सुहागरात में चूत चुदाई-8

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वो बोली- ओह्ह.. राजा.. क्या कर रहे हो.. मेरी गाण्ड मत चूसो.. प्लीज़… नहीं ऐसा मत करो.. मैंने तुम्हें चूत चोदने को कहा था.. अगर गाण्ड मारनी हो तो मम्मी की मार लो.. मैं मर जाऊँगी.. मम्मी समझाओ ना.. इन्हें..

रूपा बोली- बेटा मार लेने दे आख़िर एक दिन तो मारेगा ही… आज ही अपने सारे छेद खुलवा ले.. आख़िर इतने दिनों से प्यासा है.. तेरे बदले वो इतने दिन हमारे साथ मज़ा कर रहा था और हर तरह से मन बहलाता रहा है।

फिर रूपा मुझसे मुखातिब हुई- प्यारे जमाई जी.. मार तू.. इसके रोने पर मत जाओ..

सहायता की गुहार करती नीलम उल्टी डांट पड़ने पर सकते में आ गई। रूपा ने उसके सिर पर प्यार से हाथ फेरते हुए उसे समझाने लगी।

रूपा झट से जाकर मक्खन ले आई और मेरे लंड को मक्खन से तर कर दिया.. फिर नीलम की गाण्ड पर लगाया।

नीलम अब भी सिसक रही थी।

‘ओह मम्मी रोको ना.. मैं मर जाऊँगी…’

रूपा बोली- सारे मज़े ले ले आज.. मैं तुझे पूरी तरह तैयार करके ही ससुराल भेजने वाली हूँ..

मैंने मक्खन से लथपथ गाण्ड में एक ऊँगली घुसा दी।

उसकी गाण्ड बहुत टाइट थी। फिर मैंने दूसरी ऊँगली भी घुसा दी.. तो वो दर्द के मारे रोने लगी। मुझे बहुत मज़ा आ रहा था।

मैंने उसे चिढ़ाने के लिए कहा- नीलू रानी.. सच तेरी गाण्ड तो तेरी माँ और रिंकी से भी ज्यादा टाइट है… बड़ा मज़ा आएगा।

मैंने अपना लाल सुपारा उसकी गुदा पर रखा और रूपा को इशारा किया।

रूपा ने नीलम का मुँह दबोच लिया और मैंने तुरन्त ही सुपारा पेल दिया।

मेरा सुपारा आधे से ज़्यादा उसकी गाण्ड के छेद को खोलता हुआ धंस गया। नीलम का जिस्म एकदम कड़ा हो गया ओर वो छटपटाने लगी।

रूपा मस्ती में आ चुकी थी। उसे भी मज़ा आ रहा था। वो बोली- जमाई राजा.. लगता है आज तो इसकी फट ही जाएगी।

मैंने कहा- हाँ.. मेरी सासू जान.. आज तो इसकी फाड़ ही देता हूँ। बड़ा मज़ा आएगा… इसे भी तो पता चले गाण्ड मरवाना क्या होता है.. जब रिंकी की मार रहा था तो कैसे मज़े लेकर देख रही थी…

मैंने और मक्खन लगाया और हल्का दबाव दिया तो सुपारे का अगला हिस्सा गाण्ड में फँस सा गया।

नीलम मारे दर्द के अपने हाथ-पैर फटकारने लगी। उसके तड़पते जिस्म को देख मुझे बड़ा मज़ा आने लगा। उसके दबे मुँह से सीत्कार निकल रही थी।

रूपा भी उसकी तड़प देख कर गरमा उठी.. वो भी अपनी चूत में ऊँगली डाल कर सिसकारियाँ भरने लगी।

मैंने झुक कर रूपा को चूम लिया और नीलम के शांत होने का इंतजार करने लगा।

मैंने रूपा को अपने करीब किया और उसकी चूंचियों को दबाते हुए उसके होंठों को चूमने लगा।

वो बोली- रुक क्यों गए हो.. पेल दो ना पूरा अन्दर?

मैंने कहा- ऐसे तो उसका दर्द कम हो जाएगा… तुम उसके मुँह से हाथ हटा लो। मैं धीरे-धीरे उसकी चीख सुनते हुए डालूँगा और गाण्ड मारने का पूरा मज़ा लूँगा।

वो हँसने लगी और बोली- तू बड़ा मादरचोद है.. जो करना हो कर ले… रुक तो ज़रा…

उसने अपना हाथ नीलम के मुँह से हटा लिया.. नीलम फिर से चीखने लगी।

‘ओह माँ.. मर रही हूँ.. माँ आई.. निकालो ओहह इसे..’

