सहेली की मदद को उसके भाई को फंसाया-1

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हैलो मेरे प्यारे दोस्तो, कैसे हैं आप सब? उम्मीद करती हूँ आप सब मजे में होंगे. और जो मजे में नहीं हैं, वे आगे कहानी पढ़ कर मजे लें।

मैं सुहानी चौधरी एक बार फिर से आप सबका अपनी अगली कहानी में स्वागत करती हूँ। मेरे बारे में ज्यादा जानने के लिए नए पाठक मेरी पिछली कहानियों मेरी मासूमियत का अंत और जवानी का शुरुआत मेरे जन्मदिन पर मेरे यार ने दिया दर्द इनके अलावा और भी कई कहानियों को शुरू से जरूर पढ़ें और पसंद आए तो लाइक करें। तो चलिये आगे की कहानी पे बढ़ते हैं।

हमारे कॉलेज में खेल प्रतियोगिता शुरू हो गयी थी और दूसरे कॉलेज के लड़के लड़कियां हमारे कॉलेज में आने लगे, पूरा दिन खेल ही चलते थे और पढ़ाई वढ़ाई लगभग सब बंद हो गयी थी।

कॉलेज लाइफ में प्रेम कहानियाँ ऐसे मौकों पे ही तो ज्यादा बनती हैं।

दूसरे ही दिन मुझे एक बास्केट बॉल खिलाड़ी पसंद आ गया दूसरे कॉलेज का। उसका कद लगभग 6 फीट का, चौड़ा सीना, बॉडी बना के हीरो लग रहा था, शक्ल से भी गोरा और बहुत सुंदर था। 1-2 दिन तक मैंने तन्वी के साथ सिर्फ उसे नोटिस किया खेलते हुए देख कर … और उसने भी मुझे नोटिस कर लिया.

पर मुझे समझ नहीं आ रहा था कि बात आगे कैसे बढ़े।

मैं और तन्वी ग्राउंड के किनारे सब के साथ मैच देख रही थी और उसके बारे में बात कर रही थी। तन्वी बोली- यार क्यूँ मेहनत कर रही है, मुझे तो नहीं लग रहा की पटेगा ये। इतना हैंडसम है कि इसकी तो पक्का गर्लफ्रेंड होगी। मैंने भी तन्वी को सहमति जताते हुए कहा- हाँ लग तो यही रहा है।

तभी पीछे से एक जानी पहचानी आवाज आई- नहीं है कोई गर्लफ्रेंड। मैंने और तन्वी ने एकदम से चौंक के पीछे देखा तो आश्चर्य और खुशी से उस लड़की को देखने लगी। वो मेरी स्कूल की पुरानी सहेली सोनम थी। मैंने देखते ही कहा- सोनम तू यहाँ, कैसे, कब क्यू कहाँ?

सोनम मुसकुराते हुए मेरे पास आयी और बोली- बताती हूँ बाबा … सब बताती हूँ। फिर वो हमारे पास आ के बैठ गयी।

उसने हमें बताया कि वो दूसरे कॉलेज में ही पढ़ती है और दिल्ली में ही रहती है। फिर उसने बताया कि वो लड़का जिसे हम दोनों देख रही थी, वो उसके चाचा का लड़का है और वो भी उसी कॉलेज में पढ़ता है। तन्वी बोली- यार सोनम … तेरा भाई तो बहुत हैंडसम है, मैं पटा लूँ क्या? सोनम बोली- चलो ढंग से बात करते हैं, कहीं एकांत में चलते हैं।

मैंने और तन्वी ने एक दूसरे को भ्रमित नजरों से देखा और तन्वी बोली- चलो हॉस्टल में रूम में चलते हैं. और हम तीनों हमारे रूम पे आ गयी।

मैंने सोनम से पूछा- अब बोल क्या बात है, यहाँ कोई नहीं सुन रहा? सोनम ने अपनी कहानी बतानी शुरू की।

उसने बताया- यार वो मेरे चाचा का लड़का है, उसका नाम आकाश है। उसकी वैसे तो कोई गर्लफ्रेंड नहीं है पर है पूरा रंगीन मिजाज पर हल्का सा डरपोक भी है। हालांकि कॉलेज की कुछ लड़कियों ने उस पे कोशिश की है पर किसी से नहीं पटा। उसे कुछ खास ही चाहिए। मैंने कहा- ठीक है … तो तुझे क्या समस्या है इसमें?

