स्कूल के गुरू जी ने मुझे चोदा -1

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हाय दोस्तो.. मैं रत्ना.. आपने मेरी पिछली कहानी ‘मेरे ससुर ने मुझे चोदा’ पढ़ी होगी.. और शायद सबको अच्छी भी लगी होगी। मुझे नहीं पता कि आप लोगों के ऊपर इस कहानी का क्या असर हुआ है.. पर वह मेरे जीवन की सच्ची घटना थी.. जो मैंने आप सभी को बताई थी। अब उससे आगे की कहानी आप सभी को बता रही हूँ।

जब मैंने फ़ेसबुक चलाना सीखा ही था.. मेरे ससुर और मेरे पति ने मुझे चुदाई कर करके मुझे भी चुदासी बना दिया था। मैं एक प्राइवेट स्कूल में पढ़ाने जाने लग गई थी.. उसमें मेरे साथ एक मेरे मोहल्ले की औरत भी पढ़ाती थी.. उसका नाम शीलू था.. वो और मैं स्कूल में और बाहर भी बहुत अच्छे से रहते थे। वो और मैं दोनों बहुत सुंदर थीं.. वो मुझे भाभीजी कह कर बुलाती थी.. क्योंकि मैं उससे बड़ी जो थी।

शीलू ने नया मोबाइल लिया था.. वो स्कूल में भी मोबाइल ले जाती थी और वहीं मुझे फेसबुक चलाना सिखाती थी।

फिर उसने धीरे-धीरे मेरी भी फ़ेसबुक पर आईडी बना दी और मुझे फ़ेसबुक चलाना सिखा दिया.. मुझे भी इसमें मजा आने लगा.. मुझे लगा कि इधर हम किसी को भी दोस्त बना सकते हैं.. बातें कर सकते हैं.. अपनी फोटो दिखा सकते हैं.. तो मुझे इसमें बहुत मज़ा आने लगा।

फिर एक दिन हमारे स्कूल के प्रिंसीपल गुरू जी की फ्रेण्ड रिक्वेस्ट आई.. और वे मेरे साथ एड हो गए। मैं और शीलू स्कूल में खाली समय में बैठ कर गुरूजी से फेसबुक पर बातें करते.. वो ऑफिस में बैठे रहते थे।

शीलू ने ही मुझे बताया था- रत्ना भाभी जी.. गुरूजी आपको बहुत घूर-घूर कर देखते हैं.. शायद आपको पसंद करते हैं। मैंने कहा- हट पगली.. मैं ऐसी-वैसी नहीं हूँ.. हम दोनों हँसने लगे और फिर इसी तरह धीरे-धीरे हमारी बातें आगे बढ़ने लगीं।

फिर मैंने भी फोन ले लिया और स्कूल भी ले जाने लग गई। गाँव में सब लोग मुझे एक शरीफ़ और सीधी औरत समझते थे।

धीरे-धीरे गुरूजी के साथ मैं बातें करने लग गई.. मुझे भी वे अच्छे लगने लग गए थे..

फिर एक दिन स्कूल में कोई मीटिंग थी.. जिसमें सभी अध्यापक आदि बैठे थे। गुरूजी मेरी तरफ़ देख कर आँख मार रहे थे.. जिसका मुझे और शीलू को ही पता चल पा रहा था।

स्कूल में वे सबसे ज्यादा सेलरी भी शीलू और मुझे ही देते थे.. मतलब कि शीलू ने मेरी गुरूजी से सैटिंग करवा दी थी।

फिर जब मीटिंग ख़त्म हुई तो सब एक एक करके चले गए.. गुरूजी ने मुझसे कहा- रत्ना मैडम.. शीलू मैडम.. आप दोनों थोड़ा इधर ही रुकना.. रजिस्टर का काम बाकी है।

तो बाकी सब लोग चले गए.. मेरा दिल ज़ोरों से धड़कने लगा कि गुरूजी ने हमें क्यों रोका।

ऑफिस का गेट थोड़ा ऐसे ही खुला था.. तो गुरूजी ने शीलू से कहा- आप वहाँ गेट के पास थोड़ा खड़ी हो जाओ.. ताकि कोई अन्दर न आने पाए, मैं और रत्ना मैडम अन्दर ही थोड़ा काम कर रहे हैं।

शीलू भी एक शादीशुदा औरत थी.. वो भी जानती थी कि कौन सा काम होना है। वो मन ही मन हँस रही थी कि आज तो गुरूजी रत्ना भाभी की चुदाई करके ही छोड़ेंगे।

