एक दिल चार राहें -1

‘त्रिया चरित्रं, पुरुषस्य भाग्यम, देवौ ना जानाति कुतो मनुष्यः’

प्रिय पाठको और पाठिकाओ!

प्रेमगुरु रचित तीन पत्ती गुलाब नामक कहानी धैर्यपूर्वक पढ़ने और उसकी सराहना के लिए आप सभी का आभार। कुछ पाठकों ने इसकी लम्बाई पर और धीमे प्रकाशन की आलोचना भी की थी मैं उन सभी का भी बहुत-बहुत धन्यवाद और आभार व्यक्त करती हूँ।

हालांकि प्रस्तुत कथानक ‘तीन पत्ती गुलाब’ कहानी का ही विस्तार है लेकिन वह कहानी चूंकि गौरी के बारे में थी तो मुझे लगा अन्य पात्रों के साथ हुए घटनाक्रम को अलग कथानक के रूप में लिखा जाए तो उचित होगा। इस कथानक के कुछ प्रकरण थोड़े लम्बे हो सकते हैं पर आप धैर्य बनाए रखें, मुझे विश्वास है आपको निराशा नहीं होगी।

आप तो जानते ही हैं यह कहानी भी प्रेमगुरु के मेल्स और नोट्स पर आधारित है. मैंने तो बस इसे शब्दों में पिरोने का एक छोटा सा प्रयास किया है। इस कहानी के बारे में आप अपनी राय लिखेंगे तो मुझे ख़ुशी होगी।

वैसे तो सभी पाठकों की अपनी अपनी पसंद होती है जिन पाठकों को कहानी पसंद ना आए वे इस कहानी को अनदेखा कर दे और व्यर्थ की विवादित टिप्पणी ना करें।

प्रस्तुत है कथानक की कुछ बानगियाँ.

दोस्तो! यह कुदरत भी कितनी अजीब है। औरत कितनी भी कामातुर हो कभी अपनी ख्वाहिश जबानी नहीं बताती बस उसके हाव-भाव (शारीरिक भाषा) सब कुछ बयान कर देते हैं। बीवियां (पत्नियां) तो अपना दाम्पत्य हकूक (पत्नी धर्म) ही निभाती हैं पर महबूबायें अपने हुस्न के खजा़ने लुटाती हैं। मुझे लगता है लैला भी अपने हुस्न का खजाना लुटाने को बेताब हो चली है। कमसिन और कुंवारी लौंडियों को पटाना और उनका कौमार्य मर्दन करना बहुत ही मुश्किल काम होता है पर शादीशुदा और अनुभवी महिला अगर एक बार राजी हो जाए तो फिर अपने हुस्न के सारे खजाने ही अपने प्रेमी को लुटा देती है।

मैंने उसके पायजामे को उसके घुटनों तक सरका दिया। आह … दो मखमली जाँघों के बीच फसी नाजुक बुर को देख कर तो मुझे लगा मैं अभी बिना कुछ किए धरे गश खाकर गिर पडूंगा। मैंने अपने होंठ उसकी बुर के चीरे पर लगा दिए। आह … उसकी अनछुई कमसिन कुंवारी बुर की महक जैसे ही मेरे नथुनों में समाई मेरा सारा शरीर जैसे रोमांच से झनझना उठा।

उसकी बुर से आती तीखी और मदहोश करने वाली गंध मेरे लिए अनजान नहीं थी। मुझे लगता है वह जब बाथरूम में अपने पैर धोने गई थी उसने अपनी बुर को भी धोया होगा और उस पर भी कोई क्रीम या तेल जरूर लगाया होगा। मेरा अंदाज़ा है सानिया ने अभी तक अपनी इस बुर से केवल मूतने का ही काम किया है। मुझे लगता है लंड तो क्या इसने तो अपनी इस बुर में अंगुली भी नहीं डाली होगी।

हे भगवान्! उसका गदराया हुआ सा बदन देखकर तो लगता है यह नताशा तो पूरी बोतल का नशा है। पतली कमर और गदराया हुआ सा नाभी के नीचे का भाग, सुतवां जांघें और मोटे कसे हुए नितम्ब उफ्फ्फ … इस फित्नाकार मुजसम्मे को कहर कहूं, बला कहूं, क़यामत कहूं या फिर खुदा का करिश्मा कहूं कुछ समझ ही नहीं आ रहा।

… इसी कहानी में से!

