गांड मराने का पहला अनुभव-4

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अब तक की मेरी इस सेक्स कहानी में आपने पढ़ा था कि प्रकाश भाईसाब की दूकान में ही सलीम ने मेरी गांड मार ली थी.

अब आगे:

मैं सलीम का थोड़ा सा परिचय दे दूं. मुझे तो आप जान ही गए हो. मैं अभी सलीम से गांड मराते समय मस्त लौंडा था. सलीम भाई मुझसे लगभग चार साल बड़े रहे होंगे. मैं अभी भी पढ़ रहा था, जबकि वे पढ़ाई छोड़ चुके थे. उनका पढ़ाई में मन नहीं लगता था, सो काम सीख रहे थे. इसमें कमाई के साथ कुछ मजा भी मिल जाता था.

फिलहाल वो प्रकाश की दुकान पर लगे थे. देखने में वो गोरे हैं … उनके तीखे नाक नक्श हैं तोते सी नुकीली नाक, पतले गुलाबी होंठ और कद में मुझसे ऊंचे हैं … मैं उनके कान तक पहुंच पाता हूं. देखने में दुबले तो नहीं, छरहरे हैं. मेरी तरह ही गांड मराने का शौक रखते हैं. कई लौंडों से गांड मराई है, गांड मारने की भी इच्छा रखते हैं … पर जैसी उनकी शोहरत है, वे गांड मार लेते हैं … पर उन्हें पता ही नहीं लगता कि लौंडे की गांड में लंड गया कि नहीं.

इस बार मेरी गांड मारते समय जब मैंने उन्हें गांड के छेद की जानकारी दी, तो वे झेंपे झेंपे से थे, साथ ही मेरे बहुत शुक्रगुजार थे. उन्होंने मुझसे कहा भी- भैया … तुमने मुझे गांड मारना सिखा दी … मैं हमेशा याद रखूंगा.

वे लंड का पानी निकल जाने के बाद उठ कर आंगन में गए, अपना लंड धो आए.

फिर आकर बोले- अब तुम्हें मेरी मारना पड़ेगी. मैंने कहा- मैं अभी चिकना लौंडा हूं, तुम बड़े हो.

पर वे माने ही नहीं. अपनी गांड खोल कर औंधे लेट गए. मैंने उनकी गांड में लंड डाला, पर उनके चूतड़ मोटे थे. वे तनिक उठ कर घोड़ी से बन गए … पैर भी चौड़ा लिए. इससे उनका छेद साफ़ दिखने लगा. मैंने अपना लंड डाल दिया और धक्के देने लगा. कोई ज्यादा जोश नहीं था … हां लंड खड़ा हो गया था.

मशीनी रूप से मैं बड़ी देर तक लंड गांड में अन्दर बाहर करता रहा. वे इसे मेरा स्टेमिना समझे. उन्हें लौड़ा पिलवाने में कोई दिक्कत नहीं आई. शायद वे गांड मरवाने के आदी थे. उन्हें मराने में मजा आता था.

मैं लंड ठोक रहा था तो वो मजे ले रहे थे- वाह भैया … वाह … बहुत सही. ये कह कर सलीम मेरा हौसला बढ़ाते रहे- आह … फाड़ डालो फाड़ डालो … और जोर से … आह रगड़ दो … मेरी लाल कर दो.

शायद वो मुझे कच्चा खिलाड़ी समझ कर बहला रहे थे. मगर मैं लगा रहा.

फिर हम दोनों कुछ देर बाद अलग हो गए. मेरा पानी उनकी गांड में ही निकल गया था. उसके बाद मैं अपना झोला उठा कर घर आ गया.

मेरे घर में एक साईकिल थी, जो बहुत दिनों से रखी थी. मैंने उसे गर्मियों में चलाना भी सीख लिया था. पुरानी कबाड़ा साईकिल थी … कभी मेरे चाचा उसे चलाते थे … मगर अब वे उसे कम इस्तेमाल करते थे.

