असीमित सीमा-1

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लेखक : जवाहर जैन

अन्तर्वासना के सभी पाठकों को नमस्कार। इससे पहले लिखी मेरी सारी कहानियों को आपने सराहा और अपनी प्रतिक्रिया देकर मेरा हौसला बढ़ाया, इसके लिए धन्यवाद। आपसे प्रोत्साहन पाकर ही मैंने अपनी कहानियों का सिलसिला आगे बढाने का निर्णय लिया है। मैं अब आपको जो कहानी बताने जा रहा हूं, वह मेरी शादी से पहले की है। एक सफर के दौरान मैंने एक लड़की को पटाकर उससे सैक्स किया था, उस घटना पर आधारित मेरी इस कहानी में भी अस्सी फीसदी बातें सत्य हैं। जो बीस फीसदी कल्पना कहानी में शामिल की है वह कहानी की तारतम्यता को बनाए रखने के लिए जरूरी लगी। पर इसमें जगह व स्टेशन के नाम का उल्लेख नहीं किया है।

चलिए अब मुद्दे पर आते हैं।

हम सभी का रिजल्ट आ गया था और पढ़ाई के बाद छुट्टियों में घूमने जाने की योजना बनी। मेरे साथ बड़ी परेशानी यह थी कि मेरे पिता का खुद का व्यवसाय था। इसलिए वे या मां घूमने के लिए हमारे साथ नहीं जा पाते थे। हाँ, इसके लिए पैसा मुझे पर्याप्त मिल जाता था। मेरे सभी दोस्त अपने परिवार के साथ टूर पर निकल गए। मैंने भी अपने घर वालों से घूमने जाने को कहा।

उसी समय हमारे समाज के कुछ लोग राजस्थान के हमारे एक धार्मिक स्थल जा रहे थे। सो मेरे मां पिता ने मुझे भी उनके साथ जाने कह दिया। मैंने पहले तो वहाँ जाने ना नुकुर की, फिर सोचा कि कहीं ना जाने से तो यही अच्छा है तो मैंने हाँ कर दी।

मेरे पिता ने उस टूर के आपरेटर को मेरे आने जाने व खाने का खर्च देकर मेरा नाम भी वहाँ बुक करा दिया। हमें अगले दिन ही निकलना था। निश्चित समय पर मैं स्टेशन पहुँचा। एसी के फर्स्ट क्लास में मेरा रिजर्वेशन था। मुझे मेरे कूपे व बर्थ का नम्बर दे दिया गया। मैंने अपने कूपे में पहुँचकर देखा कि इसमें दो लड़कियाँ हैं। कूपे की चौथी बर्थ हमें टूर पर ले जाने वाले संचेतीजी की थी। इस तरह इस कूपे में हम चारों को रहना था।

कुछ ही देर में संचेतीजी आए। उन्होंने बताया कि इस टूर में हम 20 लोग हैं। दोनों लड़कियों में से एक के परिजन तो साथ आए हैं पर दूसरी के घर वाले साथ नहीं आए हैं, इसलिए इसकी देखरेख का जिम्मा उन पर ही हैं।

संचेतीजी बोले- यार जस्सू, मुझे टूर के दूसरे लोगों के सामान का इंतजाम करना है इसलिए इसकी देखरेख का जिम्मा तुम पर है। मैंने अपनी मदद के लिए ही तुम्हें अपने साथ में रखा है।

दोनों लड़कियों को देखकर मैं वैसे ही गदगद था। अब उनमें से एक की देखरेख का जिम्मा मिलने पर मेरी बांछें ही खिल गई। कुछ ही देर में ट्रेन ने स्टेशन छोड़ दिया।

संचेतीजी यह बोलकर निकल गए- देख कर आता हूँ कि सब ठीक से बैठ गए हैं।

लड़कियों ने अपनी बात शुरू कर दी थी।

अपने सामने बैठी लड़की से मैंने पूछा- क्या नाम हैं आपका?

