माँ को मेरे चचेरे भाई से चुदते देखा

दोस्तो, आज आपको एक नई बात बताने जा रहा हूँ। गुजरात से एक पाठक ने अपनी कहानी भेजी है, जिसे आपके सामने पेश कर रहा हूँ।

मेरा नाम प्रवाल है, मैं आपको अपने बचपन में घटी एक घटना बताने जा रहा हूँ। बात तब की है जब मेरे पिताजी उम्र 30 साल, माताजी उम्र 28 साल थी और मैं और मेरी छोटी बहन, सब साथ साथ एक ही कमरे में रहते थे। घर की हालत ठीक ठाक ही थी। पिताजी फेरी का काम करते थे, मतलब आस पास के गाँव कस्बों में घूम घूम कर सामान बेचते थे। अक्सर वो कई बार दो दो तीन तीन दिन घर से बाहर भी रहते थे।

उन्हीं दिनों की बात है कि हमारे रिश्ते में एक ताऊ जी थे, उनका बेटा रवि इम्तिहान देने के लिए हमारे शहर आया और हमारे ही घर रुका, वो करीब 20-22 साल का नौजवान था। घर में आते ही उसने सब को अपनी बातों से जैसे दीवाना कर दिया हो। वो बहुत बोलता था और बहुत ही चतुर भी था। घर से पैसे भी अच्छे ले कर आया था, तो मुझे, छोटी बहन को खूब चीज़ें ले कर दी।

वो करीब एक हफ्ता हमारे घर रहा। पिताजी और माताजी भी उसके आने से बहुत खुश थे, मगर मुझे नहीं पता चला के कब और कैसे उसने मेरी माताजी से अपनी सेटिंग कर ली। पता लगा एक रात जब पिताजी घर पे नहीं थे, मैं और छोटी बहन खाना खा कर एक चारपाई पर सो गए, माँ दूसरी चारपाई पर लेटी थी, वो अलग चारपाई पर बैठ कर पढ़ रहा था।

करीब आधी रात ही होगी शायद, टाईम का मुझे ध्यान नहीं, पर मेरी नींद खुल गई। मैंने देखा कमरे की लाइट जल रही थी, माँ के बिस्तर पर एक तरफ माँ लेटी थी और दूसरी तरफ रवि। जब मैं सोया था, तब माँ ने साड़ी पहन रखी थी, मगर अब सिर्फ सफ़ेद ब्लाउज़ और पेटीकोट ही पहना था, साड़ी कब उतरी और क्यों उतरी इसका मुझे कुछ पता नहीं।

पहले तो माँ की पीठ थी मेरी तरफ मगर थोड़ी ही देर में माँ सीधी हो कर लेट गई। माँ के ब्लाउज़ के ऊपर के तीन हुक खुले थे, उनके आधे से ज़्यादा बोबे बाहर दिख रहे थे और शायद उनकी ब्रा भी दिख रही थी।

मैंने देख कि रवि ने अपने हाथों से माँ के दोनों बोबे पकड़ लिए और उन्हें यहाँ वहाँ चूम रहा था। माँ बोली- नहीं रवि, मत करो, यह गलत है, मैं बाल बच्चों वाली औरत हूँ, तुम्हारी चाची लगती हूँ, और चाची तो माँ समान होती है।मगर रवि बोला- नहीं चाची, आपको नहीं पता आप कितनी सेक्सी हैं, मैंने तो जब से आपको देखा है, मैं आपका दीवाना हो गया हूँ, उफ़्फ़, क्या बड़े बड़े बोबे हैं आपके, मैं इनसे खेलना चाहता हूँ, चाची इन्हें बाहर निकालो, मुझे चूसना है इन्हें। कह कर रवि ने माँ का सफ़ेद ब्लाउज़ के बाकी हुक भी खोलने शुरू कर दिये।

माँ उसका विरोध तो कर रही थी मगर सिर्फ बोल रही थी, उसने एक बार भी रवि को अपने हाथ से नहीं रोका। रवि ने माँ के ब्लाउज़ के सभी हुक खोल दिये और ब्लाउज़ के दोनों पल्ले इधर उधर फैला दिये। ‘वाह, चाची क्या बोबे हैं तेरे…’ कह कर रवि ने अपने दोनों हाथों से माँ के बोबे पकड़े और दबाने लगा। माँ मस्ती में हस्ती रही पर उसको मना नहीं किया।

मेरे अंदर गुस्से का तूफान उठ रहा था, मगर माँ से डर का मारा मैं चुप चाप लेटा रहा। वो बिल्कुल माँ के पेट के ऊपर आ कर बैठ गया, उसने माँ को उठाया और उसका ब्लाउज़ उतारने लगा।

माँ बोली- उफ़्फ़, रवि तुम बहुत खराब हो, क्या कर रहे हो, रहने दो, कोई देख लेगा। रवि बोला- अब इस आधी रात में कौन देखने आएगा? माँ बोली- अरे बच्चे उठ जाएंगे। रवि बोला- कोई नहीं उठेगा, दोनों सो रहे हैं, तुम बस चुपचाप मुझे कर लेने दो। यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं !

