सहेली की तड़फती जवानी-2

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सारिका कंवल मेरा सवाल सुन कर उसकी आँखों में आंसू आ गए और कहने लगी- जब वो ऐसे कहता है.. तब मुझे लगता है उसे अपने सीने से लगा लूँ, उसकी आँखों में इतना प्यार देख कर मुझसे रहा नहीं जाता! मैं उसके दिल की भावनाओं को समझ रही थी, पर वो रो न दे इसलिए बात को मजाक में उड़ाते हुए कहा- तो ठीक है.. लगा लो न कभी सीने से.. मौका देख कर..! और मैं हँसने लगी। मेरी हँसी देख कर वो अपने आंसुओं पर काबू करते हुए मुस्कुराने लगी। मैंने उसका दिल बहलाने के लिए कहा- एक काम कर.. शादी-वादी भूल जा सुहागरात मना ले..! वो मुझे मजाक में डांटते हुए बोली- क्या पागलों जैसी बातें करती है। मैंने कहा- चल मैं भी समझती हूँ तेरे दिल में क्या है, अच्छा बता वो दिखने में कैसा है? उसने तब मुझे बताया- वो दिखने में काफी आकर्षक है। मैंने उससे कहा- मैं अपने भाई को बोल कर शादी में उसे भी बुला लेती हूँ, ताकि तुम दोनों मिल भी सको और घर का कुछ काम भी हो जाए। वो बहुत खुश हुई, पर नखरे करती रही कि किसी को पता चल जाएगा तो मुसीबत होगी। मैंने उसे समझाया- डरो मत, मैं सब कुछ ठीक कर दूँगी..! वो बुलाने पर आ गया, पर हैरानी की बात ये थी के वो मेरे पड़ोस के एक लड़के सुरेश का दोस्त था जो हमारे साथ ही स्कूल में पढ़ा था। यह सुरेश वही था जो मुझे पसंद करता था, पर मैं अपने घर वालों के डर से कभी उसके सवाल का उत्तर न दे सकी थी। आज भी मैं जब सुरेश से मिलती हूँ तो मुझे वैसे ही देखता है, जैसे पहले देखा करता था। वो मुझसे ज्यादा नहीं पर स्कूल के समय हेमा से ज्यादा बातें करता था। सुरेश ने हेमा के जरिये ही मुझसे अपने दिल की बात कही थी। मैंने सोचा चलो अच्छा है सुरेश के बहाने अगर हो सके तो हेमा को उसके प्यार से मिलवा दिया जाएगा। मैंने सुरेश से बातें करनी शुरू कर दीं, फिर एक दिन मैंने बता दिया कि हेमा उसके दोस्त को पसंद करती है इसलिए उसे यहाँ बहाने से बुलाया था, पर अगर वो साथ दे तो हेमा को उससे मिलवाने में परेशानी नहीं होगी और सुरेश भी मान गया। अब रात को हम रोज सारा काम खत्म करने के बाद छत पर चले आते और घन्टों बातें करते। हेमा को हम अकेला छोड़ देते ताकि वो लोग आपस में बात कर सकें। कुछ दिनों में घर में मेहमानों का आना शुरू हो गया और घर में सोने की जगह कम पड़ने लगी तो मैं बाकी लोगों के साथ छत पर सोने चली जाती थी। गर्मी का मौसम था तो छत पर आराम महसूस होता था। बगल वाले छत पर सुरेश और कृपा भी सोया करते थे। एक दिन कृपा ने मुझसे पूछा कि क्या कोई ऐसी जगह नहीं है, जहाँ वो हेमा से अकेले में मिल सके। मैं समझ गई कि आखिर क्या बात है, पर मेहमानों से भरे घर में मुश्किल था और हेमा सुरेश के घर नहीं जा सकती थी क्योंकि कोई बहाना नहीं था। तो उसने मुझसे कहा- क्या ऐसा नहीं हो सकता कि हेमा रात