तो आइये अब कथानक शुरू करते हैं.

बीवियां (पत्नियां) अपना दाम्पत्य हकूक (पत्नी धर्म) निभाती हैं और महबूबा अपने खजा़ने लुटाती है। पत्नी अपने शौहर से प्यार करना अपना फर्ज समझती है लेकिन प्रेम फर्ज नहीं होता है। प्रेम का अंकुर तो दिल की गहराइयों में अंकुरित होता है और शायद इसी कारण गौरी ने प्रेमवश ही अपना कौमार्य मुझे बेझिझक सौम्प दिया था।

उसके साथ बिताए पलों की मीठी कसक आज भी मेरे स्मृति पटल पर बार-बार दस्तक दिए जाती है। कई बार तो मुझे लगता है गौरी अभी मेरे सामने आ जायेगी और कहेगी ‘मेले साजन उदास क्यों हो मुझे अपनी बांहों में ले लो?’

अक्टूबर का महीना शुरू हो चुका है और नवरात्र चल रहे हैं। मौसम सुहाना होने लगा है और गुलाबी सी ठण्ड होने लगी है।

आज सुबह मेरी पत्नी मधुर का फ़ोन आया था। उसने बताया कि उसके ताऊजी का हार्ट का ऑपरेशन हो गया है उनकी एंजियोप्लास्टी करके स्टंट डाल दिए हैं और एक सप्ताह के बाद छुट्टी मिल जायेगी। आप सभी की जानकारी के बता दूं कि मधुर की ताईजी मेरी मौसी भी लगती हैं।

उसने यह भी बताया कि उसने गुलाबो (हमारी घरेलू नौकरानी) से बात कर ली है। सानिया (गौरी की छोटी बहन) सुबह आकर घर की सफाई, बर्तन, कपड़े और आपके लिए चाय नाश्ता बना दिया करेगी। मैंने तो उसे मना भी किया था कि 15-20 दिन की ही तो बात है मैं किसी तरह काम चला लूंगा. पर मधुर किसी की बात कहाँ सुनती है।

गौरी की मधुर यादें अब भी रोमांच से भर देती हैं। मन करता है अभी उड़कर गौरी के पास पहुँच जाऊं। मैं मधुर के साथ तो मुंबई नहीं जा सका. पर सोच रहा था ट्रेनिंग पर बंगलुरु जाते समय एक दिन मुंबई भी मिल आऊँ. पर नताशा ने भी मेरे साथ ही बंगलुरु जाने का प्रोग्राम बनाया है लिहाजा बंगलुरु जाने के बाद ही मुंबई जाने के बारे में सोचेंगे।

