गांव वाली विधवा भाभी की चुदाई की कहानी-3

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अब तक आपने पढ़ा.. मैंने अपना हाथ रेखा भाभी की कामुक और गोरी जाँघों से होते हुए उनकी झांटों से भरी चूत पर रख दिया था। भाभी जाग गई थीं और उन्होंने मेरा हाथ झटक कर अलग कर दिया था। कुछ देर बाद मैंने अपना हाथ फिर से भाभी की जांघ पर रख दिया। अब आगे..

मगर रेखा भाभी को नींद नहीं आई थी इसलिए उन्होंने तुरन्त मेरा हाथ झटक कर दूर कर दिया और चादर ओढ़ लिया और सुमन के और पास को खिसक गईं।

अब तो मुझे यकीन हो गया था कि रेखा भाभी डर रही हैं इसलिए किसी से कुछ नहीं कहेंगी। मैंने उनके इसी डर का फायदा उठाने की सोचा, इससे मुझमें फिर हिम्मत आ गई। मैं सोने का नाटक करके रेखा भाभी को नींद आने का इन्तजार करने लगा। करीब आधे-पौने घण्टे तक मैं ऐसे ही इन्तजार करता रहा और जब मुझे लगा कि रेखा भाभी गहरी नींद सो गई हैं.. तो मैंने धीरे से उनकी तरफ फिर अपना हाथ बढ़ा दिया।

मगर अब वो मेरे हाथ की पहुँच से बाहर थीं। रेखा भाभी सुमन के बिल्कुल पास होकर सो रही थीं.. जिस कारण लेटे-लेटे मेरा हाथ उन तक नहीं पहुँच पा रहा था।

जब लेटे-लेटे मेरा हाथ रेखा भाभी तक नहीं पहुँचा, तो मैंने धीरे से खिसक कर अपने आधे शरीर को उनके बेड पर कर लिया। अब धीरे, बिल्कुल ही धीरे से पहले तो उनके पैरों की तरफ से चादर को हटा दिया। फिर धीरे-धीरे उनकी साड़ी व पेटीकोट में हाथ डालकर ऊपर खिसकाने लगा।

मैं रेखा भाभी की साड़ी व पेटीकोट को उनके जाँघों तक ही ऊपर कर सका क्योंकि इसके ऊपर वो उनके कूल्हों के नीचे दबे हुए थे।

साड़ी व पेटीकोट को ऊपर करने के लिए मैंने उन्हें थोड़ा सा खींचा ही था कि तभी रेखा भाभी की नींद खुल गई, वो फिर से उठकर बैठ गई और जल्दी से मुझे हटाने लगीं।

मगर अब मैं कहाँ हटने वाला था, मैं दोनों हाथों को रेखा भाभी की जाँघों के नीचे से डालकर उनकी गोरी चिकनी जाँघों से लिपट गया। मैंने उनकी साड़ी व पेटीकोट में सर डालकर उनकी नंगी जाँघों पर चुम्बनों की झड़ी लगा दी।

मुझसे बचने के लिए रेखा भाभी अपने घुटने मोड़ना चाह रही थीं.. मगर मेरे शरीर का भार उनके पैरों पर था.. इसलिए वो ऐसा नहीं कर सकीं।

मैं रेखा भाभी की जाँघों को चूमते हुए धीरे-धीरे ऊपर उनकी पेंटी तक पहुँच गया जहाँ से उनकी योनि से मादक गंध फूट रही थी। मैं भाभी की पेंटी के ऊपर से ही उनकी योनि को चूमने लगा।

मैं रेखा भाभी की पेंटी को चूमते हुए उनके कूल्हों के नीचे से साड़ी व पेटीकोट में हाथ डालकर उनकी पेंटी को भी निकालने कोशिश कर रहा था।

मगर तभी रेखा भाभी ने मेरे बालों को पकड़ लिया और मेरे बालों को खींचकर मुझे हटाने की कोशिश करने लगीं। बाल खिंचने से मुझे दर्द होने लगा.. इसलिए मैं पीछे हटने लगा। मगर मेरे हाथ रेखा भाभी की पेंटी को पकड़े हुए थे इसलिए मेरे पीछे हटने के साथ-साथ उनकी पेंटी भी उतरने लगी।

रेखा भाभी एक साथ एक ही काम कर सकती थी या तो वो अपनी पेंटी को पकड़ लेतीं या फिर मेरे बालों को। वो मेरे बालों को छोड़कर जब तक अपनी पेंटी को पकड़तीं.. तब तक उनकी पेंटी जाँघों तक उतर चुकी थी।