को छत पर ही सोये? मैंने उससे कहा- ठीक है.. घर में काम का बहाना बना कर मैं उसके घर पर बोल दूँगी कि मेरे साथ सोये। मैंने उसके घर पर बोल दिया कि शादी तक हेमा मेरे घर पर रहेगी, काम बहुत है उसके घर वाले मान गए। रात को हम छत पर सोने गए। कुछ देर हम यूँ ही बातें करते रहे क्योंकि सबको पता था कि हम साथ पढ़े हैं किसी को कोई शक नहीं होता था कि हम लोग क्या कर रहे हैं। जब बाकी लोग सो चुके थे, तब मैंने भी सोचा कि अब सोया जाए। मैंने सुरेश की छत पर ही मेरा और हेमा का बिस्तर लगा दिया और सुरेश और कृपा का बिस्तर भी बगल में था। कृपा और हेमा आपस में बातें कर रहे थे और मैं अपने बिस्तर पर लेटी हुई थी और बगल में सुरेश अपने बिस्तर पर लेटा था। तभी सुरेश ने मुझसे पूछा- तुम्हारे पति कैसे हैं? मैंने कहा- ठीक हैं! कुछ देर बाद उसने मुझसे पूछा- उसने जो मुझसे कॉलेज के समय कहा था, उसका जवाब क्यों नहीं दिया? मैंने तब उससे कहा- पुरानी बातों को भूल जाओ मैं अब शादीशुदा हूँ। फिर उसने दुबारा पूछा- अगर जवाब देना होता तो मैं क्या जवाब देती? मैंने कुछ नहीं कहा, बस चुप लेटी रही, उसे लगा कि मैं सो गई हूँ.. सो वो भी अब खामोश हो गया। रात काफी हो चुकी थी, अँधेरा पूरी तरह था हर चीज़ काली परछाई की तरह दिख रही थी। कुछ देर बाद मैंने महसूस किया कि हेमा मेरे बगल में आकर लेट गई है। गौर किया तो कृपा भी उसके बगल में लेटा हुआ था। मुझे लगा अब सब सोने जा रहे हैं सो मैं भी सोने का प्रयास करने लगी। तभी मुझे कुछ फुसफुसाने की आवाज सुनाई दी। उस फुसफुसाहट से सुरेश भी करवट लेने लगा तो फुसफुसाहट बंद हो गई। कुछ देर के बाद मुझे फिर से फुसफुसाने की आवाज आई। यह आवाज हेमा की थी, वो कह रही थी- नहीं.. कोई देख लेगा.. मत करो। फिर एक और आवाज आई- सभी सो गए हैं किसी को कुछ पता नहीं चलेगा! मैं मौन होकर सब देखने की कोशिश करने लगी पर कुछ साफ़ दिख नहीं रहा था बस हल्की फुसफुसाहट थी। थोड़ी देर में मैंने देखा तो एक परछाई जो मेरे बगल में थी वो कुछ हरकत कर रही थी, यह हेमा ही थी, मैंने गौर किया तो उसके हाथ खुद के सीने पर गए और वो अपने ब्लाउज के हुक खोल रही थी, फिर उसके हाथ नीचे आए और साड़ी को ऊपर उठाने लगे और कमर तक उठा कर उसने अपनी पैंटी निकाल कर तकिये के नीचे रख दी। मैं समझ गई कि आज दोनों सुहागरात मनाने वाले हैं और मेरी उत्सुकता बढ़ गई। मैंने अब सोचा कि देखा जाए कि कृपा आखिर क्या कर रहा है। मैंने धीरे से सर उठाया तो देखा उसका हाथ हिल रहा है, मैं समझ गई कि वो अपने लिंग को हाथ से हिला कर तैयार कर रहा है। तभी फिर से फुसफुसाने की आवाज आई हेमा ने कहा- आ जाओ। और कुछ ही पलों में मुझे ऐसा लगा कि जैसे एक परछाई के ऊपर दूसरी परछाई चढ़ी हुई है। कृपा हेमा के ऊपर चढ़ा हुआ था, हेमा ने पैर फैला दिए थे जिसकी वजह से उसका पैर मेरे पैर से सट रहा था। उनकी ऐसी हरकतें