यह लड़की बहुत हंसमुख थी, मुस्कुराते हुए बोली- मेरा नाम तो सीमा है, मम्मी मेरे साथ आई हैं। संचेतीजी ने आपको जिन्हें देखने कहा हैं वे ये हैं और इनका नाम श्रद्धा है।

यह बोलकर दोनों हंसने लगी। श्रद्धा मजाक में उसे चिकोटने लगी। दोनों गजब की थी, पर श्रद्धा के बदन का आकार और चेहरा किसी को भी बिना कुछ बोले अपनी ओर खींच सकता था। दोनों का रंग गोरा था, और उम्र व हाइट भी करीब-करीब बराबर ही थी।

मैंने अब श्रद्धा से कहा- आप हमारे शहर की तो लगती नहीं हैं, कहाँ से हैं आप?

वह बोली- संचेती अंकल मेरे कजिन के मामा हैं। हम नारायणपुर में रहते हैं। इन्होंने मेरे पापा से टूर पर जाने की बात की, पापा मम्मी को काम था, वे नहीं आ पाए, पर जिद के कारण मुझे भेज दिया। मैंने कहा- अरे वाह, मुझे भी जिद करने के कारण ही आने मिला है।

अब तक चुप बैठी सीमा ने कहा- चलो दोनों जिद्दी हैं अब दिखाओ अपनी जिद।

हाँ, एक बात मैं कहना भूल गया था कि सीमा ने लम्बी स्कर्ट-शर्ट पहनी थी जबकि श्रद्धा ने जींस-टीशर्ट।

कुछ देर यूँ ही चला। पहले उन दोनों के बीच शुरू हुई बात में अब मैं भी शामिल हो गया था। अब बात भी अलग-अलग विषय पर हो रही थी। पढ़ाई से शुरू हुई बात अपने शौक, फिल्म फिर घुमा फिराकर अपोजिट सैक्स पर आ टिकी। इस मामले में सीमा ज्यादा मुखर थी, वह अपने कालेज के लड़कों की शरारत और इससे लड़कियों को होने वाली परेशानी का बखान कर रही थी।

जहाँ जरूरी होता, मैं अपनी ओर से लड़कों का पक्ष रखता।बात के दौरान ही मैंने महसूस किया कि यदि ईश्वर की दया हुई तब भी अभी के पहनावे के दृष्टिकोण से मुझे सीमा की चूत तक पहुँचना आसान लग रहा था, यानि उसके स्कर्ट के नीचे से हाथ डालकर पैन्टी को हटाना भर हैं, पर श्रद्धा की चूत को छूने में उसकी जींस की बटन व चैन तो खोलना ही पड़ता। इसलिए अभी मैंने सीमा पर ध्यान केन्द्रित किया। उधर सीमा लड़कों को गलत साबित करने में ही पूरा जोर लगाए जा रही थी।

मैंने उससे कहा- लड़कियाँ भी देखो, कैसी कैसी पोशाक पहनकर आती हैं मानो कालेज नहीं, किसी फैशन शो में आई हों।

सीमा बोली- अच्छा, आप यह बताइए कि हम क्या पहनें जिससे लड़के हूटिंग न करें।

मैं बोला- साधारण सलवार सूट या साड़ी पहनकर जाया करिए ना।

अब श्रद्धा बोली- वाह, इस ड्रेस में क्या खराबी हैं?

वह अपना जींस टीशर्ट दिखाती हुई बोली- यह भी तो लड़कियों के बदन को अच्छे से ढक लेता है ना।

मैं बोला- और यह स्कर्ट? अब तो बोलो सीमा !

मुझे लगा सीमा को यह बात खराब लगी तो वह ‘आती हूँ’ बोलकर बाहर चली गई। मैं भी उसे देखने उसके पीछे निकला, वह ट्रेन की टायलेट में गई। मुझे भी पेशाब लगी थी सो उसके सामने वाली टायलेट में चला गया। बाहर निकलते ही हम दोनों की नजरें मिली। उसका गेट भी मेरे साथ ही खुला।

बाहर निकलते हुए वह बोली- अरे, आप वहाँ? मेरे पीछे तो आप इस तेजी से बढ़े थे कि मेरे साथ ही रहेंगे।

मैंने हंसते हुए कहा- आपके साथ वहाँ जाता तो आप गुस्सा हो जाती ना !

“वाह, अब आप वहाँ गए तो मैं कहाँ गुस्सा हुई?” सीमा बोली।

“तो मैं आपके साथ जाता तब भी आप गुस्सा नहीं होती?”

