चालाकी से अपनी चुदाई का जुगाड़ किया-1

This website is for sale. If you're interested, contact us. Email ID: storyrytr@gmail.com. Starting price: $2,000

Chalaki Se Apni Chudai Ka Jugad Kiya-1 मेरे प्रिय पाठको, मुझे माफ़ करना क्योंकि मैं थोड़ी ज़्यादा ही व्यस्त हो गई थी इसलिए क्षमा चाहती हूँ।

दोस्तो, आपको मेरी अनिल वाली पिछली कहानी तो याद ही होगी.. याद है ना.. चलो अब मेरा मन कर रहा है.. मेरा एक और किस्सा भी यहीं अन्तर्वासना पर आपके साथ साझा कर दूँ।

तो पिछले कुछ दिन अनिल ने मेरे साथ जो-जो किया, उससे मेरा तो कुछ अधिक नुकसान तो नहीं हुआ… पर अब, जब वो चला गया तो आप तो जानते ही हैं कि यह फ़ुद्दी चुदाई वाली लत तो बहुत बुरी है रे बाबा..

एक बार चूत ने लौड़ा चख लिया तो घड़ी-घड़ी भूख लगती है यार.. पर करूँ तो क्या करूँ.. कुछ सूझ ही नहीं रहा था।

ऐसे ही कुछ एक साल गुजर गया और मेरी स्थिति की तो बात ही मत करो यार एक अजीब सी भूखी.. मन में जानवरों जैसी विचार धाराएं उठ रही थीं। जब भी कोई लड़का दिखता, तो मन करता था कि अभी इसे यहीं पटक कर चुदाई करवा लूँ, पर नहीं कर सकती… लड़की हूँ ना.. क्या करूँ?

अब इस वाकिये को सुना रही हूँ.. हुआ यह कि मैं अपने मामा जी के घर गई उधर उनके लड़के की जवानी को देख कर मेरी चूत में चुनचुनी होने लगी।

मेरी चूत की आग इतनी भड़क रही थी कि मैं उसके साथ मेरे ममेरे भाई-बहन का रिश्ता भी भूल गई और उसको अपनी वासना का शिकार बनाने की जुगत बनाने लगी।

मैं उसके बारे में आपको बता दूँ। उसका नाम प्रीतेश है और वो मुझसे छोटा है, उसकी उम्र अभी-अभी 18 की हुई है एकदम चिकना लौंडा है।

अगले ही दिन मामा अपने काम से बाजार गए थे और मामी जी कहीं पड़ोस में सत्संग में गई थीं।

मैंने देखा किप्रीतेश बाथरूम में नहा रहा था। बस मैंने उससे छेड़खानी शुरू कर दी। मैंने बाथरूम का दरवाजा खटखटाया।

‘प्रीतेश जल्दी खोल…मुझे बहुत जोर से सूसू लगी है..’

‘थोड़ा रुक जा मैं नहा तो लूँ..’

तो मैंने कहा- देख दरवाजा खोल.. वरना..

बेचारे ने डर कर दरवाजा खोल दिया और वो अन्दर तौलिया लपेटे खड़ा था, तो मैंने तो अपनी पूरी तैयारी करके रखी थी।

मैं तो पहले से ही मामाजी का कैमरा ले कर खड़ी थी।

जैसे उसने दरवाजा खोला, मैं सीधे उस पर टूट पड़ी… सीधे बाथरूम में अन्दर जा कर उसका तौलिया खींच लिया और जल्दी-जल्दी उसकी दो-तीन फोटो क्लिक कर लीं।

अब मैंने हँसते हुए उसको बोला- चल अब चलती हूँ.. क्योंकि मेरा काम तो हो गया।

उस वक़्त उस बेचारे की शक्ल देखने लायक थी.. क्योंकि उसे तो समझ ही नहीं आया था कि यह हुआ क्या और मैं उसके साथ क्या करने वाली हूँ।

पर मैं बहुत खुश थी क्योंकि मेरा काम तो बनता नज़र आ रहा था, लेकिन अभी भी मैं पक्का नहीं थी कि ये लौंडा मेरी चुदास के बारे में कितना समझ पाया होगा।

यार अभी तो सिर्फ़ फोटो खींची थी ना.. अभी और कुछ तो हुआ ही नहीं था, तो अभी इस बात के लिए पक्का कैसे हो जाऊँ…. पर फिर भी मुझे यकीन था कि मेरा काम हो तो जाएगा।

अब दोपहर का खाना हुआ और वो मेरे पास आया और बोला- दीदी, आज सुबह जो हुआ वो क्या था.. कृपया बता दीजिए?

तो मैंने कहा- पहले अपने मन की बात तो बता?

तो वो बोला- मतलब?

मैंने कहा- बेटा, थोड़ा सब्र कर.. सब्र का फल मीठा होता है और रात में जब हम छत पर सोने जाएँगे.. तब बात करेंगे.. ओके!

