भाभी की चुदाई के चक्कर में चचेरी बहन को पकड़ लिया-5

सुमन काफी उत्तेजित थी, उसके मुँह से हल्की-हल्की आहें फ़ूटने लगी। वो खुद अपनी कमर को हिलाकर अपनी बुर को मेरे लिंग पर घिसने लगी थी और उसके इन्हीं पलों का फायदा उठाकर एक बार फिर मैंने अपने लिंग को बुर के मुँह पर रखकर जोरदार धक्का लगा दिया।

और अबकी बार उम्म्ह… अहह… हय… याह… मुझे सफलता मिल गई क्योंकि एक तो सुमन का बुर द्वार प्रेमरस से भीग कर बिल्कुल चिकना हो गया था और दूसरा सुमन स्खलित होने की कगार पर थी जिससे उसका बुर द्वार काफी फैल व सिकुड़ रहा था इसलिये अबकी बार मेरे लिंग का सुपारा सुमन की कौमार्य झिल्ली को भेद कर बुर में प्रवेश कर गया।

सुमन के मुँह को मैंने एक हाथ से दबा रखा था, फिर भी वो उऊऊऊ… ह्हुहुहु… उऊऊ… उऊऊऊ… ऊऊ… उऊऊ… उऊऊऊ… कर के कराह पड़ी और दोनों हाथों से मेरी कमर को जोर से पकड़ लिया।

सुमन का ध्यान किये बैगर ही मैंने उसी हालत में एक और धक्का लगा दिया जिससे ज्यादा तो नहीं मगर लगभग मेरा एक चौथाई लिंग बुर में समा गया और सुमन छटपटाने लगी, उसके दोनों हाथ मेरी कमर में जैसे धंस ही गये थे और वो मुझे जोर से पीछे धकेलने लगी।

सुमन के धकेलने से एक बार मैंने भी अपने लिंग को थोड़ा सा बाहर खींच लिया जिससे उसे कुछ राहत मिली और उसके हाथों की पकड़ कुछ हल्की हो गई मगर लिंग के पूरा बाहर निकलने से पहले ही मैंने फिर से जोरदार झटका लगा दिया और इस बार मेरा करीब आधे से ज्यादा लिंग सुमन की बुर में समा गया जिससे वो जोर से उऊऊऊ… हहूहूहूहू… अँगुगुगु… गूऊगूऊगूऊऊ… करके बुरी तरह छटपटाने लगी।

सही में सुमन की कुंवारी बुर इतनी तंग व सख्त थी कि मुझे ऐसा महसूस हो रहा था जैसे मेरे लिंग को किसी ने अपनी पूरी ताकत से मुट्ठी में भींच रखा हो, मुझे भी अपने लिंग के सुपारे में दर्द का अनुभव हो रहा था।

तभी मुझे अपने लिंग के पास व जांघों पर काफी गीलापन सा महसूस हुआ, मैं तो यह समझ रहा था कि यह सुमन का बुर रस होगा मगर बाद में मुझे पता चला कि यह तो सुमन का कौमार्य था जो टूट कर खून के रूप में बह रहा था।

सुमन की छटपटाहट देखकर मुझे उस पर तरस तो आ रहा था मगर ये सब उसे कभी ना कभी तो सहना ही था। सुमन बुरी तरह से छटपटा रही थी इसलिये मैंने अपने लिंग को ज्यादा घुसाने की कोशिश नहीं की मगर जितना मेरा लिंग बुर में गया था, मैं उतनी ही दूरी के धीरे धीरे धक्के लगाने लगा जिससे सुमन और ज्यादा छटपटाने लगी।

मैं धक्के लगाते हुए ही सुमन के गालों को चूम चाट कर और हाथ से उसके बदन को सहलाकर उसे सांत्वना भी दे रहा था मगर फिर भी सुमन काफी छटपटा रही थी और मुझे रोकने की भी पूरी कोशिश कर रही थी, उसने मेरी कमर को अपनी पूरी ताकत से पकड़ रखा था ताकि मैं धक्के ना लगा सकूँ मगर फिर भी मैं धीरे धीरे धक्के लगाता रहा जिससे कुछ देर में ही मेरे लिंग ने धीरे धीरे करके उसकी संकरी बुर में अपनी जगह बना ली।

सुमन का दर्द भी अब कुछ कम होने लगा था इसलिये वो भी अब कुछ शांत पड़ने लगी थी। सुमन के थोड़ा सा शांत होने पर मैंने अपना हाथ उसके मुँह पर से हटा लिया और उसकी जगह उसके होंठों को मुँह में भरकर बन्द कर लिया, उसने अपनी गर्दन हिला कर अपने होंठों को छुड़ाने की कोशिश तो की मगर मैंने जिस हाथ से उसके मुँह को दबा रखा था, उसी हाथ से उसके सिर को पकड़ लिया और जबरदस्ती अपनी जुबान उसके होंठों के बीच घुसा दी जिससे सुमन फिर से कसमसाने लगी।

