मेरा गुप्त जीवन -24

This website is for sale. If you're interested, contact us. Email ID: storyrytr@gmail.com. Starting price: $2,000

अगले दिन चम्पा निर्मला को लेकर मम्मी से मिलने आई। थोड़ी देर बाद वो दोनों मम्मी के साथ मेरे कमरे में आईं। मम्मी ने आते ही कहा- सोमू, चम्पा इस निर्मला को ले कर आई है तुम्हारे काम के लिए! बोलो ठीक है यह? मैंने कहा- मम्मी, आप जो फैसला कर लो, वही ठीक है।

मम्मी ने चम्पा को कहा- चम्पा, तुम निर्मला को सोमू का काम समझा देना। वैसे ही यह तो जल्दी शहर जाने वाला है, उसके बाद मैं देखूंगी इसको कहाँ रखें।

निर्मला भी काफी सुघड़ औरत थी, सबसे अच्छी चीज़ जो उसकी मुझको लगी थी वो उसकी मीठी और प्यारी आवाज़ थी। जब चम्पा ने उसको काम समझा दिया तो वो उसको लेकर मेरे पास आई और बोली- यह छोटे मालिक का कमरा है, इसको साफ़ सुथरा रखना अब तेरा काम है निर्मला! छोटे मालिक के हर काम को ध्यान से और मन लगा कर करना। जैसा वो कहें, वैसा ही करना, छोटे मालिक तेरा पूरा ख्याल करेंगे।

मैंने पूछा- क्यों चम्पा क्या यह रात रहेगी यहाँ? ‘हाँ छोटे मालिक, मैंने इसकी सास से बात कर ली है और वो मान गई है। यह अब दिन रात आप की सेवा करेगी छोटे मालिक!’ ‘क्यों निर्मला? करेगी न हर प्रकार की सेवा?’ यह कहते हुए चम्पा ने मुझको आँख मारी, मैं भी मुस्कुरा दिया।

‘और सुन निर्मला तू रात में अपना बिस्तर यहाँ ही बिछाया करेगी और छोटे मालिक का पूरा ध्यान रखेगी। ठीक है न?’ ‘अच्छा छोटे मालिक, मैं अब चलती हूँ!’ मैं बोला- रुक चम्पा। मैं अपनी अलमारी की तरफ गया और कुछ रूपए निकाल कर ले आया, 100 रूपए मैंने चम्पा को दिए और 100 ही निर्मला को दे दिए। दोनों बहुत खुश हो गईं और जाने से पहले मैंने चम्पा के होंट चूम लिए और उससे कहा- देख चम्पा तुझको जब भी किसी किस्म की मदद की ज़रूरत हो तो बिना हिचक के आ जाना मेरे पास। तुमने मुझको बहुत कुछ सिखाया है।

और फिर मैंने उसको बाँहों में भींच कर ज़ोरदार चुम्मी दी और उसके चूतड़ों को हाथ से रगड़ा। मैंने निर्मला को मेरे लिए चाय लाने के लिए कहा।

बिंदु का जाना और निर्मला का आना बस एक साथ ही हुआ। निर्मला की धोती कुछ मैली और पुरानी लग रही थी। तो मैं मम्मी के कमरे से उसके पुराने कपड़ो की अलमारी से 3-4 धोतियाँ उठा लाया और निर्मला को दे दी। वो और भी खुश हो गई और कुछ शरमाई और फिर आगे बढ़ कर उसने मेरे होंट चूम लिए और वहाँ से भाग गई।

मेरे कॉलेज का फैसला यह हुआ कि लखनऊ के सबसे बढ़िया कॉलेज में मेरा दाखला होगा और वहाँ मैं हॉस्टल में नहीं रहूँगा बल्कि अपनी कोठी में रहूंगा और मेरी देखभाल के लिए वहाँ खानसामा तो रहेगा ही, साथ में किसी नौकरानी का भी इंतज़ाम कर दिया जाएगा जो मेरा काम देखा करेगी जैसे यहाँ देखती है।

