बीवी के बदले बीवी

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दोस्तो, मैं आपका दोस्त रसूल खान! आज आपको अपनी एक नई कहानी बताने जा रहा हूँ। ये बात बहुत पहले शुरू हुई थी, तब मैं स्कूल में पढ़ता था। मेरे चचाजान सलामत खान की शादी हुई रज़िया बेगम से। रज़िया चाची घर में आई तो घर में रौनक आ गई। बहुत ही हसीन और बेहद दिलफ़रेब। सच कहूँ तो रज़िया चाची मेरी पहली मोहब्बत थी। मैं मन ही मन सोचता सलामत चाचा की लग गई, क्या हसीन बीवी मिली है। मुझे उनसे पहली ही नज़र में इश्क हो गया। मगर हमारे बीच उम्र का फासला और रिश्ते का लिहाज। तो मैं चाह कर भी रज़िया चाची को अपने दिल की बात नहीं कह पा रहा था।

बेशक मैं हमेशा उसके हर हुकुम को अपने तहे दिल से पूरा करता था। वो भी मुझसे बहुत मोहब्बत करती थी मगर उसकी मोहब्बत हमारे रिश्ते के दाएरे में थी और मेरी मोहब्बत में जिस्मानी इश्क भी शामिल था। जब भी वक़्त मिलता, मैं रज़िया चाची के आसपास ही रहता। इसका फायदा यह हुआ कि मुझे कई बार रज़िया चाची के हुस्न के दीदार हो जाते। चेहरे के नहीं रे … कभी उनके बड़े बड़े दूध से गोरे मम्मे दिख जाते, कभी उनकी टाँगें, चाहे घुटने से नीचे की दिखती मगर गोरी चिकनी मांसल टाँगें देखकर मैं सोचता कि ‘सलामत चाचा चूम चूम कर मज़े लेते होंगे। कितने बड़े बड़े और खूबसूरत मम्मे है चाची के, सलामत चाचा तो खूब चूसते होंगे.’ और यही सब सोच कर मैं भी अपना लंड हिलाता और रज़िया चाची के नाम से अपना माल गिराता।

खैर वक्त बीतता गया। सलामत चाचा की शादी को पाँच साल हो गए मगर उनके घर कोई किलकारी नहीं गूंजी। अब मिडल क्लास परिवार में सब औरत को ही कहते हैं। चाची को बहुत सारे उलाहने सुनने को मिले; कभी कभी तो वो रो देती। मैं भी अब पूरा जवान हो चुका था। चाची मुझसे बहुत प्यार करती थी और मुझ पर भरोसा भी बहुत करती थी।

एक दिन ऐसे ही दोपहर बाद मैं उनके पास ही बैठा था तो भाभी कुछ उदास सी थी। मैंने वैसे ही पूछा- क्या हुआ चाची, आप बड़ी उदास हो आज? वो पहले तो टाल गई मगर मेरे बार बार पूछने पर बोली- बड़ी फूफी आज तुम्हारे चाचा से कह रही थी कि अगर रज़िया के कुछ नहीं होता तो दूसरी शादी कर लो। मुझे बड़ा गुस्सा आया पर मैं कर भी क्या सकता था। कुछ और भी बोला था बड़ी फूफी ने! तो वो सब बातें करके चाची का मन भर आया और वो रोने लगी।

मैंने चाची के कंधे पर हाथ रखा और कहा- चाची, बड़ी फूफी तो पागल है, पता नहीं क्या अनाप शनाप बकती है। आप दिल को मत लगाओ। मगर चाची बोली- क्या दिल को मत लगाओ यार, ये कहना आसान है लेकिन मुझे पता है कि अगर तेरे चाचा ने मुझे तलाक दे दिया तो मैं कहाँ जाऊँगी। मैंने आव देखा न ताव झट से कह दिया- तो आप मुझसे शादी कर लेना।

