दशहरा मेले में दमदार देसी लंड के दीदार-1

नमस्कार दोस्तो, मैं लव शर्मा एक बार फ़िर हाज़िर हूँ आपके लिये एक और सच्ची और मज़ेदार गे सेक्स कहानी के साथ… काफ़ी समय से व्यस्तता के चलते आपके समक्ष प्रस्तुत नहीं हो सका. खैर कहानी की ओर बढ़ते हैं… आजकल तो मानो ऐसा लगने लगा है कि पूरी दुनिया ही कामुकता में डूबती जा रही है और हर तरफ़ जवान लौन्डों का मानो मेला सा लगा हुआ है क्योंकि आजकल के लड़के काफ़ी मदमस्त और सेक्सी होते जा रहे हैं और वैसे मैं भी मस्त जवान मर्द की ही इच्छा रखता हूँ जो मुझे मिल ही जाते हैं!

तो दोस्तो, बात इस साल के दशहरे की है… दशहरे का दिन साल का एक महत्वपूर्ण दिन होता है इसलिये इस दिन सभी जवान लौन्डे मस्त तैयार होकर अपने सेक्सी अंदाज़ में दिखाई देते हैं. वैसे काफ़ी पवित्र दिन होता है इसलिये मैं भी मंदिर गया, पूजा अर्चना की और दशहरे के चल रहे समारोह में भी हिस्सा लिया.

शाम हुई और दशहरे मैदान पर हज़ारों की भीड़ जमा हो गयी… मैं भी अपने कुछ दोस्तों के साथ वहाँ पहुँचा और आनन्द लिया लेकिन मुझे आनन्द में कुछ कमी लग रही थी क्योंकि वहाँ पर मानो जवान सेक्सी मर्दो का जमवड़ा लगा हुआ था और मैं आनन्द नहीं ले पाया था..

अब थोड़ा अँधेरा होने लगा था और एक के बाद एक मेरी आंखों के सामने कोई मस्त लौन्डा आ जाता और मेरे जिस्म में उथल-पुथल मच जाती… मेरा जी करता कि बस इन जवानी के मस्त मर्दों को अपनी बांहों में भर लूँ और जिस्म की मदमस्त खुशबू में डूब जाऊँ… साले इतने सारे एक से बढ़ कर एक जवान जिस्म आखिर कहाँ से आये हैं… और आज मैं जब अपने दोस्तों के साथ हूँ तभी ये लौन्डे मुझे मिलने थे.

अब मेरा मन अपने दोस्तों के साथ नहीं लग रहा था क्योंकि अब अँधेरा होने लगा था और भीड़ काफ़ी बढ़ गयी थी जिसमें ढेरों जवान मर्द थे जिन को छू कर और जिस्म की मदमस्त खुशबू ले कर लंड की भूख को कम किया जा सकता था. मैंने तभी अपने दोस्तों को किसी परिचित का बहाना बनाया और उन के पास से निकल लिया. अब मुझे मानो आज़ादी मिल चुकी थी.

अब मेरी कामुकता परवान चढ़ने लगी थी क्योंकि अँधेरा हो चुका था. मैदान काफी बड़ा था और शहर से दूर भी था… वहाँ आस पास कोई घर नहीं थे, खुला मैदान और खेत थे… साथ ही रावण के जलने में अभी करीब एक घंटे का समय बाकी था और भीड़ बस मैदान में थी बाकी आस पास सुनसान काली रात थी जो मुझे लंड के मिलने की उम्मीद जगा रही थी.

मैं मैदान की भीड़ भाड़ से थोड़ा अलग गया और सुनसान मैदान, हल्के अँधेरे और कुछ गिने चुने खण्डहरों को देखने लगा और इन सब के बीच किसी जवान मर्द के मूसल जैसे लंड की कल्पना करने लगा. वाह क्या माहौल था… कातिलाना… अब तो बस रहा नहीं जा रहा था… दिल कर रहा था कि किसी भी मदमस्त लोंडे को दबोच लूँ और उसके होंठों को तब तक होंठों में भर लूँ जब तक कि होंठों से खून ना निकल आये. क्योंकि साले इतने हेन्डसम और सेक्सी जवान लड़कों को मैं हाल ही में देख चुका था… इन जवान जिस्मों ने तो मानो मुझे पागल कर दिया था.

