मैं तो जवान हो गयी-1

दोस्तो, मेरा नाम कृति है, और मैं आज अन्तर्वासना की नियमित पाठिका हूँ। मैंने बहुत सी कहानियाँ पढ़ी हैं, और लोगों की कहानियाँ पढ़ कर मैंने सोचा, यार जब सब अपनी अपनी कहानी लिख रहे हैं, और कुछ दूसरे लेखकों से लिखवा रहे हैं, तो क्यों न मैं भी अपनी कहानी लिख कर देखूँ। मगर बहुत कोशिश के बाद भी मुझे मेरी लिखी कहानी पसंद नहीं आई। तो मैंने अन्तर्वासना के एक लेखक वरिंदर सिंह से ईमेल पर राबता कायम किया और उनसे अपनी कहनी लिखने को कहा, उनसे बहुत सी बातें हुई, उन्हें मैंने अपनी वो सभी डिटेल्ज़ दी, जो उन्होने मुझ से मांगी। और फिर जो कहानी उन्होने मुझे लिख कर भेजी, वो आज आपके सामने है, ये मेरी सच्ची कहानी है, पढ़िये और मज़ा कीजिये।

हैलो दोस्तो, मेरा नाम कृति है, और मैं अभी सिर्फ 18 साल की हूँ। वैसे तो अक्सर फिल्मों में गीतों में आप सबने सुना देखा होगा, मैंने भी सुना और देखा था कि लड़की 18 की हो गई, उस पर बहुत जवानी आ गई, आग का गोला हो गई। फिल्मों में तो 35 साल की औरत को 18 की बता देते हैं, मगर मैं जिस दिन 18 साल की हुई मुझे ऐसा कोई बदलाव मुझ में नज़र नहीं आया। मैं सोच रही थी कि ऐसा क्या हो गया आज, जो कल नहीं था।

यह बात मैंने अपनी एक क्लासमेट से करी तो वो बोली- अरे शीशे में देखना खुद को, पता चल जाएगा। वो थोड़ी भरी हुई कद काठी वाली थी। हमारी क्लास में सबसे जवान वो ही लगती थी, बड़े बड़े मम्मे, मोटी मोटी जांघें, और ये बड़े बड़े चूतड़। पहली बार मैं उसी के मुँह से सुन था के चूतड़ों को गांड भी कहते हैं क्योंकि मैं तो हमेशा बैक या हिप्स ही कहती थी, चूतड़ तो मुझे बोलने में भी शर्म आती थी। उसका ज्ञान हमारी क्लास में सबसे ज़्यादा था, इसीलिए हम सभी उस से ही सेक्स की बातें पूछते होते थे। जब भी फ्री पीरियड होता, तो वो अक्सर हम लड़कियों को सेक्स के बारे में अपना ज्ञान बांटती। क्लास की सभी लकड़ियाँ तो उसकी दोस्त नहीं थी, बहुत सी तो उसे अच्छा भी नहीं मानती थी। मगर हम जिन लड़कियों की वो दोस्त थी, उनसे वो बहुत खुल कर बात करती थी।

एक बार तो क्लास में उसने पहली बार हम लड़कियों को अपनी उसमें (चूत में) उंगली डाल कर दिखाई। मैं तो देख कर हैरान हो गई, उसके हाथ की बीच वाली बड़ी उंगली, वो डालती गई और सारी उंगली अंदर चली गई। उसने हमसे भी ऐसे ही करने को कहा। मगर मैं नहीं कर सकी, मैंने मना किया, मगर कुछ और लड़कियों ने ट्राई किया और उनकी उंगली भी अंदर चली थी। कुछ ने कहा कि दर्द होता है, मगर कुछ को कोई दर्द या कुछ अलग सा नहीं लगा. मुझे दोनों से ज़्यादा, ये सब करना अजीब लग रहा था, इसलिए मैंने नहीं किया।

