उर्मिला भाभी लखनऊ वाली-3

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अब मैं यह समझ चुका था कि भाभी सब कुछ चाहती हैं, लेकिन शर्म के मारे मुँह से बोल नहीं सकती।

अब मैंने खुद से आगे बढ़ने का फ़ैसला किया। फिल्म के दौरान भाभी के हाथ को अपने हाथ में लेकर प्यार से सहलाने लगा।

भाभी ने एक बार मेरी तरफ सवालिया निशान से देखा फिर हल्के से मुस्कुरा कर मूवी की तरफ मुँह कर लिया।

अब मैं धीरे-धीरे भाभी की ओर खिसक कर एकदम उनसे चिपकने के कोशिश कर रहा था।

मैंने हिम्मत करके अपना एक हाथ उठा कर भाभी के दूसरे कन्धे पर रख दिया, और भाभी ने खुद अपना सिर मेरे कन्धे पर रख दिया।

अब हम दोनों एक दूसरे के बाँहों में थे। मैं धीरे-धीरे भाभी की कंधे को सहला रहा था। और दूसरे हाथ में भाभी का हाथ था। अब भाभी भी मेरे हाथ को बड़े प्यार से सहला रही थी।

कुछ देर तक ऐसे ही चलता रहा। हम दोनों की जानते थे कि आग दोनों तरफ लग रही थी लेकिन शुरूआत कौन करेगा।

मैंने अपना हाथ जो भाभी के कंधे पर था। धीरे-धीरे नीचे ले जाना शुरू किया। उनकी मुलायम पीठ पर से नीचे जाते हुए उनकी ब्रा की स्ट्रेप्स को महसूस करते हुए उनकी सुराही जैसे आकार की कमर पर आ गया था।

मेरे हर हरकत से भाभी का शरीर थोड़ा सा मचल जाता था। अब मैं महसूस कर रहा था कि भाभी की साँसें कुछ तेज होने लगी थी।

मैंने बड़े प्यार से भाभी के चेहरे को अपने हाथ में लिया और अपनी तरफ घुमाया।

भाभी बहुत ज़्यादा शरमा रही थी इसलिए उन्होंने अपनी आँखें बंद कर ली थीं। एक पल को मैं भाभी के मासूम चेहरे को देखता रहा, उन पर बहुत प्यार आ रहा था मुझे।

उनके वो गुलाबी होंठ काँप रहे थे। मानो डर और आने वाले पल की खुशी में मचल रहे थे।

मैं आगे बढ़ा और और भाभी के होंठों के बिल्कुल करीब आ गया। अब हम एक दूसरे की साँसें भी महसूस कर पा रहे थे। भाभी मुझे इतना करीब महसूस कर के थोड़ी बेचैन हो गई। उनसे अब सब्र नहीं हो पा रहा था। उनके होंठ अपने आप खुल कर मुझे चूमने का न्यौता दे रहे थे।

अब मुझसे और ना रहा गया। मैंने अपने होंठ भाभी के नरम, फड़फड़ाते हुए होंठों पर रख दिए।

भाभी बिल्कुल नहीं हिल रही थी लेकिन मैं बड़े ही प्यार से भाभी के होंठों को चूम रहा था। कभी नीचे के होंठों को अपने मुँह में भर से उनका रसपान कर रहा था, कभी ऊपर के !

भाभी की सारी लिपस्टिक का स्वाद मेरे मुँह में आ गया था।

कुछ ही पलों में उर्मिला बहुत गर्म होने लगी, अब वो मुझे चूमने लगी थी। मेरे सिर को अपने दोनों हाथों से पकड़ मुझे बेहताशा चूमने लगी। ऐसा लग रहा था, मानो कब की भूखी है।

मैं भी काफ़ी गर्म हो चुका था। अब मेरे हाथ उर्मिला के शरीर पर भी घूमने लगे थे और धीरे धीरे उर्मिला के दूध पर आ गए।

उफ्फ, कितने नरम थे ! मानो रूई दबा दी हो। और उधर हाथ लगते ही उर्मिला की भी दबी हुई ‘आह’ निकल गई।

हम दूसरे को किसी जंगली जानवर की तरह खाने की कोशिश कर रहे थे। तभी मेरी नज़र आसपास वाले लोगों पर गई। कुछ तो पीछे मुड़-मुड़ कर हमारी हवस का नंगा नाच देख रहे थे।

अभी फिल्म आधी भी ख़त्म नहीं हुई थी। मैंने वहाँ से निकलना ही सही समझा। मैंने उर्मिला की तरफ देखा, उनकी आँखों में वासना उबल रही थी।

मैं उनसे पूछा- होटल चलें वापिस?