मैंने आपको ऑफिस में आये उस नए नताशा नामक मुजसम्मे के बारे में बताया था ना? जीन पैंट और लाल टॉप के कमर तक झूलते लम्बे घने काले बाल और गहरी लाल रंग की लिपस्टिक … हाथों में मेहंदी और लम्बे नाखूनों पर लिपस्टिक से मिलती जुलती नेल पोलिश … उफ्फ … पूरी छमिया ही लगती है। साली की क्या मस्त गांड है … हे लिंग देव! अगर एक बार इसके नंगे नितम्बों पर हाथ फिराने का मौक़ा मिल जाए तो यह जिन्दगी जन्नत बन जाए।< एक तो साली यह किस्मत भी हाथ में लौड़े लिए हुए ही फिरती है। आज हैड ऑफिस से मेल आया कि मेरी जगह जो नया ऑफिसर यहाँ आने वाला था उसका एक्सीडेंट हो गया है तो अब वह 10-15 दिन बाद ही आ पायेगा। नतीजन मुझे अभी 15 दिन और यहीं रुकना होगा और उसके बाद ही ट्रेनिंग पर जा सकूँगा। आप सोच सकते हैं मुझे और नताशा को कितनी निराशा हुई होगी। अगले दिन सुबह के कोई 8 बजे का समय रहा होगा मैं बाथरूम से फ्रेश होकर जब बाहर आया और चाय बनाने के लिए रसोई में जाने ही वाला था कि डोर बेल बजी। इस समय कौन हो सकता है? दरवाजा खोलकर देखा तो सामने सानिया खड़ी थी। उसने हल्के सलेटी रंग की टी-शर्ट और काले रंग की जीन पैंट पहनी थी। उसने अपने खुले बालों में रबड़ बैंड डालकर बालों को एक तरफ करके अपनी छाती पर डाल रखा था। एक नज़र में तो मैं उसे पहचान ही नहीं पाया। इन पिछले 2-3 महीनों में तो यह फुलझड़ी से पटाका नहीं बल्कि क़यामत ही बन गई है। उसके ऊपरी होंठों पर दाईं तरफ एक छोटा सा तिल तो जैसे अभी कलेजे को चीर देगा। और उसके उरोज तो उफ्फ्फ ... आज भरे-पूरे और बहुत ही कसे हुए लग रहे थे. उसकी चने के दाने जैसी घुन्डियाँ तो टी-शर्ट में साफ़ महसूस की जा सकती थी। मुझे लगता है उसने ब्रा नहीं पहनी है। क्या पता पैंटी भी पहनी है या नहीं? मैं तो जीन पैंट में कसे उसके गुदाज नितम्बों और पतली कमर को ही देखता रह गया। “नमस्ते सल!” सानिया भी गौरी की कई बार बोलते समय ‘र’ को ‘ल’ बोल जाती है। “ओह ... हाँ ... नमस्ते ... अरे ... सानिया ... तुम?” मैं उसकी आवाज सुनकर चौंका। मेरी निगाहें जैसे ही सानिया की जाँघों के संधि स्थल की ओर गई उसने अपने टॉप को नीचे से पकड़कर अपने नितम्बों के नीचे करने की कोशिश की। भेनचोद ये लड़कियां तो जवान होते ही ऐसे नाज-नखरे पता नहीं कहाँ से सीख लेती हैं। “वो मुझे मम्मी ने सफाई और घल का काम कलने के लिए भेजा है।” “ओह ... हाँ ... अन्दर आ जाओ.” मैं सानिया को लिए अन्दर आ गया। “मैं पहले सफाई कल देती हूँ बाद में आपके लिए नाश्ता भी बना दूँगी.” सानिया ने कहा। “तुम्हें चाय बनानी आती है ना?” “हओ” सानिया ने मुस्कुराते हुए कहा। हे भगवान् जिस अंदाज़ में उसने ‘हओ’ बोला था आप अंदाज़ा लगा सकते हैं मुझे गौरी की कितनी याद आई होगी। “तो फिर पहले अदरक और इलायची डालकर बढ़िया सी चाय बनाओ. सफाई बाद में कर लेना.” ‘हओ’ कहकर सानिया रसोई में चली गई। जीन पैंट में कसे गोल खरबूजे जैसे नितम्ब देखकर तो मेरा मन इनको चूम लेने को करने