हर किसी को चाहिए तन का मिलन-3

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आधा घंटा बीत चुका था दिनेश अपने कमरे में टीवी देख रहा था आरुषि को टीवी की आवाज़ सुनाई दे रही थी। आरुषि ने सब्जी को तड़का लगा कर जैसे ही आटा गूंथना शुरू किया, दिनेश ने उसे पीछे से जकड़ लिया वो सेल्फ पर झुकी हुई आटा गूँथ रही थी इसिलए खुद को दिनेश की पकड़ से छुड़ा भी न पाई; दिनेश ने उसके मम्मों को दबाना मसलना शुरू कर दिया। आरुषि- क्या कर रहे हैं पापा, छोड़िए न आटा गूँथने दो न! दिनेश- तुम आटा गूंथो, मैं तुम्हारे ये मोटे-2 मम्में! उसने आरुषि के मोम्मों को मसलते हुए कहा।

वो अपनी बहू के स्तनों को बुरी तरह मसल रहा था, रौंद रहा था और इसके साथ ही वो उसकी गर्दन चेहरे को चूमता जा रहा था. आरुषि की सिसकारियाँ निकल रही थी, वो आटा बनाते हुए “आह… ओह… माँ… ओह पापा… आह…” वो पागल सी होती जा रही थी।

दिनेश ने अपना एक हाथ आरुषि की मैक्सी के अंदर डाल लिया। आरुषि ने उसका हाथ बाहर निकालने की कोशिश की तो दिनेश ने उसका स्तन बेहद बेहरहमी से मसल दिया “आइ… आ… आ… मर गई” वो चीत्कार कर उठी। दिनेश- बहू, तुम्हारा आटा बन गया, अब चपातियाँ बनाओ, बाकी सब मुझ पर छोड़ दो। बड़ी प्यारी चूत है तेरी देख कैसे फड़फड़ा रहा है तेरी चूत का दाना… यह मुझे कह रहा है कि इसे लौड़ा चाहिए… बहू कस के शेल्फ पकड़ ले! आरुषि- पापा प्लीज नहीं…

वो एक आखिरी कोशिश कर रही थी, उसने न चाहते हुए भी शेल्फ को दोनों हाथों से पकड़ लिया। झुकने के कारण उसकी चूत ऊपर की तरफ हो गयी। दिनेश ने आरुषि को कमर से पकड़ लिया और लन्ड को चूत वे सेट करके ज़ोर से धक्का लगाया। “आ… आ… माँ मर गयी मैं…” आरुषि को लगा जैसे लोहे का मोटा डंडा उसकी बुर में डाल दिया गया हो।

दिनेश ने नीचे की तरफ देखा तो लन्ड लगभग आधा अंदर जा चुका था और खून की एक पतली सी धार आरुषि की टाँगों से होती हुई फर्श पे बह रही थी। “लगता इसकी सच में फट गई है… टाइट थी बहुत!” दिनेश ने अंदाज़ा लगाया पर यह समय रहम खाने का नहीं था, उसने पांच छह शॉट एक के बाद एक पेल दिए जैसे कि कोई ऐक्शन रीप्ले कर रहा हो आरुषि की दर्दनाक चीखों से सारा घर गूंज उठा, उसकी टाँगें काँपने लग पड़ी.

अगर दिनेश अपनी पूरी ताकत लगा कर उसे शेल्फ पर न झुकता तो यकीनन वो गिर पड़ती। दिनेश ने अपनी पूरी ताकत से आरुषि को शेल्फ पे दोहरा किया हुआ था उसने अपने दोनों हाथों से आरुषि के चेहरे को शेल्फ पर दबा रखा था आरुषि के स्तन शेल्फ से पिचक रहे थे उसकी साँस रुक रही थी। पर बेरहम बूढ़े को उसकी कोई चिंता नहीं थी उसने आरुषि को इसी पोजीशन में दबाए रखा और पीछे से गस्सों की रेल चला दी आरुषि पसीने से तरबतर हो गयी उसकी, जवानी को मसल के रख दिया गया था, उसके कानों में घस्सों की… फच… फच… पट… पट… फच… फच… की आवाज़ गूँज रही थी.

