नादान निर्मला की अनचुदी बुर-2

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फिर मेरा हलब्बी लौड़ा उसके हाथ में आने के बाद उसने अपनी सलवार उतरवाने के लिए मना नहीं किया। ऊपर से नीचे मैंने देखा.. तो ऐसे लगा कि क्यों इस लड़की के साथ ये कर रहा हूँ.. कितनी मासूम और हसीन है ये.. लेकिन दिल की चाहत और दिमाग़ की चाहत में फरक होता है।

फिर क्या था.. मैंने उसके बचे हुए कपड़े भी निकाल दिए और अब वो मेरे सामने बिल्कुल नंगी थी। मैंने बिना वक्त खराब किए.. उससे कहा- देखो थोड़ा दर्द होगा.. अगर ज़्यादा दर्द हुआ तो बता देना.. उसने बोला- ठीक है..

मैंने उसके पैर फैलाए और उसके ऊपर चढ़ कर उसको एक चुम्मा लिया। उसके बाद मैंने उसकी चूत की फांक पर अपना लण्ड का सुपारा रखा.. धीरे से लण्ड को धक्का मारा और अभी सुपारा ही फंसा था कि वो ज़ोर-ज़ोर से चिल्लाने लगी- निकालो.. मैं मर गई.. प्लीज़ निकालो.. मैं मर जाऊँगी..

तो मैं रुक गया और मैंने अपना लण्ड बाहर निकाल लिया। इस बीच मैं उसको चुम्मा लेता था और समझता रहा कि देखो दर्द तो होगा ही इसको सहन करने के बाद ही मज़ा है..

फिर उसने मुझसे बोला- अजीब सा दर्द है ये.. दर्द सहन करने जैसा नहीं है। लेकिन फिर भी आप बोलते हो.. तो एक बार फिर से ट्राई करते हैं।

फिर क्या मैं फिर से उसके ऊपर आया और इस बार नीचे उसकी चूत पर थूक लगा दिया। फिर अपना लण्ड रखा.. और उसको चुम्बन करना चालू किया.. और जब मुझे लगा कि उसको मज़ा आने लगा है.. तो पूरे ज़ोर के साथ अपना लण्ड उसकी चूत में पेल दिया।

उसका असर यह हुआ कि वो ज़ोर से चीखी और अपने एक पैर से मेरे सीने पर इतनी ज़ोर से मारा कि पूरा लण्ड उसकी चूत से बाहर निकल गया। वो ज़ोर-ज़ोर से रोने लगी.. और बोलने लगी- देखो.. खून निकल रहा है.. कितना दर्द हो रहा है।

मैं उसे समझाया- देखो रोने की बात नहीं है..थोड़ी देर में बंद हो जाएगा.. थोड़ी देर तक वो रोई.. फिर मेरे गले लग कर आराम किया।

ऐसी चूत शायद ही नसीब वालों को मिलती है.. हल्की सी दोनों तरफ से फूली हुई.. पैर फैलाने पर पैरों के बीचों-बीच एकदम लाल गुलाब जैसी.. अनचुदी बुर को देख कर तो मुझे ऐसा लग रहा था कि इसमें लण्ड नहीं सिर्फ़ जीभ जानी चाहिए..

फिर मैंने 20 मिनट बाद उससे पूछा- दर्द हो रहा है? तो उसने बोला- हाँ.. लेकिन उतना नहीं है.. मैंने उससे बोला- एक इलाज है.. लेकिन तुम राज़ी हो तो करेंगे। तो बोली- क्या? मैं बोला- अगर मैं तुम्हारी चूत चाटूं.. तो दर्द ठीक हो जाएगा..

पहले उसने बहुत मना किया.. फिर मैंने उसे बोला- देखो यह हमारी सुहागरात जैसा दिन है.. इसे खराब मत होने दो.. तो वो कुछ नहीं बोली।

मैंने उसे फिर से बिस्तर पर लिटाया और उसकी चूत पर धावा बोल दिया.. काफ़ी देर तक उसकी चूत पर अपनी जीभ से उसको चाटता रहा। फिर मैंने उसके पेट को चाटते हुए उसकी चूचियों को चूसना चालू किया।