अब मैं इसी की तलाश में भीड़ में गया और अलग अलग जवान नये नवेले जिस्मों को निहारने लगा और मौका मिलते ही उस भीड़ भाड़ में मज़बूत जवान जिस्मों से लिपट जाता और कोई कुछ नहीं बोलता क्योंकि भीड़ ही इतनी थी वहाँ!

कुछ गाँव के लौन्डों की भीड़ में गया और मदमस्त जवान गाँव के छोकरों के जिस्मों का भी आनन्द लिया. कभी पास खड़े हो कर उन जवान गबरू की भुजाओं को पकड़ता तो कभी उनकी छाती के उभार पर अपना हाथ रख देता. साले गाँव के जवान छोरे शर्ट की खुली बटनों से झाँकती मर्दाना हल्के बालों वाली छाती और जिस्म की मदमस्त खुशबू से मुझे मदहोश कर रहे थे. लेकिन अब मुझ में ऐसे ही किसी जवान जिस्म और मूसल लंड की प्यास लग चुकी थी जिसे किसी मोटे लंबे लंड से निकला गर्म पानी ही बुझा सकता था.

इनमें से ज्यादातर मर्द अकेले नहीं थे, सभी समूह में थे और बातचीत करते हुए आतिशबाजी का आनन्द ले रहे थे इसलिये मैं चाह कर भी कुछ नहीं कर पा रहा था. इसलिये मैंने किसी ऐसे गबरू जवान को ढूँढने का फैसला किया जो अकेला हो और ऐसा कोई मिलना मुश्किल था जो अकेला हो.

समय बीतता जा रहा था और मेरी बेचैनी बढ़ती जा रही थी क्योंकि कोई भी अकेला नहीं था वहाँ पर… मेरी आंखें किसी अकेले जवान मर्दाना जिस्म वाले और फाड़ू लंड को ढूँढ रही थी और अचानक ही मेरी नज़र एक लौन्डे पर आकर रुक गयी और मानो एसा लगा कि मेरी खोज पूरी हो गयी. हालांकि वह लड़का मुझ से लगभग 200 मीटर की दूरी पर खड़ा हुआ था और ठीक तरिके से मैं उसे देख भी नहीं पा रहा था क्योंकि मैं उसके पीछे की ओर था और रोशनी भी कम ही थी पर दिल की नज़रों ने मानो उसे परख लिया था.

दूर से देखने पर, काले रंग की प्लेन शर्ट और जीन्स में एक नया नवेला थोड़े गठीले बदन वाला जवान लौन्डा दिख रहा था जिसके बारे में कुछ और जान पाना मेरे लिये मुश्किल था लेकिन दूर से ही उसकी भुजायें काफ़ी मोटी और मजबूत लग रही थी. अपने आप ही मेरे कदम उसकी ओर बढ़ने लगे जिससे पास आने पर उस का मर्दाना अंदाज़ मेरे सामने उजागर हुआ.

आँखें मानो उस पर टिक ही गयी थी, मैं उसके नज़दीक पहुंचा… करीबन 5’8″ हाईट, उम्र लगभग 22 साल, रंग गोरा, आकर्षक चेहरा जिस पर हल्की दाढ़ी और मूंछें थी. बाल वैसे स्टाइल में कटे हुए थे.. बीच के बाल आगे से पीछे की ओर थे और साईड़ के बहुत छोटे थे जो एक सेक्सी लुक दे रहे थे. और सबसे कातिलाना उसके डोले शोले जो उसकी प्लेन काले रंग की सिली हुई शर्ट में से साफ़ दिखायी दे रहे थे, शर्ट गहरे नीले रंग की जीन्स में अंदर की हुई थी, पीछे वाले जेब में रखा हुआ पर्स गान्ड पर अलग सा उभार दे रहा था… मानो उसे अपने पहनावे से ज्यादा मतलब नहीं था… वैसे भी ऐसे मर्दाना जवान जिस्म को तो किसी कपड़े की ज़रूरत ही नहीं थी.

मेरा दिल तो कर रहा था कि उसके शर्ट को अभी फाड़ कर अलग कर दूँ और उसके मजबूत जिस्म से लिपट जाऊँ और उन मज़बूत डोलों को, जो काले रंग की शर्ट में उभरे और फंसे हुए थे, को आज़ाद कर दूँ और चूम लूँ. वह देखने में ना ही ज्यादा शहरी लग रहा था और ना ही ग्रामीण… रंग गोरा था, चेहरे पर काफ़ी चमक और आत्मविश्वास साथ ही शर्ट का रंग काला जिससे उसका जवान जिस्म मानो कामुकता उड़ेल रहा था.