कहते कहते रवि ने माँ का ब्लाउज़ और ब्रा दोनों ही उतार दिया। बल्ब की रोशनी में माँ की साँवली भरवाँ पीठ बिल्कुल नंगी हो गई। रवि ने माँ को फिर से लेटा दिया और माँ के दोनों आज़ाद हो चुके बोबे पकड़ कर दबाने लगा और अपने मुँह में लेकर चूसने लगा। बीच बीच में वो शायद दाँत से काट लेटा तो माँ के मुख से हल्की सी चीख या सिसकी निकाल जाती।

थोड़ी देर चूसने के बाद रवि उठा और उसने अपने कपड़े उतारने शुरू किए, कमीज़, बनियान, पेंट और फिर अपनी चड्डी भी उतार दी। चड्डी उतरते ही उसका बड़ा सारा लंड निकल कर हवा में झूलने लगा। मैं देख कर हैरान रह गया कि मेरी तो छोटी सी है, इसका कितना बड़ा है।

उसने माँ को फिर से बैठाया, अपना लंड माँ के हाथ में पकड़ाया- चल फटाफट मुँह में ले ले। माँ बोली- ऊँ, मैं ये काम नहीं करती, मुझसे नहीं होता। मगर रवि बोला- चल साली, ड्रामा करती है तू… बढ़िया से चूस ले। रवि ने बोला और माँ ने सच में उसका लंड अपने मुँह में ले लिया और लगी चूसने।

थोड़ी देर रवि खड़े खड़े चुसवाता रहा, फिर उसने माँ को भी बेड पे ही खड़ा किया और उसके पेटीकोट का नाड़ा खोल कर उसको भी बिल्कुल नंगी कर दिया, वो खुद नीचे लेट गया और माँ को फिर से चूसने को बोला। माँ उसके घुटनों के पास बैठ और खुद उसका लंड पकड़ कर अपने मुँह में लेकर चूसने लगी।

मुझे बड़ी अजीब बात लगी कि जिससे हम पेशाब करते हैं, माँ उसे अपने मुँह में लेकर कैसे चूस सकती है, और वो तो ऐसे चूस रही थी, जैसे कोई लोलीपोप हो। कितनी देर माँ उसके लंड को इधर उधर आगे पीछे और ऊपर नीचे से चूसती और चाटती रही।

फिर रवि ने माँ को कंधो से पकड़ा और बोला- चल बस चाची अब नीचे आ जा! माँ भी झट से रवि की जगह पर लेट गई और रवि माँ के ऊपर लेट गया। माँ ने अपनी टाँगें ऊपर को उठा ली और जब रवि थोड़ा नीचे को हुआ तो माँ ने ‘आह…’ की लंबी सी आवाज़ की।

रवि बोला- चाची, तेरी चूत हो बहुत टाइट है, किसी कुँवारी लड़की की तरह। माँ भी हंस कर बोली- चल हट झूठी तारीफ मत कर, मुझे पता है कि मेरी कितनी टाइट है और कितनी ढीली, तू अपना काम कर बस। उसके बाद रवि कितनी देर माँ को धक्के से मारता रहा, कभी वो माँ के होंठ चूसता, कभी माँ के बोबे। कभी कभी माँ खुद अपने बोबे उसके मुँह में डालती, कभी खुद उसका मुँह पकड़ के उसके होंठ चूसती।

कितनी देर यही सब चलता रहा। माँ भी रवि को बड़ी कस कस के अपनी बाहों में ले रही थी, दोनों जन बिलकुल नंगे एक दूसरे में अंदर घुसने को जा रहे थे।

मुझे बहुत गुस्सा आ रहा था, पर मैं करता क्या… मैं अपना मुँह दूसरी तरफ घुमा कर लेट गया। मगर दूसरी तरफ से मुझे उन दोनों की ‘ऊह… आह… उफ़्फ़…’ और न जाने क्या क्या आवाज़ें सुनती रही। थोड़ी देर बाद मुझे नींद आ गई।

सुबह उठा तो मेरे दिल में माँ और रवि दोनों के लिए बेहद नफरत थी। कुछ दिन बाद रवि भी चला गया और दोबारा मैंने कभी उसकी शक्ल नहीं देखी, मगर माँ तो हमेशा मेरे सामने थी। कुछ दिनों बाद पता चला कि हमारे घर में एक और मेहमान आ रहा है, और एक दिन मेरा छोटा सा भाई माँ हॉस्पिटल से लेकर आई, मगर मुझे आज तक अपने उस भाई पे प्यार नहीं आया। मुझे बाद में समझ आया कि मेरा वो भाई एक तरह से रिश्ते में मेरा भतीजा भी लगता था।

आज भी जब मुझे उस रात की याद आती है तो मेरे दिल में कड़वाहट घुल जाती है। मगर मैं किसी को ये बात बता भी नहीं सकता था, अक्सर सोचता कि ‘काश किसी से कह कर अपने दिल का बोझ हल्का कर सकूँ।’

अब तो मैं पूरा जवान हो गया हूँ, फिर एक दिन अन्तर्वासना पे कहानी पढ़ते पढ़ते मुझे ख्याल आया के क्यों इसी माध्यम से मैं अपने दिल का दर्द आप सब से बाँट लूँ। इसी लिए मैंने ये कहानी आपके लिए भेजी है। पढ़ने के लिए धन्यवाद। [email protected]