वो सात दिन कैसे बीते-8

अगले दिन शुक्रवार था और आज भी उसकी क्लास थी जिससे वह साढ़े बारह बजे फारिग हुई। मैंने उसे यूनिवर्सिटी से पिक किया और पहले ही साहू के पीछे जाकर पेट पूजा कर ली।

उसके बाद नरही की तरफ चले आये और बाकी का दिन चिड़ियाघर में घूमते फिरते, बकैती करते, मस्ती करते गुज़ारा और छः बजे मैंने उसे यूनिवर्सिटी के पास ही छोड़ दिया जहाँ से वह अपने रास्ते चली गई और मैं अपने रास्ते।

रात को मुझे फिर ड्रिंक और स्मोकिंग के इंतज़ाम के साथ पहुंचना पड़ा।

‘आज कुछ नया फीचर बचा हो तो वह भी अपलोड कर दो मिस हाइड की हार्ड डिस्क में।’ वह आँखें चमकाती हुई बोली। ‘आज हम बाथरूम सेक्स करेंगे, साथ में नहाते हुए!’ ‘वॉव।’ उसने खुश होकर मुट्ठियां भींची।

पहले हमने स्मोकिंग और ड्रिंक का मज़ा लिया फिर कपड़े उतार कर वो पोर्न मसाला देखने बैठ गए जो बाथरूम सेक्स से जुड़ा था। इसके बाद जब जिस्म में हरारत पैदा होने लगी तो एक दूसरे को बिस्तर पर ही रगड़ना शुरू कर दिया और अच्छे खासे मस्त हो चुके तो बाथरूम में घुसे।

बाथरूम में लगे शीशे को हमने ऐसे एडजस्ट कर लिया कि हम खुद को अपनी हरकतों के दौरान देखते रह सकें और शावर चला दिया। आज यह तय हुआ था कि वह पीछे से सेक्स कराते कराते स्क्वर्टिंग करेगी।

फिर हमने वैसा ही किया।

जी भर के पानी में भीगते हुए मैंने उसकी योनि ही नहीं, गुदा के छेद को भी चूसा चाटा, खूब खींच खींच कर दूध पिये और खड़े बैठे ही नहीं लेटे वाले आसन में भी जी भर से उसे पीछे से फक किया।

उसने भी हर आसन को खूब एन्जॉय किया, अच्छे से लिंग चूषण किया और खूब स्क्वर्टिंग भी की… तीन बार तो मैंने छोटी छोटी फुहारें अपने मुंह में झेलीं।

साथ ही हम खुद को शीशे में देखते उत्तेजित होते रहे थे।

मुझे इस बीच टाइम का एक्सटेंशन इसलिए मिल गया था कि बार बार पानी में भीगने के कारण लिंग की गर्माहट कम हो जाती थी और मुझे यह डर नहीं रहता था कि मैं जल्दी डिस्चार्ज हो जाऊंगा।

आज उसने एक बाधा और पार की… वह भी इसलिए कि हम पानी में थे। जिस वक़्त उसका पानी निकला, मैं स्खलित होने से बच गया था और जब मैं स्खलित होने को हुआ तो उस वक़्त हम बाथरूम के टाइल पर लोट रहे थे…

मैंने मौके का फायदा उठाते हुए, झड़ने से पहले लिंग हाथ में पकड़ा और उसके चेहरे के सामने ले आया। करीब था कि मेरी मंशा समझ कर वह इंकार करके चेहरा घुमा लेती कि मेरी बेचारगी और इच्छा देख कर उम्मीद के खिलाफ उसने मुंह खोल दिया।

मन में यह ज़रूर रहा होगा कि शावर से गिरती पानी की फुहार उसके मुंह को फ़ौरन धो देगी।

वीर्य की जो पिचकारी छूटी उसमें थोड़ी उसकी नाक, आँख और गाल पे गई मगर ज्यादातर उसके खुले मुंह में गई।

मैं आखिरी वाली छोटी पिचकारी के निकल जाने के बाद दीवार से टिक कर पड़ गया और वह मुंह बंद करके उस चीज़ के ज़ायके को महसूस करने लगी जो उसके मुंह में था।

