Vidhwa Teacher Ki Chudai – Part 1

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हैलो मित्रो कैसे हो आप सब, उम्मीद है ठीक ही होंगे और इंतज़ार कर रहे होंगे किसी नई कहानी का, तो अब इंतज़ार की घड़िया खत्म करते हुए आपका अपना दीप पंजाबी नई कहानी लेकर हाज़िर है।

अपनी हिन्दी सेक्स कहानी के बारे में थोडा बतादूं के इस बार अपनी इस कहानी में जो नायिका का रोल प्ले कर रही है वो एक प्राइमरी स्कूल की टीचर है, उनका नाम श्वेता अग्रवाल है।

उसकी उम्र यही कोई 30 के करीब होगी, रंग गोरा, पतली सी कमर, ऊपर मॉडर्न कपड़े आह क्या बोलू एक दम भारतीय अभिनेत्रियों को भी मात देती नखरीले स्टाइल की मालकिन है।

हुआ यूं के मेरे भाई का एकलौता बेटा समीर जो के 4 साल का है, उसका एक प्राईमरी स्कूल में नया दाखिला कराया था। तो उसे स्कूल से लेकर आना और छोड़कर आना इसकी ज़िम्मेदारी मुझपे थी। स्कूल घर से 5 किलोमीटर की दूरी पे था।

सो उसे बाइक से सुबह 8 बजे छोड़ने जाता और 11 बजे वापिस लेने जाता अब आप कहोगे ये क्या बात हुई भई के बस 3 घण्टे पढ़ाई, ओ प्यारे मित्रो 4 साल का बच्चा इतना टाइम ही बड़ी मुश्किल से बैठता है, जब तक मूड ठीक है बैठेगा, नही तो रो रो कर स्कूल सर पर उठा लेगा।

चलो आगे बढ़ते है– एक दिन ऐसे ही उसे स्कूल छोड़ने गया तो समीर ने ज़िद करली के चाचू आप भी यही बैठो वर्ना मैं नही बैठूगा और आपके साथ घर चलुंगा। उसकी क्लास टीचर श्वेता मैडम है। जिसके बारे में ऊपर बताकर आया हूँ।

वो बोले,” यदि बच्चा इतनी ज़िद कर ही रहा है तो आप बैठ जाइये न, जिस से इसका भी दिल लग जायेगा और आपको दुबारा आने की परेशानी भी नही उठानी पड़ेगी। उसकी बात मुझे ठीक लगी तो मैं भी उसके पास थोड़ी देर के लिए बैठ गया। वो बड़े प्यार से सब बच्चों को पढ़ा रही थी। इतने में एक बच्चे ने मेरी तरफ हाथ करके मैडम से बोला,” मैडम जी, इतना बड़ा बच्चा भी यहाँ पढने आया है क्या?

जिस से मैडम और मैं दोनों हस हस के पागल हो गए, मैडम बोली,”हाँ बेटा नया है आज ही भर्ती हुआ है और फेर मेरी तरफ देखकर हसने लगी। काफी समय तक हसी मज़ाक चलता रहा।

इतने में हमारे जाने का टाइम हो गया। हमने उनसे आज्ञा ली और घर आ गए। रोज़ाना आने जाने से हमारी (मैडम और मेरी) जान पहचान बढ़ती गयी। एक दिन श्वेता मैडम बोली, दीप जी, आप अपना मोबाइल नम्बर दे जाओ जब ये रोयेगा या इसकी छुट्टी का टाइम हुआ करेगा आपको काल करके बुला लिया करेंगे।

मेने अपना मोबाइल नम्बर दिया और घर आ गया। घर आये को करीब डेढ़ घण्टा ही हुआ था थोड़ा आराम करके सोचा नहा लू, बाथरूम में घुसा ही था के मोबाइल पे रिंग की आवाज़ सुनकर बाहर आ गया।