लगा था। मुझे गौरी के साथ पहले दिन वाली घटना स्मरण हो आई। जब मैंने रसोई में उसे मधुर समझ कर अपनी बांहों में भरकर भींच लिया था। लंड तो एक बार फिर से बेकाबू सा होने लगा। दिल के किसी कोने से आवाज आई इस कमसिन कलि को एक बार बांहों में भरकर चूम लो तो गौरी की याद ताज़ा हो जाएगी। यह मन तो हमेशा ही बे-ईमानी पर उतारू रहता है। मुझे लगता है अगर मैं थोड़ी सी कोशिश करूँ तो सानिया की उभरती और कमसिन जवानी का मज़ा आराम से लूट सकता हूँ। थोड़ी देर में सानिया ट्रे में चाय का थर्मोस और कप लेकर आ गई। उसने ट्रे टेबल पर रख दी और फिर थोड़ा सा झुककर थर्मोस से कप में चाय डालने लगी। आज उसने गोल गले की टी-शर्ट पहन रखी थी तो उसके उरोजों को तो नहीं देखा जा सकता था पर उसके बीच की घाटी (खाई) और गोलाइयों की खूबसूरती को तो महसूस किया ही जा सकता था। काश इन परिंदों को छूने, मसलने और चूसने का एक मौक़ा मिल जाए! उसके नितम्बों की गोलाइयों और बाउंस होते टेनिस की बॉल जैसे उरोजों के उठान और कसाव को देख कर तो लगता है वह जवानी की दहलीज और सारी बंदिशें लांघने को बेकरार है। “अरे सानिया?” “हओ?” सानिया ने मेरी और आश्चर्य से देखा। “वो रसोई में बिस्किट और नमकीन रखे हैं वो भी ले आओ.” “हओ” कहकर सानिया फिर से रसोई में चली गई और एक प्लेट में बिस्किट्स और नमकीन लेकर आ गई। “तुमने सुबह चाय पी या नहीं?” “किच्च” “तो ऐसा करो तुम भी साथ में पी लो ... जाओ एक कप या गिलास और ले आओ?” “मैं?” उसने हैरानी से मेरी ओर देखा। “हाँ भई ... मैं तुम्हारी ही बात कर रहा हूँ ... तुम भी चाय बिस्किट लेलो?” “वो.. वो ... सफाई ... मैं बाद में ले लूंगी.” शायद सानिया असमंजस में थी। उसे तो जैसे यकीन ही नहीं हो रहा था कि मैं उसे भी चाय के लिए पूछूंगा। “अरे ... सफाई बाद में होती रहेगी पहले चाय पीते हैं. मुझे अकेले चाय पीना अच्छा नहीं लगता.” अब सानिया अपने लिए गिलास ले आई और उसने थर्मोस में से अपने लिए चाय डाल ली। सानिया चाय का गिलास लेकर नीचे फर्श पर बैठ गई। शुरू-शुरू में गौरी भी ऐसे ही फर्श या पास वाली स्टूल पर बैठा करती थी और बाद में तो आप जानते ही हैं वह मेरे पास सोफे पर नहीं मेरी गोद में ही बैठ कर चाय और नाश्ता किया करती थी। मुझे सानिया का नीचे बैठना अच्छा तो नहीं लगा पर वक़्त की नजाकत को देखते हुए अभी उसे सोफे पर बैठने को नहीं कहा जा सकता था। “एक बात बताऊँ?” सानिया ने सवालिया निगाहों से मेरी ओर देखा। उसे मेरी बातों से बड़ा आश्चर्य सा हो रहा था कि मैं उसके साथ इतनी आत्मीयता से बात कर रहा हूँ। हे भगवान्! उसकी मोटी-मोटी आँखें तो किसी चंचल हिरनी की तरह ऐसी लगती हैं जैसे बिना किसी अस्त्र-शस्त्र (हथियार) के ही मुझे क़त्ल कर देंगी। “पता है ... जब मधुर स्कूल चली जाती थी तो गौरी भी मेरे साथ ही चाय पीया करती थी.” “अच्छा?” “हाँ ... और एक बात और भी है.” “क्या?” “उसे कप के बजाए गिलास में चाय पीना पसंद था?” कहकर मैं हंसने लगा। “अच्छा?” सानिया