कमाल की हसीना हूँ मैं-31

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कुछ देर बाद हम वहीं आराम करके अपने कपड़े पहन कर बाहर आ गये। बाहर अपनी टेबल पर आकर देखा कि टेबल खाली थी।

मैंने बैठते हुए इधर-उधर नज़र दौड़ाई लेकिन साशा और ससुर जी कहीं नहीं दिखे।

हैमिल्टन ने अपनी कुर्सी पर बैठ कर मुझे अपनी गोद में खींच लिया। मैंने उसकी गोद में बैठ कर उसके गले में अपनी बाँहों का हार डाल दिया और हम दोनों एक दूसरे को चूमने लगे। आस-पास सारे जोड़े सैक्स में ही लीन दिखे। किसी को किसी की फ़िक्र नहीं थी। कुछ तो वहीं पूरे नंगे हो कर चुदाई में लगे हुए थे।

वेस्टर्न कल्चर में तो यह एक मामूली सी बात थी। तभी वेटर डिनर और वाईन सर्व कर गया। हैमिल्टन की गोद में बैठे-बैठे हमने डिनर लिया। हम एक दूसरे को खिलाते रहे।

हैमिल्टन का लंड वापस मेरे नितंबों के नीचे खड़ा हो रहा था। उसने मुझे उठाया और मेरी चूत पर लंड को सैट करके वापस अपनी गोद में बिठा लिया।

इस बार हम दोनों ने किसी तरह की उछल कूद नहीं की। मैं उसके लंड को अपनी चूत में लेकर डिनर करने में व्यस्त हो गई। वो भी डिनर ले रहा था।

थोड़ी देर बाद ताहिर अज़ीज़ खान जी साशा को बाँहों में लिये इधर आते हुए दिखे। मैं झट से हैमिल्टन कि गोद से उतर कर अपनी सीट पर बैठ गई और वाईन सिप करने लगी। आखिर हम हिन्दुस्तानी कितने भी एडवांस्ड हो जायें, कुछ तो शर्म बची ही रहती है।

हैमिल्टन ने अपने लंड को अंदर करने की कोई कोशिश नहीं की। साशा और ससुर जी आकर अपनी-अपनी सीट पर बैठ गये। हम दोनों एक दूसरे से नजरें नहीं मिला पा रहे थे।

हैमिल्टन और साशा चुहल बाजी करते रहे। हैमिल्टन ने खींच कर साशा को अपने लंड पर बिठा लिया। साशा ने भी एक झटके से अपनी टॉप उतार दी और हैमिल्टन के लंड की सवारी करने लगी।

लेकिन हम दोनों चुपचाप अपने अपने ख्यालों में खोये खाना खाते रहे और बीच-बीच में चोर निगाहों से अपने सामने चल रही ब्लू फ़िल्म का भी मज़ा लेते रहे। सामने उन दोनों की चुदाई देखते हुए अक्सर हम दोनों की निगाहें टकरा जाती तो मैं शरमा कर और ससुर जी मुस्कुरा कर अपनी निगाहें हटा लेते।

खाना खाकर हम दोनों ने उन दोनों से विदा ली। मैं अपने ससुर जी की बाँहों में अपनी बांहें डाल कर अपने रूम की तरफ़ बढ़ी।

मुझे काफी सुरूर महसूस हो रहा था क्योंकि दोपहर से धीरे-धीरे करके कम से कम चार-पाँच कॉकटेल और तीन वाईन के गिलास पी चुकी थी। ऊपर से महफिल का माहौल भी इतना उत्तेजक था।

“मैं साशा के साथ किसी नये प्रॉजेक्ट के बारे में डिसकस करने पास के एक केबिन में गया था। तुमको बता नहीं पाया क्योंकि तुम कहीं मिली नहीं। पता नहीं भीड़ में तुम कहाँ हैमिल्टन के साथ डाँस कर रही थीं।”

उनके मुँह से ये बात सुनकर मुझे बहुत राहत मिली कि उनको नहीं पता चल पाया कि उसी दौरान मैं भी पास के ही किसी केबिन में हैमिल्टन के साथ चुदाई में लीन थी।