रेखा भाभी उसे दोबारा ऊपर करें.. उससे पहले ही मैं उनकी जाँघों से चिपक गया और अपने सर को फिर से उनकी साड़ी व पेटीकोट में डालकर दोनों जाँघों के बीच घुसा दिया।

मैं फिर से रेखा भाभी की जाँघों को चूमने-चाटने लगा और साथ ही धीरे-धीरे जाँघों को चूमते हुए उनकी योनि की तरफ बढ़ने लगा।

रेखा भाभी का पूरा शरीर डर के मारे काँप रहा था, वो बार-बार सुमन की तरफ देख रही थीं कि कहीं वो न जाग जाए। भाभी मुझे हटाने के लिए अपनी पूरी ताकत भी लगा रही थीं।

डर तो मुझे भी लग रहा था.. मगर एक तो सुमन दीवार की तरफ करवट करके सो रही थी और दूसरा इतना कुछ होने के बाद मैं पीछे हटना नहीं चाहता था। इसलिए मैं रेखा भाभी की दोनों जाँघों को बांहों में भर कर उनसे चिपटा रहा।

रेखा भाभी भी विवश सी हो गई थीं, वो ना तो शोर मचा सकती थीं और ना ही मुझे हटा पा रही थीं। मैं भी अब तक रेखा भाभी की योनि के ऊपर पहुँच गया था.. जो कि अब नंगी थी। मगर उन्होंने अपनी दोनों जाँघों को भींच रखा था और दूसरा उनके बैठे होने के कारण मेरा मुँह उनकी योनि से दूर था इसलिए मैं उनकी जाँघों के जोड़ पर व योनि के ऊपरी भाग को ही अपनी जीभ व होंठों से सहलाने लगा। इसके साथ ही मैं दोनों हाथों से उनकी जाँघों को अन्दर की तरफ से सहला भी रहा था।

इस दोहरे हमले का जो असर होना था.. वही हुआ और कुछ ही देर में इसका असर रेखा भाभी पर भी दिखने लगा। उनकी जाँघों की पकड़ ढीली पड़ने लगी। मैं इसी मौके की तलाश में था।

मैंने धीरे धीरे रेखा भाभी की पेंटी को नीचे खिसका कर उसे उतार दिया और फिर दोनों हाथों को उनकी जाँघों के बीच में डालकर उन्हें थोड़ा सा फैला दिया। रेखा भाभी को शायद इस बात का अहसास हो गया था इसलिए उन्होंने फिर से अपनी टाँगों को सिकोड़ने की कोशिश की.. लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी।

मैंने दोनों हाथों से जोर लगा उनकी दोनों जाँघों को फैला दिया और जल्दी से अपना सर उनकी दोनों जाँघों के बीच घुसा दिया।

अब मेरा सर रेखा भाभी की जाँघों के बीच घुस चुका था और मेरा मुँह उनकी योनि के ठीक ऊपर था।

मैंने जल्दी से अपने प्यासे होंठ रेखा भाभी की बालों से भरी योनि पर रख दिए।

अपनी योनि पर मेरे होंठों का स्पर्श पाते ही एक बार तो रेखा भाभी भी सिहर सी उठीं.. मगर फिर वो मुझे हटाने के लिए फिर से धक्के मारने लगीं। पर अब मैं कहाँ रूकने वाला था, मैं उनकी जाँघों को पकड़ कर उनसे चिपटा रहा और धीरे धीरे भाभी की योनि को चूमता रहा।

कुछ पलों बाद रेखा भाभी का विरोध भी अब हल्का पड़ने लगा। मैं रेखा भाभी की योनि की दोनों फाँकों के अन्दर की तरफ चूम रहा था.. साथ ही योनि की फांकों को चूमते हुए होंठों से ही धीरे-धीरे योनि के अनारदाने को भी तलाश कर रहा था।

मगर थोड़ा सा नीचे बढ़ते ही मुझे कुछ गीलापन सा महसूस हुआ। इसका मतलब था कि रेखा भाभी को भी मजा आ रहा है.. इसलिए मैं रेखा भाभी की योनि को चूमते हुए धीरे-धीरे नीचे उनके प्रेम द्वार‌ की तरफ बढ़ने लगा।

रेखा भाभी के बैठे होने के कारण योनिद्वार नीचे दबा हुआ था.. इसलिए मैं उनके प्रेम‌द्वार तक नहीं पहुँच सका।