तो प्रीतेश भी ‘ओके’ कह कर चला गया।

अब रात हो गई, करीब 9:30 हुए होंगे कि प्रीतेश मेरे पास आया, मैं अभी खटिया पर लेटी ही थी और मैंने देखा कि प्रीतेश आ रहा है तो मैंने सोने का नाटक किया।

उसने आते ही दीदी-दीदी चालू कर दिया।

मन तो कर रहा था कि साले को अभी दो रख के दूँ.. पर कुछ नहीं कहा क्योंकि मुझे अपना काम भी तो निकलवाना था बाबा..

तो उसने मुझे उठाने के लिए कंधा पकड़ा और हिलाया, पर मैं कहाँ उठने वाली थी।

उसने ज़ोर से हिलाया, पर मेरा इरादा तो कुछ और ही था और जब वो थक गया और हार मान कर जाने ही वाला था कि तभी मैंने उसका हाथ पकड़ कर अपनी चूचियों पर रख कर उठीं और ज़ोर से एक तमाचा मारा और कहा- ये क्या कर रहा है बे?

तो वो रोने लगा और कहने लगा- मैंने कुछ नहीं किया.. दीदी.. वो तो ग़लती से हो गया।

तो मैंने कहा- ग़लती के बच्चे.. बोलूँ क्या मामाजी को… ठहर तू।

मैं धीरे से चिल्लाई- मामा..

तो वो मेरे पैरों पर गिर गया- देखो दीदी.. मेरा कोई ऐसा इरादा नहीं था.. फिर भी मुझसे ग़लती तो हुई है और मैं तुझे वादा करता हूँ कि जो तू बोलेगी वो मैं करूँगा..

बस और क्या मेरा काम हो गया.. मुझे तो बस यही काम था.. मिशन पूरा हुआ… ढेंन..टणं..

उसे मैंने जैसे ही छोड़ा वो नीचे भाग गया।

दूसरे दिन दोपहर में मैं अकेली थोड़ी बोर हो रही थी और तभी प्रीतेश आया और मुझे फिर थोड़ी शरारत सूझी।

तो मैंने कहा- आओ बेटा.. चल मेरे पैर दबा.. जरा दुख रहे हैं यार..

वो बेचारा शुरू हो गया।

और मुझे फिर उसे डांटने का मौका मिल गया। वो तो बड़ी लगन से अपना काम कर रहा था, लेकिन हम औरतों के पास कुछ भी उल्टा-पुल्टा मतलब निकालने के हजारों तरीके होते हैं यार..

मैं एक नाईटी पहने लेटी थी, उसने पैर दबाने शुरू किए और मैंने अपनी आँखें मूंद लीं।

प्रीतेश पैर दबाते-दबाते जब मेरी जाँघों तक आता तो बेचारा डर के मारे वहीं से मुड़ जाता।

मैंने कहा- ओए.. ज़रा ऊपर तक तो कर..

अब वो जाँघों तक तो पहुँच गया, पर मुझे तो उसे कहीं और ही पहुँचाना था। अब की बार जब उसका हाथ मेरी कमर तक पहुँचने को था, तभी मैंने उसका हाथ मेरी चूत को छू जाए.. कुछ इस तरह अपनी कमर ऊपर को की.. और उसका हाथ मेरी बस भट्टी पर लग गया।

मैंने फिर से गरम होने का नाटक किया और बोला- साले रुक.. तू अपनी हरकतों से ऐसे बाज़ नहीं आएगा..??

पर इस बार वो रोया नहीं और बोला- मैंने कुछ नहीं किया.. वो तो तुम ऊपर उठीं.. इसलिए ऐसा हुआ और इसमें मेरा कोई कुसूर नहीं है.. ओके..

अब मैं तो फंस गई.. अब क्या करूँ?

फिर मुझे एक आइडिया आया और मैंने उसकी लुल्ली पकड़ ली और बोला- चल तू बार-बार मुझे यहाँ-वहाँ छूता रहता है.. तो मैं भी छुऊँगी.. हिसाब बराबर।

जैसे ही मैंने उसका आइटम पकड़ा तो वो शर्म से पानी-पानी होने लगा था, पर मुझे क्या मुझे तो हथियार का नाप लेना था.. जो मैंने ले लिया।

वो तो डर के मारे उठा और उधर से भाग गया।

फिर क्या था.. अब शुरू हुआ था असली खेल, पर बेचारा प्रीतेश थोड़ा डर रहा था.. क्योंकि वो नया था ना इस खेल में..

मैं आपको बता दूँ कि उसकी लुल्ली औसत सी थी जो कि मुझे खास सन्तुष्ट करने वाली नहीं लगी थी, पर हो सकता कि खड़ा होने के बाद उसका लौड़ा मेरी चूत को कुछ मज़ा तो देगा ही ना.. यही सोच कर मैंने अपनी चूत में ऊँगली डाल ली और उसकी याद में पानी निकाल लिया।

मेरी कहानी का यह हिस्सा अभी यहीं रोक रही हूँ और आप लोगों से इल्तजा करती हूँ कि प्लीज़ मुझे ईमेल तो करें पर मुझे ऐसी वैसी लड़की समझ कर गंदे ईमेल न करें। कहानी अगले भाग में समाप्य।

This website is for sale. If you're interested, contact us. Email ID: storyrytr@gmail.com. Starting price: $2,000