अचानक ही दो लड़के आये और उससे हाथ मिला कर बातें करने लगे और मुझे उसकी सेक्सी स्माईल दिखी. बातें करते हुए वह काफ़ी साधारण लगा, ना घमंड, ना ज्यादा नखरे और ना ही ज्यादा स्टाईल. देख कर दिल मानने को तैयार नहीं था और मेरे कदम उसकी ओर बढ़ने लगे, मैं उसके ठीक पीछे जाकर खड़ा हो गया, हालांकि मुझे इसके लिये काफ़ी मशक्कत करनी पड़ी क्योंकि खचाखच भीड़ थी. मैं धीरे धीरे आगे बढ़ते हुए उसके पीछे काफ़ी चिपक कर खड़ा हो गया और अपनी नाक उसकी पीठ से लगाते हुए उसकी मदहोश कर देने वाली मर्दाना महक का आनन्द लेने लगा. वाह क्या महक थी. उसने जो काले रंग की शर्ट पहनी थी वह रेडिमेड नहीं थी, दर्जी की सिली हुई थी और कपड़ा थोड़ा चिकना सा था जिससे उसके जिस्म की महक साफ़ आ रही थी. पीठ भी मजबूत और चौड़ी थी जिससे शर्ट में काफ़ी तनाव आ रहा था और पीठ पर बने हुए मसल्स के गड्ढे साफ़ दिखाई दे रहे थे जिन्हें मौका मिलते ही धीरे से मैंने छू कर अनुभव किया. और मैं उस भीड़ को मानो भूल सा गया, मुझे बस हम दोनों और हमारी कामुकता में डूबी हुई मानो सुहागरात लग रही थी.

देखते ही देखते उसने मज़ाक में उनमें से एक लड़के को उंचा उठा दिया क्योंकि शायद भीड़ में उसे रावण दिखायी नहीं दे रहा था. हाय… साले के डोले उसे उठाने पर काफ़ी फूल गये थे और लग रहा था कि अब उसकी शर्ट फट जायेगी और मज़बूत भुजायें आज़ाद हो जाएँगी.

अब तो मुझसे रहा नहीं गया और मैंने पीछे से ही उसके कड़क मजबूत डोले को पकड़ लिया. वाह कितने मज़बूत थे उसके हाथ, मजा आ गया था और अब दिल उसे छोड़ने को नहीं कर रहा था लेकिन छोड़ना तो ज़रूरी था. वह पीछे की ओर देखने लगा तो मैंने बात बनाते हुए कहा- भाई आगे निकलने दे ना यार… भीड़ बहुत है! कहते हुए मैं थोड़ी सी जगह में से उससे आगे निकल गया और उसने भी उस लड़के को उतार दिया.

अब मैं उसके आगे खड़ा हो गया और अब मुझे उसकी मर्दानी छाती के दर्शन हुए. साले की छाती भी उभरी हुयी थी और खुली हुयी बटन से उभार साफ़ दिखाई दे रहा था. भीड़ की वजह से वह भी मेरे काफ़ी करीब आ चुका था और अब मेरी पीठ में उसकी छाती का उभार महसूस हो रहा था जिसका थोड़ा अहसास शायद उसे भी था लेकिन भीड़ भी इतनी ज्यादा थी कि वह चाह कर भी मुझसे दूर नहीं हो पाता.

अब मैं कोशिश कर रहा था कि किसी तरह उसके लंड को छू सकूँ, यही सोच कर मैं थोड़ा साईड में हुआ ताकि मेरा हाथ उसके लंड के नज़दीक आ सके. धीरे धीरे मैंने भीड़ और धक्के का फ़ायदा उठाते हुए उसके लंड के उभार को हल्का छुआ, काफ़ी उभार था जो यह इशारा कर रहा था कि अंदर एक मोटा ताजा अजगर बैठा हुआ है जो मेरे शिकार को तैयार है. मेरा दिल मचल गया और दिल ने कहा कि उसका लंड खड़ा करूँ और मूसल जैसे लंड को अपने मुंह में भर लूं लेकिन किसी तरह काबू किया और दिल में यही असमंजस था कि अब इसके आगे बात कैसे बढ़ाई जाये. मैंने सोच लिया था कि चाहे कुछ भी हो इसके लंड को एक बार तो जरूर चखना है!