देख कर मेरा दिल जोरों से धड़कने लगा था। मैं सोच में पड़ गई कि आखिर इन दोनों को क्या हुआ जो बिना किसी के डर के मेरे बगल में ही ये सब कर रहे हैं। उनकी हरकतों से मेरी अन्तर्वासना भी भड़कने लगी थी, पर मैं कुछ कर भी नहीं सकती थी। मैं ऐसी स्थिति में फंस गई थी कि कुछ समझ में नहीं आ रहा था, क्योंकि मेरी कोई भी हरकत उन्हें परेशानी में डाल सकता था और मैं हेमा को इस मौके का मजा लेने देना चाहती थी इसलिए चुपचाप सोने का नाटक करती रही। अब एक फुसफुसाते हुई आवाज आई- घुसाओ..! यह हेमा की आवाज थी जो कृपा को लिंग योनि में घुसाने को कह रही थी। कुछ देर की हरकतों के बाद फिर से आवाज आई- नहीं घुस रहा है, कहाँ घुसाना है.. समझ नहीं आ रहा! यह कृपा था। तब हेमा ने कहा- कभी इससे पहले चुदाई नहीं की है क्या.. तुम्हें पता नहीं कि लण्ड को बुर में घुसाना होता है? कृपा ने कहा- मुझे मालूम है, पर बुर का छेद नहीं मिल रहा है। तभी हेमा बोली- हाँ.. बस यहीं लण्ड को टिका कर धकेलो..! मुझे कुछ दिखाई नहीं दे रहा था, पर उनकी बातों से सब समझ आ रहा था कि कृपा ने पहले कभी सम्भोग नहीं किया था। इसलिए उसे अँधेरे में परेशानी हो रही थी और वो अपने लिंग से योनि के छेद को टटोल रहा था। जब योनि की छेद पर लिंग लग गया, तो हेमा ने उससे कहा- धकेलो! तभी हेमा की फिर से आवाज आई- क्या कर रहे हो.. जल्दी करो.. बगल में दोनों (मैं और सुरेश) हैं.. जाग गए तो मुसीबत हो जाएगी! कृपा ने कहा- घुस ही नहीं रहा है, जब धकेलने की कोशिश करता हूँ तो फिसल जाता है। तब हेमा ने कहा- रुको एक मिनट! और उसने तकिये के नीचे हाथ डाला और पैंटी निकाल कर अपनी योनि की चिकनाई को पौंछ लिया और बोली- अब घुसाओ..! मैंने गौर किया तो मुझे हल्का सा दिखा कि हेमा का हाथ उसके टांगों के बीच में है, तो मुझे समझ में आया कि वो कृपा का लिंग पकड़ कर उसे अपनी योनि में घुसाने की कोशिश कर रही है। फिर हेमा की आवाज आई- तुम बस सीधे रहो.. मैं लण्ड को पकड़े हुए हूँ, तुम बस जोर लगाओ, पर थोड़ा आराम से.. तुम्हारा बहुत बड़ा और मोटा है। तभी हेमा कसमसाते हुए कराह उठी, ऐसे जैसे वो चिल्लाना चाहती हो, पर मुँह से आवाज नहीं निकलने देना चाहती हो और बोली- ऊऊईईइ माँ…आराम से…डाल..! तब कृपा रुक गया और हेमा को चूमने लगा। हेमा की कसमसाने और कराहने की आवाज से मुझे अंदाजा हो रहा था कि उसे दर्द हो रहा है, क्योंकि काफी समय के बाद वो सम्भोग कर रही थी। हेमा ने कहा- इतना ही घुसा कर करो.. दर्द हो रहा है..! पर कृपा का यह पहला सम्भोग था इसलिए उसके बस का काम नहीं था कि खुद पर काबू कर सके, वो तो बस जोर लगाए जा रहा था। हेमा कराह-कराह कर ‘बस.. बस’ कहती रही। हेमा ने फिर कहा- अब ऐसे ही धकेलते रहोगे या चोदोगे भी? कृपा ने उसके स्तनों को दबाते हुआ कहा- हाँ.. चोद तो रहा हूँ..! उसने जैसे ही 10-12 धक्के दिए कि कृपा हाँफने लगा