फिर उसने ‘पुच’ करके उसे उगल दिया और फुहार के नीचे मुंह करके पानी से अंदर का मुंह धोने लगी।

मुंह साफ़ हो गया तो उसने शावर बंद कर दिया।

थोड़ी देर बाद सामान्य हुए तो नए सिरे से तैयार होने के लिए बाहर आ गए।

‘अजीब सा टेस्ट लगा, न अच्छा न बुरा!’ ‘चार छः बार मुंह में ले लो, न अच्छा लगने लगे तो कहना।’

‘चलो ठीक है, तुम्हारी यह ख्वाहिश भी पूरी कर देती हूँ। अब से परसों तक जितनी बार भी निकालना मेरे मुंह में ही निकालना। मिस हाइड उस घिन से लड़ने और जीतने की कोशिश करेगी जो कल तक सोचने से भी आती थी।’

फिर एक बार स्मोकिंग, ड्रिंक और पोर्न का दौर चला और फिर जब हम गर्म हुए तो बाथरूम चले आये और शावर खोल कर उसके नीचे वासना का नंगा नाच नाचने लगे।

अब चूँकि मेरे दिमाग में यह था कि उसके मुंह में निकालना है तो उससे मेरा ध्यान बंट गया और आधे घंटे की धींगामुश्ती के बाद जब वह स्खलित हो कर मेरे लिंग के सामने अपना मुंह खोल कर बैठी भी तो मेरा वीर्य फ़ौरन नहीं निकला बल्कि उसे हाथ से घर्षण करते हुए निकालना पड़ा। इस बार भी थोड़ा गाल पर तो बाकी मुंह में गया, जिसे थोड़ी देर मुंह में रख के उसने उगल दिया और पानी से मुंह साफ़ करने लगी।

अब शायद टंकी में पानी कम हो गया था जिससे टोंटी खोखियाने लगी थी और रात के इस वक़्त तो मोटर चलाई नहीं जा सकती थी जबकि सुबह फजिर में उठने पर दादा दादी को पानी चाहिए होगा। यह सोच कर हमने अपने प्रोग्राम को वही ख़त्म किया और बाहर आ गए।

इसके बाद थोड़ी देर बिस्तर पर रगड़ घिस करते हुए चादर की मां बहन एक की और फिर वहां से निकल कर अपनी राह ली।

अगला दिन इस हिसाब से अंतिम दिन था कि कल रविवार था और वह यूनिवर्सिटी का बहाना नहीं कर सकती थी तो आज ही आखिरी दिन था जो हम साथ घूम सकते थे।

आज वह यूनिवर्सिटी नहीं गई बल्कि ग्यारह बजे ही मुझ तक पहुँच गई।

पहली सुरक्षित जगह पाते ही नक़ाब से छुटकारा पाया और आज हमने जितना वक़्त मिला सिर्फ सैर सपाटा किया। पूरे लखनऊ की सड़कें नापीं… मड़ियांव से लेकर सदर तक, और दुबग्गा से लेकर चिनहट तक। दोपहर के खाने के रूप में टेढ़ी पुलिया पर मुरादाबादी बिरयानी खाई और शाम को अकबरी गेट पर टुंडे के कबाब। कोई फिल्म, माल, पार्क का रुख किये बगैर सिर्फ राइडिंग करते शाम हो गई तो वापसी की राह ली।

आज रात नए रोमांच के रूप में उसने खुद को दुल्हन के रूप में सजाया और ऐसे खुद को पेश किया जैसे आज हमारी सुहागरात हो। उसे यह अहसास अब बुरी तरह साल रहा था कि हमारे सफर का अब अंत हो चला है। वह कुछ ग़मगीन थी और ऐसे मौके पर खुद को मेरी दुल्हन के रूप में जी लेना चाहती थी।

एक आभासी दूल्हे के रूप में मुझे दूध भी पीने को मिला और मिठाई भी खाने को मिली।

आज हमने रोशनी बंद कर दी थी- उसकी इच्छा के मुताबिक। बस ऐसे ही बातें करते, एक दूसरे को छूते सहलाते उत्तेजित होते रहे और जब दिमाग पर सेक्स हावी हो गया तो मैंने उसके कपड़े उतार दिए।

