इब तो बाड़ दे-2

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प्रेम गुरु द्बारा संपादित एवं संशोधित

लेखक: जीत शर्मा दिलवाला

इब तो बाड़ दे का पहला भाग यहाँ है।

दोस्तों ! सबसे पहले मैं आप सभी का धन्यवाद करना चाहूँगा कि आपने मेरी पिछली कहानी “इब तो बाड़ दे” का पहला भाग बहुत पसंद किया । मैंने उस कहानी में आपको बताया था कि कैसे मैंने अपने साथ ट्यूशन पढ़ने वाली मोना को चोदा था। उसकी चुदाई करने के बाद जब हम घर से बाहर निकले थे तो हमें ट्यूशन पढ़ाने वाली मास्टरनी अनीता सांगवान सामने से आती मिली थी। जिस तरह से वो हमें घूर रही थी मुझे लगा उसे पूरा शक हो गया है कि हमने उस मौके का भरपूर फायदा उठाया है।

मैंने मोना को मज़ाक में कह तो दिया था कि साली मास्टरनी को भी पटक कर रगड़ दूंगा पर वास्तव में मैं अन्दर से बहुत डरा हुआ था। सच पूछो तो मेरी गांड तो इस डर से फटी जा रही थी कि अगर मास्टरनी ने वो गीली चद्दर देख ली तो मैं तो मारा ही जाऊँगा। अब तो बस गोपी किशन का ही सहारा बचा था। अगले 2 दिन मैं ट्यूशन पर ही नहीं गया।

तीसरे दिन जब मैं शाम को उसके घर गया तो मास्टरनी ड्राइंग रूम में ही बैठी जैसे हमारा इंतज़ार कर रही थी। काँता आंटी भी पास बैठी थी। जिस तरीके से वो दोनों खुसर फुसर करती मुझे घूर रही थी मुझे लगा जैसे उनकी नज़रें नहीं कोई एक्स-रे मशीन से मेरी स्क्रीनिंग कर रही हैं। काँता आंटी उठ खड़ी हुई और मेरी और रहस्यमयी ढंग से मुस्कुराते हुए अपने घर चली गई। अब मास्टरनी मेरी ओर मुखातिब हुई।

“हम्म … तुम कल नहीं आये जीत ?”

“वो … वो …” मेरे गले से तो कोई आवाज ही नहीं निकल रही थी।

“हम्म …?”

“वो … दरअसल मेरी तबियत खराब थी “

“क्यों तुम्हें क्या हुआ था ?”

“ब…. ब … बुखार था ?”

“वाइरल तो नहीं था ?”

“हाँ हाँ वही था !”

“तो एक दिन में ठीक कैसे हो गया ?”

“वो…. वो …” मैं क्या बोलता। मैंने अपनी मुंडी नीचे कर ली।

“उस छोरी न के हुआ ?”

“कौन … ?”

“हाय मैं मर जावां ? मैं उस छमक छल्लो मोना की बात कर रही हूँ ?”

“ओह … वो… वो … ओह … मुझे क्या पता ?” मैंने सर झुकाए ही कहा। मैं सोच रहा था अगर मैंने नज़रें मिलाई तो मास्टरनी पहचान लेगी।

“तन्नै ते नी कुछ कर दीया था उसतै ?”

“न … नहीं … नहीं मैंने कुछ नहीं किया !”

मुझे लगा मेरा गला सूख गया है। मेरे चेहरे से तो हवाइयां ही उड़ रही थी। लगता है हमारी चुदाई की पोल खुल गई है।

“तन्नै किस बात का डर मार रया फ़ेर ? (तो तुम इतना डर क्यों रहे हो ?)” मास्टरनी ने फिर पूछा।

“न… नहीं तो … मैं भला क… क्यों … डरूंगा… ?” मैंने थोड़ी हिम्मत करके जवाब दिया। मैंने देखा मास्टरनी मेरी पतली हालत देख कर मंद मंद मुस्कुरा रही है।

“एक बात बता तू मन्नै !”

“क्या ?”

“यो चद्दर गील्ली कीकर होई ?”

“वो… वो …?”

अब शक की गुन्जाइश नहीं रह गई थी। मास्टरनी को पता चल गया है। मैं मुंडी नीचे किये खड़ा रहा।

“कहीं पानी का गिलास तो नहीं गिरा दिया था ?”

मैं चुप रहा। थोड़ी देर बाद मास्टरनी ने फिर पूछा “पानी ढंग से पिया या केवल चद्दर पर ही गिराया ?”

“वो … वो … ?

“केवल तुमने ही पिया था या उस कमेड़ी ने भी पिया था ?”

“हाँ उसने भी पिया था “

“हम्म… उसको भी पानी अच्छा लगा ?”