फिर भी रेखा भाभी के योनिरस को चखने के लिए मैंने धीरे से प्रेमरस से भीगे बालों को ही चाट लिया, जो कि बड़ा ही नमकीन व कसैला स्वाद युक्त था।

रेखा भाभी की योनि पर मेरी जीभ के लगते ही उनके मुँह से ना चाहते हुए भी एक हल्की सी सीत्कार फूट पड़ी और मेरी जीभ से बचने के लिए उन्होंने अपने दोनों हाथों का सहारा लेकर कूल्हों को हवा में ऊपर उठा लिया।

मैंने एक बार बस रेखा भाभी की योनि से रिसते हुए प्रेमरस को चखा और फिर वापस अपनी जीभ को ऊपर की तरफ ले जाकर योनि के अनारदाने को तलाश करने लगा।

मगर उनकी योनि इतने घने गहरे बालों से भरी हुई थी कि वो मेरे मुँह में आ रहे थे। शायद कई महीनों से रेखा भाभी ने उन्हें साफ नहीं किया था। इसलिए मैंने रेखा भाभी की जाँघों को छोड़ दिया और दोनों हाथों की उंगलियों से उनकी काम सुरंग के बाहर, दोनों फांकों को फैला दिया। अब मैंने फिर से अपनी जुबान को रेखा भाभी की योनि पर रख दिया।

अब की बार मेरी जुबान ने सीधा रेखा भाभी के अनारदाने को स्पर्श किया था इसलिए एक बार फिर उनके मुँह से हल्की सी सीत्कार फूट पड़ी।

इसी के साथ भाभी ने अपने कूल्हों को ऊपर हवा में उठा लिया। अब रेखा भाभी भी उत्तेजित हो गई थीं इसलिए उन्होंने मेरा विरोध करना बन्द कर दिया और मेरे हल्का सा धकेलते ही वो फिर से बैड पर लेट गईं।

रेखा भाभी अब पूरी तरह से मेरे वश में थी इसलिए मैं रेखा भाभी को अपनी चारपाई पर ले जाने के लिए धीरे-धीरे उन्हें अपनी तरफ खींचने लगा। रेखा भाभी खिसक कर थोड़ा सा मेरी तरफ आईं.. मगर फिर रूक गईं। शायद उन्हें अहसास हो गया था कि मैं उन्हें चारपाई पर ले जाकर क्या करना चाहता हूँ।

सुमन के होते हुए शायद रेखा भाभी मुझे कुछ करने भी नहीं देंगी.. इसलिए मैंने सोचा कि जो मिल रहा है उसी से काम चला लिया जाए। अब फिर से मैंने उनकी योनि पर अपने होंठ रख दिए, साथ ही दोनों हाथों से धीरे-धीरे उनके उरोजों को भी सहलाने लगा।

रेखा भाभी अब भी बार-बार सुमन की तरफ देख रही थीं। तभी उन्होंने जो चादर ओढ़ रखी थी उसे सही से करके ओढ़ लिया। मगर भाभी ने मुझे हटाने और अपने कपड़े सही करने की कोशिश नहीं की, बल्कि मुझ पर भी वही चादर डालकर मुझे उस चादर से छुपा लिया।

रेखा भाभी तक पहुँचने के लिए मेरा आधा शरीर बेड पर था और मेरे पैर चारपाई पर लटक रहे थे।

मैं और रेखा भाभी अग्रेजी के अक्षर टी (T) की तरह हो रखे थे.. जिस कारण मुझे रेखा भाभी की योनि तक पहुँचने में थोड़ी दिक्कत हो रही थी।

मैं रेखा भाभी का एक पैर उठाना चाहता था.. मगर तभी रेखा भाभी ने सुमन की तरफ करवट बदल ली और अपने घुटने मोड़ लिए।

अब रेखा भाभी के कूल्हे मेरी तरफ हो गए थे.. इसलिए मैं उनके नंगे कूल्हों को ही चूमने लगा। फिर धीरे से मैंने भाभी की एक जाँघ को उठाकर उसके नीचे से उनकी दोनों जाँघों के बीच अपना सर डाल दिया.. जिसका उन्होंने कोई विरोध नहीं किया।

मुझे उम्मीद है कि आपको कहानी में मजा आ रहा होगा। आप मुझे ईमेल जरूर कीजिये। [email protected] कहानी जारी है।

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