सभी को मौका मिलता है

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प्रेषक : रौनक मकवाना

मेरा नाम रौनक है, मैं मुंबई का रहने वाला हूँ। यह कहानी मेरे सपनों और मेरी हकीकत की हैं। आशा करता हूँ आप सभी पाठकों को मेरी कहानी पसंद आए। मैं स्कूल तक तो बहुत ही भोला और पढ़ाकू किस्म का लड़का था, पर कॉलेज में आते ही मेरी दोस्ती कुछ ऐसे लोगों से हुई कि मुझे जीवन में एक नई राह दिखाई देने लगी। उस वक्त से मैं खुले सांड की तरह जहाँ लड़की देखी, वहीं जाल फ़ेंकना शुरु कर देता।

उस वक्त तो मुझे पता भी नहीं था कि वैसी हरकतें मुझे भारी पड़ सकती है। पर भगवान की दुआ से ऐसा कुछ हुआ नहीं उसका एक कारण यह भी था कि मैं बिल्कुल बच्चे जैसा लगता था। बहुत ही क्यूट, रंग एकदम गोरा। चेहरे से मासूमियत टपकती। इसीलिए सभी लड़कियाँ मेरी हरकतों को नजरअंदाज कर देती।

लगातार दो साल कोशिश करने पर भी कुछ हाथ नहीं आया पर पढ़ाई में कटौती शुरु हो गई थी।

उसके बाद कुछ कारणों से मुझे गुजरात अपने गाँव आना पड़ा। मुंबई में कॉलेज करने का सपना सपना ही रह गया।

फिर भी मैंने हार नहीं मानी।

कॉलेज का पहला दिन, अंग्रेजी की क्लास, सर कुछ सवाल पूछ रहे थे। मैं पहले से ही अंग्रेजी स्कूल में पढ़ा हूँ तो बाकियों से कुछ ज्यादा अंग्रेजी आती थी। बाकी सब गुजराती मीडियम में पढ़ते थे।

गलती से मैंने एक बार जवाब दिया तो हर सवाल मुझ ही से करने लगे।

मैंने भी ठान ली कि इसे बन्द करवा कर ही दम लूंगा।

फिर सर ने एक और सवाल पूछा- i saw her .. इसके आगे जो मन में आये वह लगाकर इस वाक्य को हो सके उतना बड़ा करो।

मैंने मौका देख कर जोरदार चौका मारा- i saw her, at my home, in the bathroom, with the towel, on her body, full of water, looking at me, i was so glad to see her, but as soon as i tried to approach her i woke up

यह सुनकर सभी लोग मुझे देखने लगे पर तब मुझे अंदाजा नहीं था कि मैं क्या कह गया। सर ने भी थोड़ा डाँटा और छोड़ दिया।

उस दिन से सभी लड़के लड़कियाँ मुझे नाम से पहचानने लगे पर मैं किसी का भी नाम नहीं जानता था। तभी मैं ऐसे कारनामों के लिये मशहूर हो गया।

एक बार मैं अपने सिनियर्स के साथ फ़िल्म देखने गया था कि तभी रेशमा ने मुझसे अपना नंबर मांगा। मैंने अपने मूड के हिसाब से कहा- मैं सिर्फ़ उन्हें नंबर देता हूँ जो मुझे अपना नंबर दे।

तो उसने भी अपना नंबर दे दिया।

तब तक उसके क्लास वालों के पास भी रेशमा का नंबर नहीं था।

फ़िल्म देखकर घर आया तो रात को करीब 11 बजे रेशमा का मैसेज आया- क्या मैं तुम्हे कॉल कर सकती हूँ?

मैंने ज्यादा कुछ सोचे बिना हाँ कर दी और रात भर उससे बातें की। उस दिन मेरा जन्मदिन था और मजाक मजाक में मैंने उससे उपहार के तौर पर एक चुम्मी मांग ली।

दूसरे दिन मैं उसे फ़िल्म दिखाने ले गया ‘इश्किया’

आधी फ़िल्म तो ऐसे ही निकल गई, फ़िर मैंने पूछा कि हाथ पकड़ कर बैठने में तो कोई दिक्क्त नहीं है ना?

उसने ना में सिर हिलाया और फ़िर मैंने उसका हाथ पकड़ लिया। तभी फ़िल्म में विद्या और अरशद वारसी किस कर रहे थे।

मुझे नशा सा छाने लगा, मैंने रेशमा से कहा- मेरी किस मिलेगी मुझे?

उसने आश्चर्य से मेरी तरफ़ देखा और बोली- यहाँ कैसे कर सकते हैं?

मैंने कहा- क्यों नहीं कर सकते?