चूकि इस बार मेरा इंटर बोर्ड का एक्जाम था. अब फरवरी का महीना आ गया था … इसलिए चाचा ने अपने एक मित्र टीचर से मुझे फ्री में एक महीने ट्यूशन देने को मना लिया था.

टीचर जी शहर के दूसरे सिरे पर रहते थे. उनके घर तक आने जाने के लिए मैंने साईकिल ठीक कराना चाही. उसके पहियों में हवा नहीं थी, पैडल व ब्रेक में भी शिकायत थी.

मैं साईकिल ले जाकर प्रकाश भाई साहब की दुकान पर डाल आया. उन्होंने कहा कि इसे ठीक करने में दो दिन लगेंगे.

दो दिन बाद मैं दुकान पर शाम को पहुंचा. उस समय करीब छह बजे थे.

मुझे देखते ही प्रकाश भाई साहब ने बताया कि साईकिल ठीक हो गई.

मैंने पूछा- कितना पैसा देना पड़ेगा. वे बोले- कोई सामान नहीं डालना पड़ा … पहियों के टायर ट्यूब सही थे … केवल बाल्व बदले हैं … अब हवा नहीं निकलेगी. कल भरी थी … अभी तक जहां की तहां है. पैडल व ब्रेक मैंने ठीक कर दिए हैं … ग्रीसिंग भी कर दी है, अब साईकिल राइट है. मैंने फिर से पूछा- कोई चार्ज? वे मुस्करा कर बोले- चाचा को मेरा नमस्कार कह देना, कोई चार्ज नहीं.

मैं साईकिल ले जाने लगा, तो प्रकाश भाई साहब बोले- टेस्टिंग कर लो.

उन्होंने सलीम को आवाज दी- सलीम … जा भैया के साथ चला जा … पन्द्रह पच्चीस मिनट साईकिल इनके साथ चला कर देख ले … कोई शिकायत आए, तो बताना. रिंच पाना जेब में डाल ले; अगर कमी लगे और तेरे बस में हो, तो वहीं ठीक कर देना … वरना वापस ले आना. और यदि ठीक हो, तो साईकिल व भैया को घर भेज कर तू अपने घर चला जाना.

सलीम साईकिल सीट पर बैठने लगा और मुझसे बोला- आप कैरियर पर बैठ जाना. मैंने कहा- साईकिल मैं चलाऊंगा, तुम पीछे बैठो … बाद में तुम चला लेना. वे दोनों हंसने लगे.

प्रकाश भाईसाब बोले- अच्छा ठीक है.

मैं साईकिल चलाते हुए मेला ग्राउंड की ओर की सड़क पर चला. उधर सड़क खराब थी, ऊंची नीची थी. मैं हांफने लगा … पर चलाता रहा.

सलीम ने कई बार कहा, पर मैं मना कर देता. मैंने नई साईकिल चलाना सीखी थी और आज बहुत दिन बाद चलाई थी, इसलिए मैं उत्साह में था.

मेला ग्राउंड में दीवाली के करीब पन्द्रह बीस दिनों तक मेला भरता था, बाकी दिनों खाली पड़ा रहता. बहुत सी बरामदेनुमा दुकानों की गैलरी खाली रहती थी. उसे जुआ खेलने वाले, गांजा खींचने वाले इस्तेमाल करते थे. हम जैसे लौंडे यहां गांड मराने मारने भी आते थे.

हम लौंडे यदि कोई चिढ़ाने को कह देते थे कि मेला ग्राउंड चलोगे … तो सामने वाला या तो गालियां देने लगता या चुप होकर मुस्कराने लगता. पर हकीकत में कई लौंडे मेरे दोस्त यहां लाए गए और उन्होंने लंड का मजा लिया था और अब भी लेते रहते हैं.

मेला ग्राउंड तक आते आते मैं थक गया था. मैं साईकिल से उतर कर एक बरामदे के फर्श पर बैठ गया.

मैं बोला- थोड़ा सुस्ता लूं, तो चलता हूं … साईकिल तो राईट है. सलीम बोला- अब मैं चलाऊंगा … तो मुझे भी समझ में आ जाएगी. तुम्हें तो कोई कमी तो नहीं लगी न?