सोनम ने आगे बताया- यार मेरा और आकाश के दोस्त राजन का गुपचुप अफेयर चल रहा है. पर डर लगा रहता कि कहीं भाई को पता चल गया तो! तन्वी ने पूछा- पता चल गया तो क्या हो जाएगा? सोनम बोली- यार पता चल गया तो चाचा चाची को मेरी शिकायत कर देगा और उसी दिन मेरा घर का टिकट कट जाएगा। मैं अब दिल्ली छोड़ के जाना नहीं चाहती। यार सुहानी, तू कुछ मदद कर दे ना प्लीज? मैंने मज़ाक में कहा- बिल्कुल मदद करूंगी यार! तू चिंता मत मत कर … मैं तेरे चाचा चाची को बोलूंगी कि जनरल टिकट ना कटायें, फ़र्स्ट क्लास एसी का टिकट कटायें. और मैं और तन्वी ज़ोर ज़ोर के हंसने लगी।

सोनम भी हल्की सी मुसकुराई और बोली- उड़ा ले मज़ाक, सब कहने को दोस्त हैं, जरूरत में साथ कोई नहीं देता। मैं फिर मुसकुराती हुई बोली- चल ड्रामा मत कर … बता क्या मदद चाहिए? सोनम ने कहा- यार, तू मेरे भाई से पट जा और उससे कोई ऐसी गलती करवा दे कि उसका पट्टा मेरे हाथ में आ जाए और वो मुझे कभी न डरा पाये। मैंने पूछा- मतलब?

तन्वी सब समझाते हुए बोली- मतलब अगर इसका भाई तेरे पे लाइन मारे तो ज्यादा नखरे न दिखते हुए शांति से पट जा ताकि ये उसे ब्लैकमेल कर सके। मैं सकते में आ गयी और सोनम की तरफ पलट के देखा तो सोनम ने हाँ में सिर हिलाते हुए नीचे देखने लगी।

मैंने भड़क के कहा- तुम दोनों का दिमाग खराब है क्या? ये गुलछर्रे उड़ा सके इसलिए मैं इसके भाई से पट जाऊँ? तन्वी ने कहा- हाँ। मैंने कहा- ना बाबा न, आज कल लड़के बहुत हारामी होते हैं, उसने चोद दिया तो? सोनम बोली- चोद तो वो देगा ही!

तो मैं एकदम से चिल्ला के बोली- क्या? नहीं यार सोनम, सॉरी … मैं इस मामले में कोई मदद नहीं कर सकती तेरी। तन्वी बोली- यार कर दे ना मदद बेचारी की! देख तेरी सहेली कितनी आस लेकर आई है तेरे पास। मैंने तन्वी से कहा- तुझे इतनी मदद करने की पड़ी है तो तू कर दे, मेरे पीछे क्यूँ पड़ी है? मैं कौन सी हूर की परी हूँ? सोनम बोली- हूर की परी ना सही … पर दिखती तो है परी जैसी। याद है स्कूल में कैसे सारे लड़के तेरे दीवाने थे।

इस पर तन्वी बोली- सोनम स्कूल में ही नहीं कॉलेज में भी दीवाने हैं. पर मैडम इतनी शरीफ हैं कि आज तक एक भी लड़के से सेट नहीं हुई कॉलेज में … और चुदवाने जाती है दूर के बॉयफ्रेंड से।

सोनम ने आश्चर्य से चौंक के कहा- क्या!! सुहानी तूने चुदवा भी ली? क्या बात है, मैं तो सोचती थी कि तू इतनी शरीफ है कि शादी से पहले तो क्या बाद में भी नहीं चुदवाएगी।

तन्वी बोली- भाई की शादी में ही तो चुदवा के आई थी मैडम … वो भी दो दो बार। तन्वी एक कमीनी सहेली की तरह मेरी पोल पे पोल खोले जा रही थी।

मैंने कहा- बस कर तन्वी, अखबार में छपवाएगी क्या? सोनम मुझसे मिन्नतें करने लगी और स्कूल टाइम में की हुई अपनी मदद की दुहाई देने लगी। तन्वी भी उसी की साइड लेने लगी और मुझे मनाने लगी।

अब पता नहीं क्यूँ पर एक तन्वी ही है जिसके बहकावे में बहुत जल्दी आ जाती हूँ. कभी कभी तो मुझे लगता है कि अगर तन्वी बहका दे तो मैं पूरे कॉलेज के सामने सारे कपड़े उतार के नंगी हो के खड़ी हो जाऊँ। आखिरकार मुझे मानना ही पड़ा।