और तुरंत मैंने उसके होंठ पर एक छोटी चुम्मी ले ली। फ़िर 2-3 बार किस करने के बाद वहाँ के कर्मचारी टोर्च से रोशनी मारने लगे। मैं थोडी देर बैठा रहा फ़िर एक दोस्त को फ़ोन पर एक कमरे का इन्तजाम करने को कहा।

उसने कहा- आज तो नहीं हो सकेगा।

फ़िर हम वहाँ से निकल गए। घर आकर कुछ अच्छा नहीं लग रहा था। उसका 34-28-36 आकार का बदन मेरी नजरों के सामने था और मैं कुछ नहीं कर सका।

दूसरे दिन कॉलेज में उसे जल्दी बुला लिया और जी भर कर चुम्मा चाटी की। पर मेरा मन तो उसे चोदे बगैर शांत होने वाला नहीं था। मैंने अपनी पूरा जोर लगाया, हर जुगाड़ लगा लिया कि एक कमरा मिल जाए पर कुछ हाथ न आया।

और वहाँ वो भी तड़प रही थी मेरे साथ वक्त गुज़ारने के लिये।

अगले ही दिन उसने मुझे सुबह फ़ोन कर के कहा- मेरी एक सहेली अपने बोयफ़्रेंड के घर जा रही है, अगर तुम कहो तो हम साथ चल सकते हैं।

मैंने फ़ौरन हाँ कर दी।

रेशमा की सहेली के बोयफ़्रेंड के घर पहुँचकर मुझे पता चला कि घर में वो अकेला है और उनकी योजना चुदाई की है।

फ़िर रेशमा की सहेली अपने यार के साथ एक कमरे में और हम दोनों एक दूसरे कमरे में चले गये।

हमारे पास ज्यादा समय नहीं था, मैंने कमरे में आते ही रेशमा को पकड़ कर बेड पर पटक दिया। मैं उसके कपड़े निकालने लगा और वो मेरे।

15-20 मिनट तो हमने फ़ोर प्ले में ही निकाल दिए। उसे किस करना बड़ा अच्छा आता था और मुझे उसके वक्ष के साथ खेलने में बहुत मजा आ रहा था। उसके गोरे गोरे बूब्स देखकर मुझे एक अजीब सी चाहत हो रही थी। मैंने सपने में भी कभी इतनी सुंदर ब्रेस्ट नहीं देखी थी।

उसे नंगी देखकर तो मेरे होश ठिकाने पर ना रहे। कुछ देर तो बस उसे घूरता ही रहा। फ़िर याद आया कि कोंडोम तो मैं लाया ही नहीं।

मैंने रेशामा को यह बात बताई तो उसने कहा- चिन्ता मत करो, मैंने अपनी सहेली से हमारे लिये एक पैकेट ले लिया है। ये लो।

कह कर उसने मुझे कोहेनूर कोंडोम का पैकेट पकड़ा दिया।

एक कोंडम निकाल कर मैंने उसे दे कर अपने 7″ लंबे लंड की तरफ़ इशारा कर दिया। वो मेरा इशारा समझ गई और पहले लंड को जी भर कर लोलीपोप की तरह चूसा फ़िर कोंडोम चढ़ा दिया। हम दोनों ही पूरी तरह उत्तेजित थे।

फ़िर भी मैंने उसे तड़पाने के लिये पहले उसकी योनि को चाटा। उसमें मुझे बहुत मजा आया, उसकी सिसकारियाँ बाहर तक जा रही थी।

रेशमा- साले अब चोद भी दे ! कब तक तड़पाएगा?

मैंने कहा- क्यों रांड? किसी और को भी टाइम दिया है?

रेशमा- नहीं मादरचोद, पर अब तू नहीं चोदेगा तो मैं तड़प तड़प कर मर जाऊँगी।

मैंने कहा- साली बहन की लौड़ी, ऐसे नहीं मरने दूँगा, तुझे तो मेरा लंड मारेगा।

कह कर मैंने अपना लंड उसकी छोटी सी चूत पर रख कर धक्का लगाया। पहले धक्के में मेरा लंड आधे से थोड़ा ज्यादा उसकी योनि को चीरता हुआ आगे निकल गया।

वो दर्द के मारे कांप उठी, मैंने किसी तरह उसे संभाला और फ़िर अचानक एक और जोरदार झटके के साथ अपना लंड उसकी चूत में समा दिया, इस बार रेशमा नाखून मेरी पीठ पर गड़ गए और उसकी आँखों से आँसू बह रहे थे।

मैंने उसे चुप किया और धीरे-धीरे धक्के मारने लगा, फ़िर दस बारह मिनट की जोरदार चुदाई के बाद मैंने उसके मुँह के पास अपना लंड रख कर पूरा वीर्य उसके मुह में निकाल दिया।

उसने बहुत ही उत्सुकता से पूरा वीर्य पी लिया और मेरा लंड चाट कर साफ़ किया।

कुछ देर के बाद के बाद मैंने उसे फ़िर चोदना चाहा पर समय ना होने के कारण कुछ ना कर सका।

पर फ़िर मैंने एक दिन मौका देखकर उसे चोद दिया।

वह सब मेरी अगली कहानी में !

आशा करता हूँ मेरी कहानी आपको पसंद आई होगी। कहानी कैसी लगी जरुर लिखियेगा।

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