मैं ना में सर हिला दिया.

सलीम गले में एक साफी लपेटे था. उसने उसे वहां बिछा दी और बोला- भैया बैठो … आप थक गए हो, थोड़ा लेट लो. मैं तो कह ही रहा था कि मैं चलाऊं, मगर आप माने ही नहीं.

मैं उस साफी पर लेट गया. कुछ देर बाद मेरी सांसें ठीक हो गईं. तब तक लगभग सात बजे शाम का टाईम हो गया था. चूंकि फरवरी का महीना था तो अंधेरा सा हो गया था. इलाका तो पहले से ही सुनसान था.

सलीम बोला- अब चलें, शाम हो गई. मैं उसकी तरफ करवट से लेटा था. मैंने कहा- अभी चलते हैं.

मैं औंधा हो गया और अपनी टांगें चौड़ी कर लीं. मेरा चेहरा सलीम की तरफ था. मैंने दोनों हाथ के पंजे एक के ऊपर एक रख कर हथेलियां जमीन की तरफ रख ली थीं. मैंने उन पर अपना दाहिना गाल टिका लिया … मैं एकदम रिलैक्स लेटा था.

सलीम मुझे ऐसे लेटे देख कर बोला- ज्यादा थक गए … चढ़ाई बहुत थी और ऊपर से सड़क भी खराब. फिर अभी तुम नए हो, डबल सवारी की तुम्हें आदत नहीं थी.

मैं- हां बहुत दिनों बाद साईकिल चलाई … मगर तब भी मैं ले तो आया. सलीम- हां इसीलिए तो मैं कह रहा था कि मैं चलाऊं, आप माने नहीं. ठीक है थोड़ा और आराम कर लो. पैंट के बटन खोल लो, फिर लेटे रहो … इससे पेट ढीला हो जाएगा. मैंने ऐसा ही किया.

थोड़ी देर बाद फिर सलीम कहने लगा- चलो चलें, रात हो जाएगी … यह जगह ठीक नहीं है. सुनसान है. रात को गलत लोग आते हैं. अपन दोनों की गांड मारेंगे.

ये कह कर उसने मेरे चूतड़ पर हाथ मारा. मेरे पैंट का बटन खुला था, उसका हाथ खिसक गया, तो मेरे चूतड़़ नंगे हो गए. मैं वैसे ही लेटा रहा.

सलीम- भैया मुझे ललचा रहे हो? मैं- तो निपट लो.

मेरे इतना कहते ही वह मेरे ऊपर चढ़ बैठा. लंड खोलने के पहले बोला- फिर मत कहना कि मैं चढ़ गया. मैं हंस कर उसे हरी झंडी दे दी.

उसने मेरा पैंट और नीचे खिसकाया. अपना लंड निकाल कर थूक लगा कर मेरी गांड में टिका दिया. मैं- अरे सलीम … मेरी गांड पर भी तो थूक लगा … क्या सूखी मारेगा.

तब उसने दुबारा ढेर सारा थूक मेरी गांड पर मला और लंड टिका दिया. मैंने टांगें चौड़ी कर लीं. इस बार उसकी कोशिश सही थी. वो हाथ से पकड़ कर लंड मेरी गांड में डाल रहा था. धीरे धीरे उसने पूरा लंड गांड में डाल दिया, फिर दो-तीन झटके दिए तो लंड सैट हो गया.

अब सलीम मस्त होकर धक्के देने लगा. मगर वो चूतिया था. उसे पता ही नहीं पड़ा कि कब लंड निकल कर छेद के नीचे हो गया. मैंने कहा- रुक कर देख तो ले … लंड कहां है?

उसने बैठ कर देखा, तो शर्मिंदा हो गया. उसने फिर थूक लगाकर लंड अन्दर डाला. दो तीन झटके दिए. अबकी बार वो बहुत धीरे धीरे पेल रहा था.

मैंने कहा- रुक … अब मेरा काम देख.