उसने ही जब मुझे मेरे अठारहवें जन्मदिन के बाद खुद को शीशे में देखने को कहा था, तो मैंने घर आकर खुद को शीशे में देखा, मुझे तो कुछ भी फर्क नहीं लगा। बिल्कुल कल जैसी ही तो थी मैं। मैं अक्सर खुद को शीशे में देखती और मुझे कोई फर्क नहीं दिखता।

फिर मैंने उस से बात की कि मुझे तो कोई फर्क नहीं लगा। वो बोली- कैसे देखा था खुद को शीशे में? मैंने कहा- जैसे मैं अब हूँ। वो बोली- अरे पागल, ऐसे नहीं, कपड़े उतार कर खुद को शीशे में देखना। अपने सारे जिस्म को, अपने मम्मे देख, बड़े हुये कि नहीं, अपनी चूत देख, इस पर झांट और घनी हुई या नहीं। अपनी गांड देख, और भारी हुई या नहीं। मैंने कहा- अब यार, तेरे जैसी तो नहीं हो सकती मैं। वो बोली- मेरे जैसे न सही, अपने जिस्म में होने वाले चेंजेज़ को नोटिस कर। हम मेडिकल के स्टूडेंट है, आगे हमें ये सब दिखाया जाएगा, सिखाया जाएगा। मेरे भैया भी डॉक्टर हैं, उनकी बुक्स मैंने देखी, उनमें तो मैंने बहुत सी मर्द औरतों की नंगी डायाग्राम देखी, बहुत सी पिक्स भी थी।

फिर एक दिन जब घर में कोई नहीं था तो मैं मम्मी पापा के ड्रेसिंग रूम में गई। वहाँ पर फुल साइज़ का शीशा लगा था। मैं उसके सामने खड़ी हुई तो मैंने खुद को देखा, सर से पाँव तक पूरे कपड़ों में। फिर मैंने अपनी टीशर्ट उतारी, फिर अपनी अंडर शर्ट उतारी, अपनी जीन्स उतारी। अभी तक भी मुझे खुद में कोई खास फर्क नज़र नहीं आ रहा था, वही कृति तो हूँ मैं। फिर मैंने अपने ब्रा और पेंटी भी उतार दिये। मेरे बदन पर कपड़े नाम पर सिर्फ कलाई पर मौली थी और कुछ नहीं।

मैंने बड़े ध्यान से अपने आपको देखा सर से लेकर पाँव तक; मेरे बूब्स भी वैसे ही थे … नहीं यार, ये मुझे कुछ बढ़े हुये लगे। मैंने अपने बूब्स दबा कर देखे, मेरे हाथ में तो उतने ही आए, जितने पहले आते थे, फिर मुझे क्यों लग रहा था, जैसे मेरे मम्मे बड़े हो गए हों। फिर मैंने नीचे देखा, सपाट पेट के नीचे मेरी रेशमी घनी झांट … ये भी तो वैसी ही थी। तो क्या बदला है मेरे अंदर?

मैंने अपने सारे बदन को टटोल कर, दबा कर छू कर देखा, मगर मुझे ऐसा कुछ खास नज़र नहीं आया जिसे देख कर मैं कह सकूँ कि हाँ मैं भी जवान हो गई हूँ; मुझे भी यौवन चढ़ा है।

फिर मुझे अपनी सहेली की वो बात याद आई, फुद्दी में उंगली लेने की। मैंने सोचा अपनी उंगली अपनी फुद्दी में डाल कर देखनी चाहिए। जब मैंने अपनी फुद्दी के दोनों होंठों के बीच में उंगली लगाई, तो वो अंदर से गीली गीली लगी। ये तो पहले कभी ऐसे गीली नहीं हुई थी। जब इसे पानी से धोती हूँ, सुसू करने के बाद तब गीली होती है। मगर अभी तो मैंने इसे पानी से नहीं धोया, फिर ये गीली क्यों है? मैंने अपनी फुद्दी के दोनों होंठों को अपने हाथों से खोल कर देखा। अंदर से गुलाबी, जैसे मुँह के अंदर गुलाबी होता है। अब ये भी तो एक तरह से जिस्म के अंदर का हिस्सा हुआ न, तो अंदर से गुलाबी ही होगा।