पर कुदरत भी अजीब है, लन्ड और चुदाई कैसी भी क्यों न हो, औरत की चूत उसके हिसाब से एडजस्ट कर ही लेती है ताकि चर्म सुख का आनन्द ले सके! और ऐसा ही आरुषि के साथ भी हुआ और धीरे धीरे उसका दर्द आनन्द में बदलने लगा… चीखों की जगह कामुक आहों ने ले ली- आह… आह… आह… ओह… आह… उम्म… उफ्फ… ओह्ह… अअ अअअ अअ… हहहहहह! एक लंबी आह के साथ उसका बदन अकड़ा और उसकी चूत ने पानी छोड़ दिया।

दिनेश ने उसे अपनी पकड़ से आज़ाद कर दिया पर आरुषि निढाल शेल्फ पर ही पड़ी रही… उसे परमानन्द का अनुभव हो रहा था, उसके ससुर का घोड़ा लन्ड अभी भी उसकी चूत में था पर अब वो उसे अपने ही बदन का हिस्सा लग रहा था… लन्ड की गर्मी उसे अच्छी लग रही थी।

दिनेश- बहू… आज तूने कामल कर दिया? आरुषि- पापा आपने तो पीस कर रख दिया है मुझे, मैंने क्या कमाल किया है, कमाल का तो आपका यह शैतानी लन्ड है। दिनेश- आज तो तूने इसे भी फेल कर दिया, पूरे तीन बार झड़ा हूँ और तू बस एक बार, इतनी कसी हुई चूत है तेरी कि यकीन नहीं होता। आरुषि- इतनी जल्दी आप तीन बार झड़ गए? दिनेश- पगली जल्दी थोड़े ही पूरे 45 मिनट से चुदाई कर रहा था तेरी। आरुषि- इतना टाइम पर मुझे तो लगा कि कुछ ही मिनट हुए हैं… अब निकालो लन्ड महाराज को मुझे रोटियां बनानी हैं। दिनेश- लन्ड निकालने की क्या ज़रूरत है तू रोटियां बना मैं हल्के हल्के धक्के लगता रहूंगा… आरुषि- पूरे चोदू हो आप… इतनी बुरी गत बना दी है मेरी फिर भी चैन नहीं है आपको… दिनेश- मुझे तो चैन ही चैन है पर अपने इस लन्ड का क्या करूँ? आरुषि- भागे थोड़े न जा रही हूँ, जल्दी-2 रोटियां बनाने दो, कोई आ गया तो दिक्कत हो जाएगी। दिनेश- ठीक है धक्के नहीं लगाऊंगा पर लन्ड अंदर ही रहने दे बड़ा सुख मिल रहा है।

आरुषि रोटियाँ बनाने लग पड़ी और दिनेश उसके मम्मों से खेलता रहा, बीच- 2 में दी चार झटके भी दे देता। “आह… आह… क्या कर रहे हो? रोटी टूट जाएगी.” वो प्यार से कहती। “अच्छा रोटी टूटने की चिंता है तुझे और जो तेरी इस कसी हुई चूत में मेरा लन्ड टूट रहा है उसका क्या?” दिनेश उसकी गांड पर हल्के हाथों से मारते हुए कहता। आरुषि- पापा निकालो न, देखो देर हो रही है… कोई आ जायेगा देखो 7 बज गए।

दिनेश ने टाइम देखा तो सात बज चुके थे उसने अपना लन्ड आरुषि की चूत से बाहर निकाल लिया। दिनेश- अब पड़ गयी तुझे ठंडक? ले बना ले रोटियां… मैं अपने कमरे में जा रहा हूँ।