जब देखा के नया नम्बर है, कौन हो सकता है, यही सोचकर जब कॉल रिसीव की तो सामने से एक प्यारी सी लड़की की आवाज़ आई,” हैल्लो, दीप जी गुडमोर्निंग, मैं श्वेता, समीर की क्लास टीचर बोल रही हूँ, आप इसे ले जाइये, इसको बुखार हो गया है। जिसकी वजह से बहुत रो रहा है। मैंने जल्द ही आने का बोल कर कॉल को काटा और वही कपड़े पहन कर दुबारा बाइक पे स्कूल की तरफ निकल गया। मन में ही मैडम का धन्यवाद भी किया के यदि आज उन्हें फोन नम्बर न दिया होता, मुझे समीर की हालात कैसे पता चलती। इन्ही सोचो में डूबा करीब 10 मिनट बाद स्कूल पहुंचकर, सीधा समीर की क्लास की तरफ भागा, अंदर जाकर क्या देखता हूँ के समीर को मैडम ने गोद में उठाया हुआ है और समीर ज़ोर ज़ोर से रो रहा है। मैडम उसे बोल रही थी,” चुप होज बेटा चाचू आ रहे है, मेने बुलाया है उनको ! पर बच्चों का तो आपको पता ही है, वो तो नॉर्मली भी रोने लग जाये जल्दी चुप नही होते, अब तो उसे बुखार था। फेर कैसे चुप रहता। उसके सिर पे मैडम ने अपना रुमाल भिगो कर दिया हुआ था के सिर की गर्मी निकल जाये। मुझे पास आया देख कर समीर मेरी तरफ बांहे निकाल कर और रोने लगा। जेसे कह रहा हो, मुझे यहाँ नही रहना, आप बस ले जहाँ से।

मैडम ने मुझे समीर को पकड़ाया और बोली,” अच्छा हुआ आप आ गए, देखो न कितना शरीर तप रहा है, इसे जल्दी से घर ले जाओ और दवाई देदो। मेने उसके माथे पे उल्टा हाथ लगाकर उसका बुखार देखा, उसका माथा एक जलती भटठी की तरह तप रहा था।

मैंने मैडम को धन्यवाद बोला और उनका रुमाल उन्हें वापिस देना चाहा, मैडम ने उस वक़्त वापिस लेने से मना कर दिया और कहा, बच्चे को ठीक हो जाने दो, फेर कभी वापिस ले लेंगे। मुझे उसकी बात अच्छी लगी और उनसे विदा लेकर बच्चे को सीधा डॉक्टर के पास ले गया।

डॉक्टर ने कहा,” बुखार बहुत ज्यादा है इस लिए इंजेक्शन नही लगा सकता, इसको बुखार उतरने की दवाई दे देता हूँ। घर जाकर दे देना। वैसे आपने बहुत अच्छा किया ये रुमाल भीगो कर इसके सर पे दिया है। इस से इसके दिमाग के बुखार का खतरा कम हो गया है। मैने मन में ही मैडम का धन्यवाद किया और समीर को लेकर सीधा घर आ गया। घर घुसते ही जब समीर के सिर पे भीगा रुमाल बंधा देखकर भाभी (समीर की माँ) अचंभित रह गई और भाग कर पास आई और बोली, क्या हुआ है इसे दीप? तो मैंने सारी कहानी सुना दी।

भाभी ने भी श्वेता मैडम को बहुत दुआए दी। जिस से मैडम के लिए मेरे दिल में बहुत इज़्ज़त और प्यार बढ़ गया। दवाई की वजह से शाम तक थोड़ा बुखार उत्तर गया था और समीर आगन में ही खेल रहा था।

मैंने पास जाकर उससे पूछा,” क्यों जनाब कैसे हो उत्तर गया बुखार क्या आपका? समीर ने पास आकर मुझे जफ्फी में लिया और तोतली सी आवाज़ में बोला,” तातू दाई कोली इ नी थाउगा

(मतलब चाचू दवाई कड़वी है नही खाऊँगा)

मैंने ऊसे गले लगाया और कहा बेटा एक बार ठीक होजा, फेर हम दवा दूर फेंक देंगे।

जिस से वो खुश हो गया और ताली बजाकर हसने लगा।

रात को करीब 9 बजे फेर मैडम का काल आया और समीर की तबियत का पूछा। मैंने थोड़ा ठीक होने का बताया और खास तोर पे धन्यवाद बोला समीर की केयर करने के लिए।

उसने बोला,” धन्यवाद की कोई जरूरत नही है जनाब, एक टीचर की हैसियत से मेरा फ़र्ज़ बनता था। सो मेने तो अपना फ़र्ज़ निभाया है। कोई और मेरी जगह होता वो भी शयद यही करता।