पहला रिएक्शन चाची का एक जोरदार चांटे के रूप में मेरे गाल पर आया। उसके हाथ की दो काँच की चूड़ियाँ टूट भी गई- रूसी ( वो मुझे प्यार से रूसी ही बुलाती थी) तुम मेरे बारे में ऐसा सोचते हो? वो अपना रोना भूल कर मेरी तरफ बड़ी हैरानी से देख रही थी। मैंने कहा- देखो चचीजान, अब बात खुल ही गई है तो खुल जाने दो। मैं आपसे बहुत मोहब्बत करता हूँ। अगर चाचाजान आपको छोड़ देते हैं, तो मैं आपसे निकाह करने को तैयार हूँ। चाची और कुछ तो नहीं बोली, सिर्फ इतना कहा- दफा हो जाओ यहाँ से।

मैं चुपचाप चांटा खाकर आ गया। कुछ दिन चाची के सामने नहीं गया। बस ऊपर अपने कमरे की खिड़की से उसे नीचे चलते फिरते देखता रहता था।

फिर एक दिन चाची ने चलते चलते ऊपर मेरे कमरे की खिड़की की तरफ देखा। मैं तो पहले ही उन्हें देख रहा था। जब नज़रें मिली तो मैंने उन्हें सलाम कहा। उन्होंने भी अपने हाथ से मुझे सलाम का जवाब दिया। मैं तो खुशी से झूम उठा कि चाची का गुस्सा ठंडा हो गया। उन्होंने जाते जाते मुझे इशारे से बुलाया, मैं तो उड़ता हुआ गया सीधा चाची के सामने! “सलाम चाची जान!” मैंने कहा। वो बोली- वालेकुम्मसलाम, रूसी मियां … क्या हाल चाल हैं आपके? मैंने कहा- बस आज ही ज़िंदा हुआ हूँ।

वो हंस पड़ी। “बड़े कमीने हो आप!” मुस्कुरा कर बोली। मैंने कहा- मैं न तो फरिश्ता हूँ, और न ही कोई दीवाना। इंसान हूँ और आप को देख कर तो असेब भी दीवाना हो जाए. मैंने चाची के हुस्न की खुल कर तारीफ की। वो हंस पड़ी, बोली- तू पगला गया है। मैंने कहा- हाँ, आपने पागल कर दिया।

उन्होंने मेरी आँखों में देखा, बोली- सच बता, क्या सच में इतनी मोहब्बत करता है, या सिर्फ अपने किसी गलीज मकसद को पूरा करना चाहता है? मैंने कहा- सच्ची मोहब्बत है रज़िया बेग़म, चाहो तो आज़मा लो। मैंने आज पहली बार उनका नाम लिया।

उन्होंने अपना दुपट्टा अपने सीने से हटाया और खरबूजे जितने बड़े दो मम्मे जो कमीज़ के गले से बाहर आने को बेताब थे, मेरे सामने थे। चाची बोली- अगर कुछ और चाहिए, तो ले तेरे सामने बैठी हूँ, मगर मुझे मोहब्बत में फरेब नहीं चाहिए। मैंने चाची का दुपट्टा उठा कर उनके कंधे पर रखा और कहा- रज़िया, मेरी मोहब्बत को कभी जिस्म के तराजू में मत तोलना। और मैं उसके कमरे से बाहर आ गया।

कहने को तो मैं फिल्मी डायलोग मार आया था मगर मैं डर भी रहा था कि अगर चाची ने मुझसे सिर्फ सच्ची मोहब्बत की और मुझे कभी पास नहीं आने दिया तो क्या होगा। फिर मैंने सोचा, कोई बात नहीं, अगर वो भी मेरी मोहब्बत का जवाब मोहब्बत से देगी तो इतना भी चलेगा।

मगर दो जवान जिस्म कब तक एक दूसरे से जुदा रह सकते हैं। एक दिन चाचा को अपने काम के सिलसिले में कहीं जाना पड़ गया। वो दो तीन के लिए बाहर थे। मुझे तो उनके जाने के अगले दिन पता चला। मैंने यूं ही मौका देखकर चाची को आँख मार दी। अब मोहब्बत में ये सब तो चलता ही था। जवाब भी माकूल आया; उसने भी आँख मार दी।