आज वह उस तरह सहयोग नहीं कर रही थी बल्कि खुद को एक शर्मीली दुल्हन के रूप में तसव्वुर कर रही थी जो पहली बार ऐसे हालात का सामना कर रही हो।

मैंने बची हुई मिठाई उसके पूरे जिस्म पर मल दी थी और खुद कुत्ते की तरह उसे चाटने लगा था।

उसके जिस्म का कोई ऐसा हिस्सा नहीं बचा था जिसे मिठाई और मेरी जीभ के स्पर्श से वंचित रहना पड़ा हो… और जो बची भी तो उसे मैं अपने लिंग पर मल कर उसके होंठों के पास ले आया। थोड़ी शर्माहट, नखरे और हिचकिचाहट के बाद उसने मेरे लिंग को स्वीकार किया और उसे अपने मुंह में लेकर सारी मिठाई साफ़ कर दी।

इसके बाद मैंने उसे चित लिटाए हुए ही उसकी योनि से छेड़छाड़ शुरू की और जब वह कामोत्तेजना से तपने लगी तो उसकी टांगों के बीच और कूल्हों के पास बैठते हुए मैंने बड़े आराम से पीछे के रास्ते प्रवेश पा लिया और ऐन सुहागरात के स्टाइल में उसके ऊपर लद कर उसके बूब्स मसलते, चूसते हल्के हल्के धक्के लगाने लगा।

मूल सुहागरात और इस सुहागरात में फर्क यह था कि यहाँ वेजाइनल सेक्स के बजाय एनल सेक्स हो रहा था।

धीरे धीरे दोनों चरम पर पहुँच गए तो उसने तो मुझे दबोचते हुए अपने स्खलन को अंजाम दे दिया लेकिन मैं उसके मुंह के लालच में रुका रहा और निकालने से ऐन पहले एकदम लिंग बाहर निकाल कर उसे हाथ से पकड़े गौसिया के मुंह के पास ले आया।

हालांकि स्थिति को समझते हुए उसने फ़ौरन मुंह खोल दिया था लेकिन मैं लगभग छूट चुका था इसलिए पहली फुहार गाल को छूती बिस्तर पर गई, दूसरी गाल पर और तीसरी चौथी बची खुची उसके मुंह में जा सकी।

कुछ देर उसे मुंह में रखने के बाद उसने पास रखे अपने एक कॉटन के दुपट्टे पर उगल कर उसी से अपना मुंह पोंछ लिया, दुपट्टे से ही गाल और तकिए पर गिर वीर्य भी साफ़ कर दिया।

इसके बाद फिर हम थोड़ी देर लेटे कल के विषय में बाते करते रहे और जब बुखार वापस चढ़ा तो इस बार कल की बची हुई शराब थोड़ी अपने मुंह में लेकर उसे पिलाई और बाकी उसके जिस्म पर डाल कर एक बार फिर कुत्ते की तरह चाट चाट कर साफ़ कर दी।

इस चटाई से उत्तेजित होना स्वाभाविक था और फिर मैंने उंगली से योनिभेदन करते हुए उसे फिर लगभग चरम पर पहुंचा दिया, जब वह स्खलन के करीब पहुँच गई तब उसे घोड़ी बना के पीछे से घुसा दिया और सम्भोग करने लगा।

करीब पांच मिनट के बाद वह भी स्खलित हो गई और मेरा भी निकलने वाला हो गया तो मैंने इस बार ज्यादा नियंत्रण के साथ वक़्त से पहले उसे गौसिया के मुंह तक पहुंचा दिया और इस बार बाहर कुछ नहीं गिरा।

एक तो कम माल था दूसरे फ़ोर्स भी कम था जिससे वेस्टेज नहीं हुई और कुछ देर मुंह में रखने के बाद फिर उसने मुंह साफ़ कर लिया।