अब गेम सेट हो चुका था, मुझे आकाश को पटाना था, फिर उससे कोई बड़ी गलती करवानी थी।

मैंने कहा- ठीक है … डील पक्की … पर क्या वो कोई गलती करेगा? सोनम बोली- तुम उसकी चिंता मत करो, वो आसानी से बहकावे में आ जाता है। और उसे बहकाने का काम करेगा उसी का दोस्त और मेरा बॉयफ्रेंड राजन, प्लान मेरा होगा और खिलाड़ी तुम और मोहरा आकाश।

सोनम के कहे अनुसार अब मैंने आकाश पे लाइन मारना छोड़ दिया। अब क्योंकि हमारा कॉलेज ही इस प्रतियोगिता की मेजबानी कर रहा था तो मैंने जानबूझ कर इवैंट मैनेजमेंट की टीम में भाग ले लिया और बस उसके रास्ते में आने लगी बार बार, वो भी इस तरह की इत्तेफाक लगे। कभी ऐसे ही, कभी खेल के दौरान टीम को जूस वगैरह दे के, पानी उपलब्ध करा के, या चाय नाश्ता उपलब्ध करा के वगैरा वगैरा।

अब सुहानी चौधरी का जादू किसी लड़के पे ना चले ऐसा कैसे हो सकता है। 1-2 दिन में ही मेरे खुशमिजाज और हंसमुख स्वभाव का जादू चलना शुरू हो गया और आकाश ने मुझे नोटिस भी कर लिया. पर मैं जानबूझ कर अंजान बनने के नाटक करती रही।

अब आकाश छोटी छोटी मदद के लिए भी मेरे ही पास आने लगा। तन्वी और सोनम इस बात पर नज़र रख रही थी और मुझे मैसेज करके बताती रहती थी कि आगे क्या करना है।

एक दिन मैच खेलते हुए आकाश गिर गया और उसे हल्की सी चोट लग गयी। मैं और मेरी टीम उसको मैदान में से सहारा देते हुए बाहर ले आई। मैंने उसके पैर की मरहम पट्टी की कुछ खाने को भी दे दिया। उसने मुझसे विनती की- क्या मुझे कहीं आराम करने को मिल सकता है? तो मैंने कहा- हाँ हमने रेस्टरूम बनाया हुआ है, आप वहाँ जा के आराम कर सकते हैं।

उसने मुझसे उसे वहाँ ले जाने की विनती की। मैंने थोड़ी झिझक सी दिखाते हुए कहा- ठीक है। आकाश ने अपनी टीम को खेल चालू रखने को कहा और आकाश मेरे कंधे का सहारा लेते हुए लंगड़ाते हुए रेस्टरूम की तरफ चलने लगा।

हालांकि वो अब भी शरीफ बनने की कोशिश कर रहा था पर उसके अंदर का जवान मर्द उसकी इस सोच पे हावी होने लगा था। वो मेरे कोमल कंधे पे रखे हुए हाथ फिरा रहा था हल्के हल्के उसके हाथ के स्पर्श से ये साफ पता चल रहा था कि वो फिसल रहा है धीरे धीरे। पर शायद साथ ही साथ वो थोड़ा डर भी रहा था कहीं मैं भड़क न जाऊँ।

जब हम रेस्टरूम में आ गए तो मैंने उसको एक गद्दे पे लिटा दिया और बोली- आप यहाँ आराम कीजिये, मैं बाहर जा के बाकी काम देखती हूँ. और घूम के जाने के लिए मुड़ गयी। तभी आकाश ने बेचैनी से कहा- रुको!

मेरे चेहरे पे मुस्कान आ गयी अपनी कामयाबी की। मैं अपनी मुस्कान छुपाते हुए पलटी और पूछा- हाँ बोलिए? उसने मुझसे अनुरोध किया और कहा- क्या आप यहाँ थोड़ी देर रुक सकती हो, मैं अकेले बोर हो जाऊंगा। मैंने भी बहाना सा मारते हुए कहा- कहो तो टीवी चालू कर देती हूँ। उसने कहा- मुझे टीवी देखने में ज्यादा दिलचस्पी नहीं है।

मैंने पूछा- तो किस चीज़ में है? और गलती से उसके मुंह से निकाल गया- आप में। मैंने थोड़ा नाटक सा करते हुए नकली गुस्से से चौंकते हुए कहा- मतलब?