मैंने उसको खूब चूमा.. चूत चाटने से शायद वो जोश में आ गई थी.. उसकी चूचियों को चाटने के बाद मैंने उसे चुम्बन किया और उसके कानों को चूमते-चूमते मैंने उसको कानों में ही धीरे से बोला- फिर से एक बार ट्राइ करें..? इस बार मैं धीरे-धीरे करूँगा। तो उसने बोला- ठीक है.. चुदासी तो वो भी हो गई थी।

फिर क्या था.. मैं उसके पैरों को फैलाया और अपना लण्ड फिर से उसकी चूत पर रख दिया। उसकी चूत से हल्का-हल्का खून की लाली अभी भी दिख रही थी। इस बार मैंने धीरे से लण्ड को अन्दर डाला और उसके मुँह से एक ‘आह’ सी निकल पड़ी।

फिर मैंने उससे पूछा- दर्द पहले से कम है? तो उसने बोला- हाँ.. मैंने उससे बोला- दर्द होगा.. लेकिन पहले जितना नहीं होगा.. थोड़ा सा सहन कर लो फिर मजा देखो.. उसके बाद मैं धीरे-धीरे अपना आधा लण्ड उसकी चूत में पेल कर अन्दर-बाहर करने लगा। मैं बीच-बीच में थोड़ा ज़ोर लगा कर लौड़े को और अन्दर डालने लगा.. जब भी लण्ड अन्दर जाता.. वो ‘आहह’ की आवाज़ अपने मुँह से निकालती।

थोड़ी देर में मेरा पूरा लण्ड उसकी चूत में था.. फिर क्या.. ना तो उसे अब दर्द हो रहा था.. ना हम दोनों को कोई परेशानी हो रही थी।

कंडोम बिस्तर के एक कोने में पड़ा था और मैं बिना कंडोम के उसको चूत को मसले जा रहा था। वो भी साथ दे रही थी.. उसका पहली बार था.. जितना साथ देना चाहिए.. उतना साथ नहीं दे रही थी।

लेकिन उसके मुँह से निकलती आवाज़ और उसका मासूम सा चेहरा और उसकी मादक ‘आहें’ सुन कर मुझे अहसास हो रहा था कि उसे भी मज़ा आ रहा है।

जब उसका दर्द पूरी तरह चला गया तो मैंने अपनी रफ़्तार बढ़ा दी और उसे कभी चुम्बन करता.. तो कभी उसकी चूचियों को चूमता और जितना ज़ोर होता.. उतनी जोर से उसकी चूत में लण्ड को धकेल देता। जब भी ज़ोर का धक्का मारता.. वो चिल्लाती- हाय.. मर गई मैं..

हम इसी तरह काफ़ी देर तक चुदाई करते रहे.. अब वो पल काफ़ी नज़दीक था कि मैं झड़ने वाला था.. मुझे नहीं पता कि उसकी इच्छा पूरी हुई थी या नहीं.. पर मैं ये देख पा रहा था कि चादर खून से और उसकी चूत के पानी से गीला हो चुका था। जब मेरा माल निकलने वाला था.. तो मैंने उससे कहा- मेरा माल निकलने वाला है.. क्या करूँ? तो उसने बोला- क्या करना होता है?

मैं बोला- अन्दर डालूँ या बाहर निकालूँ? तो उसने बोला- बाहर मत निकालिए इसे.. अन्दर ही रहने दीजिए..।

मैंने ये सुनते ही झटके और ज़ोरदार कर दिए और 15-20 झटके पूरी ताक़त के साथ उसकी चूत में ऐसे मारे कि पूरा लण्ड अन्दर एक ही बार में अन्दर चला जा रहा था।

इन अंतिम 15 झटकों के बाद मैंने उसकी चूत में ही अपना सारा माल निकाल दिया.. जो थोड़ी देर में उसकी चूत से बाहर बहने लगा।

उसके बाद हमने एक-दूसरे से बहुत सारी बातें की.. एक-दूसरे से लिपटे पड़े रहे और उस दिन हमने पूरे जोश से दो बार और मज़े लिए। फिर यह सिलसिला उसकी शादी तक चलता रहा.. उसके साथ बिताया एक-एक पल आज भी याद है..

मैं उम्मीद करता हूँ कि आप सभी को कहानी में मजा आया होगा। मुझे अपने कमेंट्स जरूर लिखिएगा। [email protected]

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