मैं बार बार अपनी फुद्दी को खोल खोल कर देखती रही और मेरे अंदर से वो पानी सा आता रहा, और इतना आया कि थोड़ी देर बाद मेरे हाथ भी गीले हो गए। हाँ … ये सब पहली बार हो रहा था। ये तब कभी नहीं हुआ जब मैं छोटी थी, ये तो जवानी में ही होता है, जिसे गर्म होना कहते हैं।

मैंने फिर से अपने बदन को सामने शीशे में देखा, अब मुझे ऐसे लगने लगा कि जैसे मैं बहुत जवान हो गई हूँ। मुझे तो मेरे बूब्स मेरी मम्मी के बूब्स जितने बड़े लगने लगे। मैंने घूम कर देखा तो मुझे तो मेरे चूतड़ भी बड़े बड़े लगे। अब मैं समझी कि बचपन और जवानी में क्या फर्क है! फर्क है नज़रिये का … आप किसी को या खुद किस नज़रिये से देखते हो, एक युवा लड़की अगर आपकी अपनी है, तो वो बेटी है, बहन है। मगर वही लड़की अगर आपकी अपनी नहीं, पड़ोसी या किसी और की है, तो वो एक आइटम है, चीज़ है, मस्त माल है. और दिमागी बीमार लोगों के लिए तो सिर्फ एक फुद्दी है जिसे वो मारना चाहते हैं बस।

मगर अपने इस नए रूप को मैंने सच में पसंद किया। मुझे ये नया नया जवानी का एहसास बहुत प्यारा लगा।

अगले दिन जब मैं स्कूल गई तो मैंने अपनी सारी बात अपनी सहेली को बताई, वो भी बोली- मैं न कहती थी कि तू अब 18 की हो गई है, अब तो बदल गई है। वक्त अब मेरे लिए और भी हसीन हो गया। मैं भी फिल्मी दुनिया के ख्वाबों में उड़ने लगी। मुझे भी कोई आने सपनों का राजकुमार चाहिए था।

एक दिन मुझे मेरे सपनों का राजकुमार भी मिला … अभिषेक … मेरा पहला प्यार! प्यार भी यूं ही नहीं हुआ, वो मुझे 4-5 साल बड़ा है। हमारी मुलाक़ात एक शादी में हुई। वो भी नया नया एन डी ए क्लियर करके फौज में भर्ती हुआ था। गोरा चिट्टा, हैंडसम, पतला दुबला मगर फिर भी बड़ा ही मजबूत सा दिख रहा था। सबसे बड़ी बात उसका बोलने का सलीका।

अब शादी में गए थे तो मैंने भी पूरा मेकअप किया था और बहुत ही शानदार लहंगा पहन रखा था। उस दिन भी मैं अपने आपको खूब जवान लग रही थी और अपने आप पर मुझे प्यार भी बहुत आ रहा था, इतनी सुंदर लग रही थी मैं।

जब आंटी ने मुझे और अभिषेक को मिलाया तो अभिषेक ने मुझ से ‘हैलो मिस’ कह कर हाथ मिलाया। उसका छूना था और मेरे तो दिल के तार झनझना उठे; इतना रोमांचित हुई मैं कि मन जैसे खुशी से भर गया। पहली बार लगा दिल को कि ‘यार यही है वो … इसी से शादी करूंगी मैं!’