पता नहीं मास्टरनी क्या पूछे जा रही थी। मुझे लगाने लगा कि मैं थोड़ा बच सकता हूँ। मेरी जान छूट सकती है। एक बार अगर बच गया तो हे गोपी किशन फिर कभी उस कमेड़ी की ओर देखूंगा ही नहीं पक्की बात है। मैं अपने खयालों में खोया हुआ था।

मास्टरनी ने फिर बोली “या छोरी तो घनी चुदक्कड़ निकली रै? ….. इसके तो बड़े पर निकल आये साली अभी से लण्ड खाने लगी है आगे जाकर पता नहीं क्या गुल खिलाएगी ?”

मुझे बड़ा आश्चर्य हो रहा था कि मास्टरनी इस तरह के शब्द प्रयोग कर रही है। वो अपनी चूत को पाजामे के ऊपर से मसल और खुजला रही थी। आज उसने पतला सा कुरता और पाजामा डाल रखा था। उसकी साँसें तेज हो रही थी और आँखों में लाल डोरे से तैर रहे थे।

“उस कमेड़ी को ठीक से रगड़ा या नहीं ?” वह मेरी और देख कर हंसने लगी फिर बोली “मैं जानती थी जिस तरीके से वो अपनी गांड मटका कर चलती थी जरुर लण्डखोर बनेगी”

अब मेरी जान में जान आई। इतना तो पक्का है की मास्टरनी यह सब घर वालों को तो कम से कम नहीं बताएगी। मैं चुप उसे देखता ही रहा।

उसने फिर पूछा “उसे खून निकला या नहीं ?””वो … वो … हाँ आया था चद्दर पर भी लग गया था इसीलिए … वो… गीली …”

“हम्म … तेरे तो मज़े हो गए रे जीत … मैं तो तने बड़ा भोला समझ रई थी तू तो गज़ब का गोला निकला रे ?”

“वो दरअसल मैं आपका ही तो चेला हूँ ना ?” मैंने कह दिया।

“रै बावले चेला इस तरह थोड़े ही बना जावे सै?”

“तो कैसे बना जावे है ?”

“पहले गुरुदक्षिणा देनी पड़ी सै ?’

“आप जो मांगो दे दूंगा ?”

“हम … लागे सै इब तू बावली बूच नई रिया बड़ा सयाना हो गया ?”

मेरा दिल तो जोर जोर से धड़कने लगा था। लगता है मास्टरनी के मन में भी जरुर कुछ चल रहा है। हे गोपी किशन अगर मास्टरनी पट जाए तो बस मज़ा ही आ जाए। फिर तो बस दोनों हाथों में लड्डू क्या पूरी कन्हैया लाल हलवाई की दूकान ही हाथों में होगी।

उसने इशारे से मुझे अपनी और बुलाया। मैं उसके पास सोफे पर बैठ गया। उसने मेरी जांघ पर हाथ रख दिया और बोली “अच्छा चल सारी बात शुरू से बता कुछ छुपाने की जरुरत ना है। कैसे उस कमेड़ी के साथ खाट-कब्बडी खेली ? मैंने तो तुम्हें पूरे ढाई तीन घंटे दिए थे मज़े करने को ?” और कहते हुए उसने मेरी और आँख मार दी। मेरा राम लाल तो उछलने ही लगा था। और उसका उभार पैन्ट के अन्दर साफ़ दिखने लगा था। मास्टरनी ने अपनी जांघें आपस में कस रखी थी और एक हाथ से अपनी चूत को जोर जोर से मसल रही थी।

मैंने पूरी बात बता दी। इस दौरान मास्टरनी ने मेरा लण्ड पैन्ट के ऊपर से ही मसलने लगी। मेरा लण्ड तो खूंटे की तरह हो चला था अब। मास्टरनी की साँसें तेज होने लगी थी और मेरा शेर तो जैसे पैन्ट फाड़ने को तैयार था। अचानक मास्टरनी ने मेरी पैन्ट की जिप खोल दी और नीचे फर्श पर उकड़ू होकर बैठ गई। मुझे बड़ी शर्म भी आ रही थी और मेरी उत्तेजना भी बढती जा रही थी। मास्टरनी ने फिर पैन्ट के अन्दर हाथ डाल कर मेरे खूंटे जैसे खड़े लण्ड को बाहर निकाल लिया। उसकी तो आँखें फटी की फटी रह गई। मेरा लण्ड 7’ लम्बा मोटा ताज़ा लण्ड देख कर वो तो मस्त ही हो गई। आप तो जानते ही हैं कि मेरे लण्ड में एक ख़ास बात है उसका टोपा (क्राउन) बहुत बड़ा है। बिलकुल मशरूम की तरह है। मेरी भी उतेजना बढती जा रही थी और राम लाल तो मास्टरनी के हाथों में ऐसे उछल रहा था जैसे कोई चूहा किसी बिल्ली के पंजों में फसा अपनी जान बचाने को तड़फ रहा हो।

“वाह जीत तेरा राम लाल तो बहुत बड़ा और शानदार है ?” इतना कहकर मास्टरनी ने उसका एक चुम्मा ले लिए। राम लाल ने एक ठुमका लगाया। मास्टरनी ने उसे कस कर अपनी मुट्ठी में जकड़े रखा। “साली वो कबूतरी कैसे झेल गई इस मर्दाने लण्ड को ?”

