फेसबुक पर मिली आराधना-2

This website is for sale. If you're interested, contact us. Email ID: storyrytr@gmail.com. Starting price: $2,000

Facebook Par Mili Aaradhna-2

फेसबुक पर मिली आराधना-1

पिछले भाग में आपने पढ़ा कि गौरव मुझसे मिलने दिल्ली आया और हम दोनों होटल में अपनी काम-वासना शान्त करने में जुटे हुए थे।

अब आगे..

मैं- गौरव रूको.. तुम्हें पता है मैं ये अच्छा कर सकती हूँ.. तो मुझे करने दो.. तुम बस मज़े लो…

गौरव- हाँ.. जान जैसा तुम बोलो.. उम्म्माअहह…

मैंने उसके लंड को मुँह में लेकर गालों की दीवार से दोनों तरफ रगड़ना शुरू किया।

गौरव- वाह मेरी जान वाह.. उम्म्माहह..

मैं- हा हा हा.. मैंने कहा था ना.. मज़े लो…

गौरव- हाँ जान.. और मज़े दो…

अब मैं उसके टट्टों को मुँह में लेकर चूसने लगी। वो भी झड़ ही नहीं रहा था.. मुझे लगा आज रात लंबी चुदाई होगी…

गौरव- वाह जानू और चूसो…

मैं- बहुत जान है तुममें..

गौरव- वो तो थोड़ी देर के बाद पता चलेगा जानू.. अभी तो बस चूसो.. आह्ह..

अब मैं उसका लंड अपने मुँह में भरकर और हाथ से घुमा रही थी। फिर थोड़ी देर में उसने अपना लंड मेरे मुँह से निकाल लिया।

अब मैंने उसका लंड पकड़ा और अपने चूचों पर मारने लगी।

गौरव- आहह.. जान तुम्हें तो जादू आता है.. कोई नहीं कह सकता कि तुम अभी भी कुँवारी हो.. अह…

मैं- ये तो तुम्हारा कमाल है.. तुम्हें सोच कर ही तो आज तक झड़ी हूँ और ब्लू-फिल्म में भी लड़के के रूप में मुझे तुम ही दिखते थे।

अब मैं उसका लंड अपने चूचुकों के चारों तरफ घुमाने लगी। मैं जानती थी की वो 69 में आना चाहता है.. पर वो समझ रहा था कि वो मुझे नहीं पता.. अब जादू की बारी उसकी थी।

उसने मुझे उठाया और मेरे मादक मम्मों को भींच दिया। मेरे मुँह से ‘आह’ निकल गई। मेरी गाण्ड पकड़ कर ऐसे ही चूत पर लंड से धक्के मारने लगा.. लौड़ा अन्दर तो नहीं गया पर मज़ा बहुत आया। मुझे पता था कि उसे मेरी गाण्ड बहुत पसन्द है तो मैं बस घूम गई।

गौरव- जानू कितनी समझदार हो और प्यारी भी….

अब वो नीचे बैठ कर मेरी गांड के दोनों फलक को बारी-बारी से दबाने तथा चूमने लगा। अब उसने थोड़ा नीचे जाकर अपनी जीभ निकाली और मेरी चूत से लगाई.. मेरी तो सांस ही रुक गई।

फिर वह वैसे ही अपनी जीभ को रगड़ते हुए मेरी गांड तक लाया और गांड की छेद पर जीभ को गोल-गोल घुमाया। उसके ऐसा 5-6 बार करने पर ही मुझे बहुत सनसनी हुई.. इतनी कि मैं झड़ गई और बिस्तर पे गिर गई।

मैं पेट के बल गिरी थी.. उसने मेरी चूत के नीचे तकिया लगाया.. इससे मेरी चूत ऊपर उठ गई…

अब वो आराम से मेरी चूत चाट रहा था और मेरे चूतड़ों के गोले मसल रहा था। मैं अपने चूचे मसल रही थी और बहुत मज़ा आ रहा था।

अब उसने एक ऊँगली मेरी चूत में डाली.. मुझे बहुत दर्द हुआ।

मैं- आअहह… अभी निकालो प्लीज़…

गौरव- जानू मज़ा लो बस..