के चहरे पर भी मुस्कान फ़ैल गई। “तुम्हें चाय कप में पसंद है या गिलास में?” “मैं भी गिलास में पीती हूँ” “अरे वाह! फिर तो हमारी दोनों की पसंद एक जैसी है?” मैंने हंसते हुए कहा तो सानिया भी मंद-मंद मुस्कुराने लगी। “आप के लिए गिलास लाऊँ?” “ना ... आज तो कप में ही पी लेता हूँ कल दोनों साथ में गिलास में पियेंगे?” मैंने प्लेट में रखे क्रीम वाले बिस्किट्स में से एक बिस्किट उठाया और चाय में डुबोकर खाने लगा। सानिया मेरी और हैरानी से देखती रही। फिर मैंने प्लेट उठाकर सानिया की ओर करते हुए उसे भी बिस्किट लेने का इशारा किया। सानिया ने थोड़ा झिझकते हुए अपनी लम्बी-लम्बी अँगुलियों से बिस्किट्स पकड़ लिए और चाय में डुबोकर खाने लगी। सानिया के हाथों पर हल्के-हल्के रोयें से थे। मुझे नहीं लगता वह वैक्सिंग करती होगी। हे भगवान्! फिर तो उसने अपनी सु-सु की केशर क्यारी को भी साफ़ नहीं किया होगा। आह ... उसकी सु-सु पर और मोटे-मोटे पपोटों के दोनों ओर तो हल्के रेशमी बालों का झुरमुट ही बना होगा और उसकी सु-सु की झिर्री के बीच गुलाबी कलिकाएँ तो कमाल की होंगी। उसकी सु-सु पर अगर होंठ फिराए जाएँ तो उसकी कमसिन खुशबू तो तन और मन दोनों को निहाल कर देगी। मेरी निगाह तो उसकी जाँघों के संधि स्थल से हट ही नहीं रही थी। काश! आज भी यह इस जीन पैंट के बजाय वही छोटी वाली कच्छी पहन कर आती तो उसकी मुलायम जाँघों और सु-सु का जोगराफिया अच्छे से दिख जाता। काश! उसके नारंगियों जैसे उरोजों को एकबार फिर से छूने और मसलने का मौक़ा मिल जाए। कामकला के विशेषज्ञ मानते हैं कि जब लड़की के उरोज बाउंस होने लगे (चलते समय थोड़ा उछलने लगे) और उसकी बुर पर केशर क्यारी बननी शुरू हो जाए तो वह काम को समर्पित होने के लिए तैयार हो जाती है। “अरे सानिया!” “हओ” “तुमने जो ड्रेस मधुर के जन्मदिन पर पहनी थी वह दुबारा पहनी या नहीं?” “किच्च” “अरे ... क्यों? उसमें तो तुम बहुत ही खूबसूरत लगती हो?” “हओ” “पता है तुम्हें उस ड्रेस में देखकर मेरे मन में क्या आया?” “क्या?” “मैं सच कहता हूँ तुम्हें उस ड्रेस में तुम इतनी खूबसूरत लग रही थी की मेरा मन तुम्हें बांहों में भरकर चूम लेने को करने लगा था.” कहकर मैं हंसने लगा। मैं देखना चाहता था कि वह मेरी इस बात पर किस प्रकार की प्रतिक्रया व्यक्त करती है। मुझे लगा वह गौरी की तरह ‘हट!’ बोलकर शर्मा जायेगी पर वह तो मेरी बात सुनकर खिलखिलाकर हंसने लगी थी। थोड़ी देर बाद वह बोली- मुझे भी वह ड्रेस बहुत पसंद है पल ... वो मम्मी पहनने ही नहीं देती. “अरे ... क्यों?” “मम्मी बोलती है तोते दीदी की शादी में पहन लेना अभी खलाब हो जायेगी.” सानिया ने उदासी भरी आवाज में बताया। “ओह ... पर अभी गौरी की शादी थोड़े ही हो रही है? वह तो मधुर के साथ मुंबई चली गई है ना!” “हाँ ... पर वो ... मम्मी बता रही थी कि भाभी के मायके में उनके किसी रिश्तेदार का लड़का है तो वो लोग चाहते हैं कि तोते दीदी का रिश्ता उसके साथ कर