिलने आएगी। मगर फिर भी मैंने सुपर एक्ट 99 गोल्ड का एक कैप्सूल खा ही लिया क्योंकि किस्मत खुलने का कोई पता नहीं चलता, कम से कम मैं तो अपनी तैयारी पूरी रखूँ।

खाना खा कर मैंने 11 बजे सो गया।

रात का करीब 1 बजा था, जब बाहर वाले दरवाजे पर दस्तक हुई। मैंने उठ कर दरवाजा खोला, एकदम से पुष्पा अंदर घुस आई। मैंने दरवाजा बंद किया और पुष्पा की तरफ देखा, हल्के गुलाबी रंग की साड़ी में वो बहुत प्यारी लग रही थी।

मेरे कुछ कहने से पहले ही वो बोली- आप तो कह रहे थे, बाहर वाला दरवाजा हमेशा खुला रहता है, मगर यह तो बंद था। मैंने उसे लेजा कर बेड पे बैठाया- तो तुम मेरी बात का मतलब समझ गई थी। ‘मैं तो कब से समझती थी, मगर आप ही बुद्धू हो, आज आपको दूरदर्शन दिखाया तो आपकी समझ में आया।’

‘तो क्या तुम भी यही चाहती थी? मैंने पूछा। वो बोली- अब क्या रात में भी मुझसे बातें ही करोगे? मैंने उसका हाथ पकड़ा, अपनी ओर खींचा, तो वो खुद ही आ कर लिपट गई।

‘ओह पुष्पा, मुझे तुम बहुत प्यारी लगती हो!’ मैंने कहा। ‘चल झूठे, अगर मैं प्यारी लगती हूँ तो आँचल की पेंटी क्यों चुरा कर लाये?’ वो बोली।

मेरे तो होश फाख्ता हो गए, मैंने कहा- वो मुझे पता नहीं था, किसकी हैं, जो दिखी चुरा लाया, अभी भी एक मेरे पास है कह कर मैंने अपनी बनियान और पायजामा उतार दिया, और फिर अपना कच्छा उतारा तो आँचल की एक चड्डी मेरे लंड के आसपास लिपटी हुई थी। ‘तो उस बच्ची पर भी आपकी बुरी नज़र है?’ पुष्पा बोली। मैंने कहा- जब इंसान चूत का भूखा होता है, तो उसे रंग रूप उम्र जात पात कुछ नहीं दिखता, दिखती है तो सिर्फ चूत!’ और आंचल की पेंटी अपने लंड से खोली, इतने में मेरा लंड भी अपना पूरा आकार ले चुका था।

‘अरे वाह अंकल, आपने तो बड़ी शेव वगैरा कर रखी है?’ पुष्पा उठी और अपनी साड़ी खोलते हुये बोली।मैंने कहा- हाँ, मुझे दिल में एक जगह लगता था कि तुम आओगी। कह कर मैंने खुद उसके ब्लाउज़, ब्रा और पेटीकोट खोला, पेंटी उसने पहनी नहीं थी।

हम दोनों नंगे हो गए तो वो मुझसे लिपट गई। मैंने उसके गाल, होंठ, माथा, गला, कंधे और यहाँ वहाँ बहुत जगह चूमा। चूमते चूमते नीचे आया और उसके दोनों भरपूर स्तन अपने हाथों में पकड़ कर दबाये और मुँह में लेकर चूसे।

पुष्पा ने सिसकारियाँ भरनी शुरू कर दी। मैंने पूछा- मजा आया? वो बोली- अरे बहुत… चूचे चुसवा कर तो मुझे बहुत मजा आता है।

मैं उसके चूचे चूसता रहा और उसे पूछा- तुमने मुझसे सेक्स करने का कैसे सोचा? वो बोली- एक तो आपको उम्र, मुझे पता था कि इस उम्र में आप न तो धोखा दोगे, न शोर मचाओगे, और अगर कोई कमी पेशी हुई भी, मानो अगर आपका खड़ा न हो हुआ तो दवा मुझे पता थी, एक कैप्सूल आपको ला देती, खिलाओ और लंड टनाटन!