मैं अन्दर कमरे में चली गई और गुरूजी और मैं चिपक कर खड़े थे। गुरूजी ने कहा- रत्ना.. मेरी जान आई लव यू.. मैं तुम्हारे लिए कुछ भी कर सकता हूँ.. यहाँ तक कि तुमसे शादी भी करने के लिए तैयार हूँ.. हम दोनों ये शहर छोड़ कर कहीं भाग चलते हैं।

मैंने कहा- गुरूजी.. आप यह क्या बोल रहे हो? आप भी शादीशुदा हो और मैं भी.. हमारी फैमिली है.. बच्चे हैं! ‘तो रत्ना मुझसे प्यार नहीं करती हो क्या?’ ‘करती हूँ ना.. सुनील..’ गुरूजी का नाम सुनील था.. उन्होंने कहा- कहाँ कर रही हो.. इतनी तो दूर खड़ी हो? ‘नहीं सुनील.. मैं तुमसे बहुत प्यार करती हूँ.. आई लव यू सुनील..’

मैं उसके गालों को चूमने लग गई और सुनील ने मुझे बाँहों में भर कर ज़ोर से दबाने.. और चूमने-चाटने लगा। अब एक मर्द की बाँहों में जाते ही मेरी सीत्कारियां निकलने लगीं जो बाहर खड़ी शीलू तक को सुनाई दे रही थीं।

वो बाहर खड़ी हँस रही थी और सुनील ने मेरी साड़ी का पल्लू नीचे गिरा दिया और मेरे ब्लाउज के ऊपर से ही मेरे मम्मों को चूमने लगे। मैं मर्द की सुंगध पाते ही अपना आपा खोने लगी.. और मैंने अपने आपको गुरूजी की बाँहों में छोड़ दिया। कुछ ही पलों में मैं भी कामातुर होकर उनको चूम रही थी.. साथ जवाब भी दे रही थी।

गुरूजी ने मेरे साड़ी खोल दी.. ब्लाउज भी खोल दिया.. पेटीकोट भी जमीन पर मेरे पैरों में गिर कर माफ़ी मांगने लगा था।

अब मैं सिर्फ़ लाल रंग की ब्रा और हल्के बैगनी रंग की पैन्टी में सुनील के लम्बे बैगन को लेने के लिए तैयार खड़ी थी। मुझे शर्म आने लग गई थी.. कि शीलू बाहर खड़ी सब समझ रही है।

मैंने चिरौरी की- अभी नहीं गुरूजी.. इस वक्त हम लोग स्कूल में हैं और इस बीच कोई भी आ गया तो सबकी बदनामी होगी.. मेरा तो ससुराल है.. ‘नहीं रत्ना रानी.. बहुत दिनों बाद मौका मिला है.. आज तो मैं तुम्हारी चुदाई करके ही तुमको जाने दूँगा।’ यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं !

उन्होंने मुझे वापिस अपनी बाँहों में भर लिया और चूमने लग गए और मेरी ब्रा का हुक खोल दिया। जिससे में ऊपर से पूरी नंगी हो गई और मेरे दोनों मम्मे आज़ाद हो गए। सुनील गुरूजी मेरे रसीले चूचों पर टूट पड़े और उनको अपने मुँह में लेकर चूसने और काटने लग गए।

इससे मेरी सीत्कारें भी बढ़ने लग गई थीं.. जो शीलू को साफ़ सुनाई दे रही थीं।

फिर उन्होंने मेरी पैन्टी भी खींच कर उतार दी और मुझे पूरी मादरजात नंगी कर दिया। मुझे विश्वास ही नहीं हो रहा था कि मैं अपने स्कूल में ही नंगी हो चुकी हूँ.. वो भी गुरूजी के सामने।

इसी बीच सुनील नीचे बैठ कर मेरी चूत को चूमने-चाटने में लग गए। अब मुझसे भी संयम करना मुश्किल हो रहा था। मैं अपने होंठों को काटने लगी और अपने हाथ गुरूजी के बालों में फेरने लगी। मैं एक दीवार के सहारे खड़ी एक नंगी हीरोइन से कम नहीं लग रही थी, मैंने कहा- गुरूजी.. बस अब मुझे चोद दो.. नहीं तो मैं बाहर जाकर किसी से भी चुदवा लूँगी।

गुरूजी ने कहा- मेरी जान बाहर किसी से भी क्यों.. यहाँ तेरा यार है ना तेरी ज़बरदस्त चुदाई करने के लिए.. ‘ओह..तो देर क्यों लगा रहे हो.. आ जाओ ना.. जल्दी और अपनी जान को चोद दो..’