हम दोनों के अलग-अलग रूम थे। मैंने अपने कमरे के सामने पहुँच कर उन्हें गुड नाईट कहा और कमरे की तरफ़ बढ़ने लगी।

“कहाँ जा रही हो। आज मेरे कमरे में ही सो जाओ ना”, ससुर जी ने कहा। उनका इरादा साफ़ था।

आज बर्फ़ पिघल रही थी लेकिन मुझे भी अपना डेस्प्रेशन नहीं दिखाना था। इसलिये मैंने उनकी तरफ़ देख कर अपनी नजरें झुका लीं और कदम अपने कमरे की तरफ़ बढ़ाये।

“अच्छा ठीक है तुम अपने कमरे में चलो। मैं अभी आता हूँ… कपड़े चेंज मत करना!” उन्होंने मुझसे कहा।

“क्यों क्या हुआ?” मैंने पूछा।

“नहीं कुछ नहीं! तुम इन कपड़ों में बहुत खूबसूरत लग रही हो… तुम्हें इन कपड़ों में कुछ देर तक देखना चाहता हूँ !”

“क्यों इतनी देर देख कर भी मन नहीं भरा क्या?” मैंने उनकी तरफ़ मुस्कुरा कर देखा।

“अब्बू जान… अपने मन को कंट्रोल में रखिये। अब मैं आपके बेटे की बीवी हूँ।” कहते हुए मैं हंसती हुई कमरे में चली गई। अंदर आकर मैंने अपने टॉप और स्कर्ट को उतार दिया और बाथरूम में जा कर चेहरा धोया।

जिस्म पर सिर्फ तौलिया लपेटे बाथरूम से बाहर आकर मैंने ड्रैसिंग टेबल के सामने खड़े होकर अपने टॉवल को हटा दिया। मेरा नंगा जिस्म रोशनी में चमक उठा। मैं सिर्फ हाई-हील के सैंडल पहने हुए खड़ी हुई अपने नंगे जिस्म को निहार रही थी। निकाह के बाद कितने लोगों से मैं चुदाई कर चुकी थी। इस जिस्म में कुछ ऐसी ही कशिश थी कि हर कोई खिंचा चला आता था। मैंने उसी हालत में खड़े होकर डियोड्रेंट लगाया और हल्का मेक-अप किया। अपने बालों में कंघी कर ही रही थी कि डोर बेल बजी।

“कौन है?”

“मैं हूँ… दरवाजा खोलो”, बाहर से ससुर जी की आवाज आई।

मैंने झट अपने शाम को पहने हुए कपड़ों को वापस पहना और दरवाजे को खोल दिया। उन्होंने मुझसे अलग होने से पहले उन्हीं कपड़ों में रहने को कहा था।

अब दोनों निप्पल के ऊपर टॉप पर लगा धब्बा सूख गया था, लेकिन धब्बा साफ़ दिख रहा था कि वहाँ कुछ लगाया गया था।

ताहिर अज़ीज़ खान जी अंदर आये। उन्होंने शायद अपने कमरे में जाकर भी एक दो पैग लगाये थे। उनके चाल में हल्की लड़खड़ाहट थी। कमरे में आकर वो बिस्तर पर बैठ गये।

“आओ मेरे पास !” उन्होंने मुझे बुलाया। मैं धीरे-धीरे हाई-हील सैंडलों में मटकते हुए चल के उनके पास पहुँची। उन्होंने अपनी जेब में हाथ डाल कर एक खूबसूरत सा लॉकेट निकाल कर मुझे पहना दिया।

“वॉव ! कितना खूबसूरत है !” मैंने खुश होकर कहा “किसके लिये है ये?”