मैंने कहा- अच्छा, क्या मैं तुम्हारी चूत चाट लूँ? वो बोली- 69 करते हैं, दोनों को मजा आएगा।

मुझे तो यकीन ही नहीं हो रहा था, इतने सालों से मैं इस दिन की आस लगाए बैठा था कि किसी दिन पुष्पा की चूत मारने का मौका मिले, और आज जब वो मेरे सामने नंगी लेटी थी, तो मुझे अपनी किस्मत पर यकीन नहीं हो रहा था।

वो नीचे बेड पर सीधा लेट गई तो मैं उसके ऊपर उल्टा हो कर लेट गया। मैंने उसकी चूत के होंठों को चूमा, अच्छी तरह से शेव की हुई, किसी खुशबूदार साबुन से धोई हुई, बिलकुल फ्रेश और सूखी चूत! बस मैं और सब्र नहीं कर सकता था, मैंने उसकी चूत के दोनों होंठ अपने होंठों में ले लिए और अपनी जीभ उसकी चूत की दरार में डाल दी।

उसने मौज में आकर मेरे दोनों चूतड़ अपने हाथों से दबा दिया- उम्म्ह… अहह… हय… याह… अंकल, आप तो बहुत अच्छा चाटते हो। मैंने भी कहा- अच्छा तो तुम भी तो मुझे बताओ कि तुम कितना अच्छा लंड चूसती हो।

उसने मेरे लंड को पकड़ा और अपने मुँह में ले लिया। यह हिंदी सेक्स स्टोरी आप अन्तर्वासना सेक्स स्टोरीज डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं!

आह… 12 साल बाद मेरे लंड को किसी के होंठ नसीब हुये थे। बहुत अच्छे से मजा ले ले कर वो मेरा लंड चूस रही थी और मैं उसकी चूत चाट रहा था।

अब उसकी चूत पूरी गीली हो चुकी थी और मैं भी मजा ले लेकर उसकी चूत का नमकीन पानी पी रहा था।

कोई 3-4 मिनट तक ये चूसा चासी का खेल चला, फिर वो बोली- अंकल, मैं झड़ने वाली हूँ, आप बुरा तो नहीं मानोगे, अगर आप चाट चाट कर ही मेरा काम कर दो, मैं भी चूस चूस कर आपका पानी गिरवा दूँगी।

मैंने कहा- अरे कोई दिक्कत नहीं, पर मैं अपना पानी तेरी चूत में गिराना चाहूँगा। वो बोली- ठीक है! और फिर से मेरा लंड चूसने लगी।

मैंने उसकी टाँगें पूरी तरह से चौड़ी कर दी, अपना पूरा मुँह उसकी चूत पर रगड़ दिया और अपने हाथ का एक अंगूठा, उसकी गांड में डाल दिया। अगले ही सेकंड उसने अपनी टाँगें सीधी कर ली और मेरा मुँह अपनी जांघों में जकड़ लिया, शायद मेरा पूरा लंड उसने अपने मुँह में खींच लिया, अपने दोनों हाथों के नाखून मेरे चूतड़ों में गड़ा दिया। मुझे बहुत ही मजा आया।

तकरीब 10 सेकंड तक वो तड़पी, अपने बदन को झटके दिये और मेरे लंड को दाँतों से काट भी लिया, मगर मुझे बहुत मजा आया।

जब वो शांत हुई अपनी जांघों की गिरफ्त से मेरा सर आज़ाद किया, तो मुझे खुल कर सांस आई। मैं उठ कर अब उसके ऊपर सीधा हो कर लेटा, उसने अपनी टाँगें मेरे लिए खोल दी, खुद मेरा लंड अपने हाथ में पकड़ा और अपनी चूत पर रख लिया।

‘पुष्पा जानेमन, मुझे तो अपनी किस्मत पर यकीन ही नहीं हो रहा, कितने सालों से मैं तुम्हें चोदना चाहता था, आज मेरी इच्छा पूरी हुई है।’ मैंने पुष्पा से कहा। वो बोली- ये सब तो आप आँचल के साथ भी करना चाहते हो। मैंने कहा- अब क्या करूँ, वो है ही इतनी सेक्सी!