और हेमा से चिपक गया। हेमा ने उससे पूछा- हो गया? कृपा ने कहा- हाँ, तुम्हारा हुआ या नहीं? हेमा सब जानती थी कि क्या हुआ, किसका हुआ सो उसने कह दिया- हाँ.. अब सो जाओ! मैं जानती थी कि कृपा अपनी भूख को शांत कर चुका था, पर हेमा की प्यास बुझी नहीं थी, पर वो भी क्या करती कृपा सम्भोग के मामले में अभी नया था। तभी कृपा की आवाज आई- हेमा, एक बार और चोदना चाहता हूँ! हेमा ने कहा- नहीं.. सो जाओ..! मुझे समझ नहीं आया आखिर हेमा ऐसा क्यों बोली। तभी फिर से आवाज आई- प्लीज बस एक बार और! हेमा ने कहा- इतनी जल्दी नहीं होगा तुमसे… काफी रात हो गई है.. सो जाओ फिर कभी करना..! पर कृपा जिद करता रहा, तो हेमा मान गई और करवट लेकर कृपा की तरफ हो कर लेट गई। मैंने अपना सर उठा कर देखा तो कृपा हेमा के स्तनों को चूस रहा था, साथ ही उन्हें दबा भी रहा था और हेमा उसे लिंग को हाथ से पकड़ कर हिला रही थी। कुछ देर बाद हेमा ने उससे कहा- अपने हाथ से मेरी बुर को सहलाओ…! कृपा वही करने लगा। कुछ देर के बाद वो दोनों आपस में चूमने लगे फिर हेमा ने कहा- तुम्हारा लण्ड कड़ा हो गया है जल्दी से चोदो, अब कहीं सारिका या सुरेश जग ना जाएँ! उसे क्या मालूम था कि मैं उनका यह खेल शुरू से ही देख रही थी। हेमा फिर से सीधी होकर लेट गई और टाँगें फैला दीं। तब कृपा उसके ऊपर चढ़ गया और उसने लिंग योनि में भिड़ा कर झटके से धकेल दिया। हेमा फिर से बोली- आराम से घुसाओ न..! कृपा ने कहा- ठीक है.. तुम गुस्सा मत हो! कृपा अब उसे धक्के देने लगा। कुछ देर बाद मैंने गौर किया कि हेमा भी हिल रही है। उसने भी नीचे से धक्के लगाने शुरू कर दिए थे। दोनों की साँसें तेज़ होने लगी थीं और फिर कुछ देर बाद कृपा फिर से हाँफते हुए गिर गया, तो हेमा ने फिर पूछा- हो गया? कृपा ने कहा- हाँ.. हो गया..! तब हेमा ने उसे तुरंत ऊपर से हटाते हुए अपने कपड़े ठीक करने लगी और बोली- सो जाओ अब..! हेमा की बातों में थोड़ा चिढ़चिढ़ापन था जिससे साफ़ पता चल रहा था कि वो चरम सुख से अभी भी वंचित थी। कृपा अब सो चुका था, पर हेमा अभी भी जग रही थी। उसने मेरी तरफ देखा मैंने तुरंत अपनी आँखें बंद कर लीं। वो शायद देख रही थी कि कहीं उसकी चोरी पकड़ी तो नहीं गई। मेरा किसी तरह का हरकत न देख उसने अपनी साड़ी के अन्दर हाथ डाल और अपनी योनि से खेलने लगी थोड़ी देर में वो अपने शरीर को ऐंठते हुए शांत हो गई। मैं यूँ ही खामोशी से उसे दखती रही पर काफी देर उनकी ये कामक्रीड़ा देख मुझे भी कुछ होने लगा था। साथ ही एक ही स्थिति में सोये-सोये बदन अकड़ सा गया था, तो मैंने सोचा कि अब थोड़ा उठ कर बदन सीधा कर लूँ, सो मैं पेशाब करने के लिए उठी तो देखा कि सुरेश जगा हुआ है और मेरी तरफ देख कर मुस्कुरा रहा था। कहानी जारी रहेगी। मुझे आप अपने विचार यहाँ मेल करें। [email protected]

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