वो कुछ नहीं बोली, सीधा खड़ी हुई और बाहर की तरफ निकल पड़ी।

पूरे रास्ते हमारे बीच कोई बात नहीं हुई। शायद हम दोनों ही एक दूसरे से उजाले में नज़र नहीं मिला पा रहे थे लेकिन अब मेरे लिए सब्र कर पाना बहुत ही मुश्किल था। हम होटल पहुँचे, उर्मिला आगे थी मैं उनके पीछे और जैसे ही हम कमरे के अंदर घुसे, मैंने पीछे से ही उन्हें पकड़ लिया और सीधा उनके दूध को दबाने लगा।

उर्मिला के गले पर अपनी जीभ फिरने लगा। जीभ लगते ही उर्मिला मचल उठी और घूम कर मेरे होंठों पर अपने होंठ रख दिए।

अब हम दोनों एक दूसरे को चूमे जा रहे थे। मैंने अपनी जीभ उर्मिला के जीभ से लड़ानी शुरू कर दी।

उन्होंने मेरी जीभ अपने होंठों से पकड़ कर चूसना शुरू कर दिया।

मैंने उर्मिला के बुरके को खोल कर अलग कर दिया। अब उर्मिला मेरे सामने साड़ी में थी। हम फिर से एक दूसरे को किस करने लगे।

धीरे-धीरे मैं उर्मिला के जिस्म से खेलने लगा, उनकी चूचियों को ब्लाउज के ऊपर से मसलने लगा।

हमारी चूमा-चाटी नहीं रुकी। दबी आवाज़ में उनकी ‘आह’ ज़रूर निकल रही थी।

मैंने अब धीरे से अपना हाथ उर्मिला की पिछाड़ी पर ले गया और उसे बड़े प्यार से सहलाया।

कसम से दोस्तों ज़िंदगी में बहुत चूतड़ देखे थे, मगर उर्मिला भाभी जैसे चूतड़ बहुत कम औरतों के पास थे।

पतली कमर के नीचे सुराही का आकार बनाते हुए चौड़े चूतड़ एकदम गोल।

क्या मुलायम पिछाड़ी थी। मैं तो सहलाने से ही फटने को हो रहा था।

अब धीरे-धीरे मैंने उर्मिला के कपड़े उतारने शुरू किए और पूरी साड़ी उतार दी।

अब मेरे सामने उर्मिला बस ब्लाउज और पेटीकोट में खड़ी थी। मुझे औरत में सबसे ज़्यादा उनके उठे हुए चूतड़ और चिकनी जाँघ के हिस्से ही पसंद आते हैं।

हम दोनों फिर से एक-दूसरे में खो गए। मैंने उर्मिला को ऊपर से पूरा नंगा कर दिया था।

जैसे ही मैंने उर्मिला की नंगी चूचियों पर अपना मुँह रखा, उर्मिला की कराह निकल गई ‘हय !’

मानो जैसे इस दिन के लिए कितने सालों से इंतजार कर रही थी।

मैंने भी अपने सारे कपड़े उतार दिए और फिर से दूसरे से खेलने लगे।

तभी मैंने उर्मिला की उल्टा किया और बेड पर झुका दिया। इस वक़्त उर्मिला की पिछाड़ी मेरे तरफ थी और बाकी ऊपर का बदन आगे बेड पर झुका हुआ था।

अगले ही पल मैंने उर्मिला के पेटीकोट को उठा दिया और ज़न्नत को देखने लगा। भाभी ने पैन्टी नहीं पहनी थी।

इतनी गोरी गोल पिछाड़ी। मेरी हाथ से मसले जाने की भी निशान पड़ गए थे उन पर।

उनकी चूत भी हल्के बालों से ढकी हुई थी। जिसमें से शायद बहुत सारा रस बह चुका था। क्योंकि वो हिस्सा बहुत चमक रहा था, यहाँ तक कि उर्मिला की जाँघों के हिस्से पर भी गीलेपन की चमक थी।

मुझे और ना रुका गया और मैंने वहीं नीचे बैठ कर भाभी की चूत पर अपने होंठ लगा दिए।

उर्मिला अचानक हुए इस हमले से चिहुँक उठी और आगे की तरफ भागना चाहती थी।

मैंने उन्हें छोड़ा नहीं, और मेरी जीभ की लपर-लपर ने उर्मिला की चीख निकलवा दी।

‘आइ माआ..आह..!’