करीब 5 मिनट तक मैं वही खड़ा सोचता रहा कि आखिर क्या किया जाये. तभी मेरी पीठ के पीछे लगा हुआ सपोर्ट हटा जिससे मुझे लगा कि मेरा राजकुमार मेरे पीछे से हट चुका है और कहीं जा रहा है, मेरे पैरों के नीचे से ज़मीन खिसक गयी ‘हे भगवान! कहाँ ढूंढूंगा अब उसे… यही सोचता हुआ फटाफट मैंने इधर उधर देखा, वो मुझे जाता हुआ दिखाई दे गया, उसको देखता हुआ उसकी तरफ़ जाने लगा लेकिन मैं उसके पीछे नहीं बल्कि उससे दूर रह कर उस का पीछा कर रहा था.

तभी देखा कि वह भीड़ भाड़ से बाहर निकल गया और सबसे अलग दूर जाने लगा. मैं घबरा गया कि अखिर ये अचानक कहाँ जा रहा है, रावण तो जलना अभी बाकी है. यही सोचता हुआ मैं उसके पास जाने लगा लेकिन दूसरे रास्तों से छिप कर ताकि उसे पता नहीं चल सके कि मैं उसका पीछा कर रहा हूँ.

वो एक खण्डहर के पास जाकर रूक गया और मैं खण्डहर के दूसरी तरफ़ से होता हुआ उस सेक्सी मर्द के सामने की तरफ़ आ गया और छिप कर देखने लगा. वहाँ जो नज़ारा देखा, उसे देख कर तो मानो मेरे दिल की ख्वाहिश पूरी हो गयी. वो वहाँ खड़ा हो कर टाँगें चौड़ी कर के मोटी धार से मूत रहा था. सोया हुआ लंड भी काफ़ी मोटा और लम्बाइ में 6 इंच का लग रहा था जो वास्तव में मोटे अजगर की ही तरह था. क्या कातिलाना मर्द लग रहा था वो मूतते हुए… हाय!

अब मेरे सब्र का बाँध टूट चुका था और मैं पागल सा हो चुका था… मुझे बस लंड ही दिख रहा था… पता नहीं क्यों लेकिन मेरे पैर उसकी तरफ़ उठने लगे. वह अंजान था मेरे लिये और आगे कुछ भी हो सकता था लेकिन मुझे इस बात का ध्यान ही नहीं रहा.

उसने मुझे देखा और थोड़ा बगल में हो कर मूतने लगा लेकिन मैं उसके कातिल लंड को ही देखे जा रहा था और उसके नज़दीक पहुँच गया. हल्का उजाला था और आस पास कोई नहीं था. उसकी मूत की धार पतली हुई और उसने अपने 6 इंच के मोटे लटकते हुए लंड को झटकटे हुए लंड से कुछ बूँदे नीचे गिरायी… और वो कुछ बोला. मेरा तो दिल कर रहा था कि इन बूंदों को पल्स पोलियो की तरह अपने मुँह में टपका लूँ. वो पहले कुछ बोला था जिसे मैंने नहीं सुना इसलिये वह मुस्कुराते हुए भारी मर्दाना आवाज़ में दोबारा बोला- हाँ भाई! क्या हुआ? क्या चाहिये?

साला उसका तो अंदाज़ ही कातिलाना था… हल्की मुस्कान, काली शर्ट की खुली बटन से दिखती फूली मर्दाना छाती और चेहरे पर हल्की दाढ़ी मूँछ उसे पक्का मर्द बना रही थी. और 6 इंच का लटकता लंड… बताओ अब क्या कमी थी उसमें… दिल तो कर रहा था कि उसका एक फोटो खीच लूँ. हालाँकि वह नया नवेला मर्द था… उम्र होगी करीब 22 साल की… उसकी जवानी नयी थी और फूट फूटकर बाहर आ रही थी और उसकी जवानी के ताजे ताजे कामरस को मैं पीना चाहता था.

इसके आगे क्या हुआ, कैसे मैंने उस मस्त जवान मर्द के लंड का आनन्द लिया, आप जानेंगे मेरी गांडू सेक्स कहानी के अगले भाग में!

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कहानी का दूसरा भाग : दशहरा मेले में दमदार देसी लंड के दीदार-2