रद्दीवाला और उसका साथी

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प्रेषक : गाण्डू सनी शर्मा

पाठकों के लण्ड को स्पर्श करते हुए आपका यह प्यार गाण्डू नमस्कार करता है, प्रणाम करता है।

मैं एक बार फिर से अपनी मस्त चुदाई लेकर हाज़िर हूँ।

सर्दी का मौसम है, ऐसे मौसम में चुदाई करवाने का दिल और करता है। सभी जानते हैं कि आजकल मैं जालंधर में रहकर जॉब करने लगा हूँ, मैं अपने ही ऑफिस में खुद से सीनियर के साथ एक ही कमरे में रहता हूँ और वो भी उसकी बीवी बनकर !

उसने मुझे खूबसूरत नाईटी खरीद कर दे रखी है, कुछ आकर्षक ब्रा-पैंटी के सेट भी !

उसका साढ़े सात इंच का मोटा लण्ड रात को मेरे मुँह में और गाण्ड में खेलता है, वो मुझे नंगी सुलाता है बाँहों में और सुबह अगर मुझसे पहले उसकी आँख खुलती है तो फिर सुबह सुबह फिर से मुझे मेरी हसीं गाण्ड को टोनिक देता है, लेकिन रोज़ रोज़ एक लण्ड लेना मेरी फिदरत में नहीं है, मुझे शौक है नए नए लण्ड खाने का, चूसने का, गाण्ड में डलवाने का !

वो जब अपने गाँव जाता है तो मैं उसके पीछे से गैर मर्दों से चुदवाने से परहेज नहीं करता हूँ, पराये मर्द की बाँहों में अलग सा मजा मिलता है, ‘चीटिंग विद पार्टनर’

सभी मेरी चिकनी मुन्नी को चोदते हैं, बार-बार से मुझे लिटाने को उतावले रहते हैं।

ऐसे ही कुछ दिन पहले मुझे उसकी गैरमौजूदगी में नए लुल्लों को चखने का अवसर प्राप्त हुआ। हम जिस जगह किराए पर रहते हैं वहाँ आवाजाही बहुत कम रहती है, गली बंद है और हमारा घर आखिर में है। वहाँ अक्सर एक रद्दीवाला आता था। साथ वाला प्लाट खाली है, बारिश ने इस बार बेहाल किया हुआ है फरवरी के महीने में ही ठंडी ज़ोरों पर है। छत से कपड़े उतारने गया कि नज़र साथ वाले प्लाट में बंदा पेशाब कर रहा था।

ऊपर से मैंने उसके लुल्ले के दर्शन कर लिए, उसने मुझे नहीं देखा, लण्ड को झाड़ते हुए वापस कच्छे में डालते हुए जब देखा तो मेरा तन मचल गया, लाल सुपारा, काला लण्ड था। वो साइकिल लेकर आवाजें लगाता चला गया मेरी नींद चुरा कर !

मैंने सभी अखबारें इकट्ठी करके एक जगह रख ली। अगले दिन बारिश थी, मैंने ऑफिस ना जाने का फैसला लिया। बारिश थी कि रुकने का नाम नहीं ले रही थी। मुझे नंगा सोने की आदत है इसलिए नंगा रजाई में लेटा हुआ था। मुझे रद्दीवाले की आवाज़ सुनाई दी। मैंने शर्ट पहनी, फ्रेंची और जैकेट पहनी, बाहर भाग कर गया, वो अकेला नहीं था उसके साथ एक और गबरू जवान था, मालूम नहीं वह कौन था, मैंने उसको कहा- कुछ रद्दी है।

उसने मेरी जांघों को निहार कर कहा- हाँ हाँ, तुलवा लो।

“आ जाओ यहाँ !”

मैंने अखबारें उसके आगे की, दीवार से सहारे खड़ा उसको घूरने लगा।

बोला- बस?

“अंदर परछती पर कुछ सामान है, लेकिन साथ आ जाओ हाथ नहीं जाता, सीढ़ी या बड़ा स्टूल नहीं है, पीछे से उठाना पड़ेगा।”

वो मुस्कुराया, मानो उसको मुझ पर शक सा हो गया था।

“सर्दी में चड्डी पहने खड़े हो, ठण्ड लगेगी।”

“नहीं लगती ठण्ड !” मैंने नशीली अदा से देखा, गाण्ड घुमाई, थपकी सी लगाते हुए कहा- आ जाओ, चाय पियेंगे एक साथ।

“कहाँ से उतारनी है?”

उसको स्टोर में ले गया- उठाना !

उसने मुझे चिकनी जांघों से पकड़ कर उठाया, थोड़ी सी अखबारें उठाई।

“बस?”

जैसे उसने नीचे उतारा, मैंने मुड़कर उसको बाँहों में भर लिया, उससे लिपटने लगा, उसके लण्ड को ऊपर से मसलने लगा। उसने भी मुझे बाँहों में जोर से भींचा और मेरी गोरी गालों को चूमने लगा।

मैंने कहा- कमरे में चलो।

बोला- वो अकेला खड़ा है?

“उसको भेज दो समझा कर !”