दिनेश के चले जाने के बाद सबसे पहले आरुषि ने अपनी मैक्सी ऊपर करके अपनी चूत चेक की उसकी जमा हुआ खून और सूज गयी चूत देख कर बेचारी डर गई “हाय राम, कितनी बेहरमी से चुदाई की है कुत्ते ने क्या हाल कर दिया है… कितनी सूज गयी है.” उसने अपने आपसे से कहा और जैसे जैसे उसका बदन ठंडा पड़ता गया, असहनीय दर्द फिर से शुरू हो गया।

पर बेचारी क्या करती, कोई चारा नहीं था उसके पास… उसने किसी तरह रोटियां पकाई और अपने पति के लिए खाना टिफिन बॉक्स में पैक किया।

दर्द वक़्त बीतने के साथ साथ बढ़ता जा रहा था, उसने पानी हल्का गर्म किया और एक कपड़ा लेकर टाँगों पे लगा हुआ खून साफ किया और फिर अपनी चूत को साफ करने लगी, गर्म पानी से उसे जलन हो रही थी पर आराम भी मिल रहा था।

आरुषि रसोई के फर्श पर ही दीवार का सहारा लेकर बैठ गयी… वो अपने ससुर के सामने नहीं जाना चाहती थी, बेचारी थक चुकी थी, कब उसकी आँख लग गयी, उसे पता ही चला।

वो लगभग एक घण्टे तक सोती रही और कांस्टेबल ने जब डोरबेल बजाई तो उसकी आँख खुली। आरुषि बड़ी मुश्किल से दीवार का सहारा लेकर खड़ी हो सकी किसी तरह उसने टिफिन उठाया और दरवाजा खोल के कांस्टेबल को दिया और दरवाजा बंद कर दरवाजे के सहारा लेकर ही खड़ी हो गयी क्योंकि चल पाने की शक्ति अब उसमें न थी।

“नहीं…” अचानक अपने सामने दिनेश को देखकर वो चिल्लाई… और जैसे हिरण शिकार होने से पहले पूरी ताकत लगा कर शेर से दूर भागता है वो भी भागने लगी। दिनेश उसके पीछे भागा… वो लॉबी में सोफ़े के दाईं तरफ होती दिनेश बायीं तरफ से उसका रास्ता रोक लेता. “बहू क्यों डर रही है… चल आ मेरे पास!” दिनेश उसे बहलाने के लिए कहता।

वो बाईं तरफ होती तो दिनेश दाईं तरफ से सामने आ जाता… आरुषि छत की सीढ़ियों की तरफ भागी, वो लॉबी के उत्तरी कोने से ऊपर जाती थीं… दिनेश उसके पीछे भागा… उसने अपने शिकार को पकड़ने के हाथ आगे किया. आरुषि तो बच गई पर उसकी मैक्सी उसके हाथ में आ गयी और फट गयी. वो नंगी ही सीढ़ियों की और भागी और सीढ़ियों पे चढ़ने में कामयाब हो गयी। दिनेश सीढ़ियों के नीचे आते हुए- बहू नंगी ही छत पे जाओगी क्या? आरुषि अपने नंगे बदन को देखते हुए- पापा, प्लीज आज और मत करो, मैं और सहन नहीं कर पाऊँगी।

दिनेश- पहले तो शायद तुझे छोड़ देता पर अब जितना भगाया है तूने उसका हर्जाना तो भरना ही होगा न? अब तू नीचे आएगी या मैं ऊपर आऊँ पर अगर मैं ऊपर आया तो… आरुषि(नीचे उतरते हुए वो जानती थी इनके इलावा उसके पास कोई चारा नहीं है)- सॉरी पापा आपका लन्ड देख कर डर गई थी मैं प्लीज जाने दो न मुझे। दिनेश(आरुषि को पकड़ते हुए)- तुझे मजा नहीं आया? बोल? आरुषि- नहीं, आपने आज मेरे साथ जोर आजमाइश की है.