एक बार फिर से उसने उस पर पुच्च किया और फिर उसे गप से मुँह में ले लिया। मैं तो जैसे सातवें आसमान पर ही था। जिस तरीके से मास्टरनी उसे चूस और चूम रही थी मुझे लगता है ये मास्टरनी भी एक नंबर की चुदक्कड़ है। चलो मेरी तो पौ बारह है। मैंने अपनी पैन्ट को ढीला कर दिया और अपने कूल्हे थोड़े से उठा कर पैन्ट नीचे कर दी। इससे मास्टरनी को सुविधा हो गई। और वो जोर जोर से मेरा लण्ड चूसने लगी। कभी मेरे अण्डों को मसलती कभी उन्हें भींचती कभी पूरा लण्ड मुँह में ले लेती और कभी उसे मुँह से बाहर निकल कर ऊपर से नीचे तक चाटती। उसकी गर्म साँसें मेरे पेट और पेडू पर पड़ती तो मैं रोमांचित हो जाता और मेरा शेर ठुमके पर ठुमके लगाने लगता। मास्टरनी तो बिना रुके उसे चूसे ही जा रही थी पता नहीं कितने दिनों की भूखी थी।

“य़ा … ….” मेरी सीत्कार निकलने लगी और राम लाल झटके पर झटके खाने लगा। मुझे लगा कि मेरा तो मोम पिंघल ही जाएगा। मास्टरनी मेरी इस हालत को जानती थी। उसने मेरा लण्ड पूरा का पूरा मुँह में भर कर मेरे कूल्हे पकड़ लिए। मेरा तनाव अपनी चरम सीमा पर पहुँच चुका था। मैंने कस कर उसका सर पकड़ लिया। मेरी बंद आँखों में तो सतरंगी तारे से जगमगाने लगे थे और फिर मेरी पिचकारी छूट गई। गर्म लावे से उसका मुँह भर गया। मास्टरनी गटागट उसे पीती चली गई। उसने तो जैसे मुझे पूरा का पूरा निचोड़ लेने की कसम खा रखी थी। उसने एक भी बूँद इधर उधर नहीं गिरने दी।

लण्ड अब सिकुड़ने लगा था। मास्टरनी ने एक आखिरी चुस्की लगाई और अपने होंठों पर जीभ फिराती हुई बोली,”वाह जीत, आज तो मज़ा ही आ गया एक कुंवारे लण्ड की गाढ़ी और ताज़ी मलाई तो बड़ी ही मजेदार थी। वाह … जियो मेरे सांड …?” कहकर मास्टरनी ने मुझे चूम लिया।

मुझे बड़ी हैरानी हुई कि इस नाम से तो मुझे मोना डार्लिंग पुकारा करती है इसे कैसे पता ?

“मैडम आपने तो मज़ा ले लिया पर मैं तो सूखा ही रह गया ना ?” मैंने उलाहना दिया।

“रे बावली बूच क्यूं चिंता कर रिया सै… अभी बड़ा टेम बाकी सै ? चिंता ना कर !” कहते हुए मास्टरनी बाथरूम में चली गई। मैंने अपनी पैन्ट पहन ली और उसका इंतज़ार करने लगा।

मास्टरनी कोई दस मिनट के बाद बाथरूम से बाहर आई। उफ़ … उसके बाल खुले थे। उसने अपने वक्ष पर लाल रंग का तौलिया लपेट रखा था जो उसकी चिकनी मोटी मोटी संग-ए-मरमर जैसी जाँघों और अमृत कलशों के अनमोल खजाने को छिपाने की नाकाम कोशिश कर रहा था। बस अगर तौलिया एक दो इंच छोटा होता तो उसकी रस भरी (चूत) का नज़ारा साफ़ दिख जाता। उसने तौलिये को नीचे से कस कर पकड़ रखा था। धीरे धीरे अपने नितम्बों को मटकाती और अपने दांतों में निचला होंठ दबाये मेरे पास आकर खड़ी हो गई। उसके होंठ काटने की कातिलाना अदा और चूतड़ों की थिरकन से तो मेरे राम लाल को जैसे फिर से जीवनदान मिल गया । वो तो फिर से सर उठाने लगा था। मैं तो उसके इस अंदाज़ को बस मुँह बाए देखते ही रह गया। उसका गदराया शरीर तो ऐसे लग रहा था जैसे कोई सांचे में ढली मूर्ति हो। वैसे तो मैं उसे रोज़ ही देखता था पर इस रूप में तो आज ही देखा था। उसके शरीर की गर्मी मैं अच्छी तरह महसूस कर रहा था। मुझे लगा जैसे मैं किसी आग की भट्टी के सामने खड़ा हूँ। मेरी तो जैसे साँसें ही जम गई मुझे लगा मेरा पप्पू फिर से घुड़सवारी के लिए तैयार होने लगा है।

“ओह … तन्नै फ़ेर या पैन्ट सी पऽऽन ली ? इब इसका के काम सै ? तार दे इसने !”

“आपने भी तो तौलिया लपेट रखा है ?”