मैंने अपना हाथ अपने सर पर फेरा; उसने भी फेरा। अपने सीने पर मैंने हाथ फेरा तो उसने भी अपने मम्मे पर हाथ फेरा। मैंने तो अपना लंड पकड़ कर हिला दिया तो वो खूब हंसी। दोबारा मैंने अपना लंड पकड़ कर उसे हिला कर दिखाया तो उसने हाँ में सर हिला दिया। मैंने इशारे से कहा- आज रात को! तो वो मुस्कुरा कर चली गई।

मैं तो कलाबाज़ियाँ खाने लगा। तो क्या आज रात को मुझे चाची के साथ सेक्स करने का मौका मिलेगा। मुझे तो नींद ना आए रात को। मैं अपने कमरे की बत्ती बंद करके खिड़की के पास बैठा, नीचे देखता रहा कि कब चाची की तरफ से कोई इशारा आए। मैं तो खिड़की में बैठा बैठा ऊंघ रहा था.

करीब डेढ़ बजे चाची अपने कमरे से निकली सफ़ेद सूट में, चुपचाप से सीढ़ियाँ चढ़ कर वो ऊपर मेरे कमरे में ही आ गई। दरवाजा तो खुला ही था। अंदर आकर उसने कमरे का दरवाजा बंद किया और दरवाजे के साथ ही लग कर खड़ी हो गई। मैं उसके पास गया, उसकी सांस तेज़ चल रही थी। मैंने जाते ही चाची को अपनी आगोश में ले लिया। पहले तो वो वैसे ही खड़ी रही मगर फिर वो भी मुझसे लिपट गई। शायद अंदर ही अंदर सोच रही हो कि क्या वो जो करने जा रही है वो सही है गलत। मगर बाद में सोचा होगा, जो होगा देखा जाएगा, और फिर उसने भी मुझसे लिपट जाना ही बेहतर समझा।

दोनों ने बड़ी कस के एक दूसरे को बांहों में भरा। चाची के मोटे मोटे मम्मे जो हमेशा मेरे दिमाग में छाए रहते थे, आज मेरे सीने से चिपके हुये थे, मैंने चाची के मम्मों की नरमी, उनका फैलाव अपने सीने पर महसूस कर रहा था। नीचे उसका गदराया हुआ पेट भी मेरे पेट से लगा हुआ था। मैं सोच रहा था कि चाची अपनी पकड़ ढीली करे तो मैं इसके रसीले होंठ चूसूँ। मगर चाची तो बस जैसे मुझसे चिपक ही गई थी।

मैंने उसकी पीठ पर हाथ फेरा, चाची की ब्रा के ऊपर से भी सहलाया, कंधे, बगल, पीठ और चूतड़ तक सहला दिये। मगर वो तो बस जैसे उस लम्हे में जम गई हो। मैंने कहा- रज़िया, क्या हुआ मेरी जान? तब वो थोड़ी ढीली पड़ी और मैंने उसके अपने से थोड़ा सा अलग किया, मगर अब भी उसका पेट और उसके मम्मे मेरे जिस्म से लग रहे थे।

मैंने उसकी ठुड्डी ऊपर उठाई और फिर पहली बार मैंने रज़िया के लबों को चूमा। चूमा क्या बस चूस ही डाला। कितनी बार मैंने उसके होंठों को चूमा, चाटा, चूसा। वो बस बुत बन के खड़ी रही कि जो करना है कर लो। लबों की शीरीन को पीते पीते मैंने अपने हाथ से उसके दोनों मम्मे पकड़े। बहुत ही मुलायम, पर बहुत ही भारी, जैसे पता नहीं अंदर क्या भरा हो। दोनों मम्मों को दबा कर मैंने तो जैसे जन्नत पा ली हो।

मैं उसी तरह चाची के होंठ चूसता चूसता उसे बिस्तर तक ले गया, और उसे नीचे लेटा कर खुद उसके ऊपर लेट गया। तहमद में मेरा जवान लंड पूरे उफान पर था। मैं तो अपना लंड उसके पेट पर ही रगड़ने लगा। अब तो चाची भी मेरी पीठ सहलाने लगी थी।