मैंने अपनी जीभ को सुमन के होंठों के बीच घुसा तो दिया था मगर दर्द के मारे उसने अपने दाँत भींच रखे थे इसलिये मेरी जीभ उसके मुँह में अन्दर नहीं जा पा रही थी, मैं भी उसके होंठों को ही चूमने चाटने लगा। कुछ देर तक मैं ऐसे ही सुमन के होंठों को चूमता चाटता रहा और साथ ही दूसरे हाथ से उसके बदन को भी सहलाता रहा जिससे धीरे धीरे करके उसका यौन तन्त्र प्रभावित होने लगा और दर्द की अवहेलना करते हुए वो फिर से उत्तेजित होने लगी।

अब वो मेरा इतना विरोध नहीं कर रही थी बस थोड़ा बहुत कसमसा ही रही थी, फिर कुछ देर बाद वो भी बन्द हो गया और उसने अपना बदन ढीला छोड़ दिया।

सुमन को भी शायद अब मजा आने लगा था क्योंकि उसकी सांसें अब गर्म व गहरी होने लगी थी और पहली बार अब वो मेरी जीभ को हल्का हल्का अपने होंठों के बीच दबाने भी लगी थी।

मैंने भी अपनी जुबान को थोड़ा जोर से उसके मुँह में दबा दिया, पहले तो सुमन थोड़ा सा कसमसाई मगर फिर धीरे से उसके दांत थोड़ा सा खुल गये और अब मेरी जुबान उसके मुँह के अन्दर तक का सफर करने लगी जिसे सुमन भी अब कभी कभी हल्का सा चूस ले रही थी।

सुमन पर भी अब उत्तेजना चढ़ने लगी थी क्योंकि सुमन के हाथ जो अभी तक मेरी कमर को पकड़े हुए थे वो मेरी पीठ पर आ गये थे और धीरे धीरे मेरी पीठ पर रेंगने रहे थे। मैंने भी अब अपने धक्कों की गति को थोड़ा सा बढ़ा दिया जिससे सुमन के मुँह से हल्की हल्की कराह फ़ूटने लगी, सुमन के नितम्ब भी अब हल्की हल्की हरकत करने लगे थे।

सुमन ने अपनी टांगें उठाकर मेरे पैरों पर रख ली और मेरे साथ साथ वो भी अपनी कमर को धीरे धीरे हिलाने लगी थी। सुमन अब पूरी तरह से उत्तेजित हो गई थी इसलिये धीरे धीरे मैंने भी अपने धक्कों का माप बढ़ा दिया क्योंकि मेरा आधे से ज्यादा लिंग सुमन की बुर में था मगर अब भी एक चौथाई बाहर ही था इसलिये प्रत्येक धक्के के साथ धीरे धीरे मैं उसे भी अन्दर घुसाने लगा, हर बार मेरा लिंग पूरा बाहर आता और पूरे वेग से अन्दर प्रविष्ट होने लगा, हर प्रहार में पिछली बार के मुकाबले ज़्यादा अन्दर जा रहा था और मेरे हर धक्के के साथ सुमन उऊऊ… हूहूहूहू… उऊऊ… हूहूहूहूहू… कर रही थी।

वैसे तो इतनी देर में मेरा लिंग सुमन की बुर में पूर्णतया घर कर गया होता पर सुमन की नई नवेली बुर बहुत अधिक तंग थी जो मेरे लिंग को कुछ ज्यादा ही घर्षण प्रदान कर रही थी, मगर उस समय मुझे जो मजा मिल रहा था उस आनन्द की कोई चरम सीमा नहीं थी।

सुमन भी अब खुलकर मेरा साथ दे रही थी, उसकी टांगें जो मेरे पैरों पर थी वो अब मेरी कमर पर आ गई थी, उसने अपनी टांगों से मेरी कमर को घेर लिया और मेरे लिंग की ताल पर वो भी अपनी कमर को जोर जोर से हिला कर मुँह से अद्भुत आवाजें निकालने लगीं। सुमन की सांसें काफी तेज हो गई थी और अब तो वो मेरे होंठों व जुबान को भी जोर से चूस चाट रही थी। सुमन का साथ पाकर मैंने भी अपना पौरुष दिखाने के लिये अपनी गति बढ़ा दी और तेजी से धक्के लगाने लगा।

मेरे साथ साथ सुमन भी अब तेजी से अपने कूल्हे उचका रही थी, एक निश्चित लय और ताल के साथ हम दोनों ही धक्कमपेल कर रहे थे जैसे हम दोनों में कोई होड़ लगी हो। यह हिंदी सेक्स स्टोरी आप अन्तर्वासना सेक्स स्टोरीज डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं!