“ओह …. रै मेरी बात और सै चल … सैड़ देसी अपणी पैन्ट और कमीज नै तार दे !”

मैंने थोड़ा शर्माते हुए पैन्ट कमीज उतार दी पर अपने राम लाल के ऊपर हाथ रख लिया। मैंने बनियान और कच्छा तो पहना ही नहीं था। मास्टरनी बोली “तुमने कभी सहस्त्रधारा का जल पिया है?”

सच पूछो तो मेरे कुछ समझ नहीं आया। मैंने गंगाजल और ब्रह्म सरोवर का जल तो सुना था पर यह नया जल पहली बार सुना था। जब कुछ समझ नहीं आया तो मैंने अपनी मुंडी ना में हिला दी।

मुझे लगा मास्टरनी मुझे फिर से मोटी बुद्धि का कहेगी या फिर ताऊ तो जरुर ही कहेगी पर मास्टरनी हंस पड़ी। मोती जैसे चमकते दांत और उसकी कातिलाना मुस्कान और होंठो को काटने की अदा ने तो मुझे अन्दर तक रोमांच से भिगो दिया था। मेरा मन कर रहा था कि उसे कस के अपनी बाहों में भर लूं और पटक कर अपना किल्ला गच्च से उसकी रसीली चूत में ठोक दूं पर मैं रुका रहा।

“हाय मैं मर जावां … मेरे बुद्धू बालम …” कह कर मास्टरनी ने मेरी और अपनी बाहें फैला दी। ऐसा करने से उसके चूंचियों पर अटका तौलिया खुल कर नीचे गिर गया और उसके मोटे मोटे कसे हुए गोल गोल चूचे अनावृत्त हो गए। उसकी घुन्डियाँ मूंगफली के दाने जितनी गुलाबी रंग की थी और एरोला कोई दो इंच का गहरे लाल रंग का। गोल गोल चूचे थोड़े से नीचे लटके से थे वर्ना तो वो मोना को भी पानी भरवा देती।

मैंने झट से उसे बाहों में भर लिया। उसकी साँसें तेज हो रही थी। उसने मेरा सर अपने हाथों में पकड़ लिया और मेरे होठों से अपने होंठ लगा दिए। मैं तो उन गुलाब की पंखुड़ियों को चूसने में मस्त ही हो गया। मेरा एक हाथ उसकी पीठ पर था और एक हाथ से उसके नितम्ब सहला रहा था।

वो तो बेसाख्ता मेरे होंठों को चूसे ही जा रही थी। मैंने अपनी जीभ उसके मुँह में डाल दी तो वो उसे कुल्फी की तरह चूसने लगी। यह तो अनोखा आनंद था। कभी वो अपनी जीभ मेरे मुँह में डाल देती कभी मैं अपनी जीभ उसके मुँह में डाल देता।

मैं तो इस चूसा-चुसाई में इतना खो गया था कि मेरा ध्यान उसकी चूत की ओर गया ही नहीं। यह तो भला हो मेरे राम लाल का कि वो अपनी तंद्रा से जग कर उसे सलाम बजाने लगा था। अब मैंने अपना एक हाथ उसके चूत पर फिराया। छोटे छोटे बालों से ढकी उसकी चूत पूरी गीली हो चुकी थी। मैंने जैसे ही उसकी चूत में अपनी एक अंगुली डालने की कोशिश की वो थोड़ा सा चिहुंकी।

“ऊईइ … मां …”

“क्या हुआ ?”

“ओह…. ऐसे नहीं चलो, उस पलंग पर चलो !”

“ओह…. हाँ …”

मुझे फिर अपनी बुद्धि पर तरस आने लगा। हम दोनों अब पलंग पर आ गए। पलंग पर नई चद्दर बिछी थी। मास्टरनी पलंग पर लेट गई। पर पता नहीं क्यों उसने अपनी चूत पर दोनों हाथ रख लिए और अपनी जांघें कस कर बंद कर ली। मुझे बड़ा अटपटा लगा कि अब शर्माने की कहाँ गुन्जाइश रह गई है। पर सयाने ठीक कहते हैं औरत कितनी भी काम के वशीभूत हो अपनी स्त्री सुलभ लज्जा नहीं छोड़ती।

खैर अब उसे चुदना तो हर हाल में ही था, थोड़ी देर या नखरे और सही। मेरा राम लाल तो हिलोरें ही मारने लगा था। मैं उसकी बगल में लेट गया और उसके चूचों पर हाथ फिराने लगा। मैंने एक चूची के अग्र-भाग पर अपनी जीभ फिराई तो उसकी हल्की सीत्कार ही निकालने लगी। अब मैंने उसे चूसना चालू कर दिया। एक हाथ से उसकी एक चूची को दबाता और दूसरे को जोर जोर से चूसता।

वो तो मस्त ही हो गई। आंखें बंद किये सीत्कार पर सीत्कार करने लगी। मैंने एक एक करके दोनों आमों को चूसना चालू रखा। फिर मैंने धीरे से अपना एक हाथ उसकी चूत की तरफ बढ़ाया। मोटी मोटी फांकें सूजी हुई सी लग रही थी। मैंने थोड़ा नीचे खिसकते हुए अब अपनी जीभ उसके उरोजों की घाटियों से लेकर नीचे पेट और नाभि तक चाटना चालू कर दिया।