दिनेश आरुषि की चूत में उंगली घुसाते हुए- तू भी तो लन्ड लेना चाहती थी मेरा। आरुषि को उंगली का अंदर बाहर होना अच्छा लग रहा था पर वो खुद को रोक रही थी- यह झूठ है। दिनेश ने उसे सीढ़ियों की ग्रिल के सहारे झुका लिया और अपना लन्ड उसकी चूत पर रगड़ने लगा- अगर झूठ है तो तू मेरे लन्ड को देख कर उंगली क्यों कर रही थी? आरुषि- नही… आह… आह… ओह… माँ… प्लीज पापा रुक जाओ। दिनेश- झूठ मत बोल… तेरी आवाज़ बता रही है कि तुझे अभी भी लन्ड चाहिए… तू चाहे न कहे पर तेरी ये चाहत मैं पूरी करूँगा। उसने आरुषि की चूत पर लन्ड रगड़ते हुए कहा और एक जोरदार झटके से लन्ड पूरा पेल दिया।

“आई माँ मर गई…” आरुषि जल बिन मछली की भांति कराह उठी। दिनेश ने उसके स्तनों को ज़ोर से भीच लिया और हल्के हल्के झटके देने शुरू किए। दिनेश उसकी चुचियों को दबा रहा था, उसे चूम रहा था और लगातार हल्के हल्के झटके लगाए जा रहा था. आरुषि की चूत लन्ड की गर्मी से पिघलती जा रही थी, उसके बदन फिर गर्म हो रहा था, दर्द और शर्म की जगह काम सुख ने ली- आह… पापा बड़ा… मजा आ रहा है… ऐसे ही… आह… मुझे आपका लन्ड चाहिए… आह… दिनेश- देख आया न मजा… ऐसे ही नाटक कर रही थी.

आरुषि- उम्म… आह… अब से आप मेरे पति हो… आह… तेज़ करो फाड़ दो फिर से मेरी आह… दिनेश- हम्म आज से पत्नी हुई तू मेरी… क्या चूत है तेरी… आह… और नहीं सहन होता! आरुषि- तो कौन रोक रहा है… बन जाओ घोड़े और मसल दो मुझे… आह…

दिनेश ने अपने झटकों की रफ्तार एक का एक तेज़ कर दी ‘फच… फच…’ की आवाज से एक बार फिर सारा घर गूँजने लगा… दोनों ससुर बहू की एक लम्बी आह के साथ एक साथ झड़ गए। दिनेश का लन्ड सिकुड़ के अपने आप बाहर आ गया। आरुषि- पापा, मजा आ गया, मैं तो फैन हो गयी आपके इस मूसल लन्ड की। दिनेश- बहू अभी तो पूरा जलवा कहाँ देखा है तूने असली फैन तो तू रात खत्म होने पर बनेगी… अभी सारी रात बाकी है और चुदाई के कई दौर भी। आरुषि- अभी और चुदाई करोगे क्या ? कल कॉलेज कैसे जाऊँगी।

दिनेश- बस तू देखती जा बहू, सब ठीक कर दूँगा मैं। तू सोफ़े पर बैठ और टीवी देख मैं तेरे लिये कॉफी बना के लाता हूँ। आरुषि- नहीं पापा आप क्यों? मैं बनाकर लाती हूँ। दिनेश- अरे अब क्या औपचारिकता निभानी? तू आराम कर अभी बड़ी मेहनत करनी है तुझे। यह देख तेरे पापा का लन्ड फिर खड़ा हो गया है। आरुषि- हाय राम, कितना बड़ा लग रहा है यह तो।

बेचारी अपने ससुर के मूसल लन्ड को देख कर घबरा गई थी… अब उसके ससुर ने लन्ड पे रिंग भी लगा रखी थी, लन्ड खम्बे जैसा लग रहा था। दिनेश- बहू मेरी प्यारी रांड, तू लन्ड से मत घबरा यह तो तेरे मज़े की चाबी है। तू बैठ मैं आता हूँ।