“तुम्हें पसंद है?” मैंने हामी में सिर हिलाया।

“यह इस खूबसूरत गले के लिये ही है !” कहकर उन्होंने मेरे गले को चूम लिया।

“उम्म बहुत सुंदर है यह !” मैंने लॉकेट को अपने हाथों से उठाकर निहारते हुए कहा।

“मुझे भी तो पता चले कि तुम कितनी खुश हो। खुश हो भी या…” मैं झट से उनकी गोद में बैठ गई और उनके गले में अपनी बाँहों का हार डाल कर उनके होंठों पर अपने होंठ सटा दिये। मैंने उनको एक डीप किस दिया। जब हम दोनों अलग हुए तो उन्होंने मुझे उठाया।

“स्टीरियो पर कोई सैक्सी गाना लगाओ !”

उन्होंने कहा तो मैंने स्टीरियो ऑन कर दिया। वॉल्यूम को तेज़ रखने के लिये कहने पर मैंने वॉल्यूम को काफी तेज़ कर दिया।

“अब तुम नाचो !” उन्होंने कहा। मैं चुपचाप खड़ी रही। मैं असमंजस में थी। समझ में नहीं आ रहा था कि मुझे क्या करना चाहिये।

“तुम बहुत अच्छा नाचती हो ! मैंने कई बार देखा है तुम्हें नाचते हुए।”

“लेकिन यहाँ?”

“क्यों यहाँ क्या प्रॉब्लम है? मैं देखना चाहता हूँ तुम्हारे जिस्म की थिरकन।”

मैं धीरे-धीरे वेस्टर्न म्यूज़िक पर थिरकने लगी। अंदरूनी कपड़े नहीं होने के कारण मेरे मम्मे उछल रहे थे और मेरा ध्यान डाँस पर कम और अपनी उस मिनी स्कर्ट पर था कि नाचते हुए मेरी चूत उनकी नजरों के सामने ना जाये।

“अपने उन दोनों मम्मों को जोर से हिलाओ। खूब शानदार हैं ये दोनों बूब्स तुम्हारे !” मैं उनकी पसंद का ख्याल रखते हुए अपने मम्मों को हिलाने लगी।

“अब नाचते-नाचते अपने कपड़े उतार दो ! अपने सैक्सी सैंडल छोड़कर बाकी सारे कपड़े उतार देना। स्ट्रिपटीज़ जानती हो?” उन्होंने मुझसे पूछा।

“हाँ !” मैं उनकी बातों से हैरान हो रही थी। उन पर कुछ तो शराब का और कुछ खुले आज़ाद माहौल का नशा चढ़ा हुआ था।

“चलो मेरे सामने स्ट्रिपटीज़ करो !” कहते हुए उन्होंने अपने गाउन को खोल कर अलग कर दिया। गाउन के नीचे वो बिल्कुल नंगे थे। मैं नाचना छोड़ कर मुँह फ़ाड़े उनके लंड को देख रही थी।

“अब्बू जान.. ये सब ठीक नहीं है !” मैंने उनसे कहा।

“क्या ठीक नहीं है?”

“यही जो आप कर रहे हैं या करना चाहते हैं।”

“क्यों.. इसमें क्या बुराई है। तुम ही तो निकाह के पहले से ही मुझ से चुदवाना चाहती थी !” उनके मुँह से इस तरह की गंदी बातें सुन कर मैं शर्म से गड़ गई।

“जी…जी वो.. उस समय की बात और थी ! तब मैं आपकी सेक्रेटरी थी।”

“तो?”

“आज मैं आपके बेटे की बीवी हूँ।”

“लेकिन पहले तू मेरी सेक्रेटरी है। यहाँ पर तू मेरी सेक्रेटरी बन कर आई है… मेरे बेटे की बहू नहीं ! और सेक्रेटरी का काम होता है अपने एंपलायर को खुश रखना। देखा नहीं यहाँ मौजूद दूसरी सेक्रेटरियों को!”

“क्या हो गया है आज आपको?” मैंने थूक निगलते हुए कहा।

“मुहब्बत ! तुझे आज जी भर कर मुहब्बत करना चाहता हूँ।” आज ससुर जी के मुँह से इस तरह की बातें सुनकर अजीब सा लग रहा था।

कहानी जारी रहेगी।

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