जैसे ही मेरी जीभ ने उसकी चूत को छुआ तो उसकी एक किलकारी ही निकल गई। उसकी बंद जांघें स्वतः ही खुलने लगी और रस भरी दो पंखुड़ियां मेरी आँखों के सामने फ़ैल गई। उसके अन्दर वाली पत्तियाँ जरुर काली सी थी पर बाहरी फांकें गोरी गोरी थी जिन्हें छोटे छोटे काले घने झांटों ने ढक रखा था। मैंने एक चुम्मा उस पर ले ही लिया। मेरे नथुनों में एक मादक गंध भर उठी। और मास्टरनी की एक मादक सीत्कार निकल गई।

मास्टरनी आँखें बंद किये लेटी आह उन्ह… करने लगी। अब मैंने दोनों हाथों से उसकी चूत की फांकों को चौड़ा किया। अन्दर से चूत एक दम गुलाबी रंग की थी और उसके अन्दर का गीलापन तो ऐसे लग रहा था जैसे इसमें से पानी की सैंकड़ों धाराएं निकल रही हों। ओह … अब मेरी मोटी बुद्धि में सहस्त्रधारा का अर्थ समझ आया था।

मैंने अपने जलते होंठ उसकी फांकों के बीच लगा दिए। आह … नमकीन और कसैला सा स्वाद तो ठीक वैसा ही था जैसा मोना की चूत का था बस थोड़ी सी गंध अलग थी। मैंने अपनी जीभ को नुकीला बनाया और उसकी चूत की दरार पर ऊपर से नीचे तक फिराया। उसका दाना तो चेरी की तरह बिलकुल लाल था। मैंने अपनी जीभ उस पर फिराई और फिर उसे हल्का सा दांतों से दबाया तो मास्टरनी की उत्तेजना में एक चींख सी निकलते निकलते बची।

“रे ताऊ … ओह … जीत … चूस….. और जोर से चूस….. आह … य़ाआअ ईईईईईईईईई………………”

मैंने झट से उसकी चूत को मुँह में भर लिया और जोर जोर से चूसने लगा। मास्टरनी रोमांच में कांपने लगी थी। कभी वो अपने पैर उठाती और कभी नीचे पटकती। उसने मेरा सर कस कर अपने हाथों में पकड़ा था। और जोर जोर से अपनी चूत की ओर दबाने लगी। वह तो सीत्कार पर सीत्कार किये जा रही थी।

उसका शरीर एक बार थोड़ा सा अकड़ा और उसने मेरा सर इतने जोर से अपनी चूत पर दबाया कि मेरी तो साँसें ही कुछ क्षणों के लिए रुक सी गई। इसके साथ ही उसकी चूत ने 3-4 चम्मच गाढ़ा सा तरल द्रव्य छोड़ दिया। मैं तो उस सहस्त्रधारा के जल को पीकर निहाल ही हो गया।

मास्टरनी पता नहीं नशे जैसी हालत मन क्या क्या बड़बड़ा रही थी। पता नहीं उसे अचानक क्या सूझा वो मुझे परे धकेल कर उठ खड़ी हुई और इस से पहले कि मैं कुछ समझूं उसने मुझे धकेलते हुए चित लेटा कर अपने दोनों पैरों को मेरे कूल्हों के दोनों तरफ कर के एक हाथ में मेरा तना हुआ लण्ड पकड़ लिया और अपनी चूत पर घिसने लगी।

जैसे ही मेरे लण्ड का सुपड़ा उसकी चूत के छेद से टकराया मास्टरनी ने बिना देरी किये एक झटका सा लगाया और गच्च से मेरे लण्ड के ऊपर बैठ गई। पूरा का पूरा लण्ड जड़ तक एक ही झटके में उसकी चूत में समां गया। मास्टरनी की एक चीत्कार सी निकल गई।

“आईईईईईईईईईईईईईईई…………………………………………”

मास्टरनी ने लण्ड पूरा का पूरा अन्दर तो ले लिया पर मुझे लगा वो ज्यादा जोश में गलती कर बैठी है। उसे थोड़ा सा दर्द भी जरुर हुआ होगा पर वो मेरे सामने कमजोर नहीं पड़ना चाहती थी। उसने अपनी आँखें बंद कर ली और चुपचाप ऊपर ही बैठी रही। कुछ समय बाद जब वो थोड़ी सामान्य हुई तब उसने नीचे झुक कर मेरे होंठों को चूमा और बोली,”रे जीत … तू तो पूरा सांड सै मेरी तो जान ही काड़ दी तन्नै !”

“क्यों … मास्टरजी का इतना बड़ा नहीं है क्या ?”

“अरै छोड़ …. वो तो पूरा नन्दलाल ही है। किसी काम का नहीं है। मैं तो इस चूत में अंगुली कर कर के कमली ही हो गई हूँ और वो देहरादून के जंगलों में फोरेस्ट अफसर बना अपनी गांड मरवा रहा है साला चूतिया कहीं का !”

