चूचियों से रगड़कर

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बदरू मियाँ एक दिन पनघट पर खड़े थे कि उन्होंने एक कंटीली युवती को पानी भरते देखा। उनके मुँह में पानी आ गया तो उन्होंने कहा:

काश मैं घड़ा होता, और तेरी चूचियों से रगड़कर तेरे सिर पर चढ़ा होता।

लड़की ने तपाक से जवाब दिया. अगर तू घड़ा होता, मेरी चूचियों से रगड़कर मेरे सिर पर चढ़ा होता, तो कोई तुझे फोड़ देता, और तू नाली में पड़ा होता।

बदरू मियाँ की झाँटें फुँक गईं, एक लौंडिया की यह मजाल कि वह घटिया शेरों के सरताज के सामने शेर कहने की जुर्रत करे, तो उन्होंने मूँछों पर ताव दे कर:

हाँ मैं घड़ा होता तो तेरी चूचियों से रगड़कर तेरे सिर पर चढ़ा होता, और कोई मुझे फोड़ देता तो मैं नाली में पड़ा होता जानेमन कभी तो तू वहाँ मूतने आती


चूची तेरी नर्म नर्म और, निप्प्लों पे आई जवानी.. गदराये से चूतड़ तेरे, गाण्ड तेरी मस्तानी.. झाँट तेरी घुँघराली जानू, चूत पे चिप चिप पानी.. चाटूँ इसको, चूसूँ इसको, सूंघू इसको रानी.. लण्ड मेरा तन्नाया, पाकर इसकी गन्ध सुहानी.. आओ चोदें रगड़ रगड़ कर, साथ में छोड़ें पानी…!


कुंवारी कलि ना चोदिये, चूत पे करे घमंड; चुदी चुदाई चोदिये, जो लपक के लेवे लंड!

प्रस्तुति- आर के शर्मा

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