रूपा ने उसके मुँह के नीचे से तकिया हटाया और अपनी चूत पर मुँह रख कर लेट गई और एक हाथ से उसके सिर को चूत पर दबोचने लगी।

कुछ देर बाद मैंने धीरे-धीरे नीलम की गाण्ड में लंड पेलना शुरू कर दिया। कस कर फँसा होने के बाद भी मक्खन के कारण लंड फिसल कर गहराई में इंच-इंच करके जा रहा था।

जैसे ही वो छटपटाती तो मैं रुक जाता… फिर लंड पीछे खींच कर पेल देता.. जिससे वो बुरी तरह कांप उठती। उसकी आँखों से आँसू की धारा बह रही थी।

आख़िर मुझसे रहा नहीं गया और मैंने लंड पूरा बाहर खींच कर बुरी तरह से धक्का मार दिया।

मेरा लंड करीब करीब पूरा उसकी गाण्ड के छेद में समा गया और वो बुरी तरह से चीख उठी।

‘ओह मम्मी.. मैं मर गई.. लुट गई में. मर जाऊँगीईई… उठो देखो तो सहीईईई.. तुम भी मेरी दुश्मन मत बनो.. बहुत दर्द हो रहा है.. मेरी गाण्ड फट रही है..उईईई…’

रूपा भी थोड़ा डर गई और उठ कर उसकी गाण्ड देखने लगी।

वो बोली- नहीं बेटी.. अब पूरा लंड घुस चुका है.. तेरी गाण्ड नहीं फटी है।

फिर उसका दर्द कम करने के लिए उन्होंने उसकी चूत पर हाथ ले जाकर उसे सहलाना शुरू कर दिया। धीरे-धीरे उसका चीखना बन्द होने लगा।

रूपा ने अपनी ऊँगली उसकी चूत में घुसा दी और अन्दर-बाहर करती रही।

कुछ ही देर में वो झड़ने लगी.. उसकी चूत से रस बहने लगा।

जब वो पूरी तरह शांत हो गई तो रूपा मुझसे बोली- तू ज़रा रुक..

उसने उठ कर वापस नीलम के मुँह को अपनी चूत पर लगा कर कस लिया ओर बोली- अब मैं भी मज़ा कर लेती हूँ.. तू अब जी भर कर गाण्ड मार ले…

मैंने झुक कर नीलम की दोनों चूंचियों को कस कर दबोच लिया और ज़ोर-ज़ोर से उसकी गाण्ड मारने लगा।

वो फिर दर्द से बिलबिला उठी।

उसका मुँह खुल कर चूत पर दब जाता और दाँत गाड़ने से रूपा को बड़ा मज़ा आ रहा था।

वो बोली- राजा..आाअ कस-कस कर पेलो.. इसके मुँह के दबाव से बड़ा मज़ा आ रहा है।

मैं बुरी तरह से उसकी गाण्ड मारता रहा.. आख़िर कर वो शिथिल हो गई।

मैंने एक करारा धक्का मारा और उसकी गाण्ड में ही स्खलित हो गया।

मैंने देखा नीलम बेहोश हो चुकी थी।

नहीं तो मेरे उबलते वीर्य की धार से उसकी गाण्ड की सिकाई होती।

उससे उसे आराम ज़रूर मिलता।

रूपा भी झड़ कर शांत हो चुकी थी।

फिर मैंने उसे सीधा पीठ के बल लेटा दिया।

उसकी गाण्ड भी छूट की तरह बुरी तरह से फूल चुकी थी.. जिसे देख कर मेरा लंड फिर से तन्ना गया।

मैं उसके होश में आने का इंतजार करने लगा।

रूपा बड़े प्यार से उसकी चूत और गाण्ड को सहला रही थी।

जैसे ही वो होश में आई.. मारे दर्द के सिसकने लगी।

रूपा ने फिर मेरे लंड पर मक्खन लगाया और मैंने उसकी दोनों टाँगें उठा कर फिर से उसकी गाण्ड में लंड पेल दिया।