दिनेश रसोई में गया, आरुषि ने टीवी ऑन कर लिया और “भाभीजी घर पर हैं” देखने लगी।

अंगूरी भाभी सुबह सुबह कपड़े सुखाने के लिए तार पर डाल रहीं हैं और विभूति अपने गेट से भाभी जी को उछलते हुए देख रहा है। विभूति- भाभी जी, गुड मॉर्निंग! अंगूरी- गुड़ मॉर्निंग विभूति जी। विभूति- भाभी जी क्या कर रहीं हैं। अंगूरी- कपड़े सूखा रहे हैं और क्या। विभूति अंगूरी के सुडौल स्तनों को घूरते हुए- भाभी जी आज आप कुछ ठीक नहीं लग रहीं हैं। अंगूरी- आई एक सक विभूति- सक तो हम करना चाहते हैं आपके इन संतरों को! अंगूरी- का बोले? विभूति- कुछ नहीं भाभी जी सक नहीं सिक होता है। अंगूरी- सही पकड़े हैं, आज हम कुछो बीमार हैं।

विभूति- बीमार तो हम हैं और आपका हुस्न एक दवा। अंगूरी- का बोले? विभूति- भाभी जी मैं कह रहा था कि आप बीमार कैसे हो गईं।

तभी दिनेश कॉफी के दो कप लेकर आ गया और आरूषि को कप देते हुए बोला- बीमार तो हम भी हैं, देखो तो बेचारा अभी तक अकड़ा हुआ है. आरुषि- इसमें मेरा क्या कसूर है? दिनेश- तेरा नहीं पर तेरे इस हुस्न का कसूर है। आरुषि- तो आओ इसका इलाज कर देती हूँ।

दिनेश उसके पास ही सोफ़े पर बैठ गया। आरुषि ने अपने ससुर के लन्ड को एक हाथ से पकड़ लिया और कॉफी पीते हुए मुठियाने लगी। दिनेश- बहू बड़ा मस्त माल है तू कॉफी पीते हुए लन्ड का मजा लेगी? आरुषि- पर मुझे तो नाटक देखना है। दिनेश- वो तो मैं भी देखूँगा, तू आ जा मेरी गोद में और चढ़ जा इस अजगर पे, फिर देख तीनों चीजों का मजा आएगा।

दिनेश सोफ़े पर पीठ लगा के आराम से बैठ गया, आरुषि उठी मुँह टीवी और पीठ दिनेश की तरफ करके दिनेश की गोद में बैठने लगी. दिनेश ने अपने लन्ड को पकड़ के आरुषि की चूत के नीचे सेट किया। आरुषि- ऊई माँ… चुभता है। वो लन्ड पर बैठते हुए बोली। वो जैसे अपना वजन लन्ड पर डालती जा रही थी वैसे वैसे लन्ड उसकी फुद्दी में घुसता जा रहा था। “उफ्फ… आह कितना मोटा है दर्द हो रहा है.” वो सिसक उठी। दिनेश- तुझे पसंद आया लन्ड?

आरुषि ने अपना पूरा वजन लन्ड पर डाल दिया और लन्ड सरकता हुआ जड़ तक समा गया. “अहह… पसंद है आह… ओह माँ!”

दिनेश ने हल्के हल्के झटके देने शुरू किए, उसका अजगर जैसा लन्ड आरुषि कि चूत के दाने से रगड़ खाता हुआ अंदर बाहर होने लगा। आरुषि की आह… आह… पूरे घर में गूँजने लगी। दिनेश- बहू, तू कॉफी नहीं पी रही बता तो कैसी बनी है? आरुषि- आह… अहह… आप इतना उछाल रहे हो कैसे पीऊँ? दिनेश- चल ऐसा करते हैं, मैं एक झटका दूँगा और तू एक घूँट पीना फिर मैं एक झटका दूँगा तो दूसरा घूँट पीना इतना कह कर दिनेश ने एक भारी झटका मारा उसका लन्ड जोर से आरुषि की बच्चेदानी से जा टकराया. उसने लन्ड पीछे नहीं खींचा अंदर ही रहने दिया आरुषि की चूत की कसावट और गर्मी से दिनेश को असीम मजा आ रहा था। आरुषि कॉफी पीते हुए- मस्त है। दिनेश- क्या मस्त है मेरी रांड? आरुषि- कॉफी और क्या?