थोड़ी देर इधर उधर की बाते करने के बाद उसने फोन काट दिया।

अगले दिन समीर बिलकुल ठीक था । उसकी माँ ने उसे स्कूल के लिए तैयार कर दिया और मैडम का रुमाल भी धोकर प्रेस करके दिया के मैडम को वापिस दे देना।

जब हम सकूल पहुंचे तो समीर की मैडम आज आई नही थी। मैंने उन्हें काल लगाया तो पता चला उनको बहुत ज्यादा बुखार है और नही आ सकती। मैंने उनका एड्रेस लिया और समीर को वापिस घर छोड़कर उसके घर चला गया। जब बताये पते पे जाकर डोर बैल बजाई तो नाईट ड्रेस में ही मैडम ने दरवाज़ा खोला।

दरवाजा खोलते ही बुखार की वजह से मैडम को चक्र आ गया और गिरने ही वाली थी के भाग कर मैंने उन्हें जफ्फी में ले लिया और गिरने से बचा लिया पर वो बेहोश हो गयी थी, उसका शरीर भी तप रहा था।

उन्हें उठाकर उनके बैड पर लेटा दिया और पास पड़े पानी के गिलास से थोडे पानी से उसके मुँह पे छीटे मारे। जिस से उसको थोड़ा होश आया और मुझे पास बेठा देखकर लेटी हुई बैठने की कोशिश करने लगी, पर उठ न पायी। मैंने उन्हें लेटे रहने का ही इशारा किया और पूछा, कितना बुखार है आपको कोई दवा वगैरा ली या नही आपने।

मोबाइल आपके पास है, काल कर लेते, इतना कष्ट भी झेला ।

इसपे वो बोली,” नही कल देर रात से कपकपी वाला बुखार हुआ है, और उठकर दवा तो दूर कपड़े बदलने की हिम्मत भी नही है। अच्छा हुआ आप आ गए। बैठो आपके लिए चाय बनाती हूँ, पहली बार तो मेरे घर आये हो। जैसे ही उठने लगी फेर गिर गयी। मैंने उन्हें लेटे रहने का बोला और मैं उनकी रसोई का पता करके खुद चाय बनाने चला गया।

करीब 5 मिनट बाद दो कप ट्रे में ले आया और एक कप उनको एक खुद लिया। बाते करते करते उसने बोला यदि आप बुरा न मानो तो मेरे साथ अस्पताल तक जा सकते हो।

मैंने बोला क्यों नही जनाब, एक दोस्त होने के नाते आपकी सेवा करना इस वक़्त फ़र्ज़ है मेरा और कोई मेरी जगह होता वह भी शयद यही करता।

वो बोली, मेरे ही शब्द मुझपे बोल दिए, बड़े बदमाश ओ जी,

मैं — अभी हमारी बदमाशी देखी ही कहाँ है और हम दोनों हसने लगे।

चाय खत्म करके उसे सहारा देकर बाथरूम छोड़ आया। जहां उसने कपड़े बदले और मेरे साथ अस्पताल जाने के लिए तैयार हो गयी। संयोगवश हम दोनों उसी अस्पताल गए। जहां मैं समीर को दवाई दिलाने एक दिन पहले लेकर गया था।

हम दोनों हम उम्र होने की वजह से डॉक्टर हमे गलतफैमी से पति पत्नी समझ रहा था बोला,” आपकी बीवी को बहुत तेज़ बुखार है। इसके माथे पे गीले कपड़े की पट्टी करो। तब तक मैं दूसरे मरीज़ को देख कर आता हूँ।

इस से पहले मैं डॉक्टर की गलतफैमी दूर करता। वोे हाल में पड़े मरीज़ों को देखने चला गया। मैंने वहां ही रुमाल निकाला और पानी से भिगो कर उसके माथे पे पट्टी करने लगा। जिस से मैडम को थोडा निजात भी मिल रही थी, पर पता नही ऐसा क्या हुआ के मैडम की आँखों में आंसुओ की धारा बहने लगी। मैंने उन्हें पूछा कया हुआ मैडम ?