मैं- नहीं अभी निकालो प्लीज़… आआहह उफ्फ़…

उसने कुछ नहीं सुना और साथ ही मेरी गांड के छेद पर जीभ लगा दिया ऐसा दो-तीन बार करने पर मैं फिर से झड़ गई..

मैं पूरी तरह से पस्त थी फिर भी रुकने का मन नहीं था। वो अपना लण्ड लेकर मेरे मुँह के पास आ चुका था और मेरे बालों में हाथ फेर रहा था।

मैंने तु्रन्त उसका लंड मुँह में भरा और ऐसे चूसने लगी जैसे आज खा ही लूँगी।

वो मेरे मम्मे दबा रहा था.. अब उसने लंड मुँह से निकाला और मेरे ऊपर आकर लंड मेरे मम्मों के बीच रखा और दोनों मम्मों को ऐसे पकड़ा कि बीच में सुरंग बन गई और उसी में चोदने लगा।

‘आअहह..’ क्या बताऊँ कितना मज़ा आ रहा था!

अब बारी थी असली चुदाई की..

गौरव- जानू तैयार हो?

मैं बस मुस्कुराई और कमर उठा कर चूत को उसके लंड से टकरा दिया।

उसने मेरी कमर को पकड़ा और उसके नीचे फिर से तकिया लगा दिया।

मेरे पैरों के बीच आया और लंड को चूत पर मारने लगा.. मैं तो जैसे मरने लगी थी। मैं लंड लेने को बार-बार कमर उठा रही थी…

अब उसने लंड को चूत पर रखा और मेरे ऊपर आ गया.. मेरे दोनों हाथ पकड़े और होंठ पे होंठ रखे।

अचानक से एक जोर से धक्का दिया… मेरी चूत पहले से गीली थी तो लंड को जाने में दिक्कत नहीं हुई क्योंकि मैंने उसे ढीला छोड़ दिया था और गौरव अन्दर डालने में माहिर था।

मेरे मुँह से बहुत तेज़ चीख निकलती अगर उसने मुझे होंठों पर अपने होंठों को रखा न होता तो.. उसने मुझे ऐसे जकड़ा हुआ था कि मैं हिल भी नहीं पा रही थी।

ऐसे में ही उसने 3-4 धक्के लगा दिए और पूरा लंड मेरी चूत में डाल दिया। अब वो कुछ देर वैसे ही रुका रहा.. जब मेरा मुँह छोड़ा तो मैंने तेज़ साँसें ली।

उसने मेरे मम्मे दबाए और मेरा ध्यान भटकाया.. फिर मैंने नीचे से कमर हिलाई और उसने धीरे-धीरे अन्दर-बाहर किया।

थोड़ी देर में लंड मेरी चूत में सैट हो गया।

मैं- जान.. अब धक्के लगाओ।

गौरव- हाँ जान.. ये लो…

मैं जोश में आने लगी- बहनचोद.. इतनी मस्त चूत मिली तुझे.. लगा धक्के.. भोसड़ी वाले..

मैंने उसके चूतड़ों पर हाथ डाल दिया और अपनी ओर खींचने लगी।

गौरव- हाँ.. साली बहुत इतराती थी अपनी चूत पर.. तुझे भी तो मेरे लंड से चुदना था.. माँ की लौड़ी…

मैं- हाँ साले.. अब चोद.. मुझे रंडी बना ले अपनी…

मैं भी नीचे से धक्के दिए जा रही थी।

वो अब मेरे ऊपर आकर मुझसे चिपक गया और मुझे चूमने लगा।

गौरव को चोदने से ज्यादा चूमने में मज़ा आता था।

गौरव- जानू आओ.. अब पलट जाओ पीछे से चोदता हूँ।

मैं- नहीं.. गांड में नहीं…

गौरव- नहीं जानू.. चूत ही मारूँगा…

मैं घूम गई.. और मेरी फूली ही गोल गाण्ड फिर से उसके सामने थी।

उसने अपना मुँह मेरी गांड में घुसा दिया.. इससे मुझे हँसी भी आई और मज़ा भी आया।

फिर उसने मेरी दोनों गोलों को पकड़ कर ऊपर किया और उससे मेरी चूत सामने खिल उठी।

अब उसने मेरी उठी हुई चूत में लंड आराम से डाला.. फिर धीरे-धीरे धक्के लगाने लगा।

मैं- आहह.. आहह.. आहह.. जानू मस्त मज़ा आ रहा है…

ऐसे ही 15 मिनट चोदने के बाद उसने मुझे उठाया और घोड़ी बना दिया और पीछे से चूत में अपना लौड़ा फिर से डाल दिया।