10 दिनों बाद मुझको लखनऊ जाना था तो मैं पूरी तरह चुदाई में लीन हो गया और निर्मला ने इसमें मेरा पूरा साथ दिया।

रात को चुदाई के बाद मैंने निर्मला से उसके पति के बारे में पूछना शुरू कर दिया। उसने बताया कि उसका पति भी बड़ा ही चोदू था, वो अक्सर रात में 3-4 बार चोदता था और उसको चुदाई के कई ढंग आते थे। जैसे वह चूत को तो चोदता था ही, वह मेरी गांड में भी लंड से चुदाई करता था।

‘अच्छा तो तुमको गांड चुदाई अच्छी लगी क्या?’ ‘नहीं छोटे मालिक, मुझको चूत की चुदाई ही अच्छी लगती है लेकिन मेरे पति को गांड चुदाई की भी आदत पड़ चुकी थी तो वो हफ्ते दस दिन में एक बार गांड भी मार लिया करता था मेरी!’ ‘अच्छा यह तो बड़ा ही गन्दा काम है निर्मला! तू कैसे बर्दाश्त करती थी उसकी यह गन्दी हरकत?’

‘नहीं छोटे मालिक गांड चुदाई कई मर्दों को बहुत अच्छी लगती है क्योंकि चोद चोद कर औरतों की चूत तो ढीली पड़ जाती है और अगर कहीं 3-4 बच्चे हो जाएँ तो चूत बिल्कुल ढीली पड़ जाती है और मर्द लोगों को चुदाई का मज़ा नहीं आता। ‘तुझको दर्द तो हुआ होगा बहुत?’ ‘हाँ पहली बार तो हुआ था लेकिन मेरा आदमी तेल लगा कर मुझको चोदता था तो इतना दर्द नहीं होता था।’ ‘पर तुझको मज़ा तो नहीं आता होगा?’ ‘नहीं मुझको मज़ा नहीं आता था और बाद में पति के सो जाने पर मुझको ऊँगली करनी पड़ती थी। वैसे गाँव की कई औरतों ने मुझको बताया है उनके आदमी भी गांड मारते हैं उनकी।’

‘अच्छा यह बता तेरे पति की चुदाई से तेरा बच्चा क्यों नहीं हुआ?’ ‘मेरे पति के वीर्य बड़ा ही पतला था और बहुत जल्दी ही वो झड़ जाता था।’ ‘कितने साल हो गए तेरी शादी को?’ वो बोली- 3 साल हो जायेंगे अगले महीने! वो उदास हो कर बोली।

‘इस बीच किसी और मर्द से नहीं चुदवाया क्या?’ वो शर्मा गई और बोली- नहीं छोटे मालिक! यह कहते हुए मुझको लगा कि वो झूठ बोल रही है, मैंने कहा- मुझको लगता है तुम काफी चुदी हुई हो। सच बताना क्या किसी और से भी चुदवाया है कभी? मैं बिल्कुल बुरा नहीं मानूँगा।

वो काफी देर चुप रही लेकिन मैं उसके चेहरे के भाव पढ़ कर यह अंदाजा लगा रहा था कि सच बोलने से घबरा रही है। ‘निर्मला सच बता दो, मैं बिल्कुल किसी को नहीं बताऊँगा। कौन था वो जिससे चुदवाती रही थी तुम?’