मगर बात उस शादी के समारोह तक ही नहीं रुकी, उसके बाद भी अभिषेक एक दो बार और मिला। एक बार वो हमारे घर भी आया। शायद उसे भी मैं पसंद आ गई थी और वो भी हम लोगों से दोस्ती बढ़ाना चाहता था, या शायद रिश्तेदारी … वो अपनी मम्मी को साथ लेकर आया।

जब मैं और अभिषेक आपस में बैठे बातें कर रहे थे, तो मम्मी आकर हमें चाय दे कर गई तो मैंने मम्मी के आँखों में देखा। एक अजीब सी चमक थी उनकी आँखों में … शायद वो जान गई थी कि मैं अभिषेक को पसंद करती हूँ और वो भी अभिषेक और मेरी जोड़ी को पसंद करती हैं. शायद उन्हें अभिषेक में अपना होने वाला दामाद दिखा हो।

अब हम दोनों ने अपने अपने मोबाइल नंबर आपस में एक दूसरे को दे दिये थे तो अभिषेक अक्सर मुझे फोन कर लेता था, मैं भी कर लेती थी। मगर अभिषेक से मैं हमेशा घर वालों से छुप कर ही बात करती थी। हाँ, मम्मी से कम ही छुपाती थी, उनको तो अक्सर बता भी देती थी कि अभिषेक का फोन था, वो उनकी आँखों में अपने लिए प्यार देख कर मुझे बहुत अच्छा लगता था।

दोस्ती बढ़ी तो एक दिन फिर अभिषेक ने मुझे प्रोपोज भी कर दिया। मैं तो पहले ही उस पर मर मिटी थी तो मैंने भी हाँ कहने में ज़रा सी भी देर नहीं लगाई। अभिषेक ने भी कहा कि उसकी ट्रेनिंग आने वाली है, ट्रेनिंग के बाद वो अपनी मम्मी पापा के साथ हमारे घर आएगा और वो हमारी शादी की बात करेंगे।

मैं बहुत खुश हुई, उस दिन प्रोपोज डे पर पहली बार अभीषेक ने मुझे किस किया। मुझे अपने पास खींचा, अपने सीने से लगाया और मेरी थोड़ी ऊपर को उठा कर अपने होंठ मेरे होंटों पर धर दिये। उसके साथ मैंने भी उसे चूमा। दोनों ने एक दूसरे के होंठों पर बार बार चूमा।

मगर उसने कोई और हरकत नहीं की, न तो मेरे होठों को चूसा, न ही मेरे बूब्स दबाये। कोई भुक्खड़पन नहीं दिखाया। जब हम अलग हुये तो मेरे होंटों से कुछ लिपस्टिक उसके होंटों पर भी लग गई थी।

उसके बाद तो खैर वो मेरे पक्का बॉयफ्रेंड बन ही चुका था तो मैंने अपनी क्लास की सब लड़कियों को बता दिया। एक दो से तो वो मिला भी था। हम अक्सर मिलते ज़्यादातर मेरे स्कूल खत्म होने के बाद; वो अपनी गाड़ी ले कर आता और मुझे सिर्फ चार पाँच मिनट के लिए ही घूमा कर लाता। इसी 4-5 मिनट में हम एक दूसरे से खूब दबा कर गले मिलते, खूब चूमते एक दूसरे को।

अब जैसे जैसे वो आगे बढ़ रहा था, मैं भी उसके साथ और खुलती जा रही थी। अब तो वो मेरे मम्मे दबा देता, मेरी स्कर्ट ऊपर उठा कर मेरे जांघों पर हाथ फेरता, मुझे भी मज़ा आता।

फिर एक दिन उसने मेरी फुद्दी को छू लिया; मुझे बहुत अजीब लगा। मगर वो बोला- कृति, मुझे ये देखनी है। मैंने उससे कहा- तुम अपनी ट्रेनिंग पूरी कर आओ, हम शादी कर लेंगे, फिर चाहे रोज़ देखना। मगर वो नहीं माना और ज़िद करने लगा।