मास्टरनी को ज्यादा जोश आ गया और फिर उसने जोर जोर से ठुमके लगाने शुरू कर दिए। उसके गोल गोल कसे हुए चूतड़ तो उसके झटकों के साथ थिरकने ही लगे थे। मैंने उसकी चूचियों को पकड़ कर मसलना चालू कर दिया तो वो थोड़ा सा नीचे हो गई और अपने उरोज मेरे मुँह पर लगाने लगी। मैं इतना भी मोटी बुद्धि का नहीं था मैंने झट से उसे मुँह में ले लिया और चूसने लगा। मास्टरनी की फिर से सीत्कार निकालने लगी।

“आह … आज कितने दिनों बाद एक मस्त लण्ड मिला है … या … जीवो मेरे सांड तूने तो मुझे निहाल ही कर दिया उम्म्म्म …” और एक बार फिर मास्टरनी ने मेरा सर पकड़ कर होंठों को चूम लिया।

ऐसा नहीं था कि सिर्फ वो ही धक्के लगा रही थी। मैं भी नीचे से अपने चूतड़ उठा उठा कर उसके धक्कों के साथ ताल मिलाने की कोशिश कर रहा था। मैंने अपने हाथ उसके नितम्बों पर फिराने चालू कर दिए। मास्टरनी कभी ऊपर उठती कभी झटके के साथ नीचे आ जाती। कभी थोड़ी देर के लिए मेरे ऊपर लेट सी जाती। तब मुझे उसके नितम्ब सहलाने का मौका मिल जाता।

मेरी बड़ी इच्छा हो रही थी कि एक बार अगर मुझे ऊपर आ जाने दे तो मैं इसके इन नितम्बों और कमर को पकड़ कर ऐसे झटके मारूं कि इसकी तो बस टैं ही बोल जाए। अचानक मेरी एक अंगुली उसकी गांड के छेद से टकरा गई। मैंने मस्तराम और अन्तर्वासना की कई कहानियों में गांड मारने के बारे में भी पढ़ा था। मैंने मन में सोचा मास्टरनी अगर एक बार मुझे भी गांड मार लेने दे तो हे गोपी किशन मैं तो बस सीधा बैकुंठ ही पहुँच जाऊं।

पर मास्टरनी तो अपनी ही धुन में अपनी चूत को मेरे लण्ड पर घिसे जा रही थी। पता नहीं उसे मेरे हलके हलके नुकीले झांटों से अपनी फांकों को रगड़ने में क्या मज़ा आ रहा था। मैंने उसकी गांड में अपनी तर्जनी अंगुली डाल दी। शायद उसकी चूत का रस फ़ैल कर उसकी गांड को भी गीला कर चुका था। अंगुली गच्च से अन्दर चली गई और मास्टरनी की हलकी चीत्कार निकल गई,”रे… ओह….. रे ताऊ यो के कर रिया सै …?

“क्यों क्या हुआ ?” मैंने पूछा।

“न … ना इस छेद को इबी ना छेड़ … इसका नंबर बाद मैं ? तू चिंता ना कर मैं दोनों छेदों में एक साथ भी डलवाऊँगी?”

चलो ठीक है। मुझे तसल्ली हुई कि बाद में ही सही मौका तो जरुर मिलेगा। मास्टरनी ने अब जोर जोर से धक्के लगाने चालू कर दिए। वो अपनी चूत को इस तरह से सिकोड़ रही थी जैसे अन्दर से चूस रही हो। मैंने सेक्स स्टोरीज में पढ़ा था कि बहुत ही अनुभवी और चुद्दकड़ औरतें ऐसा करती है। इससे उनको और अपने साथी को दुगना आनंद आता है और ढीला लण्ड भी अन्दर ठुमके लगाने लगता है। और मास्टरनी तो पूरी उस्ताद थी इस मामले में।

हमें कोई 20-25 मिनट तो जरुर हो ही गए थे। मुझे लग रहा था अब मैं खलास होने वाला हूँ। मैं ऊपर आने की सोच रहा था पर मास्टरनी ने मुझे नीचे दबोच रखा था। अब मास्टरनी ने जोर जोर से सीत्कार करना चालू कर दिया था और मुझे लगा मेरा लण्ड उसकी चूत ने इतनी जोर से अन्दर भींच लिया है जैसे गन्ना पेरने वाली मशीन गन्ने का रस निचोड़ लेती है। उसने एक किलकारी मारी और मेरे ऊपर ढेर हो गई।

मैंने उसकी कमर पकड़ ली और एक पलटी मारी तो मास्टरनी नीचे और मैं ऊपर हो गया। अब मुझे थोड़ा सांस आया। मैंने दोनों हाथों से उसकी कमर पकड़ कर दनादन धक्के लगाने चालू कर दिए। मास्टरनी आँखें बंद किये लेटी रही। मैं भी अंतिम पड़ाव पर था कितनी देर रुकता। मेरा भी ज्वालामुखी फट पड़ा और वीर्य की फुहारें अन्दर निकलती चली गई। मास्टरनी की ठंडी आहें निकलने लगी और उसकी अकड़न मंद पड़ने लगी। पर उसने अपनी बाहों की जकड़न ढीली नहीं होने दी।