वह बोली- यह रेलवे की जगह है, आपके जाने से भला मैं क्यूँ गुस्सा होती।

“अच्छा, अब चलिए !” मैंने कहा- एक बार आपके साथ भी जाकर देखता हूँ।

वह बोली- चलिए फिर !

यह बोलकर सही में वह टायलेट के अंदर हो गई।

मैं कहाँ रूकने वाला था, मैं भी उसके पीछे टायलेट में आ गया। हम दोनों ट्रेन की एक ही टायलेट में थे।

कंपकंपाती आवाज में सीमा बोली- अब?

मैं बोला- अंदर आने के बाद, अब दरवाजा बंद करते हैं ना।

यह बोलकर मैंने दरवाजा बंद कर लिया।

वह बोली- अब?

मैं बोला- अब मैं तुमसे एक रिक्वेस्ट करूंगा।

वह बोली- क्या?

अब मेरा हाथ उसके बूब्स से जा लगा, मैंने कहा- इसे पीने दीजिए।

वह बोली- बस सिर्फ इतना ही?

उसके मुंह से यह निकलते ही मेरा दूसरा हाथ उसकी चूत पर पहुँच गया, मैं बोला- यह भी चाहिए।

उसके दोनों आग्नेय स्थानों चूत और चुच्चों पर मेरे हाथ पहुँचकर अपना काम करने लगे थे। सो वह बिना कोई एतराज किए सरक कर मेरे और पास आ गई, और बोली- पर यहाँ कहाँ करते बनेगा?

मैं बोला- यहाँ करेंगे नहीं, बस देखना है।

यह बोलकर मैंने उसकी शर्ट ऊपर की, नीचे मुझे ब्रा में कैद मस्त टाइट स्तन नजर आए। अब मैंने ब्रा को साइड करके कप को बाहर किया। उसके छोटे गुलाबी निप्पल टाइट कप के ऊपर तने हुए थे। मैंने उन्हें एक एक चूसना शुरू किया। दोनों निप्पल को चूसने के

बाद मैं नीचे बैठा और उसकी स्कर्ट को ऊपर कर नीचे नीले रंग की उसकी पैन्टी को नीचे किया।

उसने शायद आजकल में ही झांटें साफ की थी। फ़ुद्दी की लकीर गहरे लाल रंग की थी और बहुत ज्यादा फुली हुई थी। मैंने चूत को भी चाटा।

वह भी अब चलने की जिद करने लगी, तो अपना काम बीच में छोड़ मैंने अपनी सीट पर चलने का निर्णय लिया।

टायलेट से हमें एक साथ बाहर निकलते कोई देख न ले इसलिए उसे दरवाजे के पीछे करके मैं बाहर निकला।

इत्तफाक से यहाँ कोई नहीं था। मैंने टायलेट के बाहर से ही उसे ‘जल्दी आओ’ बोलकर अपने कूपे की ओर चल पड़ा।

मैं बैठा, थोड़ी देर बाद ही सीमा भी आ गई।

दोनों के पहुँचने पर श्रद्धा ने सीमा से कहा- क्या बात है, मेरी वजह से आपको यहाँ दिक्कत हैं क्या, जो आप दोनों बाहर चले गए थे?

सीमा हंसकर बोली- हाँ, आपके सामने हम नंगे कैसे होते, इसलिए ये मुझे टायलेट में ले गए थे।

सीमा की इस बेतकल्लुफी से मैं हड़बड़ा गया और बोला- अरे नहीं, मैं सामने वाली टायलेट में गया था।

श्रद्धा बोली- जस्सूजी, आप लोगों को देखने मैं उस तरफ गई थी, मुझे भी यूरीनल जाना था इसलिए आपके सामने वाली टायलेट में तो मैं गई थी, मुझे उसी समय लग गया था कि सामने वाली टायलेट में आप दोनों हैं।

अब सीमा की भी हालत खराब हो गई। हम दोनों अलग-अलग तर्क देकर श्रद्धा को यह बताने का प्रयास करते रहे कि हमने वैसा कुछ नहीं किया है, पर श्रद्धा नहीं मानी।

उसने साफ साफ़ पूछा- तुम लोगों ने आपस में क्या किया है, मुझे बताओ…

कहानी जारी रहेगी।

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