दिया जाए।” “ओह ... ” सानिया की बात सुनकर मुझे तो जैसे बिजली का सा झटका ही लगा। मैंने उससे पूछा- गौरी को इस बात का पता है क्या? “तोते दीदी तो बहुत नालाज हुई वो बोली मैं अभी शादी नहीं कलूँगी?” “फिर?” “बापू बोला यह नहीं मानती तो मीठी की कर देते हैं?” सानिया ने शर्मा कर अपनी मुंडी झुका ली। आपकी जानकारी के लिए बता दूं सानिया का घर का नाम मीठी है। “ओह ... क्या तुम इसके लिए तैयार हो?” “हम लड़कियों की कौन सुनता और परवाह करता है?” “पर अभी तो तुम बहुत मुश्किल से 18-19 की हुई होगी. मेरे हिसाब से तो अभी तुम्हें शादी नहीं करनी चाहिए?” सानिया ने कातर नज़रों से मेरी ओर देखा। उसके हालत इस समय ऐसी लग रही थी जैसे किसी निरीह जानवर को को हलाल करने के लिए कोई कसाई जबरदस्ती कत्लगाह की ओर घसीट कर ले जाने वाला हो। ना चाहते हुए भी माहौल संजीदा हो गया था। अब बातों का रुख और सिलसिला मोड़ने की जरूरत थी। “वो तुम्हारी भाभी और भतीजा कैसे हैं?” “दोनों अच्छे हैं पल बाबू रोता बहुत है.” “हाँ छोटे बच्चे या तो सोते हैं या फिर रोते हैं.” मैंने हंसते हुए कहा तो सानिया भी हंसने लगी। “तुम्हें भैया-भाभी ने कोई गिफ्ट दिया या नहीं?” “किच्च” “ओह?” “भाभी के भैया ओल बापू आये थे उन्होंने मुझे सौ रुपये दिए थे मुझे ... पल ... ” सानिया फिर उदास सी हो गई। “पर ... क्या?” “वो ... मम्मी ने ले लिए और मुझे केवल बीस रुपये ही दिए।” ओह ... गरीब परिवारों में बेचारी लड़कियों की भावना के बारे में कोई नहीं सोचता बस किसी तरह पैसा आना चाहिए। “अगर तुम्हें सौ रुपये और मिल जाएँ तो तुम क्या करोगी?” “मैं तो बल्गल और आलू की टिक्की खाऊँगी और साथ में पेसपी (पेप्सी) पीउंगी.” “अच्छा! तुम्हें मिठाई में क्या पसंद है?” “आं आ ... मिठाई में तो लसमलाई ओल काजू की कतली बहुत पसंद है।” सानिया ने अपने होंठों पर जीभ फिराते हुए कहा। “चलो कोई बात नहीं ... आज तुम घर जाते समय अपनी पसंद की सारी चीजें जरूर खाना। मैं तुम्हें पैसे दे देता हूँ.” “सच्ची?” सानिया के चहरे पर आई मुस्कान तो ऐसी थी जिसे लाखों रुपये देकर भी नहीं पाया जा सकता। और फिर मैंने अपने पर्श से सौ-सौ के दो नोट निकाल कर सानिया को पकड़ा दिए। उसने पहले तो गौर से उन नोटों को देखा और बाद में उन्हें जोर से अपनी मुट्ठी में भींच लिया। “और हाँ ... एक बात का ध्यान रखना!” मैंने मुस्कुराते हुए कहा। “क्या?” सानिया ने मेरी और आश्चर्य से देखा। “इन पैसों के बारे में अपनी मम्मी या और किसी को मत बताना।“ “हओ ... समझ गई.” पता नहीं सानिया को क्या समझ आया पर वह रहस्यमई ढंग से मुस्कुरा जरूर रही थी। दोस्तो, आज का सबक पूरा हो चुका था। आज सनिवार का दिन था। सयाने कहते हैं किसी नई कामयोजना का मुहूर्त इस दिन किया जाए तो परिणाम जल्दी और अच्छे मिलते हैं। सानिया सफाई बर्तन करने के बाद नाश्ता बनाकर अपने घर चली गई और नई योजना के बारे में सोचता हुआ दफ्तर। [email protected] लम्बी कहानी जारी रहेगी.