कोई 10 मिनट हम इसी अवस्था में पड़े रहे। अब मेरा लण्ड सिकुड़ गया था और बाहर फिसल आया। उसकी चूत से वीर्य और कामरज बाहर निकल कर चद्दर को भिगोने लगा था। मास्टरनी ने मुझे उठ जाने का इशारा किया तो मैं उठ बैठा। मेरे लण्ड के चारों और भी वीर्य और उसकी चूत से निकला कामरज लगा था। मैं उसे धोने बाथरूम में चला गया।

जब मैं अपने लण्ड को साफ़ करके और उस पर थोडा सा सरसों का तेल लगा कर वापस आया तब भी मास्टरनी उसी मुद्रा में लेटी थी। वो अपनी चूत धोने बाथरूम में नहीं गई। मैंने उसे बाथरूम जाने को पूछा तो उसने मना कर दिया और बोली,”एक बार और मज़ा लेना है अभी !”

मेरा राम लाल तो दो बार निचुड़ चुका था। पर मेरा भी मन अभी नहीं भरा था। सच पूछो तो मास्टरनी ने मुझे चोदा था। मज़े तो उसने लिए थे। मैं एक बार उसे घोड़ी या डॉगी स्टाइल में चोदना चाहता था। मैं उसके नजदीक जाकर पलंग पर बैठ गया तो वो सरक कर मेरी जाँघों पर सर रख कर लेट गई और मेरे राम लाल को हाथ में पकड़ कर एक चुम्मा ले लिया। राम लाल तो अलसाया सा था। मुझे डर लगाने लगा था कि यह दो बार निचुड़ चुका है कहीं धोखा ही ना दे जाए।

पर कहते हैं औरत के हाथ में जादू होता है। जो लण्ड तीन इंच का होता है खूबसूरत औरत के हाथों में आते उम्मीद से दुगना हो जाता है भला मेरा क्यों ना होता। मास्टरनी ने उसे मसलना चालू कर दिया और फिर से अपने मुँह में लेकर चूसने लगी। राम लाल धीरे धीरे अपने रंग में आने लगा।

मेरे सारे शरीर में सनसनी सी होने लगी और लण्ड तनकर अपनी औकात में आ गया। मास्टरनी ने उसे मुँह से निकाल कर आज़ाद करते हुए कहा,”रे जीत, ले तेरा घोड़ा तो फेर तैयार हो गया सवारी करने को ?”

मुझे डर लगाने लगा कहीं मास्टरनी फिर से मुझे ना दबोच कर अपने नीचे ले ले। मैंने कहा,”तो आप घोड़ी बन जाओ ना मैं सवारी करता हूँ ?”

उसने मेरी और टेढ़ी आँखों से इस तरह देखा जैसे मैं मोटी बुद्धि का ना रह कर कालिदास बन गया हूँ। मास्टरनी झट से अपने घुटनों के बल हो गई और अपने गांड हवा में ऊपर उठा दी। उसने अपना सर तकिये पर रख लिया। अब मैं उसके पीछे आ गया। गोरी गोरी मुलायम जाँघों के बीच उसकी चूत की फांकें सूज कर मोटी मोटी हो गई थी। गांड का सुनहरा सा छेद कभी खुल और कभी बंद हो रहा था। उसकी दर दराई सिलवटें तो मुझे उसी में अपना लण्ड डाल देने का आमंत्रण दे रही थी।

मैंने अपने लण्ड को उसकी फांकों के बीच लगाया और उसकी कमर पकड़ कर जोर से एक धक्का लगा दिया। चूत पहले से ही गीली थी पूरा का पूरा लण्ड बिना किसी रुकावट के अन्दर चला गया।

मास्टरनी की चींख सी निकल गई। वो बोली “रे ताऊ थोड़ा सबर कर धीरे … के जल्दी सै ?”

मैं अब कहाँ रुकने वाला था। मैंने धक्के लगाने शुरू कर दिए। धक्कों के साथ उसके भारी चूतड़ हिलते तो मेरा उत्साह दुगना हो जाता। मैंने उन पर जोर जोर से थप्पड़ लगाने चालू कर दिए। मास्टरनी तो सीत्कार पर सीत्कार करने लगी। मैं कहीं पढ़ा था कि जब कोई औरत उम्र में थोड़ी बड़ी हो तो उसे चोदते समय अगर उसके चूतड़ों पर हलकी चपत लगाई जाए या उसके होंठ या चूत की फांकों को दांतों से काटा जाए तो उसे दर्द के स्थान पर मीठी कसक के साथ और भी मज़ा आता है।

मैंने अपनी घुड़सवारी और एड लगानी चालू रखी। हर धक्के के साथ मेरा लण्ड उसकी बच्चे दानी तक चला जाता और मास्टरनी की आह … उन्ह … निकलने लगती।