वो कुछ नही बोली और सिर्फ रो रही थी और कुछ भी बता नही रही थी। जिस से मुझे उसकी और भी चिंता हो रही थी। इतने में डॉक्टर जब दुबारा चेक करने आया मैडम ने अपना चेहरा साफ कर लिया और ऐसे पड़ी रही जेसे 5 मिनट पहले कुछ हुआ ही नही था।

डॉक्टर ने उसका बुखार चेक किया और बोला, बधाई हो आपकी बीवी का बुखार काफी हद तक उत्तर चूका है। अच्छा किया के जल्द से ले आये वरना इनके दिमाग को बुखार हो सकता था।

डॉक्टर ने दवा दी और कल फेर चेक करवाने को कहा, वहां से निकल कर जब रोड पे आये तो पूछा क्या बात है आप इतना रो क्यों रही थी। वो बोली, घर चलो सब बताती हूँ,

फेर एक रेस्टोरेंट के सामने रोकने का इशारा किया और बोला, ये लो पैसे और अंदर से खाना पैक करवा लाओ, आज तबियत खराब की वजह से मुझसे बनेगा नही। मैंने वैसा ही किया और खाना लेकर उसके घर आ गए। उसने एक टेबल पे खाना परोसा और हम दोनों खाना खाते बाते करने लगे। उसने बताया के उसका यह अपना शहर नही है, वो यहां सिर्फ नौकरी करती है।

मैंने पूछा, तो तुम्हारा असली घर कहाँ है और घर वाले कहाँ है, ?

मेरी इस बात पे फेर रोने लगी,” मैंने उठ कर उसे गले लगाया और चुप कराया और पूछा क्या वजह है बार बार रोने क्यू लग जाते हो।

वो बोली,” दीप काश मेरा पति भी इतना प्यार कर पाता, जितना तुमने सुबह से लेकर अब तक किया है।

पति का नाम सुनते हीे मुझपे तो जैसे एक बिजली गिर गयी।

क्योंके बाकि लोगों की तरह मैं भी अब तक उसे कुंवारी ही समझ रहा था।

मैंने हैरानी से पूछा अ,” क्या आप शादीशुदा हो ?

वो रोते हुए बोली,” हाँ दीप मेरी शादी भी आज से 5 साल पहले माँ बाप ने बड़ी धूम धाम से की थी। मेरा अपना मायका श्री गंगानगर (राजस्थान) में है और सुसराल श्री मुक्तसर साहिब (पंजाब) में है। मेरे घर वालो ने मुझे खूब दाज़ दहेज देकर विदा किया था अपने घर से, पर कहते है न जब किस्मत में सुख न हो, तो अकेला पैसा भी कुछ नही कर सकता।

शादी के 1 साल बाद ही मेरा पति मनमीत मुझे बात बात पे मारने पीटने लगा।जब एक बार मै 6 महीने तक गर्भवती हुईं, तो एक दिन दारू पीकर घर आया जब उससे इतनी दारू पीने का कारण पूछा तो मुझे इतना मारा के अपने आप मेरा गर्भपात हो गया। एक महीना मायके में पड़ी रही।

मैं उनसे बहुत प्यार करती थी, पर मार पीट की वजह और अपने बच्चे को खो देने के गुस्से से उनसे दूरी बनाकर रखी थी। कई महीनो बाद एक दिन मेरा पति मायके आया और मुझसे माफ़ी मांगी के आगे से ऐसी गलती कभी नही होगी।

तो माँ बाप ने मुझे उनके साथ भेज दिया। मुझे भी लगा शायद अब सुधर गए है, अब नही कोई शिकायत का मौका देंगे। पर मेरी सोचनी गलत थी। मेरे सुसराल आने के बाद कुछ दिन माहौल ठीक रहा फेर वही झग़डा, मार पीट करने लगा और एक दिन ज्यादा नशा कर लेने की वजह से रात को एक गाडी की चपेट में आने से इनकी मौत हो गयी।

भगवान भी जैसे मेरी परीक्षा ले रहा था। पहले मारपीट झेलती रही, फेर बच्चा खो दिया, और अब पति भी ज़िन्दगी से निकल गया। पहले तो अकेली गोद सूनी थी, अब मांग भी सूनी हो गयी थी।

पढ़ते रहिये.. क्योकि ये कहानी अभी जारी रहेगी और मेरी मेल आई डी है “[email protected]”.

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