दिनेश- तो मेरा घस्सा मस्त नहीं था? अब यह अगला वाला तुझे ज़रूर पसंद आएगा। उसने अपने लन्ड टोपे तक बाहर खींच लिया और फिर एक ज़ोरदार शॉट मारा, वैसा ही शॉट जैसा क्रिसगेल क्रिकेट में मरता है।

आरूषि चिल्ला पड़ी- आई माँ मर गयी… बुड्ढे फाड़ेगा क्या? आराम से कर! दिनेश यह सुन कर दिनेश की वासना चर्म पर पहुँच गयी और उसने बिना रुके 8-10 शॉट मार दिए और फिर आरुषि के मम्में दबाता हुआ बोला- साली मेरी रंडी बहू तू किस काम की जवान है जो बूढ़े से तेरी फट रही है।

ससुर की गन्दी बातों ने आरुषि की काम इच्छा को बढ़ा दिया, वो आरुषि को काफी सदमे दे चुका था पर अब उसकी बारी थी, इससे पहले कि वो कुछ समझ पाता, आरुषि लन्ड को चूत में लिए लिए ही 180 डिग्री घूम गयी, उसने अपनी गोरी बाहें अपने ससुर के गले में डाल दीं और फुल स्पीड लन्ड पर उठक बैठक करने लगी।

“आह… आह… साली रंडी लन्ड को छीलेगी क्या… आह… कुतिया आराम से कर…” दिनेश बेबस होता हुआ बोला। “साले बेटी चोद बूढ़े अब बोल… तेरे इस अजगर को चूहा न बनाया तो मेरा नाम आरुषि नहीं!” आरुषि मशीन की तरह उछलते हुए बोली, वो अपनी सारी ताकत लगा कर उछल रही थी उसके ससुर का लन्ड उसकी कसी हुई चूत में मछली की तरह फंसा हुआ था. वो कुछ देर और मुकाबला कर लेती तो जंग जीत जाती पर वो थक गई और कुछ धीरे हो गयी.

दिनेश बस झड़ने ही वाला था, मौका देख कर वो उस पर भूखे शेर की तरह झपट पड़ा, उसने आरुषि को सोफ़े पर फेंक दिया और उस पर घोड़े की तरह चढ़ गया; उसने आरुषि के गले को पकड़ लिया और ऐ. के47 की तरह ताबड़तोड़ शॉट लगाने शुरू कर दिए। “साली बड़ी चुदक्कड़ बन रही थी न… तेरी इस फूल सी चूत का भोसड़ा न बना दिया तो मैं अपने बाप की औलाद नहीं!” वो आरुषि को बेहरहमी से पेलते हुए बके जा रहा था।

आरुषि की सांसें चढ़ रही थी… वो भी कभी भी झड़ सकती थी, वो पागलों की तरह अपने मम्मों को मसल रही थी… चूत पे होते दम हमले उसे पागल कर रहे थे। दिनेश उसे घचाघच पेल रहा था अचानक दिनेश का बदन अकड़ने लगा, उसके झटके स्लो पर भारी हो गए, आरुषि का बदन भी चरम पर था और ऐंठ रहा था। एक लंबी चीत्कार के साथ दोनों झड़ गए और थकावट से निढाल गए दिनेश उसपर गिर गया और प्यार से चूमने लगा। दोनों काफी देर वहीं गिरा रहा।

तो दोस्तो, ये थी दिनेश की पिछली ज़िन्दगी का एक किस्सा ऐसे और भी कई किस्से मैं आपको सुनाऊँगी पर अब मैं अपनी कहानी पर वापिस आती हूँ।

कामुकता भरी चोदन कहानी जारी रहेगी. [email protected]

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