अचानक से वो आगे के तरफ और झुक गई और उनकी पिछाड़ी बाहर की तरफ निकल आई। मानो मुझे वो अपनी चूत को और चाटने की लिए प्रेरित कर रही थी।

इस वक़्त भाभी एक गरम कुतिया की तरह अपनी चूत चटाई मज़ा ले रही थी। उनके मुँह से संतुष्टि से भरी आवाजें निकल रही थीं।

मैं भी उनके चूत के रस के स्वाद में खो कर चाटे जा रहा था। करीब 10 मिनट तक चाटने के दौरान उर्मिला 2 बार झड़ चुकी थी। और इतनी देर के खेल के बाद मेरा पानी भी कभी भी निकल सकता था।

अब हम बेड पर आ गए, बिल्कुल नंगे, मैंने भाभी की आँखों में देखा, उन्होंने फिर से आँखे नीचे कर लीं।

मैं उन्हें अपनी तरफ खींच कर अपनी गोद में बिठाया। उनकी गरम मुलायम पिछाड़ी ने जैसे ही मेरे लंड को छुआ। यह अनुभव करके ही मेरा तो पानी निकालने को हो गया।

मैंने उर्मिला को बड़े प्यार से बोला- भाभी आई लव यू ! आप बहुत सुंदर हो।

यह सुनते ही उर्मिला ने मेरी तरफ देखा और मुझे बहुत ज़ोर से गले लगा लिया।

उसके बाद हम दोनों फिर एक बार अन्तर्वासना के मैदान में उतर गए और मैंने भाभी को अपना लंड चूसने को बोला जिस पर उन्होंने मना कर दिया।

मैंने भी ज़िद नहीं की और अब उनकी टाँगें खोल कर उनके बीच आया। अब वो पल आ गया था जिसके लिए मुझे पुणे से लखनऊ बुलाया गया था।

उर्मिला भाभी अपनी टाँगें खोले मुझे अपने अंदर समाने का न्यौता दे रही थीं। उनकी छोटी सी चूत अपना काम-रस छोड़ कर मुझे अंदर घुसने के लिए बुला रही थी।

मैं फिर उनके नीचे गया और उर्मिला की चूत के होंठों से अपने होंठों की मिला कर चूसने लगा।

लेकिन उर्मिला ने मुझे तुरंत ऊपर खींच लिया और आँखों ही आँखों में चुदाई कार्यक्रम शुरू करने के लिए कहा।

मैंने अपना लंड उर्मिला की चूत पर रखा और ज़रा सा उनकी क्लिट को रगड़ा, उर्मिला फिर से एक बार तड़प उठी।

अब मैंने लंड को निशाने पर लगाया और और ऊपर भाभी के होंठों पर अपने होंठ लगा कर चूसने लगा।

उर्मिला ने शुरू में अपने ही चूत के स्वाद के वजह से मुझसे किस करने बचना चाहा लेकिन मैं नहीं माना।

मैंने धीरे से धक्का देकर लंड को चूत की गिरफ़्त में देना शुरू किया। चूत में भरे हुए काम-रस की वजह से मुझे कोई ज़्यादा दिक्कत नहीं हुई।

लेकिन भाभी की योनि किसी भट्टी की तरह गर्म थी। कुछ ही झटकों में मैंने भाभी की चूत में समा गया और बड़े ही प्यार से हमारी चुदाई शुरू हुई।

नीचे से दोनों की कमर एक ही सुर-ताल पर लचक रही थी और लंड और चूत एक दूसरे में समाने की कोशिश कर रहे थे।

वहीं ऊपर मैं और भाभी किस करे जा रहे थे, एक-दूसरे के होंठ चूसे जा रहे थे।

कुछ ही देर में भाभी झड़ने के काफ़ी करीब आ गईं तो उन्होंने मुझे ज़ोर से काट लिया जिससे मेरे हाथ में से खून भी आ गया।

लेकिन फिर बड़े प्यार से उसे भी चूसती रहीं।

हम दोनों एक दूसरे में पूरी तरह खो चुके थे। बातें बहुत कम हुई लेकिन प्यार तो मानो इतना लग रहा था कि हम दोनों पति-पत्नी हैं।

कब दिनके 2 बजे से शाम के 5 बज गए पता ही नहीं चला। शाम को को हम दोनों एक दूसरे की बाँहों में नंगे लेटे हुए थे, तभी सत्येन्द्र जी का कॉल आया।

उन्होंने मुझसे पूछा- उर्मिला घर कब आ रही है।

मैंने उर्मिला जी की तरफ देखा, उनकी आँखों में उदासी थी।

मैंने सत्येन्द्र जी को कहा- आज वो यहीं रुक रही हैं, अगर आपको कोई आपत्ति नहीं हो तो !

कुछ सोच कर सत्येन्द्र जी बोले- ठीक है, आज ही नहीं कल भी वही रुक जाएँगी वो। लेकिन उनका ध्यान रखना और अपना भी।

यह बात सुनकर हम दोनों एक नये उत्साह से साथ फिर से एक-दूसरे में खो गए।

यह कहानी बिल्कुल सच है दोस्तो ! आज भी उर्मिला जी से मेरी बात होती है लेकिन बहुत कम।

आप सभी को मेरी कहानी कैसी लगी बताना ज़रूर।

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