आकाश एकदम से सकपका गया और बोला- म…म… म… मेरा मतलब है कि आप ही रुक जाइए ना, कहाँ वहाँ धूप में जा के परेशान होंगी। मैंने कहा- चलो ठीक है … पर थोड़ी देर।

मैंने अपनी कैप को उतार के साइड में रख दी और अपनी चोटी खोल ली और ऊपर देख के अपने खुले बाल ठीक करने लगी आकाश को और रिझाने के लिए। आकाश ये सब देख के आश्चर्यचकित सा था पर अभी भी अपनी लक्ष्मण रेखा पार नहीं कर रहा था।

तन्वी और सोनम कमरे के पीछे चुप के हमें देख रहे थे और मुझे मैसेज कर कर के सुझाव दे रहे थे। मैं उसके सामने कान में इयरफोन लगा के बैठ गयी कुर्सी पे हल्का सा झुक के … ऐसे ही एक मैगज़ीन पढ़ने लगी अपना पढ़ने वाला चश्मा लगा के! और मेरे आधे खुले बाल सर के पीछे थे पर आधे बाल दाँयी तरफ से चेहरे पे आ के लटक गए हल्का सा।

आकाश आँख बंद कर के सोने की एक्टिंग करने लगा। मेरा फोन सायलैन्ट मोड पे था. तभी तन्वी का फोन आया और उधर से धीरे धीरे सोनम मुझे आगे के निर्देश दे रही थी और मैं सिर्फ गाना सा गुनगुनाते हुए कुर्सी पे आगे पीछे हिल रही थी ताकि आकाश को शक ना हो।

आकाश का मुंह मेरी ही तरफ था पर आंखें बंद थी।

सोनम के कहे अनुसार मैंने अपने हाथ से मैगजीन ढीली कर दी जिससे वो फिसल के नीचे गिर जाये।

थोड़ी देर में वो गिर गयी और मैं उसे उठाने के लिए इस तरह से आगे झुकी की मेरी छाती के उभार यानि स्तन आकाश को झलक जाएँ। मैंने ज़मीन पे पड़ी मगज़ीन को हाथ लगाया और उठाने की कोशिश करने लगी पर जानबूझ कर एक बार नहीं उठाई।

उधर सोनम लगातार फोन से संपर्क में थी और उसने बोला- अब आकाश तेरे बूब्स को देख रहा है, तू एकदम से उसे देख और गुस्सा होकर बाहर चली जा! थोड़ा और तड़पाते हैं उसे … क्योंकि बिना तड़प के कोई सच्चा आशिक नहीं बनता. और वो आशिक नहीं बनेगा तो हमारा प्लान कैसे कामयाब होगा।

वैसा ही किया मैंने … चश्मे के ऊपर से उसे देखा झटके से, वो आँखें फाड़ फाड़ के मेरे मलाई की तरह गोरे बूब्स के दर्शन कर रहा था।

मैंने नकली गुस्सा करते हुए भड़क के कहा- क्या देख रहे हो? और अपनी टी-शर्ट ठीक कर ली।

वो घबरा के उठ गया और हकला के बोलने लगा- क… क…कक…. कुछ नहीं, म… म्म… म… तो… मैं एकदम से उठी, अपने बाल पीछे किए और मैगजीन मेज पे पटक के अपनी कैप उठा ली और जाने के लिए पलट गयी।

आकाश अब सॉरी… सॉरी… सॉरी… बोलने लगा और बोलने लगा- गलती से चली गयी नज़र, प्लीज माफ कर दो। मैंने भड़कते हुए स्वर में कहा- गलती से नज़र कहीं भी जा सकती थी, मेरे सीने पर ही क्यूँ गयी?

आकाश बोला- सॉरी सुहानी जी! प्लीज आप एक बार मेरी बात तो सुन लो। मैंने अपने आवाज थोड़ी सामान्य सी कर ली और बोली- ठीक है बोलो? आकाश बोला- दरअसल सुहानी जी, मुझे आप बहुत अच्छी लगी, पर मैं डर रहा था कि कहीं आप गुस्सा न हो जाओ अगर सीधे ही बोल दिया तो। मैंने पलट के जवाब देते हुए कहा- अच्छा इसलिए तुम मेरे बूब्स देखने लगे? और वापस जान के लिए पलटने लगी।

आकाश थोड़ा बेसब्र सा होके मेरे करीब आया और हाथों को दीवार पे सटा के मुझे घेर के खड़ा हो गया और बोला- प्लीज मुझे माफ कर दो! मैं बहक गया था. एक बार मेरी बात तो सुन लो प्लीज? जाने की लगी है आपको तो। मैं बोली- हम्म जल्दी बोलो? आकाश बोला- क्या आप मुझसे फ्रेंड्शिप करोगी, मेरे सब दोस्त कहते हैं कि मैं बहुत अच्छी दोस्ती निभाता हूँ।

इधर सोनम ने फोन पे धीरे से कहा- थोड़े से नखरे करते हुए मान जा। तो मैंने थोड़े से नकली नखरे करते हुए आकाश के दोस्ती के प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया।

कहानी जारी रहेगी. [email protected]

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