आखिरी रात ऐसे ही गुज़री लेकिन उसने मुझे जाने नहीं दिया और वही रोके रखा- यह कह कर कि मैं अभी गया तो कल दिन के उजाले में आ नहीं पाऊँगा और घरवाले तो शादी, जनानी चौथी, मर्दानी चौथी सब निपटा कर कहीं रात तक पहुंचेंगे। उनके पहुँचने से पहले अँधेरा होते ही निकल लेना।

यानि मैं शनिवार रात का उसके घर घुस रविवार रात उनके घर से निकला, वहीं सोया, खाया पिया, वहीं हगा, मूता।

सुबह वह दादा दादी का नाश्ता बनाने नीचे चली गई और अपने लिए इतना ऊपर ले आई कि मेरा भी हो गया।

ऐसे ही उसने दोपहर के खाने और शाम के नाश्ते के वक़्त भी किया। साथ ही पूरे कमरे की सफाई करके उसे रूम फ्रेशनर से महका दिया और हर अवांछित चीज़ पैक करके रख दी कि जाते समय मैं लेता जाऊं।

इस बीच हमने कई बार सेक्स किया जिसे अगर हम डिस्चार्ज के हिसाब से देखें तो आठ बार वह स्खलित हुई थी और पांच बार मैं। पांच बार में मेरी हालत ऐसी हो गई थी कि कदम लड़खड़ाने लगे थे। अब कोई जवान लौंडा तो था नहीं।

सबसे आखिरी बार में उसने मेरी वह इच्छा पूरी की थी जो इससे पहले कभी नहीं पूरी हुई थी और बकौल उसके यह मेरी सेवाओं का इनाम था जो उसने मुझे दिया था।

उसने मुंह से मुझे स्खलित कराया था और इस हालत में जो वीर्य निकला था वह बिना किसी झिझक उसने अपने गले में उतार लिया था और ऐसा करते वक़्त उसने मुझे जिन निगाहों से देखा था वह मुझे आने वाली पूरी ज़िन्दगी याद रहेंगी।

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और रात के आठ बजे मैंने उसका घर छोड़ दिया था, उसने अपनी तड़प अपने गले में घोंट ली थी, बरसती आँखों को मुझसे छुपाने के लिए चेहरा घुमा लिया था और आखिरी वक़्त में इतनी ताक़त भी न जुटा पाई थी कि मेरे अलविदा का जवाब दे पाती।

जिस दिन मैंने यह कहानी लिखनी शुरू की थी उससे अलग हुए तीन दिन हुए थे और आज लिखते लिखते दस दिन हो गए थे।

इस बीच उसका आते जाते कई बार मेरा आमना सामना हुआ था और मैंने एक तड़प, एक कसक उसकी आँखों में देखी थी। मैं जानता था कि यूँ किसी से अलग होना उसकी उम्र की लड़की के लिए बेहद मुश्किल था।

मेरा क्या था, मेरे लिए यह खेल था। ऐसा नहीं था कि मुझे तकलीफ नहीं हुई थी लेकिन उसकी तुलना में यह कुछ भी नहीं थी।

मैंने वैसा ही किया था जैसा उसने कहा था, उसका नंबर, कॉल और व्हाट्सप्प पर ब्लॉक कर दिया था। वह सामने पड़ती तो मैं चेहरा घुमा लेता कि कहीं कुछ बोल न दे और दूर होती तो रास्ता बदल लेता।

यह ठीक था कि मुझे ऐसा करते अच्छा नहीं लगता था मगर उसके लिए यही ठीक था।

इन दस दिनों में मैंने उस दूसरी लड़की से अच्छी खासी दोस्ती कर ली थी जिसका ज़िक्र मैंने कहानी के शुरू में किया था और उसके बारे में काफी कुछ जान लिया था।

जो पहले बंद गठरी थी अब धीरे धीरे खुलने लगी थी लेकिन उसके बारे में अगली कहानी में बताऊंगा।

कहानी कैसी लगी मुझे ज़रूर बताएँ… मेरी ई मेल आई डी है [email protected] [email protected] फ़ेसबुक: https://www.facebook.com/imranovaish