बोला- ठीक है।

मैं रजाई में घुस गया और नंगा हो गया। वो बाहर से आया और रजाई में घुस गया। उसने खुद को नंगा किया, जब उसने मेरी छाती देखी, वो हैरान हो गया- यार, यह लड़की जैसी है।

उसने निप्पल को खूब चूसा, खूब मसला और मेरी चिकनी सी जांघों में लण्ड घुसा कर रगड़ने लगा। मैंने पकड़ कर पीछे धकेला और उसके लुल्ले को मुँह में लिया।

वो पागल सा होने लगा और जोर जोर से मेरे सर को दबाते हुए आगे पीछे करने लगा, उसकी स्पीड बढ़ने लगी।

तभी अचानक से उसने मेरे मुँह में अपना माल छोड़ना चालू किया। इतने बड़े लण्ड का माल था, वो हांफने लगा, मुझ पर लुढ़क कर गिर गया।

मैंने चूस कर साफ़ करके लण्ड अपने मुंह से निकाला। इतने में उसका साथी भी अंदर घुस आया- तुम यहाँ कर रहे हो?

“क्यूँ गाण्डू ! मुझे लण्ड नहीं लगा क्या? मैं तो तबसे बाहर खड़ा होकर थोड़ा सा दरवाज़ा खोल कर देख रहा था। यह देख, तेरी मस्त गाण्ड ने जीना दुश्वार कर दिया इसका !”

उसने ज़िप खोल हाथ में पकड़ रखा था।

“वाह मेरे शेर ! दरवाज़ा बंद करके आ जा मेरे करीब !”

मेरी वासना देख दोनों हैरान थे !

“तुम दोनों पाँच मिनट के लिए बाहर जाओ, मैं आवाज़ दूँगी, तब आना !”

“वो क्यूँ?”

“जाओ ना !”

मैंने सेक्सी बॉडी स्प्रे लगाई, काली सेक्सी पैंटी-ब्रा पहनी लाल रंग की सेक्सी नाईटी पहनी फिर दरवाज़ा खोला- आ जाओ !

बैड के बीच लेटी, उनको इशारे से बुलाने लगी। मुझे इस रूप में देख दोनों होश खो बैठे, मुझे बिस्तर पर पटक कर चूमने लगे, नाईटी में हाथ घुसा मेरी पैंटी पर हाथ फेर गाण्ड पुचकारने लगे- हाय, आज तो कैसा गज़ब का दिन चढ़ गया है।

बालों को झटक कर मैंने दूसरे वाले के बड़े लुल्ले के जमकर चुप्पे मारे।

पहले वाले को कहा- मेरी गाण्ड चाट और उंगलीबाज़ी करता रह !

दूसरे वाले का लण्ड चूसने लगा, पहले वाले का भी दोबारा खड़ा हो चुका था, वो बोला- घोड़ी बनकर इसका चूस, तब तक तेरी गाण्ड में डालता हूँ।

मैंने दराज़ से कंडोम निकाल लण्ड पर चढ़वा कर कहा- आ जा शेर !

घोड़ी बनकर दूसरे वाले का चूसने लगा और पहले वाले ने अपना मूसल मेरे छेद में घुसा दिया।

और पच पच की आवाज़ों से कमरा गूंजने लगा। मेरे मुँह से सिसकी पे सिसकी फ़ूट रही थी लेकिन मुँह में लुल्ला घुसे होने की वजह से अजीब आवाजें निकल रही थी।

उसने वार तेज कर दिए और दूसरे वाले ने कहा- निकलने वाला है !

उसने मेरे मुँह में माल भर दिया और एक एक बूँद चटवाने लगा। मेरे पीछे वाले ने सीधा लिटाया और फिर से घुसा दिया, तब तक दूसरे वाले के लण्ड को चाट चाट कर मैंने साफ़ कर दिया, उसका दुबारा खड़ा कर दिया मैंने।

“औरत से मस्त है साले तू !”

उसने खूब पेल पेल कर मेरी गाण्ड लाल कर डाली थी और बड़ी मुश्किल से उसका दूसरी बार पानी निकला। अभी तो एक बाकी था, जाने उसका कितनी देर न निकलता। मैं हाय हाय करके उसका लेने लगा, उसने बहुत प्यार से थूक लगा लगा कर कई तरीकों से बीस मिनट मेरी गाण्ड मारी और मुझ पर लेट कर हांफने लगा। मैंने फिर दोनों के लण्ड एक साथ सामने रख कर चाटे।

जब उनके तीसरी बार खड़े होने लगे मैंने छोड़ दिए लेकिन वे बोले- एक एक शिफ्ट हो जाए?

वो लेट गया, मैंने कंडोम चढ़ाया और खुद उस पर बैठने लगी नाईटी उठा कर, उसकी झांगों पर बैठ चुदवाने लगी और उसका आधा घंटा लगा।

दूसरे वाले ने तब तक चुसवा चुसवा कर आधा काम निकाल लिया था इसीलिए तीसरी बार गाण्ड में उसने दस-बारह मिनट लगाये और फिर हम एक दूसरे को चूमते, सहलाते अलग हुए।

मैं वैसे ही रजाई में घुस गया और वो कपडे पहन कर बोले- जो सुख तूने दिया है, कभी सोचा नहीं था। अब किस दिन मरवानी है?

मैंने कहा- अब मेरा मर्द आ जाएगा, फिर मुश्किल से चोरी चोरी करना पड़ेगा, ऐसे खुल कर बेबाक मारनी है तो जगह का इंतजाम करके बुलाना !

वो चले गए, मैं शांत होकर वासना की आग बुझवा कर सो गया।

यह थी मेरी एक और मस्त चुदाई कथा ! अगली मस्त चुदाई होते ही आपके लिए लिखूँगा, बाय बाय !

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