अब तो लंड आराम से अन्दर जा रहा था।

मैं- आह आहह आह…

वो हर धक्के पर मेरी ‘आअहह..’ निकलवा देता था।

गौरव- जानू उस तकिए को बिस्तर के किनारे लाओ और उस पर बैठ जाओ।

मैंने वैसे किया.. अब उसने सामने से मेरी चूत में लंड पेल दिया।

अब वो मुझे चूम भी रहा था.. मेरे कबूतर भी दबा रहा था…

कुछ देर ऐसे चोदने के बाद उसने मुझे गोद में उठाया और दीवार के सामने खड़ा कर दिया। मुझे पीछे घुमा कर मेरे हाथों को दीवार से लगा दिया। मैंने खुद अपनी गांड बाहर कर दी।

उसने पीछे से मेरे झूलते मम्मे पकड़े और चूत में लंड पेल दिया और ज़ोर-ज़ोर से धक्के मारने लगा।

मैं- जानू क्या चोदते हो यार.. वाहह और धक्के दो…

फिर ऐसे दस मिनट करने के बाद उसने मुझे सामने से चिपका लिया और बिस्तर पर ले आया।

अब तक मैं पाँच बार झड़ चुकी थी.. पर मज़ा अभी भी पूरा ना हुआ था। उसे देख कर लग रहा था कि अब वो भी जाने वाला है।

गौरव- जानू अपनी गांड कब दोगी?

मैं- जान आज चूत की प्यास बुझा दो.. फिर चूत की पड़ोसन भी तुम्हारी..

मेरे इतना कहने पर वो मेरे ऊपर छा गया.. एक टाँग ऊपर करके अपना लंड मेरी चूत पर लगाया और धक्के देने लगा। कुछ देर बाद उसने टाँग छोड़ कर मुझे ज़ोर से पकड़ लिया।

गौरव- जान.. पानी कहाँ निकालूँ??

मैं- जानू आज मैं पूरी तुम्हारी हूँ.. एक बूँद भी मेरी चूत के बाहर मत गिराना…

गौरव- जानू आआहह.. आ रहा हूँ…

उसने मुझे और ज़ोर से पकड़ लिया। मैंने भी नीचे से धक्के लगाने शुरू कर दिए.. मैं भी आने वाली थी।

कुछ देर बाद हम दोनों एक साथ झड़ गए। जब तक उसका लंड बाहर नहीं आ गया.. वो मेरी चूत में धीरे-धीरे धक्के लगाता रहा।

हम दोनों की साँसें तेज़ हो गई थीं।

मैं उसकी बांहों में थी और फिर हम दोनों सो गए। जब नींद खुली तो..

मैं- गौरव उठो..

गौरव- क्यूँ? अभी और करूँगा.. पर थोड़ा सो ना साथ में..

उसने मुझे अपने साथ खींच कर बाँहों में ले लिया।

मैं- जानू तुमने बिना कन्डोम के छोड़ दिया और पानी भी मेरे अन्दर डाल दिया..

गौरव- आई पिल है ना.. खा लेना…

मुझे जैसे याद आया और मैंने खुश होकर उसको चूम लिया और उसकी बांहों में सो गई।

बाद में.. जाने से पहले हम दोनों ने सब कर लिया.. उसने 4 बार मेरी गांड भी मारी…

सिर्फ गौरव की आराधना।

मुझे ईमेल कीजिए।

This website is for sale. If you're interested, contact us. Email ID: storyrytr@gmail.com. Starting price: $2,000