मैंने चाची को छोड़ा और उठ कर सबसे पहले अपनी बनियान उतारी और अपनी लुंगी भी खोल दी। बेशक कमरे में रोशनी बहुत कम थी मगर फिर भी वो मेरा तना हुआ लौड़ा देख सकती थी। मैंने अपना लंड पकड़ कर हिलाया तो वो बेड से उतर कर नीचे बैठ गई, मेरा लंड अपने हाथ में पकड़ा और बस झट से मुंह में लेकर चूसने लगी।

यह तो मेरे लिए और भी नायाब तोहफा था। चाची मेरा लंड चूस रही थी, मैं भी उसके बदन को सहलाता था। थोड़ी देर चूसने के बाद वो खड़ी हो गई। मैं सोचने लगा, क्या हुआ, ये चुपचाप से खड़ी क्यों हो गई। फिर दिमाग में आया- अबे चूतिये, उसके कपड़े भी तो उतारने है, चल उतार।

मैंने चाची का कमीज़ ऊपर उठाया और उतार दिया, फिर उसकी अंडर शर्ट, फिर ब्रा और फिर सलवार भी खोल। एक मिनट में ही मेरी प्यारी रज़िया चाची मेरे सामने बिल्कुल नंगी खड़ी थी। मैंने चाची को गोद में उठा लिया, देखने में लंबी चौड़ी थी, मगर थी हल्की … उठा कर मैंने उसे बेड पे लेटाया और फिर खुद भी उसके ऊपर जा कर लेट गया।

अपने पाँव से मैंने चाची की टाँगें चौड़ी करी और अपने लंड को उसकी चूत पर सेट किया। फिर होंठों से होंठ जुड़े और एक हल्के से धक्के से मेरे लंड का टोपा रज़िया चाची की फुद्दी में घुस गया। बड़े आराम से गया क्योंकि वो तो पहले से ही पानी पानी हो रही थी।

जब लंड उसकी फुद्दी की गहराई में उतर गया तो अब तो वो खुद भी मेरे होंठ चूमने, चूसने लगी। मगर वो बहुत खामोश थी। मैंने ही पूछा- रज़िया क्या हुआ, सब कुछ कर रही हो, पर इतनी खामोश क्यों हो? वो बोली- आज आप मेरे मन के ही नहीं, मेरे जिस्म के भी सरताज बन गए हो। आज मैं खुद इस बात पर यकीन नहीं कर पा रही हूँ, इसीलिए चुप हूँ। मुझे अभी भी यकीन नहीं हो रहा कि जिस लड़के को मैंने अपनी शादी पर अपनी गोद में बैठाया था, आज वो लड़का मेरे जिस्म का मालिक बन गया है। थोड़ा अजीब लग रहा है कि मैं अपने शौहर से दगा कर रही हूँ, क्यों कर रही हूँ। क्या मिलेगा मुझे।

मैंने कहा- रज़िया इतना मत सोचो, सिर्फ ये सोचो कि ये हमारी मोहब्बत का पहला मिलन है और मैं पूरी कोशिश करूंगा कि अपनी मोहब्बत की इस निशानी को तुम्हारे पेट से पैदा कर सकूँ। “आमीन …” कह कर रज़िया मुझ से लिपट गई।

मैं चाचीजान को चोदता रहा। उसकी फुद्दी से फ़च फ़च की आवाज़ आती रही, बहुत पानी छोड़ा उसने भी। मैंने भी अपनी जवानी का रस उसकी फुद्दी में अंदर गहरे तक गिराया। सिर्फ एक बार नहीं उस रात तीन बार मैंने रज़िया की कोख को हरा करने के लिए जद्दोजेहद की। उस रात मेरी और रज़िया की सुहागरात थी।

उसके बाद तो ऐसे बहुत सी रातें आयीं, बहुत से दिन आए। जब भी मौका मिलता, मैंने रज़िया चाची को खूब चोदा, बेहिसाब चोदा। मेरी मेहनत रंग लाई … रज़िया पेट से हुई। पहले उसके लड़की हुई, दो साल बाद एक लड़का हुआ, उसके बाद एक और लड़का हुआ। तीनों मेरे ही बच्चे।