उस दिन चाहे मजबूरी में ही सही मैंने उसके सामने अपनी पेंटी उतारी और उसे अपनी फुद्दी दिखाई। उसने बड़े प्यार से छू कर देखा। मेरी झांट में अपनी उंगली घुमाई, बस इतने में ही मेरी फुद्दी से पानी निकल आया। उसने अपने उंगली मेरी फुद्दी के अंदर डालनी चाही तो मैं थोड़ी तड़पी। “क्या हुआ?” अभिषेक ने पूछा। मैंने कहा- दर्द होता है। वो बोला- क्यों क्या कभी कुछ लिया नहीं अंदर? मैंने उसके कंधे पर एक झांपड़ मारा और कहा- बदतमीज़।

वो बेशर्मो की हंसी हंसा, मेरी फुद्दी पर एक किस किया और बोला- चलो तुम्हें घर छोड़ दूँ! उसने गाड़ी चलाई और मैं अपने न जाने किन ख्यालों में खो गई। सोचने लगी कि ये अभिषेक मेरे साथ ठीक कर रहा है या नहीं। कहीं मेरा इस्तेमाल तो नहीं कर रहा। इन्हीं ख्यालों में खोई मैं घर वापिस आ गई।

घर आकर मैं अपने बाथरूम में गई और कपड़े बदलने लगी। जब मैंने अपनी स्कर्ट खोली तो मैं तो हैरान रह गई. “अरे मेरी पेंटी?” फिर मुझे याद आया- अरे पेंटी तो मैंने अभिषेक की गाड़ी में उतारी थी। मैंने झट से अभिषेक को फोन किया- हैलो अभिषेक, मेरी पेंटी तुम्हारी कार में रह गई है, याद से उठा कर छुपा लेना। वो बोला- चिंता मत करो, मैंने पहले ही उठा ली थी, मगर अब तुम्हें वापिस नहीं करूंगा. मैंने पूछा- क्यों? वो बोला- तेरी मोहब्बत की निशानी संभाल कर रखूँगा। मुझे इसमें कोई खास बात नज़र नहीं आई तो मैंने कह दिया- रख लो।

मगर अब एक नया बदलाव अभिषेक में ये आ गया था कि वो अक्सर हमारी मुलाक़ात के दौरान मेरे जिस्म से छेड़छाड़ करता था। किस करना तो मुझे भी पसंद था, मगर वो मेरे मम्मों से खेलता, उन्हें दबाता, और मेरी स्कर्ट उठा देता और कहता- जब तक मेरे साथ मेरी गाड़ी में बैठी हो, तुम्हारी स्कर्ट नीचे नहीं होनी चाहिए, मुझे तुम्हारी गोरी गोरी टाँगें देखना अच्छा लगता है। वो मेरी कमीज़ के बटन खुलवा देता और अक्सर कहता कि शर्ट के नीचे अंडरशर्ट मत पहना कर, सिर्फ ब्रा पहना कर। मगर स्कूल में अंडरशर्ट पहनना ज़रूरी था।

मुझे उसकी कई बातें अच्छी नहीं लगती थी मगर मैं उससे प्यार ही इतना करती थी कि मैं उसकी किसी भी बात कर कभी खुल कर विरोध करती ही नहीं थी।

फिर एक दिन हम दोनों जब मेरे स्कूल से वापिस आ रहे थे तो तो उसने मुझे रास्ते में आईसक्रीम खिलाई और फिर बोला- कृति, मेरे लिए एक छोटा सा काम करोगी? मैंने पूछा- क्या? वो बोला- अगर मैं अपने लंड पर आईसक्रीम लगाऊँ तो क्या तुम वो आईसक्रीम खा सकती हो? मैं तो उसकी बात सुन कर हैरान ही रह गई।

कहानी जारी रहेगी. [email protected] कहानी का अगला भाग: मैं तो जवान हो गयी-2