वह लंड डाले चुपचाप लेटा था, मैंने गांड के झटके शुरू किए. अपनी गांड बार बार सिकोड़ी फैलाई, सिकोड़ी फैलाई, चूतड़ उचकाए, चूतड़ के धक्के दिए. मुझे मजा आने लगा. मगर वो इतने में ही झड़ गया और अलग हो गया.

वह समझ गया कि वो टेस्ट में फेल हो गया है; इसलिए शर्मिंदा हो गया था. उसने खुद कहा- गलती फिर भी हो ही गई … आगे और अच्छा करूंगा.

हम दोनों उठ गए उसने अपनी साफी से लंड पौंछा. मेरी गांड को भी साफ़ किया और हम दोनों ने अपने अपने कपड़े सही कर लिए. अब साईकिल वो चला रहा था.

वो रास्ते में कहने लगा- भैया, आप गांड मराने के उस्ताद हो. मैंने तुमसे ज्यादा मराई होगी, कई लौंडों से मराई, पर जितनी तरकीबें आप जानते हो. जितना मजा आप देते हो, मैं नहीं जानता. कहां से सीखा … आपका गुरू कौन है?

मैं हंस दिया, कुछ कहा नहीं.

मेरा घर आ गया था. सलीम साईकिल से उतर कर चला गया.

इस घटना को कुछ समय बीत गया. अब मैं बाईस वर्ष का जवान हो गया था. अब मैं इंटर पास करने के बाद कस्बे से बाहर एक दूसरे बड़े शहर में पढ़ने चला गया था. मैं बी.एससी. का स्टूडेंट था. सर्दियों में अपने शहर आया था.

एक दिन शाम चाचा के मित्र आने वाले थे. उनके लिए शराब के ठेके से शराब की बोतल लानी थी. ठेकेदार चाचा मेरे चाचा के मित्र थे, वे भी इस सभा में आमंत्रित थे. मुझे उन्हें निमंत्रण भी देना था. पार्टी के लिए कोरमा का पहले से सुबह ही आर्डर दे दिया था, बस लेने जाना था व तंदूरी रोटियां भी लाना थीं.

मैं ठेके से बोतल लेने के बाद होटल पर गया. ड्योड़ी दरवाजे बाजार के पास उनका होटल था. होटल तो टीन की चादरों बल्लियों से बना टेम्परेरी सा था, पर कोरमा कबाब वे बहुत अच्छा बनाते थे. मैं सामान बंधवा ही रहा था कि वहां गल्ले पर सलीम भाई बैठे दिखे. वे अब पहले से ज्यादा जवान दिखने लगे थे. पहले से हैल्थ भी बेहतर हो गई थी. पहले तो वे मुझे पहचान नहीं पाए, व्यस्त भी थे.

मैंने सामान बंधवा लिया और पेमेंट करके चलने लगा. मगर मुझसे नहीं रहा गया तो मैंने आवाज देते हुए कहा- आप सलीम भाई हैं न … सलाम.

वे मेरी आवाज सुनकर खड़े हो गए. मुझे देखने लगे … अब भी शायद पहचान नहीं पा रहे थे. मैं बदल भी गया था. एक दुबले पतले लड़के से भरा हुआ स्मार्ट जवान लगने लगा था. मैं मेरे कॉलेज के साथी आर्मी में जाने के कम्पटीशन की तैयारी में लगा था. उस तैयारी ने मेरी रंगत बदल दी थी. मैं लम्बा स्वस्थ जवान हो गया था, मेरा चेहरा भी बदल गया था.

मैंने सलीम को अपना नाम बताया.

वे पहचान गए और बोले- अरे भैया बहुत दिनों बाद मिले हो … तो एकदम पहचान नहीं पाया … माफी चाहता हूं. मैं- मैं अभी जल्दी में हूं, मैं बाहर रहता हूं … दो दिन के लिए आया हूं, बाद में मिलते हैं. फिर मैं चला आया.

मुझे मेल करके बताएं कि मेरी गांडू सेक्स कहानी कैसी लग रही है? आपका आजाद गांडू कहानी जारी है.

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