निर्मला बोली- मेरे पड़ोस का लड़का था। हमारा गुसलखाना नहीं है तो हम या तो नदी पर नहाती हैं या फिर घर के बाहर छप्पर में कपड़ा बाँध कर नहा लेती हैं। एक दिन मैं नहा रही थी तो मुझको चुदवाने की गर्मी सताने लगी तो मैं बिना सोचे चूत में ऊँगली डाल कर अपनी तसल्ली कर रही थी कि मुझको ऐसा लगा कि कोई मुझको देख रहा है? मैं चौकन्नी हो गई और उठ कर देखा तो पड़ोस का लड़का छुप छुप कर मुझको नहाते हुए देख रहा था।

‘फिर क्या हुआ?’ मैं बोला। ‘वो भी गर्मी में आकर मुठ मार रहा था… मुझको देख कर भाग गया। उसका लंड देख कर मेरा दिल मचल गया लेकिन मैं अपनी तरफ से पहल नहीं करना चाहती थी।’ यह कहते हुए निर्मला फिर गर्म हो गई और मेरे लंड के साथ खेलने लगी, मैं भी अपना हाथ उसकी चूत पर फेर रहा था।

उसकी चूत काफी गीली हो गई थी, मैं लेट गया और उसको अपने ऊपर आने के लिए कहा, वो झट से मेरे ऊपर आ गई और मेरा लंड अपनी चूत में डाल कर मुझको ऊपर से धक्के मारने लगी। मैं भी उसके मम्मों के साथ खेल रहा था, मेरी एक ऊँगली उसकी भगनसा को धीरे से मसल रही थी और फिर जल्दी ही निर्मला एकदम पूरे जोश में आ गई और मुझको काफी ज़ोर से चोदने लगी। उसकी कमर बड़ी तेज़ी से ऊपर नीचे हो रही थी, उसकी आँखें बंद थी और चुदाई का पूरा आनन्द ले रहे थी।

थोड़ी देर में ही वो ‘ओह्ह ओह्ह…’ करती हुई झड़ गई और मेरे ऊपर लेट गई। मैं उसकी मोटी गांड में एक ऊँगली डाल कर गोल गोल घुमाने लगा। ऐसा करने से ही उसकी गांड अपने आप हिलने लगी और मेरी ऊँगली को लगा कि उसकी गांड खुल और बंद हो रही है। दिल तो किया कि मैं भी इसकी गांड में लंड डाल दूँ लेकिन मन में बैठी घृणा ने मुझको ऐसा करने से रोक दिया।

जब वो बिस्तर पर फिर लेटी तो मैंने पूछा- फिर क्या हुआ उस लड़के के साथ? वो बोली- वो लड़का डर के मारे मेरे पास ही नहीं आता था। एक दिन मैं जंगल-पानी करके आ रही थी, वह लड़का मिल गया और बोला- भौजी बुरा तो नहीं माना न? ‘नहीं रे, बुरा क्या मानना है?’ मैं बोली। ‘तो भौजी हो जाए किसी दिन?’ ‘क्या हो जाए?’ ‘अरे वही जो भैया करते थे तुम्हारे साथ!’

धत्त… ऐसा भी कभी होता है? पिद्दी भर का लौण्डा और यह बात?’ ‘पिद्दी कहाँ, तुमने मेरा लंड देख लिया था न, पूरा मर्दाना है।’ ‘चल दिखा खोल कर?’ ‘क्या कह रही हो भौजी? यहाँ दिखाऊँ क्या?’ ‘नहीं, इधर ईख के खेत में आ जा!’

ईख के खेत में मैंने उसका लंड देखा, होगा 5 इंच का। लेकिन मेरे ऊपर तो कामवासना का भूत सवार था, मैंने उसका लंड पकड़ लिया और उसको लिटा दिया और मैं उसके ऊपर चढ़ बैठी और ज़ोर ज़ोर से धक्के मारने लगी ऊपर से और वो 2 मिन्ट में ही झड़ गया। लेकिन उसका लंड अभी भी अकड़ा रहा और मैं फिर उसको चोदने लगी और दूसरी बार वो 10 मिन्ट तक डटा रहा और मेरा एक बार उसके साथ ही छूट गया।

मैं चुप बैठा रहा। निर्मला ने पूछा- छोटे मालिक, कहीं आप बुरा तो नहीं मान गए? कहानी जारी रहेगी। [email protected]

This website is for sale. If you're interested, contact us. Email ID: storyrytr@gmail.com. Starting price: $2,000