सुमन के मुँह को मैंने अपनी जुबान व होंठों से बन्द कर रखा था मगर फिर भी वो उहऊऊ… उहऊऊ… उहऊऊ… उहऊऊ… करके जोर से कुहक रही थी जिससे पूरा कमरा गुँज रहा था।

बाहर बारिश से मौसम सर्द हो गया था मगर फिर भी हम दोनों के शरीर पसीने से भीग गये और सांसें फ़ूल गई थी, ऐसा लग रहा था जैसे कोई तूफान आ गया हो।

अब मेरा आत्म नियंत्रण अपनी सीमा के समीप पहुँच रहा था क्योंकि बहुत देर से मैंने अपने आप को संभाला हुआ था, मगर अपने स्खलन के पहले मैं सुमन को चरमोत्कर्ष तक पहुँचाना चाहता था इसलिये तेजी से धक्के लगाते हुए मैं अपने दोनों हाथों से उसके संवेदनशील अंगों को भी रगड़ने मसलने लगा। मैं अपने दोनों हाथ सुमन के चूतड़ों पर ले आया और उन्हें कूल्हों के नीचे घुसाकर सुमन को थोड़ा सा ऊपर उठा लिया, अब तेजी से धक्के लगाते हुए मैं सुमन के कूल्हों को भी मसल रहा था, साथ ही नीचे से उसके गुदा द्वार को भी उंगलियों से सहलाने लगा।

अब तो सुमन जैसे पागल ही हो गई, मेरे साथ जोरों से अपने कूल्हे उचकाते हुए वो मेरी जीभ व होंठों को नोचने काटने लगी और फिर कुछ ही देर में अचानक से सुमन का शरीर थरथरा गया, सुमन बड़ी जोर से इईईई…श्शशश… अअआआ… ह्हहाहाँ… इईईई… श्शशश… अअआआ… ह्हहाहाँहाँ… इईईई… श्शशश… की किलकारियां मारते हुए किसी बेल की तरह मुझसे लिपट गई, उसका जिस्म अकड़ उठा और उसकी बुर से एक धारा सी फूटी जिसने मेरे लिंग को नहला दिया।

कुछ देर तक सुमन ऐसे ही मुझसे लिपटी रही और फिर धम्म से बिस्तर पर गिर गई जैसे वह मूर्छित हो गई हो।

मेरा लिंग सुमन के बुर रस से गीला होकर और भी चपल हो गया और अब बुर के अन्दर बाहर आसानी से फिसलने लगा। सुमन के कामोन्माद को देख कर मेरा नियंत्रण भी टूट गया और तीन चार संपूर्ण वार के साथ ही मैंने भी मोक्ष की प्राप्ति कर ली। एक आह के साथ मैंने अपनी कामनाएं सुमन की बुर में ही उड़ेल दी और फिर थक कर खुद भी उस पर गिर गया।

काफी देर तक हम दोनों ऐसे ही पड़े रहे फिर धीरे धीरे सुमन में हल्की सी चेतना आई, उसने दोनों हाथों से धकेल कर मुझे अपने ऊपर से नीचे गिरा दिया और उठ कर बिस्तर पर बैठ गई।

मैं समझ गया कि सुमन को अब क्या चाहिए, अन्धेरे में कुछ दिखाई तो नहीं दे रहा था फिर भी धीरे धीरे हाथों की सहायता से मैं अलमारी तक पहुंचा और टॉर्च निकाल कर जला ली। टॉर्च की रोशनी होते ही सुमन जल्दी से अपने हाथ पैर समेट कर बैठ गई मगर फिर भी उसकी हालत स्पष्ट नजर आ रही थी, उसकी दोनों जांघें खून से लथपथ थी और बिस्तर पर भी काफी खून गिरा हुआ था।

खैर टॉर्च की सहायता से मैंने सुमन के कपड़े तलाश कर उसे दिये, सुमन ने कपड़े तो ले लिये मगर फिर भी वो ऐसे ही बैठी रही और मैंने जब पूछा तो उसने कुछ बताया तो नहीं मगर मेरे हाथ से टॉर्च लेकर उसे बन्द करके रख दिया और फिर जल्दी जल्दी कपड़े पहनने लगी।

मैं समझ गया कि सुमन कपड़े क्यों नहीं पहन रही थी, वो नंगी थी इसलिये शर्मा रही थी।

सुमन को नंगी देखने के लिये मैंने एक बार फिर से टॉर्च जला दी और टॉर्च की रोशनी को सीधा सुमन की जांघों पर ही डाला, सुमन ने बस पेंटी पहनी थी और सलवार पहन ही रही थी, टोर्च के जलते ही सुमन जल्दी से नीचे बैठ गई, उसने फिर मेरे हाथ से टॉर्च छीन कर बन्द कर दी और फिर जल्दी से कपड़े पहनकर बाहर चली गई।

सुमन के जाने के बाद मैं भी सो गया।

इसके बाद तो सुमन जब तक हमारे घर में रही तब तक मैंने काफी बार सम्बन्ध बनाये। पहले तो एक दो बार उसने मना किया मगर फिर वो खुद ही मौका पाकर मेरे पास आ जाती थी और इसमे मेरी भाभी ने हमारा बहुत साथ दिया।

मेरा व सुमन का रिश्ता इतना गहरा हो गया था कि सुमन जब वापस गाँव जाने लगी तो जोर से रो पड़ी, हालत तो मेरी भी कुछ ऐसी ही थी मगर… [email protected]