“या … आह … उइईई ……मा … और जोर से … आज सारे कस बल निकाल दे इस चूत के … आह … बहोत तंग किया है इसने मुझे … आह …”

मेरा शेर तो इस समय खूंखार बना था। मैंने धक्कों की गति बढ़ा दी। 10-15 मिनट की इस दूसरी चुदाई में ही मास्टरनी के पसीने निकलने लगे। मेरा भी यही हाल था। पर राम लाल तो उसी तरह खड़ा था। सच कहूं तो चुदाई का असली मज़ा तो मुझे आज ही मिला था। उस कमेड़ी की चुदाई के समय तो हम दोनों ही डरे हुए थे और वो भी बस सारी चुदाई में आह…. उईइ…. हाई…. करती कसमसाती रही थी।

मास्टरनी की आँखें बंद थी। मास्टरनी जब निढाल हो गई तो उसने अपना जानामाना फ़ॉर्मूला आजमाया और अपनी चूत का संकोचन करने लगी। आप तो अनुभवी हैं जानते ही हैं कि जब चुदाई के दौरान औरत ऐसा करती है तो आदमी बहुत जल्दी अपनी चरम सीमा पर पहुँच जाता है। हमें 15-20 मिनट तो इस बार भी हो ही गए थे। मैं मास्टरनी की हालत जानता था इसलिए अब मैंने भी जोर जोर से धक्के लगा कर अपना तनाव ख़तम करने का सोच लिया।

उसके चूतड़ों की खाई और गांड के छेद को देख कर मुझ से रुका नहीं गया और मैंने अपनी एक अंगुली उसकी गांड में डालने की फिर से कोशिश की तो मास्टरनी बोली,”रे ताऊ, इब खिलवाड़ बंद कर … बस निकाल दे अपना माल मैं तो गई … उईईईइ…… म़ा …?”

मुझे लगा मास्टरनी झड़ गई है। अब तो उसकी चूत बिलकुल ढीली पड़ गई थी। मैंने 4-5 धक्के बिना रुके लगा दिए और उसके साथ ही मेरे लण्ड ने भी मुक्ति की राह पकड़ ली। मास्टरनी धीरे धीरे नीचे होती गई और मैं उसके ऊपर ही पसर गया। हम दोनों ने ही ध्यान रखा कि लण्ड बाहर ना निकले। मैंने अपने हाथ नीचे करके उसके चुचों को पकड़ लिया और अपनी टांगें उसके चूतड़ों के गिर्द कस ली।

पता नहीं कितनी देर हम इसी तरह लेटे रहे। मेरा लण्ड धीरे धीरे बाहर निकल आया। उसकी चूत से वीर्य और कामरज का मिलाजुला मिश्रण बाहर निकल कर चद्दर पर फ़ैल गया। हम दोनों ही अब उठ खड़े हुए। हमने देखा 8-10 इंच के गोल घेरे में चद्दर पर वो मिश्रण फैला है।

मास्टरनी ने मेरी ओर मुस्कुराते हुए देखा और बोली,”रे हरियाने के सांड ! देख तूने चद्दर को फिर से खराब कर दिया। जा इब इसे बाथरूम में गेर दे !” “वो क्यों ?””रे ताऊ ! वो हरामजादी कान्ता कभी भी आ सकती है पूरे दो घंटे हो गए हैं ?””ओह … ?” मेरी भी हंसी निकल गई।

“वो कल का क्या प्रोग्राम है ?” मैंने पूछा।

“कल की कल देखेंगे !”

मास्टरनी चद्दर उठा कर बाथरूम में चली गई और मैं अपने कपड़े पहन कर घर की ओर भागा। मैं सोच रहा था कि मास्टरनी की दोनों छेदों में एक साथ लण्ड डलवाने वाली बात का क्या मतलब था ?

मै एक गाना एक गाना गुनगुनाता हुआ अपनी मस्ती और ख़ुशी में जा रहा था कि

आज मैं ऊपर आसमान नीचे

जल्दी से घर पहुंचा और नहाया और खाना खा कर पलंग पर लेट कर सोचने लगा आज जो हुआ और कल क्या होगा उसका इन्तजार करने लगा।

अगले दिन जब मैं मास्टरनी के घर पहुंचा तो किसी के बात करने की आवाज आ रही थी मास्टरनी किसी से बात कर रही थी मैं जब अन्दर पहुंचा तो वहां का नजारा देख कर तो मेरे पाँव के नीचे से जमीन ही निकल गई….

कहानी अभी बाकी है दोस्तो ! मैंने मास्टरनी के घर ऐसा क्या देखा यह आपको अगली कहानी मैं लिखूंगा. लेकिन तब जब आप लोग मुझे मेल करेंगे. लेकिन इतना बता देता हूँ कि जो भी देखा वो कम से कम मेरे लिए किसी 1000 वाट के कर्रेंट से कम नहीं था।

मेरी यह चुदाई आपको कैसी लगी ? मुझे यह तो जरुर बताना।

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