कह कर मैंने अपनी कमर आगे को धकेली तो मेरे लंड का टोपा उसकी चूत पर लगा और फिर अंदर को घुस गया। ‘मगर वो अभी बच्ची है!’ पुष्पा बोली।

‘अब जब तुमसे ये संबंध बन गए हैं, तो अब तो वो मेरी बेटी हुई!’ मैंने कहा। उसके चेहरे पर मुस्कान आई।

मैंने अपना लंड और उसकी चूत में घुसेड़ा मगर मन में सोचा ‘जैसे मैं तुझे चोद रहा हूँ, ऐसे ही एक दिन तेरी बेटी की भी चूत फाड़ दूँगा, साली माँ बेटी दोनों आग है आग!’ मगर अपने मन के भाव मैंने अपने चेहरे पर नहीं आने दिये।

धीरे धीरे मैं उसे चोदने लगा मगर जल्द ही मुझे सांस चढ़ गया। पुष्पा बोली- अंकल आप तो बूढ़े हो गए, आपकी सांस फूल रही है, मैं ऊपर आ जाऊँ? मैंने भी कहा- हाँ बेटी, 60 को हाथ लगा दिया, अब वो दम खम कहाँ रहा! कह कर मैंने अपना लंड उसकी चूत से निकाला और बेड पे दूसरी तरफ लेट गया।

पुष्पा मेरे ऊपर आई, मेरा लंड पकड़ कर अपनी चूत पर रखा और नीचे को बैठी तो मेरा लंड उसकी मक्खन जैसी चूत में घुसता ही चला गया। उसके बाद वो ऊपर बैठ कर उछलने लगी, कभी आगे पीछे, कभी ऊपर नीचे। उसकी बड़ी बड़ी छातियाँ, इधर उधर झूल रही थी, कभी मैं उसके चूचे चूसता कभी दबाता, कभी उनसे खेलता।

फिर मैंने कहा- पुष्पा डार्लिंग, मेरा भी होने वाला है, बस बाहर मत निकालना, अंदर ही झड़ने दो। वो बोली- अरे अंकल डरो मत, मैंने अपना आपरेशन करवा रखा है, कुछ नहीं होगा, आराम से अंदर गिराओ माल अपना! और फिर अगले ही मिनट मेरा 60 साल के लंड ने अपना रस उसकी चिकनी चूत में बहा दिया।

बहुत बरसों बाद एक अच्छी चुदाई का मजा आया मुझे। बेशक मेरा वीर्यपात हो गया था मगर जब तक मेरा लंड ढीला नहीं पड़ गया वो अपनी चूत से मेरे लंड को चूसती रही। मेरे वीर्य की आखरी बूंद तक उसकी चूत पी गई।

मैं ढीला पड़ गया, तो वो मेरे ऊपर ही लेट गई, मेरा ढीला लंड अपने आप उसकी चूत से फिसल कर निकल गया। फिर उसने पूछा- और करोगे अंकल? मैंने कहा- नहीं यार, अब इतना दम नहीं, अब तो अगले हफ्ते तक की तसल्ली हो गई है। ‘तो मैं जाऊँ, घर में आँचल अकेली होगी।’ वो बोली।

मैंने कहा- ठीक है, जाओ।

उसने अपने कपड़े पहने और जैसे आई थी, वैसे ही चली गई।

मैंने फिर से आँचल की चड्डी उठाई और अपने लंड पे लपेट ली ‘तेरी माँ तो चोद दी आँचल, अब तेरी बारी है।’ [email protected]

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