इस बार उसे चीखने दिया। वो बुरी तरह चीखते-चीखते लस्त हो गई।

रूपा बोली- लगता है फिर बेहोश हो गई.. बड़ी नाज़ुक है ये तो… तू परवाह मत कर… मार ज़ोर-ज़ोर से.. मसल-मसल कर ठोक… कुछ नहीं होगा… अगर होगा तो मैं इसे डॉक्टर के पास ले जाऊँगी।

मैं उसके छोटे-छोटे स्तन मसलते हुए बेहोश नीलम की बेरहमी से गाण्ड मारता रहा.. जैसे वो लड़की नहीं रबर की गुड़िया हो।

इस बार करीब एक घंटे मैं बुरी तरह उसकी गाण्ड मारता रहा.. फिर लस्त हो कर लेट गया।

हम बुरी तरह थक चुके थे। रूपा भी वहीं लेट गई। नीलम अब भी बेहोश थी।

हम दोनों भी वहीं बगल में लेट गए।

दूसरे दिन सुबह उसके सिसकने की आवाज़ से मेरी आँख खुल गई।

वो उठ नहीं पा रही थी.. उसकी हालत बुरी थी।

गाण्ड और चूत के दर्द के मारे वो लगातार रो रही थी और बिलख रही थी।

मेरा लंड फिर खड़ा होने लगा और जैसे ही मैं उस पर चढ़ने लगा रूपा ने मुझे रोक दिया और कहा- नहीं.. अब अभी नहीं… उसे दो दिन आराम करने देना… अब जब ये खुद अपने आपको तुम्हारे लिए तैयार ना कर ले.. उसे आराम करने देना। तब तक मैं हूँ न…

दो रात तक मैंने सिर्फ़ रूपा की चुदाई की.. नीलम ठीक से चल भी नहीं पा रही थी।

दो रात उसने हम दोनों की घमासान चुदाई देखी… तीसरी रात वो खुद हमारे कार्यक्रम में शामिल हो गई।

मैंने उससे वायदा किया कि मैं उसकी गाण्ड अब नहीं मारूँगा.. जब तक वो खुद नहीं कहेगी। यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं ! उस रात मैंने उसे बहुत सुख दिया और बड़े प्यार से चूत चाट-चाट कर चोदा।

उस रात मैंने नीलम और रूपा दोनों को दो-दो बार चोदा।

आज नीलम को बहुत मज़ा आया।

उसके बाद रूपा की माहवारी शुरू हो गई.. इसलिए वो हमारे खेल में शामिल नहीं हो पाई।

उस रात मैंने नीलम को बहुत ही बुरी तरह से चोदा। आख़िर में उसकी ज़बरदस्त गाण्ड भी मारी। वो रो-रो कर बेहोश होकर लस्त पड़ गई।

इस भयानक चुदाई के बाद नीलम की हालत दो दिन खराब रही। उसे बुखार आ गया और वो ठीक से चल फिर नहीं पा रही थी।

तीन दिन के बाद जब वो संभली.. तो मैंने उसे सिर्फ़ एक बार ही चोदा।

धीरे-धीरे वो गाण्ड और चूत चुदवाने की आदी हो चुकी थी। अब उसे मज़ा आने लगा था।

उसके बाद मैंने रूपा से अपने घर जाने की इजाज़त ली।

रूपा बुरी तरह से बिलख पड़ी और बोली- राज.. मैं भी अब तुम्हारे बिना नहीं रह पाऊँगी.. तुम यहीं पर रह जाओ।

मैंने कहा- मैं घर जमाई बन कर नहीं रह पाऊँगा।

वो बोली- तो मुझे तुम अपने साथ ले चलो।

मैंने उसे आश्वासन दिया और कहा- मैं पिताजी से इजाज़त ले लूँगा और अलग घर लेकर तुम्हें वहीं बुलवा लूँगा।

तब कहीं वो शांत हुई।

घर पहुँच कर मैंने मम्मी-पापा से इजाज़त ली। वो भी बोले- ठीक है.. बेचारी विधवा अकेली कहाँ रह पाएगी। मैंने अलग फ्लैट ले लिया और उन्हें भी बुलवा लिया।

बीच-बीच में रिंकी भी आ जाती और हम जी भर कर चुदाई का आनन्द लेते।

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