उसने मुझे दीवार के सहारे खड़ी करके अपने हाथ से मेरी एक टांग हवा में उठा ली और पीछे से अपना लंड मेरी चूत में पेल दिया। वो अभी तक कपड़े पहने हुए थे.. मैंने कहा- गुरूजी.. अपने कपड़े तो खोल लो पैन्ट की चैन में से लौड़ा लगाने में क्या मजा आएगा?

फिर सुनील ने अपनी पैन्ट खोली और नंगा होकर वापिस आकर.. अपना लंड मेरी चूत में पेल दिया। उनका लंड 8 इंच का था.. लेकिन भुसन्ड काला और मोटा था.. जो मुझे पसंद है।

मैं अपने चूतड़ों को हिलाने में लग गई उसको भी यकीन हो गया कि मैं भी चुदाई का खूब मज़ा ले रही हूँ। उसने भी बम-पिलाट चुदाई शुरू कर दी। ‘आह.. ओह.. गुरूजी.. आज अपने मुझे रंडी बना दिया.. आऊहह..’ ‘हाँ मेरी रंडी रत्ना.. मेरी जान अब मैं तुझे रोज चोदूँगा.. तेरी खूब चुदाई करूँगा.. और तेरी चूत.. गाण्ड.. और बोबे इतने बड़े कर दूँगा कि गाँव में सबसे सेक्सी तू ही लगेगी और हर कोई तुझे ही चोदना चाहेगा.. देखना मेरी रत्ना.. ओह्ह..’

‘अय्याअ.. उईमाआ… आआ गुरूजी.. जरा आराम से चोदिए न.. दर्द होता है..’ ‘रत्ना मेरी रंडी.. साली दर्द तो होगा.. तू रोज स्कूल में नई साड़ी पहन कर आती है.. आह्ह.. कैसे अपनी गाण्ड मटकाती है.. आह.. ऐसा लगता है कि खा जाऊँ.. रत्ना ओहह..’

वो एक बार झड़ने वाले थे.. तो मैं नीचे बैठ गई और उनका लंड अपने मुँह में लेकर चूसने लग गई। उनका लौड़ा बहुत ही बड़ा था.. जब मुँह में लिया.. तब मुझे पता लगा.. उनका पानी थोड़ा नमकीन सा था.. वो पूरा झड़ गए.. तब भी मैं चूसे जा रही थी।

वो मेरे बोबे दबा रहे थे.. और मैं ज़ोर से सिसकारी लेकर गुरूजी का लंड चूसे जा रही थी.. हमको काफ़ी देर हो गई थी। तभी शीलू अन्दर आ गई और हम दोनों को इस हालत में देख कर हँसने लगी और बोली- गुरूजी आपने तो रत्ना भाभी जी को चोद दिया और रत्ना भाभी आप गुरूजी का लंड चूस रही हो.. बाप रे वैसे तो आप कैसी सीधी सी दिखती हो?

‘शीलू क्या करूँ.. तेरे भाई साहब तो बाहर रहते हैं.. तो मुझे भी चुदाई की ज़रूरत तो होती ही है। सच कह रही हूँ.. सुनील गुरूजी जी का लंड बहुत बढ़िया है..। इसी लिए तो इनसे मस्ती से चुदवा रही हूँ.. बस तुम किस को बोलना मत..’

‘रत्ना भाभी.. जरा धीरे चूसो.. बाहर तक आवाजें जा रही हैं.. और जल्दी खेल खत्म करो घर चलो.. नहीं तो किसी को शक हो जाएगा। एक बजे छुट्टी हो गई थी और हमको 2 बजे गए हैं।’ मैं बोली- शीलू.. बस कुछ देर और बस..

फिर गुरूजी ने मुझे शीलू के सामने ही गोद में उठा कर नीचे से मेरी चूत में अपना लंड डाल दिया। मैं शीलू के सामने ही गुरूजी की गोद में लटक कर चुदवाने लगी।

गुरूजी ने शीलू से कहा- शीलू मेरा मोबाइल ले लो.. हम दोनों की फोटो और वीडियो खींच लो.. ‘नहीं गुरूजी.. कोई मोबाइल देख लेगा.. ऐसा मत करो..’ ‘नंगी रत्ना.. साली रंडी तू ऐसे तो नहीं मानेगी.. तुझे डरा कर तो रखना ही पड़ेगा.. ताकि तू रोज मुझसे चुदवा सके..’

प्रिय साथियो.. मेरे साथ इस वासना के खेल में बहुत कुछ होना बाकी था, आप कहानी का रस लेते रहिए और अपने ईमेल जरूर भेजिएगा। कहानी जारी है। [email protected]

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