मगर बाद में एक दिन ना जाने कैसे चाचा को यह बात पता चल गई। उन्होंने मुझे बुलाया, पर न डांटा, न ही कुछ गलत कहा, सिर्फ इतना कहा- तू हमारे खानदान का चश्मो-चिराग है, जो तूने किया, अच्छा नहीं किया, मगर जो भी किया, उसका नतीजा अच्छा निकला। मैं तुझे कुछ नहीं कहूँगा, पर मेरे दिल को बहुत ठेस लगी है, और मैं चाहूँगा कि किसी दिन तेरे दिल को भी ऐसी ही ठेस लगे।

मैंने चाचा की बात को हवा में उड़ा दिया। वक्त बीतता गया। मेरी भी शादी हो गई। मेरी और चाची की यारी बदस्तूर जारी रही।

एक दिन मेरी बीवी को भी पता चल गया। मगर वो कुछ नहीं बोली, धीरे धीरे उसे ये भी पता चल गया कि मेरे और भी औरतों के साथ संबंध है। मैंने कोशिश की कि अपनी बीवी ज़रीना को भी इसी दलदल में खींच लूँ कि चाची और बीवी या बीवी और मेरी कोई माशूक एक साथ मेरे साथ हम बिस्तर हों। मगर मेरी बीवी नहीं मानी।

और वक्त बीता, मेरे बच्चे हो गए, बच्चे बड़े भी हो गए। मेरे अपनी बीवी की एक सहेली के साथ भी नाजायज ताल्लुकात हो गए। बेशक वो मेरी बीवी की बहुत अच्छी दोस्त थी, मगर बीवी को जब पता चला तो उसे बहुत नागवार गुज़रा और वो मेरे से बहुत नाराज़ हुई। हमारे घर में बहुत झगड़ा भी हुआ। गुस्से में मैंने अपनी बीवी पर हाथ भी उठा लिया।

अब देखा जाए तो मेरी भी उम्र 50 साल की हो गई थी, मेरी भी कोई उम्र नहीं थी ये सब करने की। मगर अब दिल का क्या करें। घर में झगड़ा बढ़ा तो चाची को पता चला। हम मियां बीवी में तो बोलचाल ही बंद थी क्योंकि दिक्कत ये थी, जो भी मैं करता था, घर से बाहर करता था, मगर इस बार बीवी ने मुझे उसकी सहेली के साथ उसके ही बेडरूम में नंगी हालत में देखा था। उसे गुस्सा इस बात का के मैंने कैसे किसी औरत को उसके बेडरूम में बुला लिया, जहां सिर्फ उसकी ही हुकूमत थी।

फिर एक दिन सलामत चाचा आए। हमारे घर का झगड़ा अब उनके कानों तक भी पहुंचा। मेरी बीवी उनके गले से लग कर बहुत रोई। उन्होंने उसे चुप कराया और अपने घर ले गए कि कुछ दिनों में जब मामला थोड़ा ठंडा हो जाए, तो फिर से वो हमरे बीच सुलह सफाई की कोशिश करेंगे।

मगर मुझे न जाने क्यों लगा कि चाचा मेरी इस हालत पर अंदर ही अंदर खुश हैं।

दो महीने बाद कहीं जाकर हम दोनों के बीच में सुलह हुई। वो मेरे घर आई, मैंने ज़रीना से कान पकड़ माफी मांगी और हम दोनों में ये इकरार हुआ तो अव्वल तो मैं ऐसा कोई काम करूंगा नहीं, और अगर करूंगा तो घर से बाहर ही करूंगा। चलो … सब कुछ ठीक ठाक चलने लगा।

अगले दिन ज़रीना ने मेरे लिए खाना बनाया, हम दोनों बैठे खाना खा रहे थे कि ज़रीना अचानक उठ कर भागी, मैं भी उसके पीछे गया। बाथरूम में जाते ही उसने उल्टी कर दी। मैंने उसे पानी दिया, उसकी पीठ सहलाई। मगर जब मैंने ज़रीना से पूछा- क्या हुआ? तो वो मुझसे नज़रें नहीं मिला पाई और रोती हुई, अपने कमरे में चली गई।

मैं समझ गया